अगर यह कहा जाए कि सचिन तेंदुलकर के बाद मैरी कॉम राज्य सभा में पहुँचने वाली सबसे बड़ी ‘स्पोर्ट्स स्टार’ हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लंदन ओलंपिक में काँस्य, एशियाड-कॉमनवेल्थ-विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण तो हर किसी को पता हैं लेकिन मैरी कॉम की ‘प्रोफाइल’ इन सबसे भी गहरी और ज़्यादा है। वह पशु-अधिकारों के लिए काम करतीं हैं, वह ‘अमैच्योर’ श्रेणी में हो कर भी ‘प्रोफेशनल’ श्रेणी के भारतीय एथलीटों से ज्यादा कमाई करतीं हैं और महिला बॉक्सिंग में विश्व चैंपियनशिप सबसे अधिक (10 में से 6) बार उन्होंने ही जीती है। मणिपुर-निवासी मैरी कॉम शायद भाला फेंक या 400 मीटर दौड़ की धुरंधर होतीं, अगर उनके प्रेरणा-स्रोत और मणिपुर के ही निवासी डिंगको सिंह 1998 के एशियाड में स्वर्ण पदक न लाते। इनकी जीत के बाद मैरी का ध्यान मुक्केबाजी की ओर मुड़ा।
जैकी चैन, जेट ली की फिल्मों से पड़ा बीज
टेलीग्राफ को दिए गए साक्षात्कार में मैरी ने बताया कि बचपन से ही जैकी चैन और जेट ली की एक्शन फ़िल्में उन्हें बहुत आकर्षित करतीं थीं। उन्हें मुहम्मद अली की मुक्केबाजी देखना भी बहुत पसंद था, और जब 17-18 साल की उम्र में उन्होंने मुक्केबाजी में कैरियर बनाने का निश्चय किया, तो यह ठीक से पता भी नहीं था कि महिला बॉक्सिंग जैसा कोई खेल होता भी है या नहीं। कोई ‘मेंटर’ भी नहीं था- थी तो बस ‘ज़िद’। अपनी ज़िद के बारे में मैरी बतातीं हैं कि उनके राज्य स्तर पर चैंपियनशिप जीतने तक पिता को पता ही नहीं था कि वह क्या कर रहीं हैं, क्योंकि मैरी जानतीं थीं कि घर वाले सहायता नहीं कर पाएँगे।
अपने आप को साबित करने, लोगों को ‘दिखा देने’ की ललक का भी मैरी के कैरियर के शुरू होने से लेकर लम्बा खिंचने में बड़ा हाथ है। उन्होंने नकारात्मक आलोचकों को ‘दिखा दिया’, परिवार के सामने भी खुद को साबित करना पड़ा- राष्ट्रीय स्तर के लिए राज्य स्तर पर चयन होता है, और उसकी तैयारी इतनी खर्चीली होती है कि मैरी को परिवार से मदद लेनी ही पड़ गई, और उसके साथ ही यह दबाव भी आ गया कि हार गईं तो शायद दो और बच्चों के भविष्य की चिंता के तले दबा परिवार और मदद न कर पाए। लेकिन मैरी ने लड़कर दिखाया, जीतकर दिखाया।
पति ने पूरा साथ दिया, शादी के पहले किया वादा निभाया
मैरी कॉम अपने पति ओनलर कॉम और ससुर के योगदान को भी महत्वपूर्ण मानतीं हैं। फुटबॉल में रुचि रखने वाले ओनलर से उनकी मुलाकात भी मुक्केबाजी के चलते ही हुई। राष्ट्रीय खेलों के लिए पंजाब जाते हुए सामान खोने के बाद उस समय डीयू में कानून के छात्र और नार्थ-ईस्ट के छात्रों की संस्था के अध्यक्ष ओनलर ने उनकी सामान ढूंढ़ने आदि में सहायता की थी। लेकिन 2005 में शादी करने के पहले उन्होंने साफ़-साफ़ पूछ लिया कि शादी के बाद ओनलर बॉक्सिंग कैरियर को समर्थन दे पाएँगे या नहीं; साथ ही यह वादा भी किया कि अगर ओनलर हाँ करते हैं तो वह दिखा देंगी कि किस मिट्टी की बनीं हैं।
आज भी वह पति के समर्थन की कितनी ज़रूरत महसूस करतीं हैं, इसका पता इस बात से चलता है कि 2013 में उन्होंने 2016 के रियो ओलम्पिक को ही अपना आखिरी माना था, लेकिन आज पति और परिवार के अपने पीछे खड़े होने से उनकी एक और सुनहरे तमगे की ज़िद 2020 के टोक्यो ओलम्पिक के लिए उनसे तैयारी करा रही है। सी-सेक्शन सर्जरी, छोटी-बड़ी चोटें, दर्द, थकता शरीर- इन सबसे बड़ी जीतने की भूख है।
‘हाथी जंगल में अच्छे लगते हैं, हमारी बेड़ियों में नहीं’
यह कई लोगों के लिए अचरज का विषय हो सकता है, लेकिन मुक्केबाजी जैसे ‘हिंसक’ खेल में कैरियर बनाने और खुद माँसाहारी होने के बाद भी मैरी कॉम जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था PETA (पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ़ एनिमल्स) से जुड़ी हुईं हैं। उन्होंने सर्कसों में हाथियों के इस्तेमाल और उनके साथ होने वाले क्रूर व्यवहार के खिलाफ 2014 में आवाज़ उठाई थी। उन्होंने एक खुला पत्र लिख कर करुणा, मानवीयता और पशुओं का सम्मान करने को बच्चों की शिक्षा का अंग बनाए जाने की माँग की थी।
स्पष्टभाषी, थोड़ी-सी गुस्सैल
मैरी कॉम स्पष्टभाषी हैं- इस हद तक कि उनकी बात चुभ भी सकती है। वह टेलीग्राफ़ को दिए गए इंटरव्यू में नई पीढ़ी के एथलीटों में दीर्घकालिक जिजीविषा और जुझारूपन की कमी पर सीधे उँगली रख देतीं हैं (“मैं देखती हूँ कि युवा लड़के-लड़कियाँ पहला मेडल जीतने के बाद दूसरी बार के लिए कोशिश नहीं करते। ऐसा नहीं चल सकता। अगर लम्बे समय तक चलना है, तो यह मानसिकता नहीं चलेगी…”) वह बहुत जल्दी सफलता को सर पर चढ़ जाने देने वाले युवाओं को सीधे-सीधे कहतीं हैं, “प्रदर्शन में तुम मेरे सामने (फ़िलहाल) कुछ नहीं हो। मेरी उपलब्धियों की कोई बराबरी नहीं कर सकता।”
एशियाड में काँस्य जीतने वाली निखत ज़रीन की “मैरी कॉम से (इंडिया ओपन, मई 2019) मुकाबले में मैं अपना 100% दूँगी। उम्मीद है कि यह मुकाबला टूर्नामेंट का सबसे अच्छा मुकाबला होगा।” को जब मीडिया रिपोर्टों में उन्होंने ‘नई लड़की की चुनौती’ के रूप में पढ़ा तो झल्लाई हुई मैरी कॉम ने निखत को सेमीफाइनल में हराने के बाद नए मुक्केबाज़ों को नसीहत दी कि वह भाग्यशाली हैं कि उनके (मैरी) साथ मुकाबला कर सीखने का अवसर मिल रहा है, अतः बातें बाद में करें और खुद को पहले बॉक्सिंग रिंग में साबित करें।
ऑब्ज़र्वर की भूमिका में भी सक्रिय
2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा खेल के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राज्य सभा में नामित की जाने वालीं मैरी कॉम बॉक्सिंग के खेल में सरकार की ऑब्ज़र्वर भी हैं। और उनके लिए यह केवल एक दिखावटी पद या टाइटल नहीं रहा है, उन्होंने परिस्थिति के अनुसार इस भूमिका का सक्रिय निर्वहन भी की किया है- 2017 में महिला बॉक्सिंग के पहले विदेशी कोच स्टेफान कोट्टालोर्डा ने भुगतान में देरी और राष्ट्रीय संघ के गैर-पेशेवर रवैये का कारण बताकर नियुक्ति के कुछ ही महीनों में इस्तीफ़ा सौंप दिया तो मैरी कॉम ने न केवल व्यक्तिगत तौर पर मामले में हस्तक्षेप कर स्टेफान का फैसला बदलने की कोशिश की, बल्कि प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा मामले को लेकर।
पक्ष-विपक्ष सब कायल, संसद में सक्रियता ‘भगवान’ से अधिक
प्रधानमंत्री मोदी से लेकर विपक्ष के सबसे जाने-माने चेहरे डॉ. शशि थरूर तक मैरी कॉम के प्रशंसक राजनीति की हर धारा और विचार धारा में हैं।
The best part of life is the opportunity to learn something new every day… My first time selfie with our Hon’ble Prime Minister @narendramodi ji. #JaiHind pic.twitter.com/dv00vGztyl
— Mary Kom (@MangteC) June 21, 2019
At the Prime Minister’s dinner for MPs, delighted to sit between two outstanding sportspersons who are now Members of Parliament, MC MaryKom @MangteC & @GautamGambhir pic.twitter.com/lkWcsMWCg4
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) June 20, 2019
वह संसद में सक्रिय भी खासी रहीं हैं- बावजूद इसके कि उनका कैरियर पूरे उफ़ान पर है, और उन्होंने खिताबी मुकाबले जीतना बंद नहीं किया है, वह संसद में पिछले साल के अगस्त तक 53% उपस्थित रहीं। और इस आँकड़े की महत्ता तब और बढ़ जाती है जब हम राज्य सभा में नामित होने के एक साल के भीतर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास ले लेने के बावजूद संसद में महज़ 8% उपस्थिति रखने वाले सचिन तेंदुलकर से तुलना करें।
कई संसदीय स्तरों में तो मैरी मँजे हुए नेताओं की तरह 70-75% तक मौजूद रहीं, और उन्होंने चार चर्चाओं में भाग भी लिया। वह भोजन, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों में संसद की प्रवर समिति की भी सदस्या हैं।