आप ही बताइए कि क्या प्रधानमंत्री के बोलने से कोरोना मर जाएगा? तब तो हर देश के प्रधानमंत्री को माइक ले कर, संबोधन दे देना चाहिए, कोरोना मर जाएगा। जबकि हमारे फैजान मुस्तफा बताते हैं कि IPC और संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि भाषण देने से कोरोना मर जाता है।
आश्चर्य की बात यह कि ममता के बंगाल से छपने वाले इस अखबार में बंगाल के मजहबी दंगे दिखाई नहीं देते, बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ताओं की आए दिन होती हत्याएँ नहीं दिखतीं, लेकिन दलितों को एक वायरस से तुलना करते हुए, राष्ट्रपति पर निशाना साधा जाता है, क्योंकि वो भाजपा-संघ से जुड़े हुए रहे हैं।
कट्टरपंथियों के घर के ऊपर युद्ध लड़ने के मकसद से पेट्रोल बम, एसिड, पत्थर और आग लगाने का सामान इकट्ठा दिख रहा है, और फिर भी आपको बताया जा रहा है कि ये 'हिन्दुओं द्वारा मुस्लिमों के सफाए की साजिश है', 'ये मुस्लिमों का पोगरोम है', 'ये मुस्लिमों का नरसंहार है'।
"रवीश कुमार बेशर्मी का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। उन्होंने मोहम्मद शाहरुख़ को अनुराग मिश्रा बताया और कहा कि वो कपिल मिश्रा का कोई सम्बन्धी हो सकता है। मोहम्मद शाहरुख़ ने उन दंगों में 8 राउंड फायरिंग की थी। फोटोशॉप कर के मेरे साथ उसकी तस्वीर वायरल की गई, जो झूठ निकली।"
ये हरा-हरा सा एक फिल्टर
जो तुमने चढ़ा कर रक्खा है
उससे भगवा छँट जाता है
हिन्दू गायब हो जाता है
दिखता है बस इमरान-जुबैर
अंकित-दीपक छुप जाता है
ओ वामपंथ के रखवाले
ओ लम्पट लिबरल तुम साले!
दिल्ली दंगो की व्यथा सुनाती इस कविता को पढ़ें, सुनें औरों तक पहुँचाएँ। आप इसे अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर आगे बढ़ाएँ।