दिल्ली सरकार के बाल विकास विभाग का अधिकारी रहते प्रेमोदय खाखा (Premoday Khakha) ने दोस्त की बेटी का जिस तरीके से शोषण किया, उसका दर्द जिस्मानी से कहीं अधिक जेहनी होता है, जो ताउम्र नासूर सा सालता रहता है।
रिपोर्टिंग के दिनों में मेरा ऐसी बहुत सी सच्ची कहानियों से राब्ता हुआ है, जिनमें बेहद करीबी लोगों ने शारीरिक शोषण किया और इसके बाद भी वो पीड़िताओं के घरों पर आते रहे और सम्मान पाते रहे। वहीं पीड़ित बच्चियाँ चीखकर तो क्या, हलके से भी अपने साथ हुए इस वहशी बर्ताव पर चूँ तक नहीं कर पाई। सिसकती रहीं, अकेले ही अपने कमरों में या फिर बचने की कोशिश करती रही ऐसे वहशी दरिंदों से।
अपने ही साथ का वो वाकया मुझे आज भी चैन नहीं लेने देता। मेरे साथ भद्दा और खौफ में डाल देने वाला ये वाकया तब घटा था, जब बीमारी की वजह से मैं हॉस्पिटल में थी। उस वक्त उम्र महज 15 या 16 साल रही होगी। हॉस्पिटल के वार्ड ब्वाय ने पेट दबाने के बहाने मेरी छाती दबा डाली। दर्द और अपमान से मेरे आँसू निकल आए, लेकिन मैं किसी से कुछ कह नहीं पाई। बस खुद को ही दोषी मानती रही। न जाने क्यों? लेकिन आज भी उस वाकए को याद कर मैं सिहर उठती हूँ।
ऐसे ही आपबीती एक पुलिस अधिकारी की वाइफ ने मेरे साथ साझा की थी। उनसे मेरा परिचय चाइल्ड एब्जूज पर स्टोरी करते वक्त साल 2011-12 में हुआ था। उन्होंने मुझे बताया था कि उन्हें पढ़ाने उनके घर एक टीचर आते थे। घर में सब लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे, लेकिन वो किसी हैवान से कम नहीं था। पढ़ाने के बहाने वह अकेले कमरे में उनके प्राइवेट पार्ट्स छूता था। उन्होंने बताया कि कई बार उन्होंने अपनी माँ से कहने की कोशिश की, लेकिन खुल के कह नहीं पाई।
इस पुलिस अधिकारी की पत्नी का मानना था कि शायद हमारी (लड़कियों) परवरिश ही घरों में ऐसे की जाती है कि शरीर को लेकर कुछ भी हो उन्हें छुपे और दबे स्वरों में ही कहने की इजाजत होती है। यौन शोषण के लिए हमेशा खुद को ही दोषी ठहराने की मानसिकता में वे जकड़ दी जाती हैं। पुलिस अधिकारी की ये पत्नी बचपन में अपने साथ हुए इस तरह के व्यवहार को कभी भुला नहीं पाई, लेकिन एक बात जरूर अच्छी हुई कि वो अपनी बेटी को सब खुलकर कह देने की हिम्मत दे पाईं।
लेकिन ऐसी न जाने कितनी औरतें, बच्चियाँ और युवतियाँ होंगी जो कहीं न कहीं अपने सीने में ये राज दफन कर अंदर ही अंदर घुट रही होंगी। गुड टच, बैड टच, मी टू जैसे चाहे कितने ही अभियान चले, पॉक्सो एक्ट जैसे कितने ही कानून क्यों न बन जाए, लेकिन बचपन में यौन शोषण का शिकार होने के बाद मन से उस भयानक वक्त का खौफ निकालना संभव नहीं। यह पीड़िताओं को मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर भी कमजोर और तोड़ कर रख देता है।
महज 14 साल की उम्र से ही दिल्ली सरकार के अधिकारी प्रेमोदय खाका की गंदी मानसिकता और हरकतों का शिकार हुई नाबालिग बच्ची के दर्द अंदाजा शायद ही कोई लगा पाए। उसे एक ‘मामा’ जैसे भरोसेमंद शख्स ने जिदंगी भर के लिए उसके जिस्म, दिल और दिमाग पर ऐसे जख्म दे दिए हैं, जिसके घाव शायद ही कभी भर पाएँगे। यहाँ ये बात भी ध्यान देने वाली है कि बच्ची अपनी माँ को वक्त रहते सब कुछ क्यों नहीं बता पाई? बात फिर वहीं आती है कि बच्चों के साथ बेहद खुला रिश्ता शायद ही कोई माँ-बाप रख पाते हैं।
जहाँ पर आकर वो बेझिझक अपनी बात रख सकें। उसे कहीं से भी ये न लगे कि उसके बात सुनने पर पेरेंट्स उसे जज करेंगे। वहीं हमारे रहन-सहन में कहीं न कहीं हम बच्चों के दिमाग ये बात बैठाते रहे हैं कि प्राइवेट पार्ट पर बात करना बुरी बात है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इन अंगों से जुड़ी कोई भी बात होने पर सीधे पेरेंट्स को बताने से बच्चे हिचकते ही हैं।
शायद यही वजह रही होगी कि 14 साल में वहशी प्रेमोदय खाखा के नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के दौरान रेप किए जाने के बाद भी वो बच्ची अपनी माँ से कुछ नहीं कह पाई। फोन पर माँ से वो बात तो करती थी, लेकिन उसने कभी ये नहीं बताया कि उस पर क्या बीत रही है। शायद उसे पैनिक अटैक नहीं आते और वो हॉस्पिटल में नहीं जाती तो जाने कितनी बार ‘मामा’ के भेष में छिपा वो वहशी दरिंदा उसका रेप करता और गर्भपात करवाता रहता।
इसमें सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि प्रेमोदय खाखा की पत्नी सीमा रानी (Seema Rani) खुद एक औरत होने और खुद के बच्चे होने के बाद कैसे अपने ही बेटे से उस बच्ची के लिए अबॉर्शन पिल्स मँगवाती है। वो अपने बेटे को किस तरह का इंसान बना रही है। इससे तो वो यही सीख रहा है किसी का भी रेप करो और फिर अबॉर्शन पिल्स से गर्भपात करवा दो और साफ बचकर निकल जाओ।
फरवरी 2021 में जब नाबालिग बच्ची ने वहशी प्रेमोदय खाखा की पत्नी सीमा रानी को अपने पीरियड मिस होने की बात बताई। उसने अपने बेटे से अर्बाशन पिल्स मँगवाकर उसका गर्भपात करवा दिया। समझ सकते है उस बच्ची का ट्रॉमा जो लगातार रेप का शिकार होती रही और मदद माँगने पर उसे और शोषण झेलना पड़ा?
अप्रैल 2021 में 4 महीने बाद मुश्किल से ये नाबालिग लड़की अपनी माँ को कह पाई कि उसकी तबियत ठीक नहीं वो उसे घर ले जाएँ, लेकिन तब भी उसने अपने साथ हुए वहशीपन की बात नहीं बताई। वो घटना के दो साल बाद अगस्त के शुरुआत में अपनी खुद की माँ को ये कह पाई। इतना ही नहीं उसने उस जगह पूजा के लिए जाना भी छोड़ दिया जहाँ अक्सर प्रेमोदय खाखा आया करता था।
महज 14 साल की उम्र में कई बार रेप का शिकार होने वाली ये नाबालिग लड़की लगातार इतना वहशीपन झेलने के बाद किस तरह से खुद को सँभाल रही होगी। अब ये बच्ची 17 साल की हो गई और 12 वीं में पढ़ रही है, लेकिन उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का क्या जो खेलने-खुश रहने की उम्र में गुमसुम रहने और पैनिक अटैक झेलने को मजबूर है।
भले ही प्रेमोदय खाखा को कड़ी सजा मिल जाए, लेकिन क्या इस बच्ची का बचपन वापस आ पाएगा? क्या वो कभी मानसिक तौर पर स्थिर हो पाएगी? इस खौफनाक वाकए को क्या वो कभी भूल पाएगी? शायद नहीं। बच्ची को उस वक्त खुद के जिस्म और जेहन पर वहशीपन झेलना पड़ा, जब वह पिता की मौत के गम से उबर भी नहीं पाई थी। इस तरह से बचपन में यौन हिंसा और शोषण के शिकार हुए बच्चों के लिए ये दर्द उनकी जिंदगी में ताउम्र नासूर की तरह रिसता है।
यहाँ एक बात और ध्यान देने की है कि बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पेरेंट्स की भी है। उनको अपने बच्चों के साथ ऐसा रिश्ता रखना चाहिए कि वो सब कुछ उन्हें बताने की हिम्मत रखें, ताकि हर बच्चा-बच्ची इस तरह की घिनौनी हरकतों का शिकार बनने से बच पाए। बच्चों के व्यवहार में बदलाव आने पर तुरंत उससे बात करें, क्योंकि इस मुद्दे पर बात करना और बोलना निहायत जरूरी है।
बच्चों का यौन शोषण वो भी अपने करीबी और भरोसेमंद लोगों के द्वारा होना इस समाज की घिनौनी सच्चाई है। इस सच्चाई का सामना करने के लिए सामना आना होगा, ताकि जिस्म के भूखे वहशी दरिंदे किसी भी मासूम को अपना शिकार न बना पाए। बच्चों का यौन शोषण समाज में बसा एक कोढ़ है। पेरेंट्स को बच्चों की बातें को संजीदगी से लेना चाहिए, वो कुछ भी बताते हैं तो अनजान न बने, उनकी बात न टाले, उन्हें तसल्ली से सुने।
किसी खास परिचित से मिलने से बच्चा बच रहा है या किसी रिश्तेदार के आने पर उसके व्यवहार में बदलाव आ रहा है तो इसे गंभीरता से लें। यूनिसेफ और दिल्ली के एनजीओ ‘सेव दि चिल्ड्रन’ के सहयोग से महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2007 में एक स्टडी किया था। इससे पता चला था कि बच्चों के यौन शोषण में 50 फीसदी उनके भरोसेमंद और परिचित ही होते हैं। साथ ही लड़कों और लड़कियों में यौन शोषण का स्तर बराबर है।
साल 2022 के द नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो आँकड़े भी इसकी तरफ इशारा करते हैं कि भारत में 109 बच्चे हर दिन किसी न किसी तौर से यौन शेाषण का शिकार होते हैं और यह परेशानी हर साल लगातार बढ़ती जा रही है। बच्चों का यौन शोषण शारीरिक हो या भावनात्मक उनकी मानसिक सेहत पर गहरा असर डालता है, जो उन्हें ताउम्र परेशान करता है।
मासूमियत सुरक्षित रहे इसके लिए बच्चों को लोगों के गलत हाव-भाव, गलत इशारों और व्यवहार के बारे में बताएँ, ताकि ऐसा होने पर वह तुरंत बता सकें। पूरी कोशिश करें कि बच्चे को संकोची न बनाएँ। उनके लगातार गुमसुम रहने और असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज न करें। इस तरह की अनहोनी होने पर बच्चों को सहज करने की पूरी कोशिशें करें। हो सकें तो काउंसलर के पास ले जाएँ।
बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की भी बेहद जरूरत है। लेकिन उसमें इतना सलीका, सहजता और सरलता होनी चाहिए कि वो इसे आसानी से समझ सकें और भ्रम में न पड़े। बच्चों को खेल में ही ऐसी जानकारी दी जाएँ कि उन्हें इस संवेदनशील विषय को समझने में आसानी होगी। मासूमियत का ये दौर यौन हिंसा और शोषण के दौर से न गुजरे इसके लिए समाज में जागरूकता बेहद जरूरी है।