Monday, November 18, 2024
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लाउडस्पीकर पर भजन-कीर्तन से नमाज़ में दिक्कत! मुस्लिम गुंडों ने की पुजारी की पिटाई, उठा ले गए मूर्ति

पीलीभीत में समुदाय विशेष के लोगों को भजन-कीर्तन इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने मंदिर में पहुँच कर तोड़फोड़ की। घटना उत्तर प्रदेश के पीलीभीत स्थित रौहनिया गाँव की है। मंगलवार को जब वहाँ स्थित एक मंदिर में भजन-कीर्तन चल रहा था, तब समुदाय विशेष के लोग वहाँ पहुँच गए और पूजा में विघ्न डाला। बेख़ौफ़ आरोपितों ने न सिर्फ़ लाउडस्पीकर को तोड़ डाला बल्कि धार्मिक कैलेंडर को भी फाड़ डाला। वहाँ भजन-कीर्तन करते लोग असहाय बने रहे और बदमाश वहाँ से देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ उठा कर ले गए। पुलिस ने भी इस बात की पुष्टि की है।

ताज़ा सूचना के अनुसार, किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक तनाव की स्थिति से बचने के लिए पुलिस ने मौके पर कैम्प किया हुआ है। लोगों को समझा-बुझा कर स्थिति को शांत कराया गया। ये घटना रौहनिया गाँव के बाहर स्थित एक देवस्थान की है, जहाँ रोज भजन-कीर्तन होता है। ऐसा पहली बार नहीं था, जब लाउडस्पीकर से भजन गया जा रहा हो। शाम के शाम वहाँ लोग धार्मिक कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हैं। गाँव में हिन्दू और मुस्लिम, दोनों ही समुदाय के लोग रहते हैं। इसके बावजूद मुस्लिम गुंडों ने पुजारी की पिटाई भी की

रात के करीब 9 बजे समुदाय विशेष के लोगों ने लाउडस्पीकर से भजन-कीर्तन किए जाने का विरोध शुरू कर दिया। भजन-कीर्तन कर रहे लोगों में कई साधू भी शामिल थे। समुदाय विशेष के लोगों ने ईद होने और नमाज़ का समय हो जाने की बात करते हुए कहा कि अब उनका त्यौहार आ गया है, इसीलिए लाउडस्पीकर पर भजन नहीं होना चाहिए। श्रद्धालुओं का तर्क था कि वे गाँव के बाहर आकर भजन-कीर्तन कर रहे हैं, जबकि नमाज़ गाँव के भीतर पढ़ी जाती है। इसी बात को लेकर कहासुनी हुई और फिर उत्पात मचाया गया।

पुलवामा: आतंकियों ने घर में घुसकर मारी महिला को गोली, 2 साल पहले पति भी हुआ था आतंक का शिकार

जम्मू-कश्मीर में पुलवामा जिले के काकापोरा में बुधवार (जून 5, 2019) को आतंकवादियों ने एक स्थानीय महिला की गोली मारकर हत्या कर दी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक महिला के घर पर हमला किया गया था।

इस हमले में एक अन्य निवासी मोहम्मद सुल्तान के गंभीर रूप से घायल होने की भी खबर मिली है। जिसको फिलहाल अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया है। हमले का शिकार हुई महिला का नाम नगीना बानो बताया जा रहा है। ये मामला पुलवामा के नरबल गाँव का है।

खबरों के मुताबिक जब आतंकवादियों ने नगीना पर गोली चलाई, उस समय आतंकी उसके घर में घुसने का प्रयास कर रहे थे। पुलिस ने आतंकियों को ढूँढने के लिए तलाशी अभियान चालू कर दिया है। बताया जा रहा है कि दो साल पहले मई महीने में अज्ञात हमलावरों ने नगीना के पति युसूफ लोन को भी मार दिया था।

Pellet Guns कश्मीरी पत्थरबाज़ों के भले के लिए… लेकिन शेहला रशीद और The Wire चला रहे प्रोपेगेंडा

‘द वायर’ ने कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले पैलेट गन को लेकर एक लेख लिखा है, जिसमें दावा किया गया है कि बिहार का एक लड़का इसका शिकार हो गया हो गया और इसीलिए इसे बैन किया जाना चाहिए। ‘द वायर’ के इस लेख में शेहला रशीद ने ट्विट करते हुए लिखा कि पैलेट गन का प्रयोग कश्मीर की आम जनता पर बुरा प्रभाव डाल रहा है और रोज़ लोग अंधे हो रहे हैं। किसी एक व्यक्ति की आपबीती सुना कर इमोशनल ब्लैकमेल की कोशिश में लगे मीडिया के प्रोपगंडाबाजों को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का निर्णय भी पढ़ना चाहिए।

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने पैलेट गन के प्रयोग को लेकर कहा था कि वो इस पर रोक नहीं लगा सकती। उन्होंने कहा था कि वे एक्सट्रीम स्थिति में सुरक्षा बलों द्वारा पैलेट गन के प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने भी पैलेट गन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। हालाँकि, भारत सरकार को पैलेट गन का विकल्प खोजने के लिए एक कमिटी गठित करने को ज़रूर कहा गया था लेकिन सुरक्षा बल मजबूरी में ही पैलेट गन का प्रयोग करते हैं, जब स्थिति बदतर हो जाती है। पैलेट गन को एक ‘Non-Lethal’ हथियार माना गया है, जिसे घातक बन्दूंकों की जगह प्रयोग किया जाता है।

असल में, पैलेट गन का प्रयोग ही इसीलिए किया जाता है ताकि सुरक्षा बलों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई में आम जनता की जान नहीं जाए। सोचिए, अगर सुरक्षा बल सीधा एके-47 का प्रयोग करने लगें तो क्या होगा? कश्मीर में पत्थरबाज़ी कर रहे लोग, जिन्हें शेहला रशीद के ब्रिगेड के लोग निर्दोष नागरिक बताते हैं, वे सभी मारे जाएँगे। पैलेट गन का प्रयोग भीड़ को तितर-बितर करने और पत्थरबाजों के लिए किया जाता है। मीडिया उनमें से किसी एक को ढूँढ कर लाता है और ऐसा नैरेटिव तैयार किया जाता है, जिससे यह लगे कि निर्दोष लोग इसका शिकार बन रहे हैं।

आमिर अली भट द्वारा लिखित ‘द वायर’ के इस लेख में कहा गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी संस्थाओं ने पैलेट गन को प्रतिबंधित करने की बात की है। अगर सुरक्षा बल पत्थरबाज़ी कर रही भीड़ पर ख़ुद के बचाव के लिए पैलेट गन का प्रयोग करती है तो उस भीड़ में अगर एक-दो ‘निर्दोष’ भी शामिल हैं तो उनके चोटिल होने की संभावना है ही – इसे गेहूँ के साथ घून पीसने वाली कहावत के तौर पर देखा जाना चाहिए।

समस्या यह है कि कश्मीर के लोग अपने बच्चों को ऐसी भीड़ से दूर रहने की सलाह नहीं देते। जिस राज्य में बच्चों से लेकर बूढ़ों तक को पत्थरबाज़ी करते देखा गया हो, वहाँ अपवादस्वरूप अगर कोई निर्दोष व्यक्ति घायल भी होता है तो इसे लेकर बड़ा हंगामा नहीं खड़ा करना चाहिए। आम जगहों पर माँ-बाप अपने बच्चों को बताते हैं कि जहाँ दंगा-फसाद होता है, वहाँ मत जाओ। कश्मीरी माँ-बाप को भी यह सीख अपने बच्चों को देनी चाहिए।

पैलेट गन का प्रयोग घातक हथियारों के विकल्प के रूप में किया जाता है क्योंकि सेना पत्थरबाज़ी कर के सुरक्षा बलों के जवानों को चोट पहुँचाने वाले नागरिकों को आतंकी नहीं मानती। अगर उन्हें आतंकी की तरह देखा जाता तो और भी घातक हथियार प्रयोग किए जा सकते थे। अगर पैलेट गन की बात होती है तो यह भी लिखा जाना चाहिए कि उसका प्रयोग किसके लिए किया जा रहा है, कब किया जाता है? सीआरपीएफ ने जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट को बताया था कि अगर पैलेट गन प्रतिबंधित किए जाते हैं तो सुरक्षा बल के जवान ऐसी परिस्थितियों में बंदूकों का इस्तेमाल करेंगे और इससे नुकसान और बढ़ जाएगा।

क्योंकि आतंकियों को मरना ही होगा – यही सत्य है। वो कश्मीर के हों या बिहार के या फिर केरल के – देश की सुरक्षा और निहत्थे नागरिकों की जान को गाजर-मूली समझने वाले इन आतंकियों को मरना ही होगा। जो इनके बचाव में ‘सुपर कमांडो ध्रुव’ बनकर पत्थरबाजी करेंगे, उन पर पैलेट गन का प्रयोग भी होगा – यह भी सत्य है। इसलिए सरकार के साथ-साथ सेना से पैलेट गन पर रोक लगाने के निवेदन से बेहतर है कि अपने बच्चों को हिंसा वाली संभावित जगहों से दूर रहने की सलाह दीजिए।

इसलिए कश्मीरी भाइयो-बहनो… द वायर और शेहला रशीद जैसे प्रोपेगेंडाबाजों से बचिए। ये धूर्त लोग आपको घटना के बाद के समाधान (पैलेट गन पर रोक) सुझा कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं। आपको घटना से पहले का समाधान (जहाँ मुठभेड़ चल रही हो, वहाँ जाएँ ही नहीं) चाहिए। पैलेट गन कश्मीर की जनता के भले के लिए है। यह उनके भले के लिए भी है, जो अपनी ही रक्षा करने वाले सुरक्षा बलों के जवानों को चोट पहुँचाते हैं, वरना अगर इसकी जगह अन्य हथियारों का प्रयोग किया जाए तो जैसा कि सीआरपीएफ ने अदालत में कहा, लोगों के मरने की संभावनाएँ बढ़ जाएँगी।

क्रिकेट वर्ल्ड कप में ‘मैच फिक्सिंग’: जीत को लेकर Pak खिलाड़ी की फिसली जुबान

आप अक्सर देखते और महसूस करते होंगे कि कई बार लोग अपनी जुबान फिसल जाने के कारण मन की वो बात भी कह डालते हैं, जो उनके जहन में तो होती है, लेकिन वो उसे जुबां पर कभी नहीं लाना चाहते। कुछ ऐसा ही हुआ है पाकिस्तान मूल के बॉक्सर आमिर खान के साथ।

दरअसल, ऑन कैमरा आमिर से जब वर्ल्ड कप 2019 में पाकिस्तान के जीतने की संभावनाओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ एक हास्यास्पद जवाब देते हुए कहा, “वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के जीतने की बहुत बढ़िया संभावना है। ये निर्भर करता है कि कैसे ‘मैच फिक्सिंग’ की गई है और उन्होंने खेल को कैसे फिक्स किया है।”

जी हाँ, आमिर खान ने पाकिस्तान की जीत के लिए ‘मैच फिक्सिंग’ को एक जरूरी कारक माना है। अब इस बयान के बाद उनकी सोशल मीडिया बहुत फजीहत हो रही है। इस शब्द का प्रयोग करने के कारण सोशल मीडिया पर लोग उन्हें बोल रहे हैं कि जो तरीका उन्होंने क्रिकेट टीम के लिए सुझाया है, हो सकता है वो उसी तरह अपने मैच भी जीतते होंगे।

पाकिस्तानी टीम के फैन जहाँ आमिर के इस बयान से नाराज़ है, वहीं कुछ लोग इस बयान पर खूब चुटकी ले रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि जब आमिर उर्दू बोलने में सहज हैं, तो फिर उन्हें अंग्रेजी में बयान देने की क्या जरूरत थी, बेवजह एक्सेंट सुधारने के चक्कर में मन की बात बाहर निकल कर आ गई।

वहीं, एक शख्स ने आमिर को ट्विटर पर नसीहत दी है कि जब इंसान को क्रिकेट के बारे में कुछ न पता हो, तो उसे एक्पर्ट लोगों की तरह अपना ओपिनियन नहीं देना चाहिए।

बता दें, इन दिनों वर्ल्ड कप का पारा हर जगह गरमाया हुआ है। 24 मई से शुरू हुए वर्ल्ड कप में 13 दिन हो चुके हैं। ‘वार्म अप’ मैचों में अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को 3 विकेट से हराया था। 31 मई को पाक-वेस्ट इंडीज के मैच में पाकिस्तान की टीम वेस्ट इंडीज से 7 विकेट से हारी थी। जबकि 3 जून को हुए इंग्लैंड-पाकिस्तान के बीच मैच में पाकिस्तान ने 14 रनों से अपने नाम जीत हासिल की थी।

मुग़ल भारत में अंगूर लेकर आए: ‘The Print’ और ‘इतिहासकार’ सलमा युसूफ के झूठ का पर्दाफाश

‘द प्रिंट’ में लिखे एक लेख में सलमा युसूफ हुसैन ने दावा किया है कि मुगलों ने भारत को अंगूर जैसे फल दिए। ख़ुद को खानपान और इससे जुड़े इतिहास का दक्ष बताने वाली सलमा युसूफ हुसैन ने यह लेख लिखा है। इसमें मुगलों व फलों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाते-दर्शाते यह बताया जाता है कि भारत के लोगों का अंगूर से परिचय मुगलों ने ही कराया। जबकि यह सरासर ग़लत है। धीरेन्द्र कृष्णा बोस ने अपनी पुस्तक “Wine in Ancient India” में इसे लेकर बेहद महत्वपूर्ण जानकारी दी है। उन्होंने लिखा है:

“क्षत्रिय अंगूर का जूस और गन्ने के रस को काफ़ी पसंद करते थे। 629 ईस्वी में चीन से भारत की यात्रा पर आए हुएन सांग ने लिखा है कि बौद्ध भिक्षु और ब्राह्मण एक प्रकार के रस को पीते हैं, जिसे अंगूरों से बनाया जाता है। सांग ने आगे लिखा है कि वैश्य भी इस प्रकार का जूस पीते हैं लेकिन वह फेर्मेंटेड नहीं होता।”

अगर मुगलों की बात करें तो बाबर ने 16वीं शताब्दी में दिल्ली में राज करना शुरू किया, जबकि चीनी यात्री ने उससे लगभग 900 वर्ष पूर्व भारत में अंगूरों और अंगूर के रस का जिक्र किया है। इससे पता चलता है कि ‘द प्रिंट’ के लेख में किया गया दावा बिलकुल ही ग़लत है और झूठ है। इतिहास के नाम पर ग़लत चीजें बताई जा रही हैं ताकि मुगलों का झूठा महिमामंडन किया जा सके।

इसी तरह ट्विटर पर हमसा नंदी नामक व्यक्ति ने याद दिलाया कि 1025 ईस्वी में लिखी गई पुस्तक “लोकोपकार” में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को बनाने के लिए अंगूरों का प्रयोग करने की रेसिपी बताई गई है। यह भी मुगलों के भारत में आने से कई शताब्दी पहले की पुस्तक है। इस तरह से ‘द प्रिंट’ में सलमा युसूफ हुसैन के दावे लगातार झूठे साबित हुए। मुगलों के आने से कई शताब्दी पहले की कई पुस्तकों में अंगूर व अंगूर से बने खाद्य पदार्थों का जिक्र यह बताता है कि मुगलों ने भारत को अंगूर नहीं दिया, यहाँ के लोग पहले से ही इसका सेवन कर रहे थे।

5 करोड़ अल्पसंख्यकों को मिलेगी छात्रवृत्ति: ईद के मौके पर मोदी सरकार ने दी बड़ी सौगात

केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक करके एक अहम और बड़ा फैसला लिया है। दरअसल, उन्होंने ईद के मौक़े पर घोषणा की है कि आने वाले 5 सालों में 5 करोड़ अल्पसंख्यक छात्रों को ‘प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति’ दी जाएगी। जिसमें 50 प्रतिशत छात्रवृत्ति छात्राओं को दी जाएगी। छात्रवृत्ति का लाभ लेने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बना दिया गया है।

नकवी के मुताबिक आने वाले पाँच वर्षों में विकास की गाड़ी को विश्वास के हाईवे पर दौड़ाना उनकी प्राथमिकता है, ताकि हर जरूरतमंद की आँखों में खुशी और जीवन में समृद्धि लाई जा सके। उनका कहना है कि वो विश्वास के हाइवे पर न कोई स्पीड ब्रेकर आने देंगे और न ही कोई रोड़ा।

केंद्रीय मंत्री नकवी का कहना है कि 3E यानी एजुकेशन, एम्प्लॉयमेंट और एम्पावरमेंट उनका लक्ष्य है, जिसको पूरा करने के लिए वो मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने बताया है कि मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा की ओर प्रोत्साहित करने हेतु ‘पढ़ो-बढ़ो’ अभियान भी चलाया जाएगा। इसके अलावा दूरगामी इलाकों में जहाँ कई कारणों से लोग लड़कियों को शिक्षित होने नहीं भेजते, वहाँ शैक्षणिक संस्थानों को सुविधाएँ एवं साधन उपलब्ध कराने का कार्य किया जाएगा। मोबाइल वैन के जरिए लोगों को शिक्षा-रोजगार से जुड़े सरकारी कार्यक्रमों की जानकारी देने के लिए देश भर में अभियान चलाए जाएँगे।

केंद्रीय मंत्री ने छात्रवृत्ति की घोषणा करने के साथ ही रोजगार पर भी 5 साल का रोडमैप पेश किया है। नकवी ने बताया है कि शिल्पकारों/कारीगरों/दस्तकारों को रोजगार दिलाने और बाजार मुहैया करवाने के लिए अगले पाँच वर्षों में 100 से अधिक ‘हुनर हाट’ का आयोजन होगा। उनके स्वदेशी उत्पादनों को ऑनलाइन बेचने की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा 5 साल में 25 लाख नौजवानों को रोजगारपरक कौशल उपलब्‍ध करवाने की बात और ‘सीखो और कमाओ’ ‘नई मंजिल’ ‘गरीब नवाज कौशल विकास’ और ‘उस्‍ताद’ जैसे रोजगारपरक कौशल विकास कार्यक्रमों को प्रभावकारी बनाने की बात कही गई है।

पिता ने लगाई थी रोक, बेटा कर रहा विरोध: 346 Vs 710 km² से समझें J&K परिसीमन की कहानी

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जब से गृह मंत्रालय सम्भाला है, तब से यह देखा जा रहा है कि जम्मू कश्मीर पर उनका विशेष ध्यान है। राज्य में विधानसभा क्षेत्रों के नए सिरे से परिसीमन किए जाने की बात सामने आ रही है, जिसके बाद कश्मीरी नेताओं में हाहाकार मच गया है। राज्य के नेताओं ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया है कि वो सांप्रदायिक रास्ते पर चलते हुए कश्मीर का विभाजन करना चाहती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर को बराबर का हक मिलेगा। अभी विधानसभा सीटों की संख्या की बात करें तो कश्मीर का पलड़ा ज्यादा भारी है। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ये ख़बर सुन कर कहा कि वो व्यथित हैं।

मह्बूब्स मुफ़्ती ने ट्विटर पर लिखा, “केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन किए जाने की ख़बर सुन कर व्यथित हूँ। जबरदस्ती थोपा जाने वाला परिसीमन सांप्रदायिक राह पर चलते हुए राज्य का भावोत्तेजक विभाजन करने का प्रयास है। केंद्र सरकार हमारे पुराने घाव भरने की बजाए हमें नया दर्द दे रही है।” हालाँकि, अधिकारियों ने कहा कि किसी तरह का गठन या उनसे सलाह लेने सम्बन्धी कोई चर्चा अभी तक नहीं हुई है। राज्य भाजपा लगातार कई दिनों से परिसीमन की माँग कर रही है लेकिन अभी तक इस पर कुछ ठोस कार्य नहीं हुआ है।

वहीं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी कहा कि वह ऐसे किसी भी प्रयास का विरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि जनता की राय लिए बिना ऐसे किसी भी निर्णय का विरोध करने के लिए उनकी पार्टी पूरा ज़ोर लगा देगी। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि आर्टिकल 370 और 35A को ख़त्म कर जम्मू कश्मीर को भारत के बाकी राज्यों की तरह बनाने की बात करने वाली भाजपा अब राज्य के साथ अलग तरह का व्यवहार कर रही है, यह आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा कि अगर परिसीमन किया जाता है तो देश के सभी राज्यों में किया जाना चाहिए। वहीं पीपल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने कहा कि वो इस ख़बर की झूठी होने की आशा करते हैं।

आखिरी बार जम्मू कश्मीर में 1995 में परिसीमन किया गया था। राज्य के संविधान (जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान है) के मुताबिक यहाँ हर 10 साल के बाद परिसीमन होना तय था। मगर तत्कालीन फारुक अब्दुल्ला सरकार ने 2002 में इस पर 2026 तक के लिए रोक लगा दी थी। ऐसे में उमर अब्दुल्ला जो यह तर्क दे रहे हैं कि “अगर परिसीमन किया जाए तो पूरे देश में किया जाए” क्या वो अपने पिताजी और पूर्व मुख्यमंत्री से पूछेंगे कि क्यों उन्होंने 2026 तक इस पर रोक लगा दिया था, क्या यह रोक पूरे देश में एक साथ लगा था?

सज्जाद लोन ने कहा, “मैं आशा करता हूँ कि कश्मीर के बारे में मीडिया में चल रही ख़बरें झूठी हैं। मैं इतनी ज्यादा जल्दबाज़ी का कारण नहीं समझ पा रहा हूँ।” वहीं पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने इसे गंभीर और विक्षुब्ध करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि अगर राज्य के सभी हिस्सों को बराबर हक़ देना है तो इसका निर्णय राज्य की जनता को ही करना चाहिए।

बता दें कि राज्य में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था, जब गवर्नर जगमोहन के आदेश पर जम्मू-कश्मीर में 87 सीटों का गठन किया गया था। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अभी कुल 111 सीटें हैं, लेकिन 24 सीटों को रिक्त रखा गया है। जम्मू-कश्मीर के संविधान के सेक्शन 47 के मुताबिक, इन 24 सीटों को पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली छोड़ गया है और बाकी बची 87 सीटों पर ही चुनाव होता है। बता दें कि जम्मू-कश्मीर का अलग से भी संविधान है। हर 10 साल बाद परिसीमन किए जीने की व्यवस्था पर फारूक अब्दुल्ला सरकार ने रोक लगा दी थी।

राज्य में राजनीतिक असंतुलन की बात करें तो कश्मीर में 346 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल पर एक विधानसभा है, जबकि जम्मू में 710 वर्ग किलोमीटर पर। अगर परिसीमन किया गया तो जम्मू में क्षेत्रफल व मतदाता के आधार पर 15 सीटें बढ़ सकती हैं।

कमल नाथ ने बहनोई के साथ मिल कर की ₹99 करोड़ की मनी लॉन्ड्रिंग: TN का खुलासा

टाइम्स नाउ ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए यह बताया है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और छिंदवाड़ा के पूर्व सांसद कमल नाथ ने फरवरी 2010 से नवंबर 2011 के बीच ₹99 करोड़ से ज्यादा की नकदी की मनी लॉन्ड्रिंग की है। यह खुलासा चैनल की एंकर नाविका कुमार अपने रात के न्यूज़ शो न्यूज़ आवर में कर रहीं हैं।

आयकर विभाग का दावा, बहनोई के साथ चलाते थे हवाला रैकेट

आयकर विभाग ने यह दावा किया है कि कमलनाथ अपने बहनोई दीपक पुरी (मोज़रबियर कंपनी के मालिक) के साथ मिलकर काले धन को सफेद करने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का रैकेट चलाते थे। इस साल अप्रैल में पड़े छापों के सुराग से उन्हें इसकी जानकारी मिली है। इसके अलावा उन्हें कुछ डायरीनुमा दस्तावेजी सबूत भी मिले जिनकी पुष्टि दीपक पुरी की ही कम्पनी के एक कर्मचारी ने की है।

आधिकारिक निवास से ‘सफाई’ हुई 99 करोड़ की

दावे के अनुसार ₹99 करोड़ से ज्यादा की मनी लॉन्ड्रिंग कमलनाथ के तत्कालीन आधिकारिक निवास 1, तुगलक रोड से हुई है। यह बंगला कमलनाथ को छिंदवाड़ा के सांसद के तौर पर मिला था। आयकर विभाग के अनुसार यहीं से नकदी को हवाला के लिए उठाया जाता था। इसके अलावा अपने आरोपों की पुष्टि के लिए आयकर विभाग मोज़रबियर के कर्मचारी के के खोंसला की निशानदेही को भी पेश कर रहा है।

पहले भी पड़ी है कमलनाथ पर रेड

इससे पहले भी कमलनाथ के करीबियों पर आयकर विभाग के छापे पड़ चुके हैं। अप्रैल में कमलनाथ के OSD के घर पड़े छापे से ₹9 करोड़ नकदी बरामद हुई थी। उनके भतीजे की कम्पनी पर पड़े आयकर के छापे में भी ₹1350 करोड़ की कर चोरी पकड़ी गई थी

(यह डेवलपिंग स्टोरी है। अधिक जानकारी मिलने पर इसे अपडेट किया जाएगा।)

‘पलटू चाचा’ के लिए RJD का पिघला मन, राबड़ी ने कहा- महागठबंधन में आते हैं तो स्वागत है

जब से 30 मई को नरेंद्र मोदी ने पीएम पद की शपथ ली है तब से ही बिहार की सियासत के सुर बदलने लगे थे। लगातार बदलते राजनीतिक परिदृश्य पर नज़र डाला जाए तो बिहार में राजनीतिक उठापटक साफ नज़र आएगी। इसी उठापटक का परिणाम है कि बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी ने कह दिया है कि अगर नीतीश कुमार महागठबंधन में आने की सोचते हैं तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा।

राबड़ी देवी के इस कथन के वर्तमान सियासी हालात में मायने कुछ ज़्यादा ही हैं। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में नीतीश कुमार ने 30 मई को नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि मात्र एक सीट के लिए JDU मंत्रिमंडल का हिस्सा नहीं बनेगा। उसी दिन नीतीश अमित शाह के ऑफर को ठुकरा कर चुपचाप पटना लौट गए थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि जब 2 जून को नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो बीजेपी को इससे बाहर रखकर बदला ले लिया।

ऐसे में इस राजनीतिक परिदृश्य में आरजेडी नेता राबड़ी का यह कहना कि अगर जेडीयू महागठबंधन में आने की पहल करता है तो महागठबंधन इस पर विचार करेगा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा सोमवार (जून 3, 2019) को पटना में दी गई इफ्तार पार्टी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी शामिल थे लेकिन दोनों के बीच मुलाकात नहीं हो सकी थी। फिर भी ऐसे बयान राजनीतिक पलटूपन का शानदार उदाहरण है। क्योंकि इससे पहले नीतीश को आरजेडी नेता ‘पलटू चाचा’ कह चुके हैं। पर यहाँ मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आरजेडी मौजूदा हालात के मद्देनज़र नीतीश की बीजेपी से तल्खी का फायदा उठाना चाहती है।

बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले आरजेडी ने दावा किया था कि नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने के मात्र 6 महीने बाद ही दोबारा महागठबंधन में वापस आना चाहते थे, लेकिन इसके लिए लालू यादव और तेजस्वी यादव तैयार नहीं हुए। जून 2018 में तेजस्वी ने यहाँ तक कहा था कि नीतीश कुमार की विश्वसनीयता नहीं बची है। अगर मान भी लिया जाए कि हम फिर से नीतीश को गठबंधन में ले लेते हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे कुछ समय बाद हमें धोखा नहीं देंगे। उनके लिए महागठबंधन के दरवाजे बंद हो चुके हैं। इसी पर, तेजस्वी यादव ने नीतीश को कई बार ‘पलटू राम’ और ‘पलटू चाचा’ की उपाधि भी दे डाली है।

बिहार की सियासत गज़ब के मोड़ पर है, एक तरफ जहाँ आरजेडी नीतीश को एक बार फिर से महागठबंधन में लेने को बेताब है क्योंकि वह नरेंद्र मोदी सरकार से नीतीश के मन में पैदा हुए असंतोष को भुनाना चाहती है। लोकसभा के परिणामों से आरजेडी जान चुकी है कि नीतीश के कंधे पर सवार होकर शायद पार्टी को एक बार फिर बिहार की सत्ता मिल सकती है।

इधर नीतीश कुमार की स्थिति साँप-छछूंदर वाली हो गई है। कायदे से वो अगले पाँच साल तक केंद्र सरकार के साथ न कोई सौदा करने की स्थिति में हैं और न ही दबाव डलवाकर अपनी माँगे मनवा सकने की स्थिति में हैं। लिहाजा अगर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वे एक बार फिर से आरजेडी के साथ आ जाएँ तो शायद अगले पाँच साल तक वे एक बार फिर से सीएम बन सकते हैं।

जानिए उन 10 आतंकियों के नाम, जिनकी गृह मंत्री अमित शाह ने तैयार करवाई है लिस्ट

लोकसभा चुनाव के बाद की प्रक्रियाएँ पूरी होते ही मोदी 2.0 पूरे एक्शन मोड में आ चुकी है। देश की जनता की निगाहें गृह मंत्री अमित शाह पर टिकी हुई हैं। पदभार संभालने के बाद अमित शाह एक्शन मोड में आ गए हैं। शाह ने गृहमंत्री का पद संभालने के बाद सबसे पहले, जम्मू-कश्मीर में सक्रिय टॉप 10 आतंकियों की सूची तैयार कराने का काम किया है। शाह के इस फैसले से संदेश चला गया है कि वह आतंकवादियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने वाले हैं।

गृह मंत्री अमित शाह ने जो लिस्ट तैयार करवाई है, उसमें हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अल-बदर जैसे आतंकी संगठनों के प्रमुख आतंकियों को शामिल किया गया है। ये आतंकवादी जम्मू-कश्‍मीर के अलग-अलग हिस्सों में आतंक फैला रहे हैं।

गृह मंत्री की टॉप 10 लिस्ट में शामिल आतंकवादियों की सूची :

  1. वसीम अहमद उर्फ ओसामा – वसीम अहमद लश्कर-ए-तैयबा का आतंकवादी है और शोपियाँ डिस्ट्रिक्ट का कमांडर है।
  2. रियाज अहमद नाईकू – यह हिजबुल मुजाहिदीन का चीफ कमांडर है।
  3. मुहम्मद अशरफ खान – मुहम्मद अशरफ हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकवादी और अनंतनाग का डिस्ट्रिक्ट कमांडर है।
  4. मेहराजुद्दीन – यह भी हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकवादी है और बारामूला डिस्ट्रिक्ट का कमांडर है।
  5. डॉ. सैफुल्ला – डॉ. सैफल्ला हिजबुल मुजाहिद्दीन से जुड़ा है और इसका काम संगठन में नए लोगों को भर्ती करने का है।
  6. अरशद-उल-हक – अरशद उल हक हिजबुल का आतंकवादी है और पुलवामा का डिस्ट्रिक्ट कमांडर है।
  7. हाफिज उमर – ये जैश-ए-मोहम्मद का आतंकवादी है और पाकिस्तान का रहने वाला है।
  8. जाहिद शेख – जाहिद शेख भी जैश-ए-मोहम्मद का ही आतंकवादी है।
  9. जावेद अहमद मट्टू – जावेद अहमद मट्टू आतंकवादी संगठन अल बदर से जुड़ा हुआ है।
  10. एजाज अहमद मलिक – सुरक्षा एजेंसियों को अंदेशा है कि हिजलुब ने एजाज को कुपवाड़ा का कामांडर नियुक्त किया है।

286 आतंकी अभी भी सक्रिय हैं घाटी में

मंत्रालय ने दावा किया है कि घाटी में इस साल 102 आतंकवादी मारे गए हैं। जबकि 286 आतंकी अभी भी सक्रिय हैं। गौरतलब है कि पदभार संभालने के बाद अमित शाह ने तुरंत जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्य पाल मलिक से मुलाकात की। इस मुलाकात में शाह ने राज्य में सुरक्षा स्थिति के बारे में जानकारी दी। जम्मू-कश्मीर में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लागू है। 15 मिनट की मुलाकात में राज्यपाल ने गृह मंत्री अमित शाह को अमरनाथ यात्रा की तैयारी से अवगत कराया। 46 दिन तक चलने वाली यह यात्रा 1 जुलाई को मासिक शिवरात्रि के दिन से शुरू होगी और 15 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा के दिन संपन्न होगी।