Friday, May 3, 2024
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हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, उत्तराखंड सरकार और रेलवे को नोटिस: कहा- 7 दिन में 50 हजार लोगों को नहीं हटा सकते

साल 2013 में उत्तराखंड हाईकोर्ट में हल्द्वानी में बहने वाली रही गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। गोला नदी हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और पटरी के बगल से बहती है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से बसे गफूर बस्ती के लोग गोला नदी में अवैध खनन करते हैं, जिसके कारण रेल की पटरियों और गोला पुल को खतरा उत्पन्न हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर बसे लोगों को सात दिन के अंदर हटाने के हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए। इसके साथ ही उच्च न्यायालय के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी की है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीनों पर रह रहे लगभग 50 हजार लोग खुश हैं। पिछले कई दिनों से वे सड़कों पर उतर कर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। इस मामले की अगली सुनवाई 7 फरवरी 2023 को होगी।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे की याचिका पर सुनवाई करते हुए यहाँ बसे लोगों को अतिक्रमण बताया था और रेलवे को इस जमीन को सात दिन में खाली कराने के लिए कहा था। इसके बाद रेलवे इन इलाकों से अतिक्रमण हटाने के लिए तैयारी करने लगी थी। इसके बाद स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए और कॉन्ग्रेस के स्थानीय विधायक सुमित हृदयेश सुप्रीम कोर्ट चले गए।

क्या है मामला

27 दिसम्बर 2022 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे। इसके लिए न्यायालय ने प्रशासन को सप्ताह भर की समय सीमा दी थी। इसी आदेश में कोर्ट ने प्रशासन से बनभूलपुरा क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लाइसेंसी हथियार भी जमा करवाने को कहा था।

दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट भी रेलवे की जमीनों पर अतिक्रमण को लेकर चिंता जताते हुए इसे जल्द से जल्द खाली करवाने का आदेश दे चुका है। बता दें कि रेलवे की ओर से 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और अन्य ढाँचों के कुल 4,365 अतिक्रमण हटाए जाने हैं। जहाँ अतिक्रमण हटाया जाना है, वहाँ 20 मस्जिदें हैं।

अपनी कार्रवाई के पीछे रेलवे ने तर्क दिया है कि अवैध कब्ज़े से न सिर्फ विकास में दिक्कत आ रही बल्कि विस्तार भी प्रभावित हो रहा है। रेलवे का यह भी कहना है कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई से पहले अतिक्रमण करने वालों को कई नोटिस भेजी गई थी, लेकिन उस पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला और न ही किसी ने खुद से अतिक्रमण हटाया।

साल 2013 में उत्तराखंड हाईकोर्ट में हल्द्वानी में बहने वाली रही गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। गोला नदी हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और पटरी के बगल से बहती है। याचिकाकर्ता ने कहा था कि रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से बसे गफूर बस्ती के लोग गोला नदी में अवैध खनन करते हैं, जिसके कारण रेल की पटरियों और गोला पुल को खतरा उत्पन्न हो गया है।

1975 से हो रहा अतिक्रमण

कहा जा रहा है कि हल्द्वानी में रेलवे की जमीनों पर अवैध कब्ज़े की शुरुआत साल 1975 से हुई थी। पहले कच्ची झुग्गियाँ बनाई गईं, जो बाद में पक्के निर्माण में तब्दील हो गए। बाद में इसी अवैध कब्ज़े में न सिर्फ इबादतगाहें बल्कि अस्पताल तक बना डाले गए। आरोप है कि यह सब देखने के बाद भी तत्कालीन रेलवे सुरक्षा बल खामोश रहा।

साल 2016 में हाईकोर्ट की कड़ाई के बाद रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने अवैध कब्जेदारों के खिलाफ पहला केस दर्ज करवाया, लेकिन तब तक लगभग 50 हजार लोग अवैध तौर पर वहाँ रहना शुरू कर चुके थे। हाईकोर्ट के इस आदेश के चलते कब्जेदारों ने लम्बी मुकदमेबाजी की। हालाँकि, वो अपने कब्ज़े का कोई ठोस प्रमाण नहीं पेश कर पाए।

बताया जा रहा है कि अवैध कब्जेदारों के खिलाफ डेढ़ दशक पहले भी बड़ा अभियान चलाया गया था। तब भारी फ़ोर्स के साथ सिर्फ कुछ हिस्सों को खाली करवा पाया गया था। इस दौरान कब्जेदारों के घरों के नीचे रेलवे लाइनें तक निकली थीं। कुछ समय की शांति के बाद खाली करवाए गए स्थान पर फिर से अवैध कब्ज़ा हो गया।

कहा जाता है कि यहाँ पर अवैध रूप से बसाने की शुरुआत दिवंगत कॉन्ग्रेस नेत्री इंदिरा हृदयेश ने की थी। इसी राह पर अब उनके बेटे सुमित हृदयेश भी हैं। यहाँ ये जानना जरूरी है कि कॉन्ग्रेस पार्टी ने अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के खिलाफ और कब्जेदारों के समर्थन में कैंडल मार्च निकाला है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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