Wednesday, November 27, 2024
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अजीत भारती

पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

हिन्दुओं के इस पदचाप को देख कर कइयों को डर लग रहा है… ये डर अच्छा है

अगर इस भीड़ को देख कर तुम्हें डर लग रहा है, तो फिर डरो क्योंकि ये डर पूरे भारतीय समाज की शांति के लिए अच्छा है। अगर ये डर तुम्हारे भीतर रहेगा कि तुम्हारी आगजनी, पत्थरबाजी, गोली चलाने की प्रवृत्ति के टक्कर में एक ऐसी टोली है जो हर जिले में तैनात है, तो तुम सड़कों पर आ कर आग लगाने से पहले सोचोगे।

पेट्रोल बम फेंको, नौकरी पाओ योजना: ‘ये लोग’ दंगाइयों को पालते रहेंगे, हिंदू सोता रहेगा

आपके पास विकल्प दो ही हैं: डर कर रहिए या सवाल पूछना शुरू कीजिए। सवाल नहीं पूछेंगे कि तुम्हें 'हिन्दुत्व' को फक करने का विचार क्यों आता है, तो ये कल आपकी बहू-बेटियों को छेड़ने से भी नहीं हिचकिचाएँगे। अगर कोई ‘हिन्दुओं से आजादी', ‘हिन्दुत्व की कब्र खुदेगी', 'फक हिन्दुत्व' बोल कर और लिख कर खुले आम टहल रहा है, तो...

यूनिवर्सिटी दंगों के 6000 लोगों को रोकने के लिए जब कैनेडी ने 30,000 जवान उतार दिए थे

हम ये मान लें कि 'अल्लाहु अकबर' का मतलब 'गॉड इज ग्रेट' होता है? इतने मासूम तो मत ही बनो। दंगा करते वक्त ये नारा उतना ही साम्प्रदायिक है जितना 'हिन्दुओं से आजादी' और ‘हिन्दुत्व की कब्र खुदेगी' है। राजनैतिक विरोध में 'नारा-ए-तकबीर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' की जगह कैसे बन जाती है?
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रवीश कुमार और न्यूजलॉन्ड्री का ऑपइंडिया पर हमला: अजीत भारती का जवाब | Ajeet Bharti on Ravish Kumar and Newslaundry Propaganda

रवीश कुमार ने न्यूज लॉन्ड्री के साथ मिलकर ऑपइंडिया पर हमला करते हुए कहा कि आईटी सेल वालों की दुकान ही चलती है रवीश कुमार के नाम से।

कहानी एक अब्दुल की जिसे टीवी एंकर दंगाई बनाता है… उसकी मौत से फायदा किसको?

अब्दुल गिर जाता है, उसकी आँखों के सामने स्कूल जाती रजिया का चेहरा घूमता है, उसके माता-पिता की तस्वीर नाचती है, उसकी आँख बंद होने लगती है, लोग उसके ऊपर लात रख कर भाग रहे होते हैं। भीड़ छँटने के बाद अब्दुल मरा हुआ पाया जाता है।

जामिया में मजहबी नारे ‘नारा-ए-तकबीर’, ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ क्यों लग रहे? विरोध तो सरकार का है न?

संविधान में आस्था है तो पुलिस पर पत्थरबाज़ी कैसे कर लेते हो? वो इसलिए कि तुम्हें पता है कि वो 'उम्माह' तुम्हारी खातिर जहाँ कहीं भी है, उठ खड़ा होगा और बोलेगा। अगर ये प्रदर्शन सिर्फ नागरिकता कानून को ले कर होता, और तुम सिर्फ विद्यार्थी होते तो इस प्रकरण में न तो पत्थर आता, न ही अल्लाह!

क्या नागरिकता बिल मुसलमानों को भगाने के लिए लाया गया है?

मुसलमानों के साथ कौन सा अन्याय हुआ है? कहाँ के मुसलमान को वो नहीं मिल रहा जो हिन्दुओं को मिल रहा है? क्या कोई ऐसी योजना है, छात्रवृत्ति है, कोई कार्ड है, सिलिंडर है, बिजली है, बैंक अकाउंट है, बल्ब है, बीमा है, हॉस्पिटल है, स्कूल है, कॉलेज है, यूनिवर्सिटी है, जहाँ सरकार ने कहा हो कि इसमें भारतीय मुसलमानों को नहीं रखा गया है?

समाज एनकाउंटर पर जश्न मनाता है, तो उसका कारण है: उन्नाव की बेटी भी कल मर गई

जब नागरिक ऐसे मामलों से उब जाते हैं तो फिर ऐसी मौतों का जश्न मनाते हैं। इसलिए ऐसे मामलों में जब किसी की हत्या ही न्यायोचित थी, भले ही उस पर केस न चला हो, आम नागरिक के लिए यह एक छोटी-सी जीत है, जिस पर खुश होने का उन्हें हक है।