Sunday, November 17, 2024
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BREAKING: आतंकियों ने कश्मीर में की ईद मनाने आए जवान की हत्या, सेना का तलाशी अभियान जारी

अनंतनाग के अपने गाँव सदूरा में ईद मानाने आए 34वीं राष्ट्रीय राइफल्स के जवान मंज़ूर अहमद बेग की हत्या कर दी गई है। आ रही खबरों के अनुसार हत्या बेग के घर में घुसकर की गई है। कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसमें जम्मू-कश्मीर के आतंकियों का हाथ हो सकता है। हालाँकि, अहमद बेग को फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इलाके को घेर कर सेना के एसओजी दस्ते ने कातिलों को ढूँढ़ने का अभियान शुरू कर दिया है

राइफलमैन औरंगज़ेब के मामले की आई याद

यह मामला राइफलमैन औरंगज़ेब के हत्या कांड की याद दिला रहा है। उसमें भी पिछले साल के जून में ही दहशतगर्दों ने सेना के राइफलमैन औरंज़ेब की अपहरण कर हत्या तब कर दी थी जब वे ईद मनाने अपने घर आ रहे थे। उनकी हत्या में शामिल आतंकी ज़ाकिर मूसा को सेना ने पिछले महीने की 23 को ही देर शाम मार गिराया था।

(यह डेवलपिंग स्टोरी है। अधिक जानकारी मिलने पर इसे अपडेट किया जाएगा।)

हाशिए पर खड़े लुटियंस-खान मार्केट गिरोह बने ‘प्राउड’ हिंदुस्तानी, इन्हें सत्ता की मलाई चाहिए

‘खान मार्केट’ और ‘लुटियंस मीडिया’ दोनों ही मुख्यधारा के भारतीय मीडिया में, और चूँकि यह मीडिया ही सार्वजनिक संवाद का एकलौता साधन हुआ करता था तो एक तरह से भारत के पूरे सार्वजनिक जीवन में, हैरी पॉटर उपन्यास के मुख्य खलनायक लॉर्ड वोल्डेमॉर्ट जैसा रहा है- ‘तुम-जानते-हो-कौन’। एक ऐसी सत्ता, जिसने शासन हमेशा पर्दे के पीछे से, अँधेरी परछाइयों से किया, और अपना नाम लेने को ‘टैबू’ बना कर रखा। उपरोक्त खलनायक की तरह, माफिया फिल्मों में दिखाए गए मुँह बंद रखने और नाम न लेने, एक-दूसरे पर उँगली न उठाने के अनकहे, अलिखित समझौते, ‘कोड ऑफ़ साइलेंस’ (जिसे ‘ओमेर्टा’ कहते हैं) का सजीव उदाहरण।

इसके बारे में बात की जा सकती थी, “आखिर यह देश क्यों आगे नहीं बढ़ रहा?”, “हमें क्या रोके हुए है हमारे साथ या बाद आज़ाद हुए मुल्कों के बराबर तरक्की करने से?” जैसे सवाल पूछे तो जा सकते थे, लेकिन इन सवालों का जवाब हमेशा सन्नाटा होता था- क्योंकि सवाल जिस महफ़िल में होते थे, वहाँ बैठे हर एक इंसान को पता होता था कि जवाब देना, उस नाम को ज़बान पर लाना उनके कैरियर का अंत होगा। 

लुटियंस और खान मार्केट दिल्ली के सबसे महँगे इलाके हैं- यह भारत के नव-अभिजात्य वर्ग का गढ़ हैं। उन लोगों के जो नेहरूवियन समाजवाद और सेक्युलरवाद के पुजारी थे, खुद धनाढ्य होने के बावजूद। वह लोग जो खुद (या उनका कोई-न-कोई करीबी) उद्योग-धंधे, कल-कारखाने चलाते थे, लेकिन किसी नए व्यवसायी के किसी नए व्यापार के लिए लाइसेंस-कोटा-परमिट राज के समर्थक थे। वह लोग, जिनके घर से जब किसी का ‘फैमिली बिज़नेस’ में मन नहीं लगता था तो उसे सिविल सर्विसेज़ की तैयारी की सलाह दे दी जाती थी- क्योंकि पता था कि चयन तो होना ही है! जेएनयू का वीसी भी इन्हीं लोगों के प्रेस क्लब और जिमखाना के बार में बैठकर व्हिस्की की चुस्कियों में तय होता था, और भारत का अगला उर्वरक से लेकर वित्त मंत्री तक भी।

यही लोग इस ‘गैंग’ के सदस्य भी थे, चौकीदार भी, और एंट्री के नियम तय करने वाले भी। गिटपिट अंग्रेजी बोलते और हिंदी-हिन्दू-हिंदुस्तान के सिद्धांत से ही घिनाते इस गैंग से निकला ‘लुटियंस मीडिया’। चूँकि, अधिकाँश बड़े अख़बार और पत्रिकाएँ इसी गैंग के आर्थिक अंग इन्डस्ट्रियलिस्टों के हाथ में थे, जो पहले ही नेताओं के साथ लाइसेंस-कोटा-परमिट की आपसी ‘अंडरस्टैंडिंग’ में थे, तो वहीं से इस ‘अंडरस्टैंडिंग’ का विस्तार मीडिया में हुआ। वरिष्ठ नौकरशाह चूँकि अंग्रेजों के समय में लगभग निरंकुश सत्ता का स्वाद चखने के बाद ताकत छिनने की आशंका में थे, तो उन्होंने भी ज़ाहिर तौर पर हाथ बेझिझक मिलाया।

अकादमी और बौद्धिक जगत के लोगों के लिए भी यह फायदे का सौदा था, क्योंकि यह गैंग मीडिया में ‘छपास’ (शब्द भले शायद मोदी का हो, लेकिन प्रवृत्ति पुरानी है, और 95% मीडिया की रोजी-रोटी का स्रोत भी), विश्वविद्यालयों से लेकर आयोगों में मलाईदार नियुक्ति, अपने बाल-बच्चों के देश के चोटी के लोगों के साथ उठने-बैठने की सेटिंग, विदेशी यूनिवर्सिटियों में प्रवेश के लिए अनुशंसा पत्र- सब चीजों का ‘सिंगल-विंडो क्लियरेंस’ था। (लगता है मोदी ने सच में कुछ ‘नया’ नहीं सोचा, केवल पुरानी सुविधाओं का विस्तार मुट्ठी-भर लोगों से देश की हर एक मुट्ठी तक पहुँचा दिया- और इसी की सारी नाराज़गी है।)

‘खान मार्केट गैंग’ और ‘लुटियंस मीडिया’ इसी नेता-नौकरशाह-इंडस्ट्रियलिस्ट-बुद्धिजीवी-पत्रकार का गुप्त गठजोड़ था- एक-दूसरे का ‘ध्यान रखने’ की मौन सहमति, जिसमें नूरा कुश्ती की तो गुंजाईश थी, एक-दूसरे की सेनाओं के के ‘फुट सोल्जर्स’ को खेत करने की भी आज़ादी थी, लेकिन ऊपरी स्तर पर एक-दूसरे को, और इन-सबको जोड़ने वाले वैचारिक सूत्र, गाँधी-नेहरूवाद, पर बुनियादी सवाल न करने, और अगर कोई भी (‘अंदर का आदमी’ हो या ‘बाहरी’) उस पर सवाल करे तो उसे ज़बरदस्ती, येन-केन-प्रकारेण अप्रासंगिक कर देने का भी अलिखित समझौता था।

और मोदी के राज में इसी गठजोड़ की गर्भनाल पहली बार शायद सूख गई है। पहली बार शायद राजनीति के उच्चतम गलियारों से पत्रकारों को ‘एक्सक्लूसिव लीक्स’ नहीं मिल रहे, प्रधानमंत्री तक पहुँच न केवल बंद है, बल्कि मोदी की सोशल मीडिया उपस्थिति ने इन्हीं की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इनके चैनलों और अख़बारों में गाँधी-नेहरू के गुण गाने के पीछे हज़ार काले कर्म छिपाने वालों की मलाईदार पोस्टिंग्स बंद हैं, हिंदी-भाषी और हिंदी-माध्यम के स्कूलों से आए ‘संघियों’ को वह पद दिए जा रहे हैं, और नौकरशाहों का एक बड़ा वर्ग (जिसमें सभी नौकरशाह नहीं हैं) इसलिए अवसादग्रस्त है कि कुर्सी तोड़ने और ‘मलाई काटने’ की जिस उम्मीद में उन्होंने जिंदगी के बाकी मौके छोड़ दिए, मोदी के राज में जिंदगी उसके ठीक उलटी हो रखी है- काम कमरतोड़ हो रहा है, और रिश्वत के स्रोत सूखते जा रहे हैं।

और ऐसे ही गमगीन माहौल में यशवंत सिन्हा की पत्नी नीलम सिन्हा लिखतीं हैं कि खान मार्केट गैंग को यूँ न बदनाम करो, बड़ी मेहनत से ये गैंग बनाया है; कॉन्ग्रेस नेता बदरुद्दीन तैय्यबजी की पोती लैला तैय्यबजी को याद दिलाना पड़ता है कि हम भी इस देश के ही हैं मालिक! और चाहे मैं मान भी लूँ कि 2-4-5-8% इनके लेखों की मैंने ‘स्ट्रॉमैनिंग’ (किसी के विचारों को तोड़मरोड़कर वाहियात या हास्यास्पद दिखाना, जबकि वे ऐसे हैं नहीं) की है, तो भी 90% यही लिखा है- आप लिंक खोल कर जाँच के लिए स्वतंत्र हैं।

अपने ‘वो भी क्या दिन थे’ में गिरफ्तार लैला तैय्यबजी

लैला तैय्यबजी के द वायर में लिखे गए लेख का अधिकाँश हिस्सा जिन चीजों में लगा है, वही लुटियन-निवासियों से आम आदमी की नफ़रत का मुख्य कारण है- वह याद करतीं हैं कि कैसे नींबू पानी की चुस्कियाँ लेते हुए वे लोग देश का नीति और नियति निर्धारण करते थे; कैसे उनकी 50 और 60 के दशक की दिल्ली की यादें सरकारों और दूतावासों की हैं; कैसे उनके पास खिदमतगार, भिश्ती, बावर्ची, चपरासी और यहाँ तक कि मसालची हुआ करते थे। उनकी जिंदगी 50-60 के दशक में अधिक सीधी हुआ करती थी। अब उन्हें कैसे समझाया जाए कि उनके इसी ‘विशषाधिकार’ से तो आज लोगों का खून उबला हुआ है- आपके पास उन दिनों में रेस कोर्स, वेलिंग्डन क्रेसेंट में घूमने की सुविधा थी, जब यह देश एक खूनी बँटवारे के बाद खड़ा होने की कोशिश कर रहा था।

आप आपत्ति कर सकते हैं कि क्यों भई, इनके परिवार के पास पैसा था, सुरक्षित रहने के साधन थे, तो इससे क्या? इससे तुम्हारा क्यों खून उबला जा रहा है? तो जवाब होगा वह इसलिए क्योंकि यह लुटियंस गैंग अपने गैंग के ‘बाहर के लोगों’ को यही समाजवाद (जो कि परसन्ताप पर, ईर्ष्या पर, दूसरे की सम्पत्ति और अच्छी किस्मत से चिढ़ पर ही आधारित है) उस समय भी पढ़ाता था, और आज भी पढ़ाता है- तो लाज़मी है कि उन्हें भी इसका स्वाद दिया जाए! इन्हें भी यह बताया जाए कि इनकी सम्पत्ति, इनकी सम्पन्नता इनसे नफरत करने, इनका विरोध करने का पर्याप्त कारण है। इसके अलावा लैला जी का यह संस्मरण तत्कालीन कॉन्ग्रेसियों का दोगलापन भी दिखाता है- दूसरों को समाजवाद सिखाने वाले, एक समय आयकर 97% से ज्यादा सामाजिक और आर्थिक न्याय के नाम पर दूसरों के लिए करने वाले खुद विपन्न देश के महासागर में विपुलता के द्वीप थे।

नीलिमा सिन्हा खान मार्केट गैंग के गैंग होने के सारे सबूत खुद ही देतीं हैं

नीलिमा सिन्हा, जो 24 साल आईएएस ऑफ़िसर रहे और फ़िलहाल अपनी पार्टी में हाशिए पर चले गए एक नेता की पत्नी हैं, मोदी के खान मार्केट कटाक्ष को पहले तो गलत बताते हुए लेख शुरू करतीं हैं, लेकिन लेख का अंत करते-करते मान लेतीं हैं कि हाँ, खान मार्केट वाले एक “गैंग” हैं। बीच में वह अपनी जीवन-गाथा सुना कर शायद लोगों में सहानुभूति पैदा करने की कोशिश करतीं हैं। लेकिन ऊपर दिए लैला तैय्यबजी के उदाहरण की ही तरह वह यह भूल जातीं हैं कि यह सुनकर कि वह सिविल सर्वेंटों के ही परिवार में, उनके बँगलों में ही पहले बेटी, फिर पत्नी, फिर माँ/सास बनकर रहीं, उन्हें इस बात का ख्याल नहीं होने वाला कि नहीं भाई, आप खान मार्केट वाले नहीं हैं, बल्कि उसका आप लोगों के एक ही ‘गैंग’ का होने का संदेह और दृढ़ हो जाता है।

नीलिमा जी, ज़रा यह समझाइए कि यह कैसा ‘संयोग’ और खान मार्केट गैंग के गैंग न होने का कैसा उदाहरण है कि आपके पिता खान मार्केट के बँगले में रहे, आपकी शादी भी उसी इलाके में तैनात इंसान से हुई, उसी सर्विस, उसी सर्किल का हिस्सा, और उसके बाद आपकी बेटी से शादी होने के बाद आपके दामाद की भी अपने-आप तैनाती अपने बैंक की खान मार्केट शाखा में हो गई? अगर बिना किसी ‘कनेक्शन’ वाला बैंक कर्मचारी अपने बैंक की खान मार्केट शाखा में तैनाती माँगने पहुँच जाए तो उसकी भी खान मार्केट शाखा में तैनाती हो जाएगी जैसे आपके दामाद की हुई? इतने सारे संयोग या तो चमत्कारिक संयोग हैं, या गैंग के गैंग होने का सीधा उदाहरण।

और जो आप अपने पिता और पति के गरीब घरों से आने का उदाहरण देतीं हैं तो गरीबी से मेहनत कर अमीर हो जाना कबीले-तारीफ़ है मगर भ्रष्टाचार या गुटबाजी में इंसान के न पड़ने का सर्टिफिकेट नहीं। उदाहरण के तौर पर अगर आपके पति यशवंत सिन्हा गरीब चायवाले के बेटे मोदी पर अगर गरीब-से-अमीर बने धीरूभाई अम्बानी के बेटे के साथ मिलकर देश को चूना लगाने का आरोप लगा सकते हैं तो वैसी ही परिस्थितियों से आए, और वैसे ही ‘मौके’ पाए हुए आपके पिता, पति और पुत्र खान मार्केट में गैंग बनाने के आरोप से केवल जीवन परिस्थितियों के आधार पर मुक्त कैसे माने जा सकते हैं? और अगर ”गैंग्स’ की बात करें तो गैंग्स में ज़मीनी स्तर पर भी भर्ती होती रहती है, और नए आए लोगों को गैंग की सीढ़ियाँ चढ़ने के मौके भी मिलते रहते हैं- लेकिन इतने भर से गैंग, गैंग होना बंद नहीं कर देते। आपका खान मार्केट गैंग भी अपवाद नहीं है।

हमने अपने राज में तो एकछत्र मलाई काटी, और अब तुम्हारी भी मलाई में हिस्सा चाहिए

अपने पैसे के दम पर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए दूसरों को समाजवाद का उपदेश देने वाले, ज़मीनी संस्कृति, हिन्दू धर्म की संस्कृति, से न केवल कटे बल्कि उसे जड़ से मिटा देने की खुद कोशिश करने वाले और उस पर कहर बरपाने वाले इस्लामी हमलावरों की 70 साल वाइटवॉशिंग करने वाले, नैतिक और आर्थिक भ्रष्टाचार और वामपंथ में डूबे लुटियन मीडिया और खान मार्किट गैंग ने सत्तर साल इस देश पर एकछत्र राज किया है। चाहे कॉन्ग्रेस सत्ता के अंदर रही या बाहर, ‘इकोसिस्टम’ का बाल भी बाँका नहीं हुआ। ऐसे सिस्टम का वही हाल होता है, जो इनका हो रहा है। लेकिन अब इन्हें ‘ग्लोबल सिटीजनशिप’, ‘लिबरल थॉट्स’ भूल कर इस देश में अपनी भी हिस्सेदारी याद आ रही है।

लेकिन असल में यह देश में नहीं, सत्ता की मलाई में हिस्सेदारी माँग रहे हैं- यह उसी इकोसिस्टम को जिला कर, 2.0 बना कर वापिस लाने की बात कर रहे हैं। ये विचारों की नहीं, अपनी जगह तलाश रहे हैं, जबकि अपना राज रहते संघ को, दक्षिणपंथियों को, वास्तविक हिन्दुओं को इन्होंने अपने संगमरमर के सत्ता के, ताकत के महलों के आसपास भी नहीं फटकने दिया। जेनएयू बनाया, जादवपुर, उस्मानिया, एएमयू जैसी उसकी ‘शाखाएँ’ भी बनाईं लेकिन कोई दक्षिणपंथियों का गढ़ नहीं बनने दिया। तो अब सामान्य नागरिक अधिकारों के अलावा कुछ समय इन्हें भी लाइन के ‘उस तरफ’ गुज़ारने देना चाहिए।

कश्मीर की मस्जिद में ईद पर लश्कर आतंकियों ने पढ़ाया जिहादी-आतंकी पाठ, तंजीम के नाम पर जुटाए फंड

कश्मीर में मस्जिदों का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए होना नई बात नहीं है लेकिन अब यहाँ खुले तौर पर आतंकवादी मस्जिद में भारत के खिलाफ जहरीले भाषण देकर युवाओं को आतंक एवं हिंसा के लिए भड़का रहे हैं। टाइम्स नाउ के खुलासे के अनुसार कुलगाम की एक मस्जिद का एक ऐसा ही वीडियो सामने आया है जिसमें लश्कर ए-तैयबा के दो आतंकवादी मस्जिद में दाखिल होकर वहाँ के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काते हैं। वीडियो में इनमें से एक आतंकवादी को खुले में पिस्टल लहराते और भारत विरोधी बातें करते हुए देखा जा सकता है। यह वीडियो ईद-उल-फ़ितर के दिन का बताया जा रहा है।

टाइम्स नाउ के इस वीडियो में साफ सुना जा सकता है कि मस्जिद में दाखिल हुए दोनों आतंकवादी पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते और कश्मीरी युवकों को आतंकवाद के रास्ते पर चलने के लिए उकसाते नजर आ रहे हैं। यही नहीं दोनों आतंकियों ने तंजीम के नाम पर वहाँ मौजूद जमात से दान करने के लिए भी कहा।

वीडियो में आतंकी कह रहे हैं कि वे कश्मीर की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह खुलेआम वहाँ जिहाद का पाठ पढ़ा रहे हैं। लेकिन अभी तक किसी भी सेक्युलर नेता, पत्रकार या पक्षकार का इस पर न कोई बयान आया है और न ही ममता बनर्जी, महबूबा मुफ़्ती, उमर अब्दुल्ला, केजरीवाल जैसे नेताओं ने इसकी कोई आलोचना की है। जय श्री राम के नारे में भी भयंकर आतंक देख लेने वाले ये नेता आज आतंकियों के मस्जिद में खुलेआम ऐलान पर भी चुप हैं।

यह वीडियो राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति चिंतित किसी भी सच्चे नागरिक को परेशान कर सकता है। क्योंकि, कश्मीर में बेशक आतंकी गतिविधियाँ वर्षों से संरक्षण पाती आ रही हों लेकिन पाकिस्तान की तरह खुलेआम आतंक और जिहाद के नाम पर उकसाते और चंदा इकठ्ठा करते आतंकी आने वाले किसी बड़े खतरे की आहट हैं।

बता दें कि सेना के ऑपरेशन ‘ऑल आउट’ में बड़ी संख्या में करीब 102 के आस-पास आतंकियों को मार गिराया है। जिससे आतंकियों की कमर टूट चुकी है। हाल ही में सुरक्षाबलों ने लश्कर के आतंकी जाकिर मूसा को भी ढेर कर दिया था। अपने कमांडरों के मारे जाने के बाद आतंकी हताश हो गए हैं।

मोदी सरकार की आतंक के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति के कारण आज घाटी में पत्थरबाजी और भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कश्मीरी युवाओं को ISI से प्राप्त पैसे देकर उन्हें उकसाने वाले ज्यादातर अलगाववादी या तो नजरबंद हैं या जेल में हैं। कश्मीरी नेताओं के लाख अपील के बाद भी यहाँ तक की रमजान के महीने में भी सेना ने आतंकियों के खिलाफ अपने अभियान को बंद नहीं किया और कई आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया।

यहाँ तक कि मोदी के शपथ लेने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने सबसे पहले कश्मीर के टॉप टेन आतंकियों की लिस्ट तैयार करवाई है। अब देखना यह है कि कैसे प्रशासन जम्मू-कश्मीर में फैले इन आतंकियों से निपटती है।

कार-चोर शाहरूख़ चला रहा था ईद पर चोरी की होंडा-सिटी, भड़के नमाज़ियों ने की थी तोड़फोड़

पूर्वी दिल्ली में, ईद के अवसर पर, एक तेज़ रफ़्तार से कार गुज़रने के बाद भड़के नमाजियों ने अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए डीटीसी की बस सहित कई सार्वजनिक संपत्ति को भारी क्षति पहुँचाई थी। इस हादसे में 17 नमाज़ियों के घायल होने की अफ़वाह भी ऊड़ाई गई थी, जो कि पूरी तरह से झूठी थी। घटना के बाद से ही पुलिस कार चालक की तलाश में जुट गई थी। दरअसल, उस कार चालक की पहचान शाहरुख़ के रूप में अब उजागर हो गई है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के राज शेखर झा के अनुसार उसे गिरफ़्तार भी कर लिया गया है।

शाहरुख एक ऑटो-लिफ्टर अर्थात एक कार चोर है जो एक चोरी की हुई होंडा सिटी से भाग रहा था। पुलिस द्वारा ऑपइंडिया को बताया गया कि वह (शाहरुख़) बेहद हड़बड़ी में कार चला रहा था। मीडिया में आई अन्य ख़बरों के विपरीत, पुलिस ने यह ख़ुलासा किया कि उस हादसे में कोई भी घायल नहीं हुआ था।

हालाँकि, अभी तक किसी भी उपद्रवी को गिरफ़्तार नहीं किया गया है। ऑपइंडिया ने सुबह जब डीसीपी मेघना यादव से बात की, तो उस समय तक इस मामले को लेकर कोई FIR दर्ज नहीं की गई थी। मुख्य रूप से पुलिस शाहरुख को गिरफ़्तार करना चाहती थी। अब जब इस पर ध्यान दिया गया है, तो ऐसी उम्मीद है कि उपद्रवियों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की जाएगी।

लोग इस बात से नाराज़ और निराश हैं कि तोड़-फोड़ और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई। जिसका सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें नमाज़ियों द्वारा सार्वजनिक वाहन को क्षति पहुँचाते हुए साफ देखा जा सकता है।

लव जिहाद: 3 बच्चों का बाप इमरान बना कबीर शर्मा, ब्राह्मण लड़की से शादी कर दहेज़ में लिया ₹11 लाख

ब्राह्मण लड़की से शादी करने के लिए खुद को ब्राह्मण बताने वाले मुस्लिम युवक को कल ( जून 5, 2019) सीकर पुलिस ने लड़की के साथ मुम्बई से गिरफ्तार कर लिया है। युवक की पहचान इमरान भाटी के रूप में हुई है और लड़की का नाम विजय लक्ष्मी है।

खबरों के मुताबिक युवक ने लड़की का हाथ माँगते वक्त अपनी पहचान कबीर शर्मा बताई थी। 25 मई को अचानक दोनों के गायब हो जाने पर लड़की के पिता ने इस मामले को पुलिस में दर्ज करवाया। इस मामले को IPC धारा 277/19 के तहत दर्ज किया गया। मामला दर्ज होते ही एक टीम बनाई गई, जो लड़के-लड़की को ढूँढने में जुट गई। मंगलवार को नालासोपारा से इस दंपत्ति को गिरफ्तार किया गया।

खबरों के अनुसार, पिछले महीने इमरान भाटी ने न केवल ब्राह्मण लड़की से शादी करने के लिए उसके पिता को अपनी गलत पहचान बताई थी बल्कि उनसे काफी दहेज भी लिया था। लड़की के पिता ने बताया है कि उन्होंने इमरान को 11 लाख कैश और 5 लाख के जेवर दिए थे।

इमरान ने विजय लक्ष्मी से शादी के लिए खुद का नाम जहाँ कबीर बताया था वहीं शादी की रस्मों में आने के लिए उसने नकली रिश्तेदार भी खड़े कर दिए थे। दोनों की शादी 13 मई को सम्पन्न हुई थी। इसके बाद विजय लक्ष्मी को दहेज के लिए दोबारा उसके घर भेजा। रुपए मिलने के बाद दोनों फरार हो गए। जब लड़कीं के पिता दोनों को ढूँढने जयपुर निकले तो उन्हें इमरान के बारे में पता चला। बता दें इमरान पहले से शादीशुदा व्यक्ति है और उसके 3 बच्चे भी हैं।

‘फ्री मेट्रो राइड’ योजना पर मोदी के मंत्री ने लगाई केजरीवाल की क्लास

आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हरदीप सिंह पुरी ने केजरीवाल द्वारा दिल्ली मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने की घोषणा के बारे में कहा है कि उनके मंत्रालय के संबद्ध अधिकारियों को अभी ऐसा कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है। पुरी ने यह भी कहा कि केजरीवाल का आश्वासन महज एक जुमला है और कुछ नहीं, दिल्ली सरकार पहले से कर्ज में है ऐसे में वह महिलाओं को मेट्रो में मुफ्त यात्रा कैसे करवाएँगे पता नहीं।

पुरी का आरोप है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल किसी भी योजना का मूल मसौदा बनाने से पहले ही उसकी घोषणा करने में यकीन करते हैं। पुरी ने गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में केजरीवाल की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा, “कोई योजना ऐसे लागू नहीं होती है कि पहले घोषणा कर दो और फिर उसका प्रस्ताव तैयार किया जाए।”

पुरी ने कहा कि केजरीवाल पहले भी प्रक्रिया का पालन किए बिना ही लोकलुभावनी योजनाओं की घोषणा करते रहे हैं। गौरतलब है कि केजरीवाल की कई बार दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर से ठन चुकी है जिसके बाद वे आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है।  

पुरी ने कहा कि अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने के बारे में भी केजरीवाल के गलत दावों का खुलासा पहले भी हो चुका है। पुरी के अनुसार मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा देने की घोषणा के पीछे की सच्चाई का भी अगले दो तीन दिन में वह खुलासा करेंगे। पुरी ने कहा कि बस में किसी को भी मुफ्त यात्रा की सुविधा देने से पहले पर्याप्त संख्या में बसों का होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल को बताना चाहिए कि दिल्ली में डीटीसी को 11 हजार बसों को खरीदने की मंजूरी के बावजूद अब तक कितनी बसें खरीदी गई।

मेट्रो में मुफ्त सुविधा के बारे में उन्होंने कहा, “मैंने संसद में पहले ही कहा था कि हम छात्रों और वरिष्ठ नागरिकों को मेट्रो किराए में रियायत देना चाहते हैं और इसके लिये मेट्रो प्रबंधन को तकनीकी तैयारियाँ करने को कहा गया था। जिसपर मेट्रो प्रबंधन काम कर रहा है और यदि जरूरतमंद महिलाओं को कोई सुविधा मिलती है तो मुझे ख़ुशी होगी लेकिन दिल्ली सरकार के 50 हज़ार करोड़ रुपए के कुल बजट में केजरीवाल स्वच्छ्ता अभियान और आयुष्मान भारत योजनाओं को दिल्ली में लागू नहीं कर पा रहे हैं और मेट्रो में मुफ्त यात्रा की स्कीम लाकर दो हजार करोड़ की सब्सिडी देना चाहते हैं। यह विचारणीय प्रश्न है।”

कॉन्ग्रेस में सबसे बड़ी ‘टूट’: 18 में से 12 विधायक TRS में होंगे शामिल, विधानसभा अध्यक्ष को अर्जी

लोकसभा चुनाव में भारी हार के बाद कॉन्ग्रेस की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रहीं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तकरार लगातार बढ़ती जा रही है। इस दौरान कॉन्ग्रेस को एक और झटका लगने की ख़बर सामने आ रही है। 12 विधायकों ने सत्तारूढ तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) में शामिल होने की तैयारी कर रखी है। पिछले कुछ महीनों में कॉन्ग्रेस के कई विधायक और सासंद दूसरी पार्टियों में चले गए हैं लेकिन एक साथ 12 की संख्या इन महीनों में अब तक की सबसे बड़ी टूट है।

ख़बर के अनुसार, कॉन्ग्रेस के 12 विधायक गुरूवार को विधानसभा अध्यक्ष पी श्रीनिवास रेड्डी से मिले और TRS के साथ कॉन्ग्रेस विधायक दल के विलय को लेकर उन्हें प्रतिवेदन दिया। अधिकारियों के अनुसार, 12 विधायक कॉन्ग्रेस विधायक दल की संख्या का दो तिहाई है यानी कि उन पर दल-बदल विरोधी क़ानून प्रावधान लागू नहीं होगा।

राज्य की 119 सदस्यीय विधानसभा में कॉन्ग्रेस विधायकों की संख्या उस समय 18 रह गई थी जब पार्टी की तेलंगाना इकाई के प्रमुख उत्तम कुमार रेड्डी ने नलगोंडा से लोकसभा में चुने जाने के बाद विधानसभा की सदस्यता से बुधवार को इस्तीफ़ा दे दिया था।

तंदूर क्षेत्र से कॉन्ग्रेस विधायक रोहित रेड्डी ने नाटकीय घटनाक्रम के तहत मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के बेटे और TRS के कार्यवाहक अध्यक्ष केटी रामा राव से मुलाक़ात की और सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रति अपनी वफ़ादारी का संकल्प लिया। कॉन्ग्रेस के क़रीब 11 विधायकों ने मार्च में घोषणा की थी कि वो TRS में शामिल हो जाएँगे। इसके अलावा कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ विधायक जी वेंकट रमन रेड्डी ने बताया कि 12 विधायकों ने राज्य के विकास के लिए मुख्यमंत्री के साथ मिलकर काम करने का फ़ैसला किया है। रेड्डी ने बताया कि उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को एक प्रतिवेदन देकर TRS में विलय करने का अनुरोध किया है।

विधायक जी वेंकट रमन रेड्डी ने कहा, “कांग्रेस विधायक दल की हमारी एक विशेष बैठक हुई। इसके 12 सदस्यों ने मुख्यमंत्री केसीआर के नेतृत्व को समर्थन दिया और वे उनके साथ काम करना चाहते हैं। हमने अध्यक्ष को प्रतिवेदन दिया और उनसे TRS के साथ हमारे विलय का अनुरोध किया।” अगर अध्यक्ष महोदय इन 12 विधायकों के अनुरोध को स्वीकार कर लें तो कॉन्ग्रेस विपक्षी दल का दर्जा खो सकती है क्योंकि उसकी संख्या केवल 6 रह जाएगी।  

वहीं, तेलंगाना कॉन्ग्रेस चीफ़ एन उत्तम कुमार रेड्डी ने कहा कि वे इस स्थिति से लोकतांत्रिक तरीके से लड़ेंगे। उन्होंने ANI से कहा, “कॉन्ग्रेस इससे लोकतांत्रिक तरीके से लड़ेगी। हम स्पीकर से मिलने की कोशिश सुबह से कर रहे हैं, लेकिन वो गुमशुदा हैं। आप लोग उन्हें ढूँढने में हमारी मदद कीजिए।”

विधानसभा में हैदराबाद लोकसभा सीट से सांसद असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM के 7 सदस्य हैं जबकि भाजपा के केवल एक। विधानसभा के लिए पिछले साल दिसंबर में हुए चुनाव में TRS ने 88 सीटें जीती थीं।


उज्ज्वला योजना के कारण श्वाँस रोगों में 20% की कमी, LPG से आ रहा बड़ा बदलाव: Research

जैसा कि सर्वविदित है, उज्ज्वला गैस योजना के आने के बाद से महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने से मुक्ति मिली और घर-घर में रसोई गैस पहुँचा। इससे महिलाओं का कामकाज आसान होने के सिवा और भी कई बड़े फायदे हुए हैं, जिन पर लोगों का ध्यान नहीं गया। कई विशेषज्ञों ने विधानसभा व लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत का श्रेय भी उज्ज्वला योजना को ही दिया। अब उज्ज्वला के एक ऐसे फायदे के बारे में पता चला है, जो एक रिसर्च के बाद सामने आया है। इसनें स्वास्थ्य में भी योगदान दिया है। जहाँ-जहाँ एलपीजी का प्रयोग होता है, वहाँ श्वाँस रोगियों की संख्या में 20% कमी पाई गई।

एलपीजी गैस का प्रयोग बढ़ने के कारण 2.05 लाख मरीजों की रोग विवरण रिपोर्ट पर ‘इंडियन चेस्ट सोसाइटी (ICS)’ और ‘चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन (CRF)’ ने 2 साल की पड़ताल के बाद यह पाया है कि जिस रसोई में एलपीजी पहुँची है, वहाँ श्वाँस रोग और अन्य बीमारियाँ 20% तक घटी हैं। वर्ष 2016 में 880 शहर व कस्बों में 13,500 डॉक्टरों ने ओपीडी में आए 2.05 लाख रोगियों के मर्ज के आधार पर वर्गीकरण किया था। उसी वर्ष मई में एलपीजी योजना का भी शुभारम्भ हुआ। इसके बाद जहाँ-जहाँ एलपीजी पहुँची, वहाँ बड़ा बदलाव देखने को मिला।

इसके बाद सभी रोगियों का उनके विवरणों के आधार पर क्षेत्रवार विश्लेषण किया गया। क्षेत्रों को इस प्रकार बाँटा गया- एक जहाँ एलपीजी पहुँची थी, और दूसरी जहाँ एलपीजी नहीं पहुँची थी। इसके अलावा एलपीजी के प्रयोग के आधार पर भी विश्लेषण किया गया। इससे पता चला कि जहाँ एलपीजी का प्रयोग कम है, वहाँ श्वाँस रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या ढाई गुना ज्यादा निकली। जहाँ एलपीजी नहीं है, वहाँ जलावन के लिए लकड़ी वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, ख़ासकर 5 वर्ष से कम उम्र के, हानिकारक गैसों की चपेट में पाए गए।

हानिकारण गैसों की चपेट में आने के कारण इन बच्चों की फेंफड़े व श्वाँस की नली कमज़ोर पाई गई। कुल रोगियों में से 36,476 ऐसे थे, जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम थी। अर्थात, ये सभी किशोर एवं बच्चे थे। जहाँ कुकिंग गैस का प्रयोग होता है, वहाँ नए श्वाँस रोगी नहीं मिले। ऐसी जगहों पर पुराने रोगियों में भी सुधार पाया गया। रिसर्च में एक और भयावह बात मिली। डॉक्टरों ने बताया कि जहाँ एलपीजी गैस का प्रयोग नहीं होता है, वहाँ बच्चों के फेंफड़े काले होते हुए पाए गए। इसका कारण यह भी है कि महिलाएँ जब खाना बनती हैं तो बच्चे भी आसपास ही रहते हैं।

जहाँ एलपीजी का प्रयोग नहीं होता है, वहाँ कौन सी बीमारियाँ कितनी संख्या में पाई गईं:

बीमारीपीड़ितों की संख्याप्रतिशत
श्वाँस सम्बन्धी10375250.6
बुखार7278535.5
पाचन तंत्र सम्बन्धी5132425
संक्रामक लक्षण2560912.5
त्वचा सम्बन्धी185069
एंडोक्राइन डिसआर्डर 13580
6.6

(ध्यान दें: बीमार लोगों का प्रतिशत जोड़ने पर 100 के पार जा रहा है क्योंकि एक व्यक्ति को एक से ज्यादा बीमारी भी हो सकती है।)

अखिलेश-मायावती के कार्यकाल में हुआ किसानों के नाम पर करोड़ों का घोटाला, फर्जी बिल से हुआ खुलासा

देश में किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। एक समय था जब किसानों को अन्नदाता कहा जाता था, लेकिन अब स्थिति इतनी बद्तर हो गई है कि किसान को खेती करने के लिए कर्ज लेना पड़ता है और अगर वह कर्ज समय से नहीं चुका पाता तो आत्महत्या को अंतिम रास्ता मान लेता है। ऐसे में सरकार किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयासरत है, लेकिन इसी बीच उत्तर प्रदेश में किसानों के साथ हुई धोखा-धड़ी और करोड़ों रुपए के हुए घोटाले का मामला सामने आया है।

मामला उत्तर प्रदेश के कानपुर का है जहाँ महज कागज पर हुई लिखा-पढ़ी के मुताबिक कई क्विंटल बीज खरीदकर किसानों को मुहैया कराया गया है, जबकि हकीकत में ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। इस घोटाले का खुलासा एक फर्जी बिल से हुआ है। जिसमें किसानों से हुई धोखा-धड़ी की बात सामने आई।

द वीकेंड लीडर की खबर में आईएएनएस की रिपोर्ट का हवाला देकर बताया गया कि यह घोटाला मायावती सरकार के कार्यकाल (2007 से 2012) के दौरान शुरू हुआ और अखिलेश के कार्यकाल (2012-2017) तक जारी रहा। खबरों के मुताबिक अब तक 16.56 करोड़ रुपए की फर्जी रसीदों का पता चला है, जिसे पूरे घोटाले का अंश मात्र माना जा रहा है।

योगी सरकार ने धन के दुरुपयोग करने पर आर्थिक अपराध शाखा को पता लगाने का निर्देश दिया है कि पता लगाया जाए कि ये बीज घोटाला सिर्फ़ कानपुर में हुआ है या फिर यूपी के अन्य जिलों में ऐसे घोटाले हुए।

न्यूज 18 की खबर के मुताबिक कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उमाशंकर पाठक ने आईएएनएस से हुई बातचीत में कहा कि कानपुर पुलिस ने उत्तर बीज एवं विकास निगम की जाँच के आधार पर एफआईआर दर्ज की है। उन्होंने यह भी बताया कि इस घोटाले के बारे में उन्हें तब मालूम चला था जब बीज निगम ने भुगतान के लिए अपना बिल कृषि विभाग के पास भेजा था। इस दौरान 99 लाख का फर्जी बिल पाया गया, जिसके बाद ही घोटाले की विभागीय जाँच शुरू हुई।

राजस्थान कॉन्ग्रेस में गहराई दरार: विधायक की माँग, गहलोत हटाओ, पायलट लाओ

राजस्थान कॉन्ग्रेस में लोकसभा की करारी हार के बाद से शुरू हुआ सर-फुटौव्वल रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने बेटे वैभव की जोधपुर सीट से हार के लिए उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को जिम्मेदार ठहराते हुए जिम्मेदारी लेने को कहा। उसके बाद अब कॉन्ग्रेस के ही विधायक पृथ्वीराज मीणा ने अशोक गहलोत को हटा कर पायलट को प्रदेश का नेतृत्व सौंपे जाने की माँग की है। उन्होंने गहलोत को पार्टी की प्रदेश में बुरी हार की भी जिम्मेदारी लेने की सलाह दी है।

‘बेटे को लेकर आसक्त गहलोत’, पायलट हार की समीक्षा में जुटे

पृथ्वीराज मीणा का आरोप है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे को लेकर आसक्त है। गहलोत के सचिन पायलट के वैभव की हार की जिम्मेदारी लेने को लेकर उन्होंने कहा, “जब पार्टी सत्ता में होती है तो हार की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होती है। अध्यक्ष की जिम्मेदारी तब बनती है जब पार्टी विपक्ष में हो।” उन्होंने यह भी जोड़ा, “मुख्यमंत्री का बयान पूरी तरह गलत और पार्टी के हितों के खिलाफ है। जोधपुर की हार की जिम्मेदारी उन्हें खुद लेनी चाहिए।”

इस बीच सचिन पायलट ने घोषणा की है कि पार्टी की लोकसभा में हार की समीक्षा के लिए उन्होंने बूथवार रिपोर्टें माँगी हैं। उसी आधार पर इस हार के कारणों और कारकों का निर्धारण होगा। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि हालाँकि, राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने हार की पूरी जिम्मेदारी अपने सिर ले ली है, लेकिन पार्टी इतने भर से नहीं रुकेगी। जमीनी हकीकत का जायजा लेने के बाद आगामी विधानसभाओं के मतदान की तैयारी शुरू कर दी जाएगी। गौरतलब है कि राजस्थान में कॉन्ग्रेस के 25 उम्मीदवारों में से एक भी नहीं जीता