“हम वहाँ जाते हैं जहाँ कोई नहीं जा सकता” यह अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA के ट्विटर बायो पर उनका ध्येय-वाक्य है, और सच भी है- वे असम्भव को अपने देशहित में सम्भव करके दिखाते हैं। ISRO के कार्यक्षेत्र का शायद CIA से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन चंद्रयान-2 के बाद इसरो भी यह कहने का पूरी ठसक के साथ हकदार हो गया है कि “हम वहाँ जाते हैं, जहाँ कोई नहीं जाता।” ऐसा इसलिए क्योंकि चंद्रयान-2 चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, जहाँ किसी और देश ने अपना अभियान नहीं भेजा।
We are landing where no one has gone before: ISRO Chief
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चंद्रमा- और अंतरिक्ष-अभियानों की कायापलट
इसरो को उम्मीद है कि विक्रम नामक मॉड्यूल की सॉफ़्ट लैंडिंग (जोकि भारत चन्द्रमा पर पहली बार करने का प्रयास करेगा) से जो खोजें होंगी, वे न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के लिए लाभकारी होंगी। प्रेस को जारी विस्तृत जानकारी-सामग्री में इसरो ने उम्मीद जताई है कि चन्द्रमा पर भविष्य में होने वाले अभियानों में तो यह अभियान आमूलचूल परिवर्तन लाएगा ही, साथ ही सुदूर अंतरिक्ष की नई सीमाओं को नापने में भी इसका योगदान होगा।
Details of India’s #Chandrayaan2 mission: Chandrayaan 2 is an Indian lunar mission that will boldly go where no country has ever gone before– the Moon’s south polar
— ANI (@ANI) September 6, 2019
region. #Chandrayan2landing pic.twitter.com/My4LM2HB4P
इसरो ने इशारा किया है कि चंद्र-अभियान का मकसद केवल चन्द्रमा की नई गहराईयों में उतरना ही नहीं है, बल्कि सुदूर अंतरिक्ष में अभियानों की तैयारी के लिए भी चन्द्रमा ‘प्रयोगशाला’ है।
सबसे ताकतवर लॉन्चर का इस्तेमाल
भारत ने चंद्रयान के लिए अब तक का सबसे ताकतवर लॉन्चर GSLV Mk-III (जीएसएलवी मार्क-3) इस्तेमाल किया है। 43.43 मीटर लम्बा और 640 टन भारी लॉन्चर चंद्रयान को उसकी निर्धारित कक्षा तक ले जाएगा।
The GSLV Mk-III will carry #Chandrayaan2 to its designated orbit. This three-stage vehicle is India’s most powerful launcher to date, and is capable of launching 4-tonne class of satellites to the Geosynchronous Transfer Orbit (GTO). pic.twitter.com/HasZ2aGi3v
— ANI (@ANI) September 6, 2019
22 जुलाई को भारत से लिफ़्ट-ऑफ़ लेने वाले चंद्रयान का सफ़र कुल 48 दिनों का है। इसके अंत में 6-7 सितंबर की रात को deboosting की प्रक्रिया शुरू कर लैंडिंग पूरी कर लेगा।
#Chandrayaan2 Mission sequence details: pic.twitter.com/1hI1K9XYKI
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महान वैज्ञानिक के नाम पर लैंडर
विक्रम नामक लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष प्रोग्राम के जनक माने जाने वाले डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर है। इसका जीवन काल चाँद के एक दिन का है। धरती के लिए यह 14 दिनों के करीब होगा, क्योंकि चाँद अपनी धुरी पर एक घूर्णन (rotation) धरती के मुकाबले करीब 14 गुना धीमी गति से करता है। इसका सम्पर्क बंगलुरु के पास ब्यालालु स्थित Indian Deep Space Network (ISDN) के साथ भी रहेगा।
Details of India’s #Chandrayaan2 Mission: VIKRAM- #Chandrayaan2’s lander, is named after Dr Vikram A Sarabhai, the Father of the Indian Space Programme. It is designed to function for one lunar day, which is equivalent to about 14 Earth days. pic.twitter.com/d5ncwYgBLY
— ANI (@ANI) September 6, 2019
उपकरण
चंद्रयान के मिशन पेलोड में कई सारे उपकरण हैं, जो चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव की पूरी तस्वीर खींचने में किसी-न-किसी पैमाने पर सहायक होंगे। इसमें इलाके की तस्वीरें लेने के लिए टेरेन मैपिंग कैमरा, सतह पर मौजूद धुल-मिट्टी में रासायनिक तत्वों का अनुपात मापने के लिए लार्ज एरिया सॉफ़्ट एक्स-रे स्पेक्ट्रॉमिटर, वहाँ पहुँचती सूर्य की किरणों के विश्लेषण के लिए सोलर एक्स-रे मॉनिटर प्रमुख हैं। इसके अलावा जमे हुए पानी को ढूँढ़ने के लिए ड्युअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक एपर्चर रेडार, चन्द्रमा के ऊपरी वातावरण के अध्ययन के लिए ड्युअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस एक्स्पेरिमेंट, भूकंप को भाँपने के लिए विशेष उपकरण आदि होंगे।
Details of India’s #Chandrayaan2 Mission: The mission’s payloads consists of Terrain Mapping Camera-2, Large Area Soft X-ray Spectrometer, Solar X-Ray Monitor, Imaging IR Spectrometer among others pic.twitter.com/LfElWB2uOZ
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प्रज्ञान रोवर
चंद्रयान-2 का ज़मीनी उपकरण प्रज्ञान है, जोकि एक 6 पहियों वाला रोबोटिक वाहन है। यह 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से 500 मीटर (आधा किलोमीटर) तक चल सकता है। साथ ही यह विक्रम लैंडर से संचार माध्यम से सम्पर्क भी स्थापित कर सकता है। चन्द्रमा पर यह सौर-ऊर्जा से काम करेगा।
Details of India’s #Chandrayaan2 mission: #Chandrayaan2’s rover is a 6-wheeled robotic vehicle named Pragyan, which translates to ‘wisdom’ in Sanskrit. It can travel up to 500 m (0.5 km) at a speed of 1 cm per second, & leverages solar energy for its functioning. #PragyanRover pic.twitter.com/fj4ZzoUqEX
— ANI (@ANI) September 6, 2019