Monday, November 18, 2024
Home Blog Page 5238

चीन में फीकी ईद, बची इकलौती मस्जिद भी सुनसान

चीन में वहाँ की सरकार की मुस्लिमों के प्रति दमनकारी नीतियों के चलते शिनजियांग प्रान्त में ईद पर ज्यादा चहलपहल नहीं रही। उइगुर मुस्लिम सुरक्षाकर्मियों की भारी मात्रा में मौजूदगी और सरकार की दमनकारी नीतियों के कड़ाई से लागू करने की नीति के चलते डरे हुए हैं। चीन सरकार 2017 से अब तक मस्जिदों समेत 36 उपासना-स्थलों को ढहा चुकी है।

मस्जिदों के अंदर कैमरे, मेटल डिटेक्टर

चीन में बची-खुची मस्जिदों में प्रवेश करने के लिए मुस्लिमों को मेटल-डिटेक्टर का सामना करना पड़ता है। उन पर लगातार निगरानी रखी जाती है। इसके आलावा चीन सरकार सार्वजनिक तौर पर पंथिक आस्था के प्रदर्शन को भी हतोत्साहित करती है। शिनजियांग में जब मुस्लिमों के रोज़े चल रहे थे, तो भोजन की दुकानों पर उमड़ी भीड़ को दिन भर भोजन परोसा जाता था।

दरअसल आतंकी हमले के डर से चीन की सरकार ने जगह-जगह कैमरे लगा रखे हैं। इसके अलावा सादे कपड़ों में तैनात पुलिसकर्मी भी आते-जाते मुस्लिमों पर कड़ी नज़र रखते हैं। इसके अलावा वहाँ की सरकार और सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी मज़हब को खतरा मानती है।

व्यवसायिक शिक्षा केंद्रों पर भी पंथिक प्रदर्शन पर रोक

चरमपंथ के रास्ते पर लोगों को जाने से रोकने के लिए चीन की सरकार व्यवसायिक शिक्षा केंद्र चला रही है, जिनमें उइगुर और तुर्की-भाषी मुस्लिमों को रखा गया है। वहाँ उन्हें मंदारिन भाषा और चीन के कायदे-कानूनों से वाकिफ कराया जाता है। शैक्षिक केंद्रों पर भी पंथिक और मज़हबी गतिविधियों की इजाजत नहीं है। यह चीनी कानून के खिलाफ है। लेकिन शिनजियांग सरकार का यह भी कहना है कि यह लोग जब सप्ताहांत में वापस जाएँगे तब उनके ऐसा करने पर कोई रोक नहीं है

मोदी ने त्रिकोणासन करते हुए अपना कार्टून जारी कर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योग से जुड़ने के लिए अपील की

आगामी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए प्रधानमंत्री ने अभी से तैयारियाँ शुरू कर दीं हैं। उन्होंने अपना एक एनिमेटेड कार्टून जारी कर लोगों से योग को अपने जीवन में शामिल करने और दूसरों को भी प्रेरित करने की अपील की है। इस वीडियो में वह त्रिकोणासन कर रहे हैं।

ट्विटर पर मोदी का कार्टून

ट्विटर पर योग करता अपना कार्टून जारी कर मोदी ने लोगों को याद दिलाया कि आगामी 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। संयुक्त राष्ट्र में इसके लिए दिसंबर, 2014 में प्रस्ताव पारित हुआ था। भारत के अलावा 177 अन्य-देश इस प्रस्ताव के संयुक्त राष्ट्र महासभा में सह-प्रस्तावक बने। यह किसी भी प्रस्ताव के लिए एक रिकॉर्ड संख्या थी। इसके बाद 21 जून, 2015 को पहला योग दिवस मनाया गया था।

पहले भी जारी कर चुके हैं कार्टून  

मोदी इससे पहले भी लोगों को योग करने के लिए कई तरीके से प्रोत्साहित कर चुके हैं। इससे पहले पिछले वर्ष भी उन्होंने विभिन्न आसनों को करने का तरीका सिखाते अपने कार्टून जारी किए थे। इसके अलावा उन्होंने प्रधानमंत्री निवास पर अपने योगाभ्यास का वीडियो भी जारी किया था

राम नवमी हिन्दुओं के लिए हिंसा व सांप्रदायिकता की जगह! Scroll ने फिर उगला जहर, लेख में केवल झूठ

स्क्रॉल की रिपोर्ट में बताया गया है कि राम नवमी झारखण्ड में साम्प्रदायिकता का बहाना बनती जा रही है। (ज़ाहिर तौर पर इस साम्प्रदायिकता के लिए दोषी हिन्दू ही हैं, और इसे रोकने का तरीका यह है कि राम नवमी मनाना ही बंद कर दिया जाए।)

जिन घटनाओं का हवाला दिया, वह झूठ

लेख की शुरुआत में एक-एक हत्या की घटना का हवाला दिया जाता है ‘मॉब-लिंचिंग’ के तौर पर। जबकि यह मॉब-लिंचिंग या भीड़ द्वारा (जातिगत/मज़हबी) नफरत के चलते हुई हत्या की घटना नहीं थी। जिस आदमी मोहम्मद शालिक की हत्या का जिक्र इस लेख में है, उसका एक स्थानीय नाबालिग लड़की के साथ प्रेम-प्रसंग चल रहा था। शालिक 19 साल का था और लड़की महज़ 15 साल की। इसी प्रसंग में लड़की के ही परिजनों ने अपनी नाबालिग लड़की पर डोरे डाल रहे लड़के की पीट-पीट कर हत्या कर दी।

उनका कानून हाथ में लेना बिलकुल गलत था, इसमें शायद ही कोई दोराय हो सकती है; और नाबालिग किशोरों/किशोरियों के प्रेम-प्रसंग और यौन-संबंध पर आप जितनी चाहें उतनी दोराय बना सकते हैं- लेकिन इस घटना का हिन्दू धर्म, राम नवमी या शालिक के समुदाय विशेष से होने से कोई संबंध नहीं था। और यही बात पुलिस जाँच में भी निकल कर आईइसके बावजूद कि मामले का साम्प्रदायिक न होना घटना के 4 दिन के भीतर ही साफ हो चुका था, स्क्रॉल ने मामले को साम्प्रदायिक हिंसा बताकर झूठ बोला। यह अधिक-से-अधिक ऑनर-किलिंग का मामला हो सकता था, लेकिन वह ‘हेट-क्राइम’ नहीं है- दूर-दूर तक नहीं।

राम नवमी की भूमिका पर न ही कोई आँकड़े, न ही दावा करने वाले की पहचान

“अन्य पाँच ‘हेट-क्राइम’ के घटनास्थलों पर भी राम नवमी की सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही” यह दावा इस लेख में अनाम पुलिस अफसरों और स्थानीय देखने वालों के हवाले से किया गया है। अनाम पुलिस अफसरों, अनाम लोगों के हवाले से गोल-मोल दावा, और उसके आधार पर हिन्दुओं के त्यौहार को गुंडागर्दी ठहरा देना- यही स्क्रॉल की पत्रकारिता है

अपनी मनमर्जी से बनाया हुआ ‘हेट-क्राइम’ डाटाबेस

इस लेखक कुणाल पुरोहित और उनकी संस्था ‘फैक्ट-चेकर डॉट इन’ के अनुसार “झारखण्ड में 2009 से अब तक 16 ‘हेट-क्राइम’ हुए हैं, जोकि साम्प्रदायिक नीयत से किए गए, और इनमें 12 लोगों की जान गई है।” इसमें छेद-ही-छेद हैं।

पहली बात तो यह कि इस कथन का स्रोत क्या है? कौन से स्वतंत्र डाटाबेस का इस्तेमाल इस दावे के लिए किया गया है? अगर खुद के बनाए डाटाबेस के आधार पर फैक्टचेकर राम नवमी बंद करने के लिए पर्याप्त कारण ढूँढ़ कर ले आ रहा है और उम्मीद कर रहा है कि उसे ही अंतिम सत्य मान लिया जाए तो मैं भी कल सुबह तक अपने ‘आंतरिक सर्वे’ से यह निष्कर्ष निकाल सकता हूँ कि फैक्टचेकर को अपनी दुकान बंद कर लेनी चाहिए। करेंगे अपनी दुकान बंद?

दूसरी बात, फैक्टचेकर यह तो बताता है कि वह ‘क्राइम’ की परिभाषा सरकारी ही रखता है, और वही मामले देखता है जिनमें असल में अपराध यानि हिंसा हुआ हो, लेकिन यह बात गोल कर जाता है कि उसकी ‘हेट’ की परिभाषा क्या है? और उसमें भी ‘साम्प्रदायिकता पर आधारित नफरत‘ मापने या ढ़ूँढ़ने का पैमाना क्या है? क्या उन्होंने पुलिस रिपोर्ट का सहारा लिया, अदालत के निष्कर्ष का इंतजार किया, किसी मनोवैज्ञानिक या समाजशास्त्री का ऑन-रिकॉर्ड दावा है? या यह सब कुछ नहीं, खाली देखा कि हिन्दू-मुस्लिम ऐंगल है, वह भी सुविधाजनक (हिन्दू अपराधी, मुस्लिम भुक्तभोगी) तो उसे अपने डाटाबेस में चिपका लिया?

यहाँ बहस के लिए कोई बहस कर सकता है कि फैक्टचेकर की खुद की हेट-क्राइम की परिभाषा क्यों नहीं विश्वसनीय है। तो इसका जवाब होगा कि यह ऊपर मोहम्मद शालिक के मामले में साफ हो चुका है कि जब उन्होंने आशनाई में हुई हत्या को ‘साम्प्रदायिकता पर आधारित नफरत’ का नाम दे दिया तो ज़ाहिर तौर पर या तो उनकी परिभाषा में खोट है, या उनकी नीयत में।

अगर उनके डाटाबेस पर भरोसा कर भी लें तो इसकी क्या गारंटी है कि उनके डाटाबेस में कुछ, या फिर शायद अधिकाँश, ‘हेट-क्राइम’ के भुक्तभोगी चंदन गुप्ता, अंकित सक्सेना जैसे हिन्दू ही न हों? अगर ऐसा निकला तो भी गलती हिन्दुओं की ही होगी कि वो ऐसी राम नवमी मनाते ही क्यों हैं जिससे नाराज़ होकर ‘समुदाय विशेष’ को उनके खिलाफ ‘हेट-क्राइम’ करने पर मजबूर होना पड़ता है?

अपने ही ‘हेट-क्राइम’ डाटाबेस की ‘जाँच’ छापने के बाद?

लेख में यह भी कहा गया है कि फैक्टचेकर ‘हेट-क्राइम वॉच’ के डाटाबेस की ‘जाँच’ करने निकली थी। हालाँकि साथ में ‘फॉलो-अप’, ‘लॉन्ग-टर्म इम्पैक्ट’ जैसे भारी-भरकम शब्द भी देकर बात को घुमाने की कोशिश की गई, लेकिन तथ्य यह है कि फैक्ट-चेकर को अपने ‘हेट-क्राइम वॉच’ के डाटाबेस में कुछ ऐसी घटनाओं के होने का अंदेशा था, जो शायद तहकीकात में ‘हेट-क्राइम’ न निकलतीं। तो क्या फैक्ट-चेकर को उन सन्देहास्पद घटनाओं को छापने से, उनसे वेबसाइट ट्रैफिक, फंडिंग आदि कमाने के पहले, उनके जरिए भारत को बदनाम करने के पहले ही जाँच नहीं कर लेनी चाहिए थी?

‘हेट-क्राइम वॉच’ का डाटाबेस खोटा

‘हेट-क्राइम वॉच’ के डाटाबेस की विश्वसनीयता ही शून्य है। इस डाटाबेस में ‘हेट-क्राइम’ के तौर पर सूचीबद्ध लगभग एक-तिहाई (30%) घटनाओं में उन्हें हमलावरों का मज़हब/पंथ ही नहीं पता।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब मारने वाले का मज़हब नहीं पता तो यह कैसे पता लगा लिया गया कि हत्या नफरत के चलते ही हुई है, छिनैती में नहीं? और ऐसे किसी भी अपराध को बिना जाँचे-परखे, बिना पूरी जानकारी इकठ्ठा हुए हेट-क्राइम बता देने वाला या तो बहुत ही मूर्ख होगा, या बहुत ही धूर्त! कुणाल जी और फैक्ट-चेकर बता दें कि हम अपने डाटाबेस में उनकी एंट्री किस खाने में करें।

नाबालिग का आशिक पुलिस से बचने के लिए कुएँ में कूदा, दोष श्री राम का?

अगला उदाहरण इस लेख में झारखण्ड में एक लड़की और उसके माँ-बाप की मॉब-लिंचिंग कर हत्या का है, जिसका दोष राम नवमी के सर ठेला जा रहा है। मामला यूँ है कि हिन्दू परिवार की 17 साल की नाबालिग लड़की का चक्कर ईसाई लड़के नंदलाल करकेट्टा (23 वर्ष) से चल रहा था। उसे पुलिस ने लड़की के अपहरण की शिकायत मिलने पर बुलाया तो उसने पुलिस से बचने के लिए कुएँ में छलाँग लगा दी और मर गया। उसकी मौत का दोषी लड़की के परिवार वालों को मानते हुए करकेट्टा के परिजनों ने लड़की के माँ-बाप लखपती देवी और तहलू राम की और उसकी बड़ी बहन रूनी कुमारी की पीट-पीट कर हत्या कर दी। नाबालिग लड़की और उसकी एक और बहन को भी गंभीर रूप से घायल कर दिया

इस घटना में मॉब-लिंचिंग करने वाले ईसाई हैं, जबकि मॉब-लिंचिंग के के शिकार हिन्दू, और इस घटना को राम नवमी से स्क्रॉल और फैक्ट-चेकर बिना किसी कारण के जोड़ देते हैं।

हिन्दू लड़की का शौहर के बाप, चाचा गैंगरेप कर कत्ल कर दें, लेकिन यह ‘हेट-क्राइम’ नहीं होता

अगली घटना जिसका स्क्रॉल ज़िक्र करता है, वह एक हिन्दू लड़की के उसके मुस्लिम आशिक के बाप और उसके चाचा द्वारा गैंगरेप कर हत्या कर देने की है। लड़की को केवल इसलिए मार दिया गया क्योंकि उसने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया था। ज़ी न्यूज़ पुलिस द्वारा जारी आशिक आदिल बयान के आधार पर यह जानकारी देता है, लेकिन पुलिस से ज्यादा बड़ी जाँच एजेंसी फैक्ट-चेकर इस्लाम न कबूल करने के बदले हुए गैंगरेप-हत्या में मज़हबी ऐंगल देखने से मना कर देती है।

इसके बाद सीधा बाकी घटनाओं की कोई जानकारी दिए स्क्रॉल राम नवमी को झारखण्ड में बढ़ते साम्प्रदायिक तनाव के लिए जिम्मेदार ठहरा देता है।

हर चीज का घुमा-फिरकर राम-नवमी कनेक्शन

इसके बाद स्क्रॉल कहीं से कुछ भी उठाकर येन-केन-प्रकारेण राम नवमी को एक मुसीबत का दर्जा देने की कवायद शुरू कर देता है। और इसके लिए वह बेहूदा तर्कों का इस्तेमाल करता है; मसलन ‘कभी-कभी राम नवमी वाले अपना रास्ता बदलकर समुदाय विशेष के इलाके से जुलुस निकालने लगते हैं’ (लेकिन यह नहीं बताता कि कुल कितनी घटनाएँ, या सारे जुलूसों में से कितने प्रतिशत जुलुस ऐसा करते हैं), ‘जुलूस में शामिल एक अनाम हिंन्दू राष्ट्रवादी के फ़ोन में भड़काऊ, राम मंदिर के गाने वाली रिंगटोन लगी है’, ‘रामलीला आयोजकों में से दो (इतने सालों की रामलीला में दो, महज़ दो) रामलीला आयोजक किसी मॉब-लिंचिंग वाली भीड़ का हिस्सा थे’, और ऐसी ही बकवास।

मदरसे के नाम पर ऐंठी जमीन पर बनी मस्जिद, हिन्दुओं पर चले पत्थर, फिर भी बंद करो राम नवमी

इसके बाद हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच असल में हुए टकराव का ज़िक्र लेख के सबसे अंत में होता है- महज़ दो बार। एक बार 2017 में, जब हिन्दुओं की भीड़ पर समुदाय विशेष ने पहले थूका, और उसके बाद गुस्साए हिन्दुओं की भीड़ ने मस्जिद में घुस कर हिंसा की। हिन्दू पहले से ही भरे हुए बैठे थे क्योंकि यह जमीन उन्हीं की थी, जो उनसे मदरसा बनाने यानि शिक्षा के नाम पर ऐंठ ली गई, और बाद में उस पर मस्जिद बना दी गई।

दूसरी घटना इसी साल की है, लेकिन इसमें समुदाय विशेष ने ही हिन्दुओं पर पथराव किया था। लेकिन इस सच को दबा कर, “दोनों समुदायों का टकराव” कहकर हिन्दूफ़ोबिया में सने हुए कुणाल पुरोहित, फैक्ट-चेकर और स्क्रॉल इसे भी राम नवमी को बदनाम करने के एक बहाने के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं।

हिन्दू त्यौहारों को बंद कर देने की तैयार हो रही है ज़मीन

स्क्रॉल का यह लेख उसी समय आ रहा है जब पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर घटिया सवाल घटिया तरीके से उठाने को लेकर पत्रकारिता के समुदाय विशेष का एक दूसरा सदस्य The Hindu पहले ही घिरा हुआ है। यह महज़ एक संयोग नहीं है। यह इनकी साज़िश है। फार्मूला है हिन्दू त्यौहारों को बंद करने, हिन्दू धर्म को खात्मे की तरफ ढकेलने का- पहले “धर्म के नाम पर फलाना-ढिकाना हो रहा है” की चिंता जताने के बहाने धर्म और त्यौहारों के खिलाफ माहौल तैयार करों, सालों तक त्यौहारों के खिलाफ एक संस्कृति तैयार करो और फिर न्यायिक याचिका डाल कर त्यौहार को खत्म कर दो। उसी के लिए ज़मीन तैयार की जा रही है।

धोखे में रह गए शरद पवार: V-मतलब VVIP को समझे V-मतलब 5वीं पंक्ति, नहीं गए राष्ट्रपति भवन

30 मई को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित हुए शपथ-ग्रहण समारोह में एनसीपी नेता शरद पवार इस नाराजगी के चलते शामिल नहीं हुए थे क्योंकि उन्हें लगा था कि समारोह में उन्हें पाँचवीं पंक्ति में सीट दी गई है। जबकि आज (5 जून, 2019) राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अशोक मलिक ने ट्विटर पर इस उड़ी-उड़ाई बात की स्पष्टता पर प्रकाश डाला है।

प्रेस सचिव मलिक ने ट्वीट करते हुए लिखा, “30 मार्च को शपथ-ग्रहण समारोह के मौक़े पर शरद पवार को V-सेक्शन में निमंत्रण दिया गया था। यहाँ सबसे वरिष्ठ नेताओं के लिए जगह निर्धारित की गई थी।” मलिक ने बताया कि ‘V’ का लेबल लगे होने के बावजूद भी उन्हें पहली पंक्ति में सीट दी गई थी। प्रेस सचिव ने बताया कि ऐसा हो सकता है कि शरद पवार के ऑफिस में किसी ने VVIP के लिए प्रयोग किए गए ‘V’ का अर्थ रोमन में पढ़ा जाने वाला पाँच (V) समझ लिया हो। जिसके कारण ये गलतफहमी हुई।

बता दें कि एनसीपी नेता शरद पवार ने 30 मई को हुए शपथ-ग्रहण समारोह का बहिष्कार ये कहकर किया था कि वर्तमान सरकार को अपने बड़ों को इज्जत देना नहीं आता। जिसका सबूत उन्होंने समारोह में उनको ‘पाँचवी पंक्ति (V-section) में मिली सीट’ को बताया थ। उनका कहना था कि इस तरह पाँचवी पंक्ति में सीट देकर एक पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष को उचित सम्मान नहीं दिया गया है।

ईदगाह पर नमाज के बाद लहराया गया एक साथ तिरंगा और भाजपा का झंडा

आज देशभर में ईद हर्षोउल्लास मनाई जा रही है| हालाँकि कहीं-कहीं जैसे कश्मीर में नमाज के बाद पत्थर बाज सक्रीय हो गए। वहीं यूपी के मुजफ्फरनगर जो अक्सर कभी तनाव पूर्ण स्थितियों की वजह से चर्चा में रहता था आज ईद-उल-फितर के दिन एक नजारा ऐसा भी दिखा जो आज तक संभवतः पहले नहीं देखा गया।

हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, पहली बार अमन के प्रतीक रूप में राष्ट्रीय ध्वज के साथ भाजपा का झंडा भी नमाजियों के बीच ईद के मौके पर लहराता हुआ दिखाई दिया। जिससे कुछ समय के लिए असमंजस की स्थिति भी बन गई और इसे देखकर सभी आश्चर्यचकित भी हुए। इस झंडे को फहराने पर कुछ आपत्ति हो सकती थी किंतु आज जब नमाज के दौरान झंडे को कुछ मुस्लिम बच्चों द्वारा लहराया गया तो सबने इसे खुशी से स्वीकार किया और माहौल अमन और सद्भाव भरा बना रहा।

वैसे तो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के ईदगाह में आज ईद उल फितर पर हजारों लोगों ने ईद की नमाज अदा की। तिरंगा के साथ बीजेपी का झंडा भी फहरा दिया गया। ये प्रतीक रूप में ही सही लेकिन इसमें भाजपा के नाम पर मुस्लिमों को डराने वालों के लिए एक बड़ी नसीहत भी छुपी है।

जबकि नमाज के दौरान वहाँ कोई भी भाजपा नेता या जनप्रतिनिधि ईदगाह पर मौजूद नहीं था। हालाँकि इस बार प्रधानमंत्री के ट्विटर हैंडल से हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में सभी नमाजियों को ईद की मुबारकबाद दी गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुजफ्फरनगर ईदगाह पर जिलाधिकारी अजय शंकर पांडे एसएसपी सुधीर कुमार सिंह के अलावा नगर पालिका परिषद की चेयरमैन अंजू अग्रवाल मुख्य रूप से मौजूद रही।

EID मुबारक के बदले ममता-केजरीवाल को मिले अतरंगी जवाब – ऑपइंडिया इसकी कड़ी निंदा करती है

आज पूरे देश भर में ईद-उल-फितर का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जा रहा है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर लोग बढ़-चढ़ कर ईद मुबारक कह रहे है। ऐसे में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पीछे नहीं हैं। अब चूँकि ममता बनर्जी बनाम ‘जय श्री राम-नारे’ और केजरीवाल बनाम चुनाव का मुद्दा गर्माया हुआ है, तो लोगों ने मौक़े का फायदा उठाकर उनके ट्विट्स पर जमकर दोनों नेताओं की चुटकी ली है।

ममता बनर्जी के ईद मुबारक कहते ही यूजर्स ने उनके ट्वीट पर जय श्री राम लिखना शुरू कर दिया और ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई-कई बार किया गया। ममता ने अपने ट्वीट में लिखा, “ईद-उल-फितर की सभी को मुबारकबाद, धर्म इंसान का निजी विश्वास है लेकिन त्यौहार सभी के हैं। आइए इस सोच को एकता के साथ मजबूत करते है और शांति और भाइचारे से रहते हैं।”

ममता के इस पोस्ट पर यूजर्स द्वारा उन्हें ट्रोल किए जाने का मुख्य कारण स्पष्ट है कि वो जय श्री राम बोलने वाले के प्रति इतनी नफरत रखती हैं कि चलते काफिले को रोककर उस आवाज को चुप करवाती हैं, जो राम के नाम पर निकली हो और ईद के त्यौहार पर वह खुद धर्म और त्यौहार के बीच फर्क़ समझाती हैं। ममता के इस ट्वीट पर अधिकांश कमेंट आपको सिर्फ़ ‘………जय श्री राम~’ के ही देखने को मिलेंगे।

या कहें कि शायद ही आपको ममता बनर्जी की मुबारकबाद के बदले किसी की मुबारकबाद देखने को मिले, क्योंकि लगभग हर यूजर ने उन्हें जवाब में एक ही नाम लिखा है। ममता बनर्जी का ट्विट और उस पर कमेंट देखकर ऐसा लगता है जैसे पूरी ट्विटर यूजर्स की भीड़ उन्हें चिढ़ाने के लिए तत्पर हो।

इसी तरह अरविंद केजरीवाल ने भी जब सोशल मीडिया पर लोगों को ईद मुबारक कहा, तो लोगों ने उन्हें बदले में मुबारकबाद देने की बजाय आने वाले चुनावों की याद दिला दी।

किसी ने उन्हें आने वाले चुनावों में दिल्ली में सूपड़ा साफ़ होने की बधाई दी तो किसी ने ईद के त्यौहार पर भी उन्हें झूठा और फ्रॉड करार दे दिया।

इस ट्वीट पर लोगों ने महिलाओं को डीटीसी और मेट्रो में मुफ्त सफ़र करने के फैसले की भी आलोचना की। एक शख्स ने तो केजरीवाल को यहाँ तक कह दिया, “मौलाना जी कभी इतनी जल्दी दीपावली या होली की बधाई भी देते हो??? इस बार हिन्दू तुम्हें बाबाजी का ठुल्लू ही देने वाला है, जाओ और इफ्तार में हड्डी चुसो समय हो गया है।”

ऑपइंडिया का मानना है कि जब केजरीवाल और ममता बनर्जी ईद की बधाई दे रहे थे, तो लोगों को बदले में ‘जय श्री राम’ और ‘चुनाव’ कहकर चिढ़ाने की क्या जरूरत थी। सेकुलर देश में रहकर भले ही ये नेता हिंदू त्यौहारों के प्रति इतने सजग न हों लेकिन समुदाय विशेष के प्रति और उनके पर्वों के प्रति उनकी जागरूकता सराहनीय है। दोनों नेताओं के पोस्ट पर यूजर्स के ऐसे रिएक्शन की हम कड़ी निंदा करते हैं। आप भी उत्सव के इस माहौल में शामिल होकर सहृदयता का परिचय दीजिए।

3 वर्षीय ‘सोनम’ की जाहिद और असलम ने की निर्मम हत्या, 3 दिन तक सड़ता रहा शव

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जाहिद नाम के व्यक्ति ने अपने साथी के साथ मिलकर ‘सोनम’ (बदला हुआ नाम) नामक 3 साल की बच्ची की निर्मम हत्या कर डाली। हत्या के पीछे का कारण बच्ची के परिवार से हुई एक बहस थी, जो 10,000 के लोन के कारण हुई थी।

2 जून को बच्ची का शव बरामद करने के बाद अलीगढ़ पुलिस ने जाहिद और उसके दोस्त असलम को गिरफ्तार कर लिया है। जाँच में पता चला है कि जाहिद ने मासूम का गला दुपट्टे से दबाया और फिर उसे अपने घर मेंं
भूसे की ढेर में छिपा दिया। 3 दिन बाद जब शव से गंध आने लगी तो शव को बाहर लाकर फेंक दिया। पुलिस को बरामद हुआ ‘सोनम’ का शव पूरी तरह सड़ चुका है।

अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक सर्कल ऑफिसर पंकज श्रीवास्तव ने बताया है कि 2 जून की सुबह 3 दिन से लापता बच्ची के शव बरामद होने के बाद एसएसपी के निर्देश पर एसओजी, सर्विलांस, फील्ड यूनिट, थाना पुलिस मामले की जाँच में जुटी हुई थी।

परिजनों से पूछताछ में मोहल्ले से सटे कस्बे के एक मोहल्ले ऊपरकोट में रहने वाले जाहिद और उसके दोस्त असलम का नाम सामने आया। ‘सोनम’ के पिता ने बताया कि जाहिद ने उनसे दस हजार रुपए लिए थे। जिसको लेकर काफी बहस भी हुई थी।

पूछताछ में जाहिद ने स्वीकारा कि उसने बेइज्जती का बदला लेने के लिए असलम संग मिलकर साजिश रची। 30 मई को जब बच्ची खेलते हुए जाहिद के दरवाजे पर पहुँची तो वो उसे बिस्कुट के बहाने अपने घर में ले गया। अपने घर ले जाकर उसने पूरी घटना को अंजाम दिया। पुलिस के अनुसार दोनों आरोपितों को अपहरण, हत्या व साक्ष्य छिपाने के आरोप में जेल भेज दिया गया है। इससे घटना से पहले जाहिद पर एक दुष्कर्म का मामला भी दर्ज है।

आर्थिक कंगाली की ओर पाकिस्तान, फौज ने की रक्षा बजट में कटौती

पस्त अर्थव्यवस्था के कारण कंगाली की ओर बढ़ रहे पाकिस्तान में सेना के बजट में कटौती की गई है। हालाँकि, यह कटौती सेना ने ख़ुद की है। प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश की ऐसी हालत को देखते हुए सभी मंत्रालयों का बजट कम करना शुरू कर दिया है। सुरक्षा की दृष्टि से पाकिस्तान में तमाम चुनौतियाँ हैं और आतंकवादियों का लगातार पोषण करने वाले पाकिस्तान के कई इलाकों में अशांति का माहौल है। ऐसे में भी अगर सेना अगले वित्त वर्ष के लिए रक्षा बजट में कटौती के लिए तैयार हो गई है, यह पाकिस्तान की हालत को दिखाता है। सेना के इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने लिखा:

“मैं विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों के बावजूद आर्थिक संकट की घड़ी में सेना की ओर से अपने ख़र्चे में कटौती के फ़ैसले का स्वागत करता हूँ। हम इन बचाए गए रुपयों को बलूचिस्तान और क़बायली इलाक़ों में ख़र्च करेंगे।”

इमरान खान ने बचाए गए रुपयों को बलूचिस्तान में ख़र्च करने की बात कही है। हालाँकि, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस, सैन्य मीडिया विंग, ISPR के मेजर जनरल आसिफ गफूर ने कहा कि यह कटौती रक्षा और सुरक्षा की कीमत पर नहीं होगी। यह कटौती सेना के तीनों अंगों द्वारा की जाएगी। पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर लगातार गिरती जा रही है। पिछले वर्ष 5.2% रही आर्थिक वृद्धि दर अब बुरी तरह गिर कर 3.4% पर आ गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें गिरावट जारी रहेगी। अगले वर्ष गिर कर इसके 2.7% हो जाने की संभावना है, जो देश के लिए एक भयावह स्थिति होगी।

कहा जा रहा है कि बचाए गए रुपयों को जनजातीय इलाक़ों में ख़र्च की जाएगी। पाकिस्तान के सूचना एवं प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी ने पुलवामा हमले के बाद उपजे भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच कहा था कि पाकिस्तान का रक्षा बजट पहले ही बहुत कम है और इसे घटाने-बढ़ाने की कोई ज़रूरत नहीं है। देश में स्थिति इतनी ख़राब है कि मार्च में मँहगाई दर बढ़कर 9.41% हो गई, जो नवंबर 2013 के बाद से सबसे अधिक है। पाकिस्तान में पेट्रोल 112.68 रुपए, डीजल 126.82 रुपए और किरोसिन तेल 96.77 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है।

अगर भारत और पाकिस्तान के सैन्य ख़र्च की तुलना करें तो 2018 में जहाँ भारत का सैन्य ख़र्च 66.5 अरब डॉलर रहा था, पाकिस्तान का कुल सैन्य ख़र्च 11.4 अरब डॉलर रहा था। पाकिस्तान में क़र्ज़ और जीडीपी का अनुपात 70% पहुँच गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान में विदेशी निवेश नहीं आ रहा है। मँहगाई दर अगले वित्त वर्ष में 14% तक पहुँचने की उम्मीद है। चुनावी अभियान के दौरान विदेशी मदद को भीख बताते हुए आत्महत्या को बेहतर विकल्प कहने वाले इमरान खान अब हर देश में वित्तीय मदद के लिए गुहार लगाते फिर रहे हैं।

पाकिस्तान ने चीन से उच्च दर पर क़र्ज़ भी लिया हुआ है। इसे भी चुकाने में उसकी हालत ख़ासी पतली होने वाली है। अब देखना यह है कि मंत्रालयों का बजट काट कर और अन्य देशों से मदद माँग-माँग कर कितना रुपया बचा पाते हैं।

ED ने ₹2.9 करोड़ में बेच दी भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी की 5 लक्ज़री गाड़ियाँ

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भगोड़ा कारोबारी नीरव मोदी की ज़ब्त की गई लक्ज़री गाड़ियों में से 2 को बेच डाला है। नीरव मोदी की सिल्वर रोल्स रायस घोस्ट को 1.7 करोड़ रुपए में बेचा गया जबकि पोरसे कार को 60 लाख रुपए में बेचा गया। कुल मिलाकर इन दोनों कारों को बेचने के बाद ईडी के पास 2.3 करोड़ रुपए आए हैं। नीरव मोदी की अन्य गाड़ियाँ भी ईडी के शिकंजे में है और उन्हें भी बेचा जाएगा। इससे पहले भी नीरव मोदी के कारों की नीलामी रखी गई थी, लेकिन पहली बार में अच्छी क़ीमत न मिल पाने के चलते कारों की नीलामी नहीं हो पाई थी। इस बार प्रवर्तन निदेशालय को उम्मीद थी कि उसे कारों की अच्छी कीमत मिलेगी।

कुल 12 कारों को नीलामी के लिए रखा गया था, जिनमें से कई गाड़ियों को लेकर बोली लगाने वाले लोग डिपॉजिट राशि जमा कराने में नाकाम रहे। नीरव मोदी की गाड़ियों की नीलामी के लिए मेटल एंड स्क्रैप ट्रेडिग कार्पोरेशन ने 25 अप्रैल की तारीख तय की थी। ये नीलामी ऑनलाइन की जानी थी। कुल 10 गाड़ियों के लिए तीन करोड़ 29 लाख की बोली लगाई गई थी। यह राशि इन कारों के लिए ईडी की ओर से तय की गई क़ीमत से ज्यादा थी। फिर भी ईडी ने कारों की इस नीलामी को मंजूरी नहीं प्रदान की क्योंकि इन कारों से और अधिक रुपए मिलने की उम्मीद थी।

13,000 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड में आरोपित नीरव मोदी अभी लन्दन में रह रहा है। 48 वर्षीय हीरा कारोबारी अभी साउथ-वेस्ट लंदन के वांड्सवर्थ जेल में बंद है। वहाँ उसकी हिरासत अवधि 27 जून तक बढ़ा दी गई है। उसे 19 मार्च को गिरफ्तार किया गया था। इकनोमिक टाइम्स के अनुसार, नीरव मोदी की कुल 5 गाड़ियों की नीलामी की गई है, जिससे ईडी को 2.9 करोड़ रुपए मिले हैं।

ईद की नमाज पढ़कर शुरू किया सेना पर पथराव, क्या ये होता है जश्न मनाने का तरीका?

‘ईद मुबारक’ के मौक़े पर भी जम्मू-कश्मीर में शांति नहीं है। बुधवार को सुबह 8 बजे ईद की नमाज पढ़ने वाले लोगों ने 11 बजे उपद्रवी बनकर सेना पर पत्थरबाजी की। साथ ही पाकिस्तान का झंडा भी फहराया।

खबरों के मुताबिक उपद्रवियों की भीड़ खतरनाक आतंकी जाकिर मूसा के समर्थन में सड़कों पर उतरी हुई है। भीड़ के हाथ में मूसा के पोस्टर है, जिन पर मूसा आर्मी लिखा हुआ है। साथ में इन पोस्टरों पर मसूद अजहर की तस्वीर भी बनी हुई है।

बता दें जिस जाकिर मूसा के समर्थन में भीड़ सेना पर पथराव कर रही है, वो पिछले महीने आतंकियों और सुरक्षाबल के बीच हुई एक मुठभेड़ में मारा गया है। जाकिर ए डबल प्लस (A++) कैटेगरी का आतंकी था, जिसके ऊपर 20 लाख रुपए का इनाम रखा गया था। 

सेना पर पत्थरबाजी की खबर सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर आते ही लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा है। लोगों का कहना है कि इस तरह की हरकत के बावजूद भी लोग इन पत्थरबाजों को ‘भटके हुए लोग’ और ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता’ जैसी बातें करेंगे। कुछ लोग सरकार से जल्द से जल्द 370 और 35 ए को खत्म करने की बात कह रहे हैं, तो कुछ गृह मंत्री अमित शाह से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इन पत्थरबाजों को जल्द से जल्द सबक सिखाया जाएगा।

ट्विटर पर ही एक शख्स ने इस घटना के बारे में पढ़कर लिखा है कि उसका मन करता है कि वो ईद मनाए लेकिन ये सब देखकर वो ईद कैसे मनाए? बबलू पाठक नामक ट्विटर यूजर का कहना है कि भाईचारे की बात सब करते हैं, लेकिन ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। हम साथ की बात करते है वो अलगवाद की बात करता है फिर बोलते है हमें कि हम मुस्लिम विरोधी हैं।

ट्विटर पर लोगों ने महबूबा और उमर फारूक़ पर भी सवाल उठाए हैं, जिन्हें ये पत्थरबाज मासूम लगते हैं। यूजर्स ने पूछा है, “क्या ये है शान्ति का त्यौहार? अगर शान्ति इसे कहते हैं तो आतंकवाद किसे कहते हैं। ऐसा क्या सिखाते हैं जो मस्जिदों से बाहर निकलते ही आतंक फैलाना शुरू करा देते हैं।”