योजना ही नहीं, देश भी पहले से ही था, तो क्या काम ही न किया जाए? क्या योजना बना देने से ही काम हो जाता है? या फिर पुरानी योजना पर नए तरीके से काम करना और समाज को लाभ पहुँचाना कोई अपराध है? योजना का नाम ही नहीं, उसके क्रियान्वयन को भी मोदी सरकार ने पूरी तरह से बदला।
एंकर स्टूडियो के भीतर इस तरह का चेहरा लेकर आने लगा कि उसे स्टूडियो के बाहर कुछ हिंदुओं ने थप्पड़ मार कर चेहरा सुजा दिया है। एंकर इस तरह से मरा हुआ मुँह लेकर बैठने लगा, और भद्दे ग्राफ़िक्स की मदद से आपको बताने लगा कि हत्या तो बस समुदाय विशेष की ही हो रही है, और कैसे डर फैलाया जा रहा है।
एक घमंड है इन पार्टियों के समर्थकों और मोदी के विरोधियों के भीतर। वो घमंड यह है कि वो जो सोचते हैं, वो जिन्हें चाहते हैं, उन्हें अगर बहुमत नहीं मिल रहा तो जनता पागल है। ये अभिजात्य मानसिकता, ये निम्न स्तर का दंभ, उसी तरीके से दिमाग में चढ़ता है जैसे सत्ता में होने पर पावर का नशा।
विपक्ष ने मुद्दे नहीं उठाए। विपक्ष ने सनसनी बनाने पर ज़्यादा ध्यान दिया। जस्टिस लोया की मौत को मुद्दा बनाया गया, गलत वित्तीय ज्ञान परोस कर अमित शाह के बेटे की कम्पनी को मुद्दा बनाया गया, अजित डोभाल के बेटों पर माहौल बनाने की कोशिशें हुई, नोटबंदी पर लाशें पैदा की गईं, जीएसटी पर उन व्यापारियों के नुकसान की बात हुई जो कहीं थे ही नहीं!
जो लोग रवीश की पिछले पाँच साल की पत्रकारिता टीवी और सोशल मीडिया पर देख रहे हैं, वो भी यह बात आसानी से मान लेंगे कि रवीश जी को पत्रकारिता के कॉलेजों को सिलेबस में केस स्टडी के तौर पर पढ़ाया जाना चाहिए।
इंटेलेक्चुल लेजिटिमेसी और फेसबुक पर प्रासंगिक बने रहने, ज्ञानी कहलाने और एक खास गिरोह के लोगो में स्वीकार्यता पाने के लिए आप भले ही मोदी की हर बात पर लेख लिखिए, लेकिन ध्यान रहे कुतर्कों, ठिठोलियों और मीम्स की उम्र छोटी होती है।
राघव बहल लाख राहुल को पूर्ण राजनेता मान लें, लेकिन राहुल गाँधी का दुर्भाग्य यह है कि वो भरी बारिश में काली माता के मंदिर में दिया जलाने जाते नहीं, और सिर्फ चुनावों के समय ही जनऊ पहनते हैं, राम भक्त और शिव भक्त बनते हैं। साथ ही, उनको एक्सिडेंटली भी, सर पर चोट लगने से ही सही, ज्ञान मिलने की संभावना दिखती नहीं क्योंकि उसके लिए भी पूर्व में अर्जित ज्ञान के लोप होने की बात ज़रूरी है।
अगर राज्य स्वयं ही गुंडों को पाले, उनसे पूरा का पूरा बूथ मैनेज करवाए, उनके नेता यह आदेश देते पाए जाएँ कि सुरक्षाबलों को घेर कर मारो, उनके गुंडे इतने बदनाम हों कि वहाँ आनेवाला अधिकारी ईवीएम ही उन्हें सौंप दे, तो फिर इसमें चुनाव सही तरीके से कैसे हो पाएगा?