Sunday, November 17, 2024
Home Blog Page 5234

शपथ ग्रहण के बाद अब ममता का NITI आयोग से भी किनारा, नेहरू के बहाने PM मोदी को लिखी चिट्ठी

ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव के दौरान हुई राजनीतिक हत्याओं में मारे गए लोगों के परिवारजनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाए जाने से अभी तक नाराज हैं। PM मोदी के इस निर्णय से ममता इतनी आहत हैं कि पहले तो उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह में जाने का अपना निर्णय बदला और अब NITI आयोग की बैठक में भी शामिल नहीं होंगी। जाहिर सी बात है कि उनके इस हठ का परिणाम पश्चिम बंगाल की जनता और शासन-प्रशासन को भी झेलना पड़ सकता है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर तल्ख तेवर दिखाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में होने वाली NITI आयोग की बैठक से किनारा कर लिया है। इस बैठक में सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री भाग लेने वाले हैं। लेकिन, ममता बनर्जी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया है। ममता बनर्जी ने चिट्ठी में कहा है कि NITI आयोग के पास कोई आर्थिक अधिकार नहीं हैं, साथ ही यह राज्यों की नीतियों का समर्थन करने की भी ताकत नहीं रखता। ऐसे में उनका बैठक में शामिल होना बेकार है।

नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद ममता बनर्जी का नीति आयोग की कमियों पर ध्यान गया और उन्होंने तीन पेज की चिट्ठी लिखकर नीति आयोग को लेकर कई सवाल उठाए हैं। 15 जून को नई दिल्ली में नीति आयोग की बैठक होनी है, जिसमें केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, नीति आयोग के सदस्य और केंद्रीय मंत्रियों को बुलाया है। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की ये पहली बैठक है।

ममता बनर्जी ने अपनी चिट्ठी में लिखा है, “मुझे इस बैठक के बारे में बताया गया है, लेकिन इसको लेकर मैं कुछ सवाल करना चाहूँगी। आपने 5 अगस्त 2014 को नीति आयोग का गठन, योजना आयोग को खत्म कर के किया था, तब किसी भी मुख्यमंत्री से नहीं पूछा था।” बंगाल की मुख्यमंत्री ने सवाल किया है कि जब नीति आयोग किसी भी राज्य की वित्तीय मदद नहीं कर सकता है, ना ही राज्यों द्वारा चलाई जा रही योजना में किसी तरह की सहायता करता है, तो फिर इस बेमतलब की बैठक में आने का क्या फायदा है?

अपने पत्र में ममता बनर्जी ने कहा कि आपको (पीएम मोदी) पता होगा कि योजना आयोग एक राष्ट्रीय योजना समिति थी, जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने 1938 में बनाया था। 1950 में योजना आयोग का जब गठन किया गया, तब इसके पास वित्तीय शक्तियां थीं और इसके जरिए मुख्यमंत्रियों के साथ विकास संबंधी योजनाओं पर बात-विचार किया जाता था।

1/3
2/3
3/3

नरेंद्र मोदी को किसी भी सूरत में प्रधानमंत्री ना बनने देने का सपना देखने वाली ममता बनर्जी उनके दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही पूरी तरह से बौखला चुकी हैं। ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी पर चुनाव के दौरान भी लगातार जुबानी हमले जारी रखे और अब यह केंद्र बनाम राज्य की लड़ाई बनती जा रही है। इससे पहले ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आने से इनकार कर दिया था। पहले तो उन्होंने निमंत्रण को स्वीकार किया था, लेकिन जब सरकार की ओर से भारतीय जनता पार्टी के उन कार्यकर्ताओं के परिवारजनों को न्योता दिया गया, जिनकी हत्या चुनाव के दौरान हुई थी तो ममता ने जाने से इनकार कर दिया था।

आंध्र प्रदेश में 1 , 2 या 3 नहीं कुल 5 डिप्टी सीएम होंगे, ये रही वजह

एक राज्य में कितने डिप्टी सीएम हो सकते हैं? वैसे सवाल तो यह भी है कि अभी तक आपने किसी राज्य में कितने डिप्टी सीएम के बारें में सुना है? शायद एक या दो डिप्टी सीएम के बारे में सुना होगा। लेकिन चौकाने वाली ख़बर यह है कि आंध्र प्रदेश में पाँच डिप्टी सीएम होंगे। कुछ ऐसा ही आदेश आंध्र प्रदेश के नवनिर्वाचित सीएम जगनमोहन रेड्डी ने दिया है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वाईएसआरसीपी के एमएलए मोहम्मद मुस्तफा शाइक का कहना है कि आंध्र प्रदेश में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और कापू समाज से एक-एक डिप्टी सीएम होंगे। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से पूरे आंध्र प्रदेश में खुशी का माहौल है।

वैसे अगर अभी तक के राजनीतिक इतिहास पर नज़र डाला जाए तो जगनमोहन रेड्डी का यह फैसला ऐतिहासिक है। पाँचों डिप्टी सीएम न केवल विभिन्न सामाजिक वर्गों से हैं बल्कि आंध्र की राजनीतिक समीकरण साधने के लिए अलग-अलग इलाकों का भी खास ध्यान रखा गया है। रायलसीमा, प्रकाशम, कृष्णा डेल्टा गोदावारी और वाइजैग इलाके से ये डिप्टी सीएम नियुक्त होंगे।

जगनमोहन रेड्डी ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले पर कहा कि पिछले 10 वर्षों में राज्य के सभी समाज के लोगों ने टीडीपी सरकार के खिलाफ मेहनत की है। आज जब हमें सरकार में आने का मौका मिला है तो उन्हें लगता है कि राज्य के सभी इलाकों के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।

वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि आंध्र प्रदेश की राजनीति में रेड्डी और कम्मा समाज का दबदबा है। टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू का संबंध जहाँ रेड्डी समाज से है तो जगनमोहन रेड्डी कम्मा समाज से आते हैं। पारंपरिक तौर पर राज्य में एससी और अल्पसंख्यक समाज कॉन्ग्रेस को वोट देते रहे हैं। लेकिन इस दफा ये समीकरण बदला और इन दोनों समाजों के ज्यादातर वोट वाईएसआर के समर्थन में गए।

अब देखना ये है कि राजनीति के विसात पर जगन रेड्डी का यह फैसला कितना कारगर होता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह प्रयोग सिर्फ राजनीतिक बंदरबाँट ही साबित हो!

ICC का दोहरा रवैया: मैदान पर नमाज पढ़ना सही, धोनी के बैज से है दिक्कत

आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप 2019 में महेंद्र सिंह धोनी के विकेटकीपिंग दस्ताने विवाद का मुद्दा बन गए है। दरअसल, धोनी के इन ग्लव्स पर भारतीय सेना के स्पेशल फ़ोर्स का ‘बलिदान’ बैज लगा है, जिसपर आईसीसी ने आपत्ति जताई है। आईसीसी ने धोनी को अपने दस्ताने से बैज हटाने को कहा है। हालाँकि इस मामले पर बीसीसीआई की बैठक मुंबई में हुई। बीसीसीआई का कहना है कि धोनी का बैज न राजनैतिक है, न ही कमर्शियल है और न ही धार्मिक, इसमें आपत्ति का कोई सवाल ही नहीं है।

बीसीसीआई ने इस बात का भी खुलासा किया कि धोनी के दस्तानों के लिए बीसीसीआई ने आईसीसी पहले ही इजाजत माँग ली थी। ऐसे में सवाल उठता है कि इजाजत देने के बाद आपत्ति क्यों जताई जा रही है। इस मामले पर वीडियो कॉल के जरिए कप्तान विराट कोहली और टीम मैनेजमेंट के बीच चर्चा होगी।

आईसीसी की इस आपत्ति के बाद पाकिस्तान सरकार के मंत्री फवाद हुसैन ने धोनी के ख़िलाफ़ बयान दिया है। फवाद ने कहा है, “धोनी इंग्लैंड में क्रिकेट खेलने के लिए गए हैं न कि महाभारत के लिए। भारतीय मीडिया में यह क्या बहस चल रही है… मीडिया का एक वर्ग युद्ध से इतना प्रभावित है कि उन्हें सीरिया, अफगानिस्तान या रवांडा भेजा जाना चाहिए।”

जबकि आईपीएल अध्यक्ष राजीव शुक्ला ने इस मुद्दे पर कहा है कि आइसीसी को अपने इस नियम पर दोबारा से पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि ये नियम व्यवसायिक प्रतिबद्धता के लिए लागू होता है। राजीव ने कहा कि महेंद्र सिंह धोनी सिर्फ़ देश की सेना के लिए अपनी भावनाओं को प्रकट कर रहे हैं, उन्होंने किसी तरह का कोई नियम नहीं तोड़ा है।

इसी तरह मशहूर लेखक तारेक फतेह ने भी महेंद्र सिंह धोनी के समर्थन में आवाज़ उठाई है। तारेक फतेह ने ट्वीट करते हुए लिखा कि आईसीसी को पूरी पाकिस्तान टीम से कोई दिक्कत नहीं होती, जो खेल के मैदान ईसाइयों और यहूदियों की निंदा करते हुए नमाज पढ़ती है, लेकिन उन्हें धोनी के दस्तानों पर बने बलिदान के निशान से आपत्ति है।

हजारों पोस्टकार्ड ममता के नाम, डाक विभाग हुआ परेशान

पश्चिम बंगाल में बीजेपी और तृणमूल कॉन्ग्रेस के बीच चल रही राजनीतिक जंग थमने का नाम नहीं ले रही। दोनों के बीच तक़रार इतनी बढ़ गई है कि एक-दूसरे पर पलटवार करने से भी नहीं चूकते। ताज़ा मामला पोस्टकार्ड्स को लेकर है जिसकी वजह से डाक विभाग ख़ासा परेशान है। दरअसल, पिछले कुछ दिनों से साउथ कोलकाता पोस्ट ऑफ़िस में हज़ारों की संख्या में पोस्टकार्ड्स का अंबार लग गया है। इन पोस्टकार्ड्स पर ‘जय श्रीराम’ लिखा हुआ है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजा गया है। ममता बनर्जी का घर इसी पोस्ट ऑफ़िस के कार्यक्षेत्र में आता है।

वैसे तो डाक विभाग के कर्मचारियों के लिए पोस्टकार्ड काफ़ी मायने रखते हैं और इसीलिए डाक विभाग प्रत्येक डाक को यथास्थान तक पहुँचाने को अपनी ज़िम्मेदारी समझता है। लेकिन, वर्तमान स्थिति ऐसी हो गई है कि हज़ारों की संख्या में आए पोस्टकार्ड्स उनके लिए चुनौती बन गए हैं। ख़बर के अनुसार, पोस्ट ऑफ़िस के सूत्रों ने बताया:

“आमतौर पर सीएम के लिए 30-40 पोस्टकार्ड और रजिस्टर लेटर आते थे। लकिन अचानक से यह कई गुना बढ़ गया है।” उन्होंने इस बात की भी जानकारी दी कि ये पोस्टकार्ड्स अब उनके कार्यालय द्वारा प्रतिदिन संभाले जा रहे कुल डाक का 10 प्रतिशत अधिक हैं।

ख़बर है कि गुरुवार (6 मई) को रेलवे मेल सर्विस ने भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजे गए क़रीब 4,500 पोस्टकार्ड्स अलग किए। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इन हरक़तों से बिल्कुल ख़ुश नहीं है और इसलिए उन्होंने भी यह तय किया कि इन पोस्टकार्ड्स का जवाब दिया जाए। तृणमूल कॉन्ग्रेस अब ‘जय श्रीराम’ की जगह ‘जय हिंद’ और ‘जय बांग्ला’ लिखे पोस्टकॉर्ड्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेज रही है।

TMC नेता और राज्य खाद्यान्न मंत्री ज्योतिप्रियो मल्लिक ने कहा:

“मुख्‍यत: उत्‍तरी 24 परगना, हावड़ा और हुगली के हमारे समर्थक प्रतिदिन आठ हज़ार पोस्‍टकार्ड भेज रहे हैं। वर्तमान समय में अब पोस्‍टकार्ड की कमी हो गई है और हमने फ़ैसला किया है कि अब पत्र छापे जाएँगे और उसे पीएम मोदी को भेजा जाएगा। हम पीएमओ को इन पत्रों को भेजना जारी रखेंगे।”

इतनी बड़ी संख्या में एक-दूसरे को पोस्टकार्ड्स भेजने का सिलसिला तो पता नहीं कब थमे, लेकिन इससे डाक विभाग की परेशानी बढ़ना तो तय है।

‘सेक्युलर’ शरद पवार में जागा संघ प्रेम, कहा- RSS से सीखें घर-घर जाकर जनता से कैसे मिला जाता है

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने पार्टी कार्यकर्ताओं को आरएसस से सीख लेने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से सीखना चाहिए कि जनता से किस प्रकार संपर्क में रहा जाए। एनसीपी अध्यक्ष ने विधानसभा चुनावों नजदीक देखते हुए सभी कार्यकर्ताओं से कहा है कि वो लोगों से घर-घर जाकर मिलें।

गुरुवार (जून 6, 2019) को पिंपरी-चिंचवाड में बोलते हुए शरद पवार ने आरएसएस स्वंयसेवकों की खूब तारीफ़ की। उन्होंने कहा, “हमारे कार्यकर्ता किसी के घर जाते हैं और अगर वहाँ कोई न मिले तो पार्टी का पैम्पलेट दरवाजे पर डालकर चले आते हैं। आपको देखना चाहिए कि आरएसएस के स्वयंसेवक कैसे प्रचार करते हैं। अगर वे पाँच घरों में जाते हैं और एक बंद रहता है तो वे बार-बार वहाँ जाते हैं, जब तक कि अपना संदेश न पहुँचा दें। लोगों के संपर्क में कैसे रहना है, इसे आरएसएस के कार्यकर्ता अच्छे से जानते हैं।”

अमर उजाला की खबर के मुताबिक पवार का कहना है कि उन्हें एक भाजपा नेता ने बातचीत के दौरान बताया कि दृढ़ निश्चय और अनुशासन ने उनको जीत दिलाने में मदद की। इसके बाद उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि वह जो कुछ कर रहे हैं हमें उसे अपनाने की जरूरत है लेकिन लोगों के साथ जुड़ने और बातचीत करने की उनकी स्किल महत्वूर्ण है, हमें उसको फॉलो करना चाहिए। आज या कल जब आप लोगों तक लोगों कर पहुँचना शुरू करें तो इन बातों को अपने दिमाग में जरूर रखें।”

पवार ने अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजों से उन्हें निराश नहीं होना चाहिए। अब अक्टूबर-नवंबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटना चाहिए। शरद पवार ने कार्यकर्ताओं से कहा है कि कार्यकर्ता जनता से घर जाकर मिलें और पार्टी का प्रचार शुरू कर दें। उन्होंने कहा ऐसा करने से मतदाता उनसे ये नहीं पूछेंगे कि विधानसभा चुनाव के दौरान आपको हमारी याद क्यों आई।

शेर ख़ान ने दी राहुल के सिंहासन को चुनौती, कहा- मुझे बनाओ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष

पूर्व केंद्रीय मंत्री और हॉकी ओलंपियन असलम शेर खान ने एक पत्र में दो साल की अवधि के लिए कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनने की इच्छा प्रकट की है। लेकिन उनकी इस पेशकश को कॉन्ग्रेसी खेमे में किसी भी वरिष्ठ नेता ने गंभीरता से नहीं लिया।

आम चुनाव में पराजय के बाद राहुल गाँधी ने 25 मई को दिल्ली में कॉन्ग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अपने इस्तीफ़े की पेशकश की थी। हालाँकि, उनका इस्तीफ़ा नामंज़ूर कर दिया गया था और इस नाते वो आज भी अपने पद पर आसीन हैं। ख़बर के अनुसार, असलम ख़ान पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने राहुल गाँधी की जगह ख़ुद को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा। इसका सीधा-सा मतलब है कि उन्होंने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद का कार्यभार को संभालने की इच्छा सबसे पहले प्रकट की।

पार्टी के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें राहुल गाँधी को संगठन में सुधार के लिए कहा गया। देश भर के कॉन्ग्रेस नेताओं और गठबंधन दलों के प्रमुखों ने गाँधी से अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। 27 मई को कॉन्ग्रेस अध्यक्ष को लिखे पत्र में ख़ान ने लिखा:

“… मैं अपनी सेवाएँ पार्टी को देना चाहूँगा और केवल दो साल की समय-अवधि के लिए एक अस्थायी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष के रूप में ज़िम्मेदारी लूँगा।”

ओलंपियन असलम शेर ख़ान, जो मलेशिया में कुआलालंपुर में 1975 का विश्व कप जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य थे, उन्होंने कहा कि वो एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी और एक राजनीतिज्ञ हैं और अपने इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने यह पेशकश की।

65 वर्षीय पूर्व ओलंपियन असलम ख़ान ने 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में भाग लिया था। वो कभी-कभार कॉन्ग्रेस पार्टी में एक वर्ग के ख़िलाफ़ अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिए सुर्ख़ियों में रहे हैं, उन्हें लगता है कि वह फिर से एक सुपर-सब बन सकते हैं। 2017 में, तत्कालीन मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस प्रमुख अरुण यादव के ख़िलाफ़ ख़ान ने एक ऐसा बयान दिया था जिसके चलते राज्य इकाई को यह घोषणा करनी पड़ गई थी कि असलम ख़ान अब पार्टी से नहीं जुड़े रहेंगे।

कॉन्ग्रेस-जेडीएस के बीच दरार बढ़ी, देवगौड़ा के पोते ने कहा, कभी भी हो सकते हैं चुनाव

कर्नाटक में सत्तारूढ़ कॉन्ग्रेस और जेडीएस के बीच अविश्वास की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। ख़बर के अनुसार, मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ है जिसमें वह पार्टी कार्यकर्ताओं को विधानसभा चुनाव के लिए तैयार रहने को कहते नज़र आ रहे हैं। उनका कहना है कि कॉन्ग्रेस और जेडीएस के बीच रिश्तों में खटास बढ़ती जा रही है इसलिए राज्य में कभी भी चुनाव सकते हैं, हो सकता है कि चुनाव अगले साल या दो या तीन साल बाद भी हो जाएँ, इसलिए पहले से ही तैयार रहें।

इस वीडियो के अनुसार, निखिल ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि चुनाव के लिए हमें अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि फ़िलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि तैयारियाँ बाद में कर लेंगे, इसके लिए ख़ुद को अगले महीने से तैयार करना होगा। वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह लग रहा है कि पता नहीं कब चुनाव हो जाएँ। इसलिए जेडीएस नेताओं को हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

इससे पहले भी कॉन्ग्रेस और जेडीएस गठबंधन के बीच दरार की ख़बरें सामने आ चुकी हैं। इसकी वजह यह भी है कि लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर नहीं हुआ, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। जेडीएस सुरेश गौड़ा ने कॉन्ग्रेस पर आरोप लगाया था कि मांड्या क्षेत्र में बीजेपी को कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने ही वोट दिया है। सुरेश गौड़ा ने यहाँ तक कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए पूछा था कि उनके कार्यकर्ता आख़िर किसे प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, नरेंद्र मोदी को या राहुल गाँधी को?

वहीं, बीजेपी नेता येदियुरप्पा ने भी दावा किया था कि में राज्य की वर्तमान कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार से कॉन्ग्रेसी खेमा नाख़ुश नज़र आ रहा है। अपने बयान में उन्होंने कहा था कि कॉन्ग्रेस के लगभग 20 विधायक ऐसे हैं जो परेशान होकर कभी भी कोई फ़ैसला ले सकते हैं, बस थोड़ा इंतज़ार कीजिए।

पश्चिम बंगाल में अब BJP नहीं निकाल सकेगी जुलूस, ममता का तुग़लकी फरमान

भाजपा पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि अब सूबे में भाजपा के विजय जुलूस को निकलने की इजाजत नहीं दी जाएगी और इस आदेश का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी।

ममता बनर्जी ने गुरुवार को नार्थ 24 परगना जिले के निमता में टीएमसी के मारे गए कार्यकर्ताओं के घर का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि उनके पास सूचनाएँ हैं कि भाजपा ने अपने विजय जुलूसों के नाम पर हुगली, बांकुरा, पुरुलिया और मिदनापुर जिलों में अव्यवस्था फैलाई है। इसलिए अब से एक भी विजय जुलूस नहीं निकलेगा।

ममता बनर्जी ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि अब एक भी विजय जुलूस नहीं निकलना चाहिए क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजे आए 10 दिन से ज्यादा हो चुके हैं। ऐसे में अगर कोई नेता राज्य में दंगे जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश करेगा, तो पुलिस उससे सख्ती से पेश आएगी। पुलिस को को कानून के हिसाब से कार्रवाई करने और स्थिति बिगड़ने से रोकने के लिए कड़े एक्शन लेने को कह दिया है।

गुरुवार (जून 6,2019) को ममता बनर्जी सीआईडी और दूसरी एजेंसियों के अधिकारियों के साथ निमता का दौरा करने पहुँची थी। दरअसल, मंगलवार को निमता में 4-5 अज्ञात हमलावरों ने टीएमसी नेता निर्मल कुंडू की गोली मारकर हत्या कर दी थी। यहाँ उन्होंने कुंडू के परिजनों को भरोसा दिलाया कि मामले में पूरी जाँच होगी और इंसाफ मिलेगा। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक हत्या की बात नहीं है… हमें साजिश रचने वाले का पता लगाना है। एक पार्टी रक्तपात और हिंसा क्यों कर रही है?”

बनर्जी के मुताबिक साल 2014 में जब उनकी पार्टी ने जीत हासिल की थी, तो किसी भी तरह की हिंसा या हत्या नहीं हुई थी, लेकिन इस बार कई सीटों पर भाजपा के जीतने के बाद हिंसा और हत्याओं का सिलसिला रुक ही नहीं रहा है। गौरतलब है इससे पहले पश्चिम बंगाल राज्य में भाजपा के कई कार्यकर्ताओं की बेरहमी से हत्या हुई थी। जिसका इल्जाम भाजपा ने टीएमसी पर लगाया है, लेकिन ममता ने इसपर कोई प्रतिक्रिया देनी जरूरी नहीं समझा, अब चूँकि बात टीएमसी कार्यकर्ताओं की मौत की है तो ममता कड़े कदम उठाने की बात कर रही हैं।

J&K: पुलिस के SPO गए थे आतंकी बनने, सेना ने ऑपरेशन में मार गिराया

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में चल रही मुठभेड़ में अब तक 4 आतंकी मार गिराए जा चुके हैं। इन 4 आतंकियों में जम्मू-कश्मीर पुलिस के 2 एसपीओ भी शामिल हैं। ये दोनों एसपीओ गुरुवार की शाम सर्विस राइफल लेकर फरार हो गए थे। दोनों पुलवामा के रहने वाले हैं और इनकी पहचान शबीर अहमद और सलमान अहमद के रूप में हुई है। बताया जा रहा है ये चारों आतंकी जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन से जुड़े हुए थे।

शुक्रवार (जून 7, 2019) को सुरक्षाबलों को मिली जानकारी के अनुसार पता चला कि ये आतंकी रिहायशी इलाके में छिपे हुए है, जिसके बाद कार्रवाई की गई। मारे गए आतंकियों के पास से 3 एके राइफल्स बरामद की गई है।

खबरों के अनुसार ख़ुफ़िया इनपुट्स के आधार पर ही सेना की 44 राष्ट्रीय राइफल्स, जम्मू-कश्मीर के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप और सीआरपीएफ जवानों ने पुलवामा के लस्सीपोरा इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया था। इसी बीच पंजारण इलाके में आतंकियों ने सेना के जवानों पर फायरिंग कर दी। जिसके बाद सेना ने इलाके को घेरा और जवाबी कार्रवाई शुरू की।

चार आतंकियों के मारे जाने के बाद भी अभी इलाके में कुछ और आतंकियों के छिपे होने की आशंका है, इसलिए सर्च ऑपरेशन अभी जारी है। फिलहाल, इलाके में तनाव के कारण इंटरनेट सुविधा को बंद कर दिया गया है और साथ ही सुरक्षा के इंतजामों को भी बढ़ाया गया है।

कैप्टन ने कतरे सिद्धू के पर, बदला मंत्रालय, ज़ुबानी जंग चालू

लोकसभा चुनाव के बाद पंजाब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पहली कैबिनेट बैठक में शामिल न होने वाले नवजोत सिंह सिद्धू का मंत्रालय बदल दिया गया है। खबरों के अनुसार सिद्धू को बिजली एवं नवीकरण ऊर्जा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। साथ ही कुछ अन्य मंत्रियों के विभाग में भी बदलाव किया गया है।

कॉन्ग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू पर इससे पहले स्थानीय निकाय के साथ पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय की जिम्मेदारी थी, लेकिन बैठक के फैसले के बाद उनसे पर्यटन और संस्कृति मामलों का प्रभार ले लिया गया है। बैठक में लिए फैसले के मुताबिक सिर्फ़ 4 मंत्रियों को छोड़कर अन्य सभी मंत्रियों के प्रभारों में कुछ न कुछ फेरबदल हुआ है। मुख्यमंत्री का कहना है कि इससे सरकार के कामकाज में अधिक सुधार होगा। साथ ही कार्यों में पारदर्शिता और कुशलता आएगी।

नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक कैप्टन ने जहाँ नवजोत सिंह सिद्धू को बिजली तथा नवीकरण ऊर्जा का प्रभार सौंपा है, वहीं उनके पर्यटन तथा संस्कृति के मामलों की जिम्मेदारी चरणजीत सिंह चन्नी को सौंप दी है। सीएम ने स्थानीय शासन विभाग का जिम्मा सबसे वरिष्ठ सहयोगी ब्रह्मा मोहिंद्र को दिया है जबकि उनके पास रहे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण का प्रभार बलबीर सिद्धू को दे दिया है। बलबीर सिद्धू के पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी प्रभार तृप्त बाजवा को दिया गया है और उन्हें उच्च शिक्षा का भी प्रभार मिला है।

हालाँकि, बाजवा के पास ग्रामीण विकास और पंचायत प्रभार कायम है लेकिन उनसे आवास और शहरी विकास का कार्यभार लेकर सुखविंदर सिंह सरकारिया को दे दिया गया है। स्कूली शिक्षा का प्रभार विजय इंद्र सिंगला को दिया गया है। जानकारी के मुताबिक मनप्रीत बादल के पास वित्त, योजना और कार्यक्रम क्रियान्वयन का विभाग बना रहेगा लेकिन मुख्यमंत्री ने शासन सुधार अपने पास लेने का फैसला किया है।

बता दें पंजाब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कॉन्ग्रेस नेता नवजोत सिंह के बीच चल रहा मनमुटाव किसी से छिपा नहीं है। दोनों में चुनाव से पहले से ही जुबानी जंग जारी है। सिद्धू का कहना है कि उन्हें अनुचित तरीके से कॉन्ग्रेस के ख़राब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, और यही कारण है कि उन्हें कुछ लोग पार्टी से निकालना चाहते हैं।

सिद्धू का कहना है कि चुनावों में मिली हार के लिए उनपर निशाना साधा जा रहा है, जो कि बहुत गलत है। सिद्धू का कहना है कि हार सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्हें महत्वहीन नहीं समझा जा सकता। उन्होंने कैप्टन पर निशाना साधते हुए कहा है कि हार के लिए उनपर निशाना क्यों साधा जा रहा है और बाकी नेताओं के ख़िलाफ़ क्यों नहीं? जबकि वो हमेशा एक अच्छे परफ़ॉर्मर रहे हैं।