Tuesday, November 19, 2024
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अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर कॉन्ग्रेस विधायक, ट्रैक्टर चालक की मौत का मामला

राजस्थान कॉन्ग्रेस के विधायक और पूर्व पुलिस महानिदेशक हरीश मीणा अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गए हैं। उनका आरोप है कि उनके विरोध प्रदर्शन के बावजूद राज्य सरकार उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही जिन्होंने कथित तौर पर एक ट्रैक्टर-चालक की टोंक में बुधवार को पीट-पीट कर (लिंचिंग कर) हत्या कर दी थी। उनका धरना तीन दिन से जारी है। उनकी माँग भजनलाल मीणा नामक ट्रैक्टर-चालक को न्याय दिलाने की है, जिनकी संदेहास्पद स्थितियों में टोंक के लक्ष्मीपुरा गाँव में मौत हो गई थी।

भजनलाल की लाश के साथ धरना, भाजपा भी कूदी मैदान में

हरीश मीणा को भाजपा नेताओं का भी समर्थन मिलने लगा है। भाजपा के राज्यसभा सांसद किरोड़ीमल मीणा ने चेतावनी दी है कि यदि प्रदर्शनकारियों की माँगें 5 जून तक पूरी नहीं हुई तो बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा। राजस्थान विधानसभा के उप नेता विपक्ष और भाजपा विधायक राजेंद्र राठौर ने भी मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अशोक गहलोत की राज्य सरकार के दिन अब गिनती के हैं क्योंकि उनके खुद के विधायकों को अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठना पड़ रहा है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने भी आरोप लगाया कि कॉन्ग्रेस सरकार जान बूझकर मामला दबाने की कोशिश कर रही है। जहाँ पुलिस भजनलाल मीणा की मौत को दुर्घटनावश बता रही है वहीं प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि उनकी हत्या में पुलिस का हाथ है। हरीश मीणा भजनलाल के पार्थिव शरीर और उनके परिवारजनों के साथ नगरफोर्ट गाँव में धरने पर बैठे हैं

J&K: रमज़ान में नहीं रोका गया ‘ऑपेरशन’, अब तक 100 आतंकी हुए ‘न्यूट्रल’

रमज़ान के दौरान आतंकवाद विरोधी अभियानों को रोकने के लिए कश्मीर के राजनीतिक दलों की माँग को इस बार नज़रअंदाज कर दिया गया। हिंदुस्तान टाइम्स के हवाले से खबर है कि सुरक्षा बलों ने इस अवधि के दौरान कश्मीर में 23 स्थानीय और विदेशी आतंकवादियों का सफाया कर दिया है। जम्मू कश्मीर में 2019 में मारे गए आतंकवादियों की संख्या 100 से अधिक हो गई है। इसके परिणामस्वरूप पिछले शुक्रवार (31 मई) को जमात-उल-विदा के दौरान घाटी में बड़े पैमाने पर शांतिपूर्ण मज़हबी सभाएँ सम्पन्न हुईं।

पिछले साल घाटी में आतंकरोधी अभियानों की शुरुआत न होने के कारण, रमज़ान महीने के दौरान केवल 11 आतंकवादी मारे गए थे और वह भी कुपवाड़ा और हंदवाड़ा ज़िलों में। ख़बर के अनुसार, ईद-उल-फितर त्योहार के बाद, घाटी में बढ़ती हिंसा और कट्टरपंथ का हवाला देकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 19 जून, 2018 को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से अपना समर्थन वापस ले लिया था जिससे जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार टूट गई थी।

हालाँकि, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती चाहती थीं कि सेना इस साल भी रमज़ान के दौरान आतंकरोधी अभियान न चलाए, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने इस माँग को नज़रअंदाज़ कर दिया। शुक्रवार तक सुरक्षा बलों द्वारा 23 आतंकवादियों को मार गिराया गया था, जिसमें अल-क़ायदा से जुड़े आतंकवादी संगठन अंसार ग़ज़ावत-उल-हिंद का खूंखार आतंकी ज़ाकिर मूसा भी शामिल था। घाटी के शोपियाँ, पुलवामा, अवंतीपोरा, सोपोर, कुलगाम और अनंतनाग इलाक़ों में अन्य आतंकी मारे गए।

आतंकवाद-विरोधी अभियानों में कोई कसर न छोड़े जाने के अलावा सुरक्षा बलों ने यह भी सुनिश्चित किया कि विदेशी आतंकवादियों को रमज़ान महीने के दौरान फिर से संगठित होने और योजना बनाने का कोई मौका ना मिल सके।

इमरान खान को नहीं है प्रोटोकॉल और नियम की तमीज़, सऊदी ने रद की कैबिनेट मीटिंग

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की एक ‘बेहूदा’ हरकत की वजह से उनके देश को अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी और कूटनीतिक झटके का सामना करना पड़ रहा है। सऊदी के राजा किंग सलमान से अपनी बात अधूरी छोड़ इमरान आगे चल दिए। बताया जा रहा है कि इसके बाद किंग सलमान और उनकी कैबिनेट के साथ इमरान की बैठक रद्द कर दी गई।

अपनी बात कहकर चल पड़े इमरान, देखते रह गए अनुवादक और किंग सलमान

सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो के अनुसार इमरान खान सऊदी के दरबार में पहुँचे और किंग सलमान से उन्होंने कुछ बोला। अभी किंग सलमान का जवाब देना तो दूर, उनके शाही अनुवादक ने इमरान की बात का अनुवाद भी नहीं किया था कि पाकिस्तानी पीएम ने सर हिलाकर उन दोनों को इशारा किया और चल पड़े। किंग सलमान और उनके अनुवादक देखते रह गए।

इस पर पाकिस्तानी पत्रकार नायला इनायत ने पाकिस्तानी सेना की कथित ‘पीएम सेलेक्शन कमेटी’ को सलाह दी कि आगे से वे जिसे भी पीएम चुनें, उसे कम-से-कम प्रोटोकॉल के नियम सिखा दें। यह आम धारणा है पाकिस्तानी पीएम इमरान खान के बारे में कि उनका जनता ने निर्वाचन नहीं बल्कि सेना ने ‘चुनाव’ किया था, पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सत्ता से दूर रखने के लिए।

सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी ही ले रहे मजे

इमरान खान की इस हरकत पर पाकिस्तानी ही उनके सबसे ज्यादा मजे ले रहे हैं।

पाकिस्तान ने की नीच हरकत, भारतीय हाई कमीशन में अतिथियों का किया अपमान

पाकिस्तान भारतीय उच्चायोग की इफ्तार पार्टी में पाकिस्तानी अधिकारियों ने नापाक हरकत को अंजाम दिया है। भारतीय उच्चायोग की तरफ से रमजान के मौके पर इस्लामाबाद के सेरेना होटल में शनिवार (जून 1, 2019) को इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया था। इसमें शामिल होने के लिए कई मोहमानों को न्यौता दिया गया था। जानकारी के मुताबिक, पार्टी में आने वाले मेहमानों के साथ पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों और पाकिस्तानी जवानों ने बदसलूकी की। कई मेहमानों को बाहर ही रोक दिया गया उनकी बार-बार जाँच की गई। सैकड़ों मेहमानों को डरा-धमकाकर वापस भेज दिया गया और जब भारतीय अधिकारियों और मेहमानों ने इस बात का विरोध किया तो उनके साथ धक्का-मुक्की की गई और अपशब्द भी कहे गए।

इस पूरे घटनाक्रम पर पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त अजय बिसारिया ने खेद जताया है। एक वीडियो में अजय ने पार्टी में उपस्थित लोगों का शुक्रिया अदा करने के साथ ही माफी भी माँगते हुए नज़र आ रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं उन लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ, जो यहाँ आए हैं, खासकर उन मेहमानों का जो कराची और लाहौर से यहाँ पहुँचे हैं। साथ ही माफी भी माँगता हूँ कि लोगों को अंदर आने में काफी परेशानी हुई और कई दोस्त यहाँ तक नहीं आ सके हैं। इसके साथ ही बिसारिया ने पाकिस्तान की इस हरकत पर कहा कि पाकिस्तानी अधिकारियों का इस प्रकार का व्यवहार न केवल राजनयिक आचरण और सभ्य व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का उल्लंघन करता है, बल्कि वे द्विपक्षीय संबंधों के प्रति ‘काउंटर-प्रोडक्टिव’ हैं।   

वैसे ये पहला मामला नहीं है, जब पाकिस्तान ने ऐसा किया है। इससे पहले भी कई बार देखा गया है कि भारतीय राजनयिकों को परेशान करने के लिए उनके घरों की बिजली काटने या पानी रोकने जैसी हरकतें की गई हैं। पुलावामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव बढ़ गया है। अभी हाल हाल ही में जब 30 मई को नरेंद्र मोदी ने पीएम पद की शपथ ली थी तो पाकिस्तान को न्यौता नहीं दिया गया था। ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान इस बात से बौखलाया हुआ है और अपनी बौखलाहट व भड़ास वो इस तरह की नापाक हरकत करके निकाल रहा है, जो कि बेहद निंदनीय है।

कॉन्ग्रेस IT सेल की प्रमुख दिव्या स्पंदना के ट्वीट गायब, क्या छोड़ दिया हाथ का साथ?

कॉन्ग्रेस की सोशल मीडिया प्रमुख दिव्या स्पंदना, जिसे रम्या के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने ट्विटर अकाउंट से सारे ट्वीट्स डिलीट कर दिए हैं। ब्लू टिक के साथ स्पंदना के वेरीफाइड ट्विटर अकाउंट पर कोई भी ट्वीट दिखाई नहीं दे रहा है। इसके साथ ही दिव्या ने अपने अकाउंट में से बायो भी डिलीट कर दिया है, जिसमें उन्होंने कॉन्ग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया प्रमुख होने की बात लिखी थी। ऐसे में अब कयास लगाने शुरू हो गए हैं कि क्या उन्होंने ‘हाथ’ का साथ छोड़ दिया है।

हालाँकि, अभी तक न तो पार्टी की तरफ से और न ही दिव्या की तरफ से किसी तरह की कोई आधिकारिक जानकारी दी गई है। समाचार एजेंसी एएनआई का कहना है कि उन्होंने इस बारे में कॉन्ग्रेस पार्टी से बात करने की कोशिश की, लेकिन पार्टी ने दिव्या के ट्वीट डिलीट करने पर किसी तरह की कोई टिप्पणी देने से इनकार कर दिया। वैसे, देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में भाजपा से करारी शिकस्त के बाद से कॉन्ग्रेस मीडिया से बचती हुई नज़र आ रही है और पार्टी ने तो स्पष्ट तौर पर अपने प्रवक्ताओं को किसी न्यूज डिबेट में शामिल होने से भी मना कर दिया है।

दिव्या स्पंदना के ट्विटर अकाउंट का स्क्रीनशॉट

जानकारी के अनुसार, दिव्या ने पिछले साल अक्टूबर में पार्टी से नाराज होकर कॉन्ग्रेस के सोशल मीडिया प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था। हालाँकि, कुछ दिनों बाद वो वापस ट्विटर पर आ गई और फिर से अपने ट्विटर अकाउंट के बायो में खुद को कॉन्ग्रेस का सोशल मीडिया प्रमुख लिखा। अब एक बार फिर से स्पंदना ने अपने ट्वीट्स और बायो को डिलीट कर दिया है। ऐसा लग रहा है कि वो पार्टी से नाराज चल रही है। गौरतलब है कि, दिव्या ने इससे पहले अपने अकॉउंट पर ट्वीट करते हुए मीम शेयर किया था। उन्होंने लिखा था कि मोदी को वोट देने वाले तीन लोगों में एक आदमी बेवकूफ़ होता है, बिल्कुल बाक़ी दोनों की तरह।

द वायर वालो, जनेऊ के लिए इतना जहर उगलने से पहले पता किया था जनेऊ क्या है?

वायर ने हिन्दुओं के खिलाफ फिर झूठ और जहर से बुझा हुआ लेख छापा है- “आधुनिक ब्राह्मण ‘उत्पीड़न’ के इस प्रतीक को क्यों इठला कर दिखाते फिर रहे हैं?” बताया गया है कि जनेऊ ब्राह्मणों द्वारा दूसरी जातियों, खासकर कि अनुसूचित जातियों के, उत्पीड़न का, ब्राह्मण-प्रभुतावाद का प्रतीक है, और जनेऊ पहनने वालों को कंधे पर नफरत का, दूसरों को नीचा देखने का ‘बोझ’ महसूस होना चाहिए।

‘फर्जी’ ऑनलाइन फोरम का सहारा

एक पूरे जनसांख्यिकीय समूह को, उनकी अस्मिता और उनकी पवित्र परंपराओं को अवैध घोषित कर देने के लिए लेखिका सहारा लेती है इंटरनेट के किसी अँधेरे कोने में बैठे किसी तमिल ब्राह्मणों के लिए बनी वेबसाइट के चैट थ्रेड का। उसमें कोई एक-आधा आदमी लिख देता है कि मुझे ऐसा लगता है कि मेरी बुद्धि ब्राह्मण-कुल में पैदा होने के कारण अधिक तीक्ष्ण है, कोई बता देता है कि मैं ‘सेक्युलर’ (धार्मिक कर्मकांडों को ढकोसला मानने वाला) ब्राह्मण हूँ और उसके बावजूद मुझे ख़ुशी होती है कि मेरे बच्चे जाति के बाहर शादी नहीं कर रहे, और बस इतने भर से मेघाली मित्रा न केवल सभी ब्राह्मणों को सभी अनुसूचित जाति वालों के उत्पीड़न का दोषी बना देतीं हैं, सभी ब्राह्मणों से स्थायी क्षमा-याचना मुद्रा में जीने की उम्मीद करने लगतीं हैं। जबकि उस वेबसाइट पर जो लिख रहा है, वह सही में तमिल ब्राह्मण है भी या नहीं, इसका भी कोई सबूत नहीं है, और इसके आधार पर वह सभी ब्राह्मणों से अपना जनेऊ उतार फेंकने की अपेक्षा करतीं हैं।

यहाँ पहली बात तो यह कि ब्राह्मण (या कोई भी जाति/वर्ण) जन्म से ज्यादा कर्म पर आधारित होता है, अतः जिसे धार्मिक कर्मकांडों को ढकोसला मानना है, वह काहे का हिन्दू, काहे का ब्राह्मण? उसके विचारों का बोझ हिन्दू क्यों उठाए? उसके विचारों के आधार पर ब्राह्मणों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है, जो हिन्दू ही नहीं है?

लेखिका यह भी कहती है कि क्या ऐसी चीज जिसने ऐतिहासिक रूप से बड़ी तादाद में लोगों को तुम्हें मिलने वाली सुरक्षा को लेकर ईर्ष्यालु बनाया हो, सच में क्षतिविहीन (harmless) हो सकती है? तो पहली बात तो हाँ, बिलकुल। किसी की ईर्ष्या ब्राह्मण का ठेका नहीं है। और जिसे लगता है ब्राह्मण होना आसान है, उसे यह पता होना चाहिए कि जो स्मृतियाँ ब्राह्मणों को वेद-पाठ का विशेषाधिकार देतीं हैं, सैद्धांतिक रूप से ‘सर्वोच्च’ बनातीं हैं, वही स्मृतियाँ ब्राह्मणों को भीख माँगने और यजमान अथवा छात्र के दान-दक्षिणा पर निर्भर रहने का भी आदेश देतीं हैं। सुदामा और द्रोण ऐसे ही प्रतिभासम्पन्न, ज्ञान-सम्पन्न होने के बावजूद कँगले थे।

जनेऊ का इतिहास हिन्दुओं से पूछो

जनेऊ के इतिहास शीर्षक वाले खंड में पहली बात तो जनेऊ की उत्पत्ति और इतिहास की बात ही नहीं है, सिवाय आखिर में एक-आधे वाक्य के अलावा। बाकी के खंड में लेखिका खुद ही यह मानती है कि अन्य जातियाँ भी ‘ब्राह्मणों-जैसा’ बनने के लिए जनेऊ पहनने के लिए स्वतंत्र थीं, और उन्होंने ब्राह्मणों जैसा आचरण करने (जनेऊ पहनने, माँस-मदिरा का त्याग करने, आदि) का प्रयास किया भी। तो इसमें फिर भेदभाव बचा ही कहाँ?

अब आते हैं मूल मुद्दे यानि कि जनेऊ/यज्ञोपवीत के असली अर्थ/महत्व पर (जोकि द वायर के लेखकों जैसे असुर-प्रकृति के लोगों को पता ही नहीं होगा)। तो यज्ञोपवीत मात्र एक ‘प्रतीक’ नहीं है- यह एक कवच होता है, जोकि योग करते समय शक्ति के शरीर में संचालन को नियंत्रित करता है। योग के अनुसार शरीर में विभिन्न चक्र होते हैं, और यज्ञोपवीत गले के विशुद्धि चक्र से लेकर जननांग के स्वाधिष्ठान चक्र तक की रक्षा करता है। यहाँ तक कि कई गणपति मूर्तियों में उन्हें भी सर्प को यज्ञोपवीत की तरह धारण किए हुए दिखाया जाता है। इसके अलावा यज्ञोपवीत पहली बात तो यज्ञ करने का अधिकारी होने का सूचक होता है (जोकि न हर कोई होता है, न ही अपने आप, बिना गुरु की अनुमति के बना जा सकता है), और दूसरी चीज यज्ञोपवीत कपड़ों के अंदर पहना जाता है, बाहर पहन कर कोई भी इठलाते हुए नहीं घूमता।

जिन्हें यज्ञ करने की योग्यता, योग में निहित शक्ति जैसी चीजों में विश्वास नहीं (जैसे द वायर, या फिर मेघाली मित्रा), उनके लिए यह विषय है ही नहीं- अतः वह किसी भी तरह से इस विषय की चर्चा का हिस्सा ही नहीं हैं। और जिन्हें इस विषय पर अधिक जानकारी चाहिए, वे या तो अपने-अपने गुरु से सम्पर्क करें, या फिर 18वीं-19वीं सदी के योगी त्रैलंग स्वामी की उमाचरण मुखोपाध्याय द्वारा लिखित किताब खंगाल सकते हैं।

यही ‘प्रतीक से भय’ का नाटक समुदाय विशे के साथ हो, तो वायर वालों कैंसर होने लगेगा

और जिस चूँकि-जनेऊ-‘उत्पीड़न’-का-प्रतीक-है-अतः-इसे-हटा-देना-चाहिए के तर्क का इस्तेमाल पत्रकारिता के समुदाय विशेष वालों के पसंदीदा मज़हब इस्लाम पर किया जाए, तो इन्हें कैंसर होने लगता है। हजारों-लाखों जानें बिना मूंछों की दाढ़ी वाले पंथिक नफरत से भरे इस्लामी हमलावरों ने ले लीं हैं केवल आधुनिक युग में ही (600 ईस्वी से शुरू करने पर तो यह आँकड़ा करोड़ पार कर शायद अरब में पहुँच जाए), लेकिन अगर मैं कहूँ कि इसी तर्क के इस्तेमाल से बिना मूँछों की दाढ़ी मेरे लिए पंथिक हिंसा का प्रतीक है, इस्लाम वाले इसे त्याग दें तो मजहब वालों से पहले वायर फतवे जारी करेगा। क्या मैं यह कहता फिरूँ कि समुदाय विशेष के लोगों को दाढ़ी हटा लेनी चाहिए? ऐसा मानना सर्वथा अनुचित है, इसलिए यह तर्क हर तरह के विषय पर लागू होना चाहिए न कि सिर्फ हिन्दू प्रतीकों पर।

अंग्रेजों ने 190 साल भारत को अपने बूटों तले रौंदा लेकिन अगर मैं विक्टोरिया मेमोरियल या किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज का नाम बदलना चाहूँ तो यही वायर शायद इन्हीं मेघाली मित्रा से लिखवाएगा कि भला उससे क्या होगा; मासूम-सा लगने वाला हिन्दूफोबिक तर्क होगा कि सताने वाले और सताए जाने वाले, दोनों मर चुके हैं।

असल बात यही है कि मेघाली मित्रा और वायर दोनों की ही दिक्कत यज्ञोपवीत नहीं, उसका हिन्दू उद्गम है, और उन्हें ‘भारी मन से’ यह सूचित करना चाहूँगा की उनकी इस ‘दिक्कत’ का कोई इलाज नहीं हो सकता…

भगवान राम की मूर्त‍ि चुराने वाला खुद आया लौटाने, बोला- आ रहे थे डरावने सपने

रामजन्मभूमि थाना क्षेत्र के नजरबाग मोहल्ले में स्थित माधुरीकुंज से 140 साल पुरानी अष्टधातु से बनी भगवान राम की मूर्ति चोरी होने के ठीक 5वें दिन वापस मिल गई है। लेकिन यह पूरा किस्सा बहुत दिलचस्प है। कमाल की बात यह है कि बीते सोमवार को चोर मूर्ति को चुराकर ले गया था और शुक्रवार को दोपहर में खुद ही भागा-भागा मूर्ति लौटाने मंदिर पहुँच गया।

मूर्ती चुराने वाले चोर अजय का कहना है कि जब से चोरी की, तब से उसके शरीर मे अजीब-सा दर्द शुरू हो गया है। उसको घबराहट के साथ डरावने सपने आ रहे हैं। वह मूर्ति को बहुत दिन तक अपने साथ रख नहीं पाया और खुद युगल माधुरी कुंज मंदिर में पहुँच मंदिर के पुजारी को भगवान राम की मूर्ति सौंप दी। मूर्ति सौंपने के बाद उसके शरीर का दर्द तो ठीक हो गया, लेकिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया। पुलिस ने चोर अजय शुक्ला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।

बीते सोमवार की दोपहर मेंं मंदिर के गर्भगृह का ताला तोड़कर 9 इंच की अष्टधातु से बनी भगवन राम की मूर्ति चोरी हो गई थी। महंत राजबहादुर शरण ने बताया, “यह भगवान की दिव्य शक्ति ही है कि, दोपहर में भगवान को भोग लगाने के बाद जैसे ही मंदिर के गर्भगृह से बाहर देखा तो एक आदमी खड़ा था, उसने कहा ‘आपके यहाँ से कोई मूर्ति गायब हो गई है क्या?’ जवाब में मैंने ‘हाँ’ कहा। तो वह बोला ‘मैं वही मूर्ति लौटाने आया हूँ’।”

महंत ने आगे बताया- “जैसे ही उस युवक से मूर्ति दिखाने के लिए कहा उसने हमारे ठाकुरजी को हमारी गोद में रख दिया।” चोरी की घटना कैसे हुई यह पूछे जाने पर आरोपित अजय ने बताया कि, उसने ताला तोड़कर मूर्ति चुराई थी। वह मूर्ति को अपने साथ घर ले गया था। घर वालों ने इस बात का विरोध किया था। मूर्तिचोर आजय ने महंत को बताया कि चोरी की रात से नींद नहीं आ रही है और पूरा शरीर अकड़ने लगा है इसीलिए मूर्ति को वापस करने पहुँच गया।

चोर ने महंत से अनुरोध किया था कि यह बात पुलिस को ना बताएँ, लेकिन घटना की जानकारी पुलिस को दी गई। पुलिस ने मूर्ति सहित चोर को हिरासत में ले लिया है। एसओ आरजेबी राजेश कुमार गुप्ता ने मूर्ति बरामद हो जाने का खुलासा नहीं किया, यह जरूर बोले कि पुलिस अपराधी के करीब पहुँच गई है और कुछ घंटे बाद चोरी का खुलासा हो जाएगा।

कॉन्ग्रेस MLA, मेयर, पूर्व मेयर के ख़िलाफ़ छेड़छाड़ का मामला दर्ज, महिला को मिली जान से मारने की धमकी

गोवा पुलिस ने शनिवार (1 जून) को शहर के महापौर (मेयर) उदय मडकाईकर, एक पूर्व महापौर यतिन पारेख और पणजी के कॉन्ग्रेसी विधायक अतानासियो मोनसेरात पर एक महिला से छेड़छाड़ के आरोप में मामला दर्ज किया है। इन सभी पर एक प्रशासनिक कार्रवाई के दौरान महिला के साथ दुर्व्यव्हार करने का आरोप लगा है।

महिला से छेड़छाड़ की यह घटना अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान हुई थी। दरअसल, पणजी नगरपालिका ने मांडवी नदी के तटीय इलाक़े पर स्थित कसीनो से अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू किया था। इस कसीनो ने फुटपाथ पर अतिक्रमण कर रखा था और नगर निगम के कर्मचारी जब इसे खाली कराने पहुँचे तो उनके साथ मेयर उदय मडकाईकर, एक पूर्व डिप्टी मेयर यतिन पारेख और पणजी से कॉन्ग्रेस विधायक अतानासियो मोनसेरात भी मौजूद थे।

पुलिस के अनुसार, शिक़ायत करने वाली महिला अतिक्रमण हटाने का विरोध कर रहे समूह में शामिल थी। महिला ने आरोप लगाया कि मेयर उदय मडकाईकर, एक पूर्व डिप्टी मेयर यतिन पारेख और पणजी से कॉन्ग्रेस विधायक
अतानासियो मोनसेरात ने उसके साथ छेड़छाड़ की, उसे ग़लत तरीक़े से छुआ और दुर्व्यव्यवहार किया।

द हिंदू को इस शिक़ायत की पुष्टि करते हुए उत्तरी गोवा के पुलिस अधीक्षक चंदन चौधरी ने बताया, “हाँ, पणजी पुलिस ने एक महिला द्वारा दर्ज की गई शिक़ायत के आधार पर तीनों के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की गई है, जो एक कसीनो कार्यालय के अग्रभाग के विध्वंस का विरोध कर रही थीं।”

वहीं, पणजी पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर ने पीटीआई से बातचीत में कहा, “देर रात दर्ज हुई शिक़ायत में महिला ने आरोप लगाया कि सभी आरोपियों ने उसे मारने की धमकी भी दी।” फ़िलहाल, पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए इसकी जाँच शुरू कर दी है।

दूसरी तरफ़, कॉन्ग्रेस विधायक मोनसेरात का कहना है कि अतिक्रमण विरोधी अभियान सार्वजनिक स्थान पर हुआ था और उस समय कोई अप्रिय घटना नहीं घटित हुई थी। उन्होंने कहा कि वे तो सिर्फ़ पालिका कर्मियों के साथ मौक़े का मुआयना करने गए थे और शिकायत में जिन लोगों का नाम दर्ज है उनमें से किसी ने भी महिला के साथ कोई बदसलूकी नहीं की थी।

जानकारी के अनुसार, यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना), 354 (अपमानजनक शील), 504 (शांति भंग), 506 (आपराधिक धमकी) के तहत दर्ज किया गया है।

ग़ौरतलब है कि गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद पणजी की सीट खाली हो गई थी। इस सीट पर वे 1994 से लगातार 25 साल तक जीतते रहे थे। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव के बाद कॉन्ग्रेस के खाते में यह सीट आई। अतानासियो मोनसेरात का मुक़ाबला RSS के पूर्व गोवा प्रमुख सुभाष वेंलिंगकर से हुआ था।

मणिपुर में फर्जी आधार कार्ड के साथ 9 रोहिंग्या मुस्लिम गिरफ्तार

मणिपुर के तनगनौपाल जिले में भारत-म्यांमार सीमा के पास स्थित मोरेह शहर से 9 रोहिंग्याओं को फर्जी आधारकार्ड के साथ गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने शनिवार (जून 1, 2019) को यह जानकारी दी है। पुलिस अधीक्षक (एसपी) विक्रमजीत ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि पुलिस को मिली गुप्त सूचना के बाद फर्जी आधारकार्ड रखने के आरोप में तनगनौपाल चेक से दो महिलाओं समेत चार रोहिंग्याओं को गिरफ्तार किया था। इन चारों को 27 मई को गिरफ्तार किया गया था।

इसके अलावा पुलिस ने 28 मई को मोरेह शहर में एक होटल से तीन महिलाओं समेत 5 अन्य रोहिंग्याओं को गिरफ्तार किया। एसपी ने बताया कि जाँच में खुलासा हुआ कि गिरफ्तार किए गए रोहिंग्याओं में से एक ताहिर अली ने स्थानीय मणिपुरी मुस्लिम महिला से विवाह किया और वही इन विदेशियों को अवैध तरीके से देश के अंदर लाने के मामले का मास्टरमाइंड था।

पुलिस ने कहा कि अली को थौबल जिले से गिरफ्तार किया गया। उन्होंने कहा कि ताहिर अली को छोड़कर ये सभी फर्जी आधार कार्ड लेकर राज्य की राजधानी से सीमाई शहर आए थे। एसपी ने बताया कि गिरफ्तार रोहिंग्या न तो हिन्दी और न ही अंग्रेजी बोलना जानते हैं, जिसके कारण उनसे बात करने में परेशानी आ रही है। उन्होंने बताया कि वे भारत के अंदर कैसे घुसे और फर्जी आधारकार्ड उन्हें कैसे मिला, इस बारे में पता लगाया जा रहा है।

रोहिंग्या का मुद्दा काफी पुराना है। म्यांमार से अवैध रूप से रोहिंग्या भारत में प्रवेश करते रहे हैं। मोदी सरकार ने इन पर कठोर कार्रवाई करते हुए पिछले साल रोहिंग्या नागरिकों को वापस उनके देश म्यांमार वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। पिछले साल अक्टूबर में शुरू हुई इस प्रक्रिया में सात रोहिंग्या नागरिकों को म्यांमार सौंपा गया था।

यूपीए में हुए विमानन घोटाले के सिलसिले में ED ने पूर्व मंत्री प्रफुल्ल पटेल को भेजा समन

एनसीपी नेता और पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पेटल की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने दीपक तलवार अवैध विमानन सौदे मामले में प्रफुल्ल पटेल को समन भेजकर 6 जून को पेश होने के लिए कहा है। प्रफुल्ल पटेल पर आरोप है कि यूपीए सरकार के दौरान जब प्रफुल्ल पेटल नागरिक उड्डयन मंत्री थे, उस समय दीपक तलवार को गलत तरीके से फायदा पहुँचाया गया था। वहीं, प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस पर प्रफुल्ल पटेल ने कहा है कि अधिकारियों के साथ जाँच में सहयोग करने पर उन्हें खुशी होगी। उन्होंने कहा कि वो विमानन क्षेत्र की जटिलताओं के बारे में जाँच एजेंसी को बताएँगे।

विमानन लॉबिस्ट दीपक तलवार की गिरफ्तारी के बाद हुए कुछ खुलासों और एजेंसी द्वारा जुटाए गए सबूतों के मद्देनजर पटेल से सवाल-जवाब किया जाना है। एजेंसी ने हाल ही में दीपक तलवार को नामजद करते हुए आरोपपत्र दाखिल किया है। उसमें कहा गया है कि तलवार लगातार पटेल के संपर्क में था। यूपीए सरकार में जब पटेल उड्डयन मंत्री थे, उस दौरान एयर इंडिया ने 111 विमान खरीदने का निर्णय लिया था, जिसमें 43 एयरबस के विमान शामिल थे।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने 2017 में अपने एफआईआर में जिक्र किया है कि इस प्रकार की महत्वाकांक्षी खरीद के ऑर्डर आवश्यकताओं का अध्ययन, आवश्यक पारदर्शिता के बिना दिए गए, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ। 2014 में तलवार, सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के आधिकारिक आवास पर तकरीबन 63 बार मिलने गया था। इसको लेकर भी तलवार जाँच के दायरे में है। एयरबस ने अगस्त और सितंबर 2012 के बीच तलवार के अंतर्गत चलने वाली कंपनियों के लिए 10.5 मिलियन डॉलर के दो ट्रांसफर किए और खास बात ये है कि ये ट्रांसफर उसी समय किए गए, जब यूपीए शासनकाल के तहत नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने विमानों की खरीद के आदेश दिए थे।

गौरतलब है कि, ईडी ने अगस्त 2017 में इसकी जाँच शुरू की थी। पूछताछ से बचने के लिए दीपक देश छोड़कर भाग गया था, मगर इसी साल 31 जनवरी को उसे इमिग्रेशन डिपार्टमेंट के अफसरों ने दुबई से प्रत्यर्पण करवाया और फिर बाद में ईडी ने उसे गिरफ्तार किया था। तलवार के साथ-साथ यूपीए शासनकाल के हाई प्रोफाइल लॉबिस्ट राकेश सक्सेना को भी दुबई से प्रत्यार्पित करके लाया गया था।

ईडी के एक अधिकारी का कहना है कि जाँच में पता चला कि दीपक तलवार नेताओं और मंत्रियों (प्रफुल्ल पेटल और दूसरे उड्डयन मंत्रियों) के साथ दलाली और लॉबिंग करता था। वह एयर अरबिया और कतर एयरवेज को गलत फायदा पहुँचा रहा था। तलवार पर आरोप है कि उसने 2008-09 के बीच इन एयरलाइंस को गलत फायदा पहुँचाया और जिसका नुकसान सरकारी एयरलाइंस एअर इंडिया को उठाना पड़ा। ईडी ने पाया कि अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस के द्वारा दीपक तलावर के बैंक ऑफ सिंगापुर के अकाउंट में ₹270 करोड़ जमा हुए हैं, जबकि उसने अपने एक एनजीओ के द्वारा ₹88 करोड़ प्राप्त किया।