Sunday, September 29, 2024
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पत्नी के साथ कॉन्ग्रेस नेता इमरान मसूद के ‘डांस’ से मौलाना ख़फ़ा, कहा-‘हराम है ये, माफ़ी माँगे’

कॉन्ग्रेस नेता इमरान मसूद को अपनी पत्नी के साथ एक समारोह में डांस करना महँगा पड़ गया। इमरान की डांस वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। मुस्लिम संगठनों और मौलानाओं ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। मौलानाओं की मानें तो ऐसा करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है, इसलिए इमरान को इसके लिए माफ़ी माँगनी चाहिए।

इस वीडियो में कुछ औरतें ‘उड़ें जब-जब जुल्फें तेरी’ गाने पर डांस कर रही हैं, जिसमें इमरान की पत्नी भी शामिल हैं। इस वीडियो में लगातार बाकी औरतें और उनकी पत्नी इमरान को डांस करने के लिए कह रही हैं।

नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक इत्तेहाद उलेमा-ए-हिंद के अध्‍यक्ष मौलाना कारी मुस्तफा देहलवी ने मीडिया से हुई अपनी बातचीत में कहा, “इमरान मसूद की पत्‍नी को इस तरह के गानों पर नाचना, खुलेआम बेपर्दा होकर डांस करना जायज नहीं है, यह हराम है और इस्‍लाम इसकी इजाजत नहीं देता है। इस्‍लाम में इसकी मनाही है। इन लोगों को फौरी तौर पर अल्‍लाह से तौबा करनी चाहिए और माफी माँगनी चाहिए, यह बहुत बड़ा जुर्म है।”

गौरतलब है साल 2014 में मोदी की ‘बोटी-बोटी’ करने वाले इमरान मसूद कॉन्ग्रेस पार्टी का एक बड़ा नाम है। इस बार वह सहारनपुर से कॉन्ग्रेस के प्रत्याशी भी है। सहारनपुर में पहले चरण में मतदान हो चुका है। 23 मई को नतीजे सबके सामने होंगे।

The Print वालों, सीधे-सीधे बोलो हिन्दू प्रतीकों से सुलग जाती है (सीने में आग)

सुबह-सुबह उठते ही मोबाइल पर देखा द प्रिंट वालों ने दिल्ली के झंडेवालाँ वाले हनुमान जी की तस्वीर के साथ कुछ लिखा है। सुबह-सुबह बजरंगबली के दर्शन से मन प्रफुल्लित होने की बजाय दुश्चिंता से भर गया, क्योंकि पत्रकारिता के समुदाय विशेष की फ़ितरत पता है- हिन्दुओं की असली तारीफ़ करने की बजाय ये लोग खौलता तेल पी लेना पसंद करेंगे।

और मैं सही था- वह लेख इस बारे में था कि कैसे हिन्दू नेताओं और देवी-देवताओं की भव्य प्रतिमाएँ, उनके भव्य स्मारक समुदाय विशेष को ‘नर्वस’ कर रहे हैं।

जी हाँ। नर्वस- यानी बेचैन, परेशान। हिन्दू भव्यता समुदाय विशेष को बेचैन कर रही है- ऐसा मैं नहीं, प्रिंट कह रहा है।

बात हिन्दू मूल्यों की

लेख की शुरुआत में ही, बाकायदा लेखिका की पीएचडी का हवाला देकर, हाइपरलिंक लगा कर, बता दिया जाता है कि लेखिका समाजशास्त्र की ‘तीसमारखां’ जानकार हैं (और इसलिए इस मुद्दे पर वह जो कुछ बोलें तो उसे हमें चुपचाप सर झुकाकर मान लेना होगा)। आगे लेखिका बतातीं हैं कि प्रतिमाएँ और स्मारक किसी भी समय पर राष्ट्र के मूल्यों को प्रक्षेपित करते हैं। यानी हिन्दुओं की मूर्ति और स्मारक अगर समुदाय विशेष में बेचैनी भर रहे हैं तो ऐसा तभी हो सकता है जब दो में से एक बातें हों-

  1. या तो हिन्दू मूल्यों में ही अपने आप में ऐसी कोई खराबी है, जिससे समुदाय विशेष का डरना लाजमी है,

    और या फिर

  2. समुदाय विशेष की खुद की मूल प्रकृति और प्रवृत्ति ही यह हो कि हिन्दू मूल्यों का सांकेतिक, प्रतीकात्मक उत्थान भी उनके लिए बेचैनी का सबब हो जाए।

मुझे कोई तीसरा कारण नहीं दिखता, खुद लेखिका द्वारा वर्णित प्रतिमाओं के महत्व की संरचना के भीतर।

अब आते हैं हिन्दू मूल्यों पर। तो मुझे तो हिन्दू धर्म के मूल्यों में ऐसा कुछ नहीं दिखता, जिससे किसी को हिन्दू मूल्यों के नाम से ही बेचैनी होने लगे। न हम अपने पंथिक विचारों को इकलौता सच, इकलौता सही रास्ता मानते हैं, न ही हमारे किसी शास्त्र में ऐसा लिखा है कि जो तुमसे अलग विचार या कर्म करने की हिमाकत करे उसे परिवर्तित करो, मार डालो या सेक्स-गुलाम बनाकर बेच दो। इतिहास में शायद ही कोई वर्णन मिले जब किसी हिन्दू राजा ने अपने धर्म को मानने के लिए किसी दूसरे को मजबूर किया हो। हम तो “एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति” पर चलने वाले लोग हैं। तो अगर फिर भी हिन्दू मूल्यों के भव्यीकरण से समुदाय विशेष में बेचैनी का भाव आ रहा है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है?

बात मुख्य चित्र की  

लेखिका जी और द प्रिंट वालों, आप प्रतिमा-निर्माण को ‘पालतू प्रोजेक्ट’ तो नरेंद्र मोदी का बता रहे हो, लेकिन तस्वीर झंडेवालाँ वाले हनुमान जी की क्यों लगा रखी है? यह बनना शुरू 1994 में हुआ था, तब भी देश में ‘सेक्युलर’ कॉन्ग्रेस की सरकार थी, और 2007 में जब यह बनकर ख़त्म हुई तो देश में सोनिया माता और दिल्ली में शीला दीक्षित थीं- क्यों नहीं रोक लिया?

और अगर उस ‘सेक्युलर’ समय की मूर्तियों से भी समुदाय विशेष ‘नर्वस’ हो रहे हैं तो फिर तो क्या हमें मान लेना ही चाहिए कि उनकी बेचैनी अपनी सुरक्षा को लेकर नहीं, हिन्दू प्रतीक चिह्नों (और लेखिका के हिसाब से उन चिह्नों द्वारा इंगित हिन्दू मूल्यों) से घृणा को लेकर है? और अगर ऐसा है तो हम क्या करें? और क्यों करें?

20% बनाम 80%

लेखिका आगे याद दिलातीं हैं कि भारत की 20% आबादी गैर-हिन्दू है। अव्यक्त रूप से इसका मतलब यह है कि 20% समुदाय विशेष को खुश रखने के लिए सार्वजनिक जीवन से हिन्दू मूल्यों की अभिव्यक्ति समाप्त कर देनी चाहिए।

20% आबादी की असहिष्णुता के लिए 80% लोग अपने जीवन मूल्यों की अभिव्यक्ति बंद कर दें? और वो भी इसलिए नहीं कि उनके भय का कोई तर्कसंगत कारण है, बल्कि केवल इसलिए कि उन्हें दूसरे के मज़हब की अभिव्यक्ति नहीं बर्दाश्त!

और वह भी तब जब 20% को पहले से ही वह सभी वीवीआइपी अधिकार हैं जो 80% लोगों को नहीं है। केवल संवैधानिक और वैधानिक बात करूँ तो समुदाय विशेष को संविधान के अनुच्छेदों 25 से लेकर 30 तक का संरक्षण प्राप्त है, जो केवल और केवल अल्पसंख्यकों के लिए ही है, बहुसंख्यकों के लिए नहीं। और इसी आधार पर सबरीमाला की परंपरा भंग की गई, मंदिर को अपवित्र किया गया। अय्यप्पा के भक्तों की हर गिड़गिड़ाहट को हर दरवाजे पर यही कह कर दुत्कार दिया गया कि परम्पराओं और धार्मिक संस्थानों का संवैधानिक संरक्षण अल्पसंख्यकों को ही देता है संविधान, बहुसंख्यकों को नहीं।

RTE (शिक्षा का अधिकार) के अंतर्गत एक-चौथाई सीटों का लाभ भी केवल हिन्दुओं द्वारा चल रहे शिक्षण संस्थानों पर ही लागू है- मदरसों से लेकर ईसाईयों के कॉन्वेंट स्कूल तक इससे छूट पाते हैं, और जमकर अपने मूल्य बच्चों के बचपन और किशोरावस्था में घोलते हैं। हिन्दू अगर कोई स्कूल चलाए तो कानूनन उसे आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ता है जबकि अल्पसंख्यक स्कूल इससे बच जाते हैं।

इसके बाद भी अगर समुदाय विशेष वाले दो-तीन मूर्तियों से बेचैन हो रहें तो हिन्दू क्या करें? और क्यों करें?

ईशा के आदियोगी शिव को जबरदस्ती घसीटा

इस लेख में निजी संस्था ईशा फाउंडेशन द्वारा स्थापित 112 फीट की आदियोगी शिव प्रतिमा का उसी साँस में जिक्र किया गया है, जिसमें सरकारी खर्चे पर बन रही शिवाजी महाराज, सरदार पटेल आदि की प्रतिमाओं की बात हो रही है। ऐसा जानबूझकर इसलिए किया लेखिका ने ताकि बिना खुलकर झूठ बोले लोगों के मन में यह भ्रम फैलाया जा सके कि आदियोगी की प्रतिमा भी सरकारी संसाधनों से बनी है। जबकि सच्चाई यह है कि यह प्रतिमा एक निजी संस्थान ने अपने पैसे और अपनी जमीन पर तैयार की है।

और इसको घसीटने की कोशिश से लेखिका के पूरे लेख की मंशा साफ़ हो जाती है- कि समुदाय विशेष तब तक ‘बेचैन’ रहेंगे जब तक धर्म और संस्कृति, हिन्दू पंथ और सम्प्रदाय की हर अभिव्यक्ति बंद नहीं हो जाती। केवल सरकारी ही नहीं, निजी भी। यही हिन्दूफोबिया है

40 तृणमूल विधायक मेरे संपर्क में, बंगाल की मिट्टी से बना रसगुल्ला मेरे लिए प्रसाद: PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर करारा निशाना साधा है। उन्होंने बंगाल के श्रीरामपुर में एक रैली को सम्बोधित करते हुए कहा कि ये सभी विधायक 23 मई के बाद तृणमूल कॉन्ग्रेस छोड़ कर भाजपा में आ जाएँगे। प्रधानमंत्री ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा:

“पहले सिर्फ़ मोदी को गालियाँ दी जाती थी, अब ईवीएम को भी दी जा रही है। तृणमूल कॉन्ग्रेस के गुंडे लोगों को वोट डालने से रोक रहे हैं। विपक्ष का प्रचार अभियान मोदी को गालियाँ देने पर केन्द्रित है। अगर आप इन्हें निकाल देंगे तो कुछ नहीं बचेगा। दीदी के दिल में क्या है? असल में दिल्ली तो बहाना है, यहाँ पर भतीजे को जमाना है। बुआ और भतीजे का ये खेल पश्चिम बंगाल समझ चुका है। चिटफंड के नाम पर जिन ग़रीब परिवारों को जीवन खोना पड़ा है, उनके आँसुओं का जवाब इस बार जनता देने वाली है। ये दीदी का दमनचक्र ही है कि घुसपैठिए आराम से रहते हैं और राष्ट्रभक्तों, रामभक्तों, दुर्गाभक्तों, सरस्वती भक्तों को ख़तरे के साए में जीना पड़ता है। ये दीदी का दमनचक्र ही है कि गुंडों को पूरी सुरक्षा मिलती है, जब की बहन-बेटियों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले फ़िल्म अभिनेता अक्षय कुमार को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी उन्हें बंगाली मिठाइयाँ भेजती हैं। इस पर पलटवार करते हुए ममता बनर्जी ने एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री को मिटटी और कीचड़ से सने रसगुल्ले खिलाने की बात कही थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पीएम ने कहा कि बंगाल की पवित्र मिट्टी से बना रसगुल्ला भी उनके लिए प्रसाद की तरह होगा।

पीएम मोदी ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार की जा रही हिंसा की वारदातों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बंगाल में आज रामनवमी के जुलूस डर के साए में निकाला जाता है। ममता सरकार को दमनकारी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अब उस माटी का प्रसाद मिलेगा तो मेरा जीवन धन्य हो जाएगा, जिस मिट्टी पर महापुरुषों के पैरों की धूल हो।

प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 23 सीटें जीतने की बात कही है। बंगाल में लगातार पाँव जमा रही भाजपा ने दशकों तक राज करने वाले वामपंथी दलों को आसानी से तीसरे स्थान पर ढकेल दिया है। उन्होंने बंगाल के लोगों को ‘मिशन महामिलावट’ के प्रति आगाह करते हुए कहा कि कुछ दल केंद्र में एक खिचड़ी सरकार चाहते हैं। बंगाल की मिट्टी से बने रसगुल्ले को रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, चैतन्य महाप्रभु, जगदीश चंद्र बोस, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे महापुरुषों की ‘चरण रज’ से जोड़ते हुए पीएम मोदी ने ममता बनर्जी को निशाना बनाया।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि तृणमूल के गुंडे लोगों को वोट डालने से रोक रहे हैं और विपक्षी प्रत्याशियों को वोट डालने से रोक रहे हैं। घर में घुसे गद्दारों और आतंकियों का ज़िक्र करते हुए मोदी ने कहा की चौकीदार किसी को भी नहीं छोड़ेगा। पीएम ने लोगों को न सिर्फ़ तृणमूल बल्कि वामपंथी हिंसा की भी याद दिलाते हुए कहा कि कभी लाल आतंकवाद से ग्रसित गाँवों में अब बिजली पहुँच गई है।

आदिवासियों को गोली से मारा जा सकेगा: विवादित बयान के लिए राहुल गाँधी को लीगल नोटिस

राहुल गाँधी की बेलगाम बयानबाजियों को रोकने के लिए भाजपा के उपाध्यक्ष प्रभात झा ने उन्हें हाल ही में दो लीगल नोटिस भेजे हैं। बीते दिनों राहुल ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को ‘हत्या का आरोपित’ बताया था और अब उन्होंने प्रधानमंत्री पर इल्ज़ाम मढ़ते हुए कहा है कि उन्होंने आदिवासियों के लिए ऐसा कानून बनाया है जिसमें लिखा है कि आदिवासियों को गोली से मारा जा सकेगा।

चुनावी रैलियों में लोगों से ‘चौकीदार चोर है’ जैसे नारे दिलवाने के बाद अब राहुल गाँधी निराधार बातों पर उतर आए हैं। जिसके कारण पार्टी उपाध्यक्ष को कानून की ओर रुख करना पड़ा। मध्य प्रदेश के जबलपुर में रैली के दौरान बोलते हुए राहुल ने हाल ही में अमित शाह को ‘हत्या का आरोपित’ कहा था। जिस पर प्रभात झा ने कहा कि अमित शाह पर इस तरह का इल्जाम सीधे एक राष्ट्रीय पार्टी (BJP) पर निशाना साधना है, जिसके 11 करोड़ सदस्य हैं, जिनमें से एक देश के प्रधानमंत्री भी हैं।

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने राहुल के आरोपों पर निशाना साधते हुए कहा कि देश की अदालत और सीबीआई तो अमित शाह को निर्दोष घोषित कर चुकी है। ऐसे में वो जानना चाहते हैं कि क्या राहुल गाँधी खुद को अदालत समझते हैं। राहुल की टिप्पणी पर नाराजगी जताते हुए प्रभात झा ने उनसे तत्काल माफ़ी माँगने की बात की थी। साथ ही कहा था कि अगर राहुल माफ़ी नहीं माँगते हैं तो वह कोर्ट में मानहानि का मुकदमा लड़ने के लिए तैयार रहें।

अभी इस मामले में राहुल पर सवाल उठ ही रहे थे कि ‘जुमलेबाज’ राहुल गाँधी ने फिर से हवा में तीर चला दिया। सोशल मीडिया पर उनकी एक वीडियो शेयर की जा रही है। इसमें राहुल गाँधी प्रधानमंत्री पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने आदिवासियों के लिए एक नया कानून बनाया है, जिसमें लिखा है कि आदिवासियों को गोली से मारा जा सकेगा। इस वीडियो में राहुल दावा कर रहे हैं कि कानून में लिखा है, “आदिवासियों पर आक्रमण होगा।”

अब ऐसे में प्रभात झा ने राहुल गाँधी को एक बार फिर लीगल नोटिस भेजा है और साथ ही स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई कानून पास नहीं हुआ है। उन्होंने राहुल के इस बयान को आदिवासियों को बरगलाने की एक कोशिश करार दिया है। और कहा कि अगर ऐसा कानून पास हुआ तो फिर राहुल गाँधी या उनके 44 सांसद उस समय कहाँ थे, जब इसे पास किया जा रहा था।

जैसे-जैसे चुनाव नतीजों के दिन नज़दीक आ रहे हैं कॉन्ग्रेस अध्यक्ष की ऐसी बचकानी हरकतें दिन पर दिन और भी खुलकर सामने आने लगी हैं। उनके भाषणों को देखकर लग रहा है जैसे मतदान के आखिरी दिन तक वह लोगों को बरगलाने का काम करेंगे, क्या पता किधर से वोट मिल जाए। लेकिन बता दें कि उनके इन तमाम झूठ को सोशल मीडिया यूजर्स अच्छे से जान और समझ रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए राहुल द्वारा अपनाए गए इन हथकंडो को यूजर्स ट्विटर पर खुद उजागर कर रहे हैं। लोगो की मानें तो राहुल गाँधी समय-समय पर मोदी से नफरत न करने की सिर्फ़ बातें करते आए हैं, असल में उनके चेहरे पर मोदी के लिए गुस्सा और नफरत साफ़ दिखाई देती है। कुछ लोग तो समाज में अराजकता फैलाने को और लोगों को भड़काने को ही उनका उद्देश्य बता रहे हैं।

श्री लंका: सेना की वर्दी का ग़लत इस्तेमाल कर फिर हमले कर सकते हैं आतंकी, अलर्ट जारी

श्री लंका में अधिकारियों ने नई चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि ईस्टर के दिन कोलंबो में हुए धमाकों के पीछे जिन इस्लामिक आतंकियों का हाथ है, वो नए हमलों की भी योजना बना रहे हैं। श्री लंकाई अधिकारियों के अनुसार, ये आतंकी सेना द्वारा प्रयोग किए जाने वाली ड्रेस और गाड़ियों का प्रयोग कर हमलों को अंजाम देने की फ़िराक़ में हैं। श्री लंका पुलिस ने कहा है कि आतंकी और भी हमले कर सकते हैं, ऐसी संभावना है। ऐसा उन्होंने श्री लंकाई जनप्रतिनिधियों को लिखे एक पत्र में कहा है। इस पत्र में ताज़ा सूचनाओं व जाँच के हवाले से यह भी कहा गया है कि आतंकी सेना की वर्दी का ग़लत इस्तेमाल कर सकते हैं। ये लोग बीते रविवार (अप्रैल 28, 2019) को भी हमले करने की फ़िराक़ में थे लेकिन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच आतंकी कामयाब नहीं हो पाए।

श्री लंका में अबतक कई आरोपितों व आतंकियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है और इस्लामिक आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार ने कई नए नियम लागू किए हैं। गिरफ़्तार आरोपितों से पूछताछ जारी है। 21 अप्रैल को हुए हमले में 250 से भी अधिक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। हालाँकि खूँखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली है लेकिन स्थानीय आतंकी संगठन नेशनल तौहीद जमात और जम्मियातुल मिलातुल इब्राहिम पर भी पुलिस की शक की सूई जा रही है। भारतीय एजेंसियों ने भी जब आईएस मॉड्यूल का पर्दाफाश किया था, तब श्री लंका को ऐसे किसी हमले को लेकर आगाह किया गया था।

रविवार की रात श्री लंका सरकार ने ईस्टर ब्लास्ट्स के बाद पहली बार कर्फ्यू में ढील दी। लेकिन, राजधानी कोलंबो में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखी गई और लोगों व वाहनों की तलाशी ली गई। पत्र में कहा गया है कि श्री लंका के पूर्वी किनारों पर बेस बातिकालोवा में हमले किए जा सकते हैं। इसी जगह पर चर्च में हुए विस्फोट के दौरान ईस्टर के दिन 27 लोग मारे गए थे। आतंकियों का अन्य निशाना क्या हो सकता है, इस बारे में अधिक कुछ नहीं बताया गया है। श्री लंका के मंत्रियों ने भी कहा है कि सुरक्षा एजेंसियों द्वारा नए सिरे से चेतावनी जारी की गई है।

श्री लंका सरकार ने चेहरा ढँकने वाले बुर्का का प्रयोग भी बैन कर दिया है। एक इमरजेंसी क़ानून के माध्यम से इस नियम को लागू करते हुए सरकार ने कहा कि किसी भी प्रकार से ऐसी चीजों का सार्वजनिक तौर पर उपयोग प्रतिबंधित रहेगा, जिससे व्यक्ति की पहचान छुपती हो। श्री लंका के एक इस्लामी संगठन ने बुर्के को प्रयोग न करने की सलाह दी है। अबतक ईस्टर धमाकों के सम्बन्ध में 150 आरोपितों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। इसके अलावा 150 अन्य पुलिस के रडार पर हैं, जिसकी तलाश चल रही है।

EC से चुनाव में धांधली की ‘अनुमति’ माँगने वाले TMC नेता पर आयोग रखेगा निगरानी

देश में आज लोकसभा चुनाव का चौथा चरण चल रहा है, इसलिए चुनाव आयोग ने 30 अप्रैल की सुबह तक विवादास्पद TMC नेता अनुब्रत मंडल पर कड़ी निगरानी रखने का फैसला किया है। मतदानकर्मियों ने TMC नेता के प्रति अपना डर व्यक्त किया था जिसके बाद चुनाव आयोग ने रविवार (28 अप्रैल) को यह फैसला लिया। मतदानकर्मियों ने यह भी कहा था कि यदि TMC बीरभूम जिला अध्यक्ष मतदान के दिन एक बूथ से दूसरे बूथ तक चहलकदमी करेंगे यानी वहाँ आएँगे-जाएँगे तो इससे उन्हें ख़तरा है।

चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों ने रविवार शाम को आधिकारिक तौर पर अनुब्रत मंडल से मुलाक़ात की और उनसे उनका सेल फोन जमा करने को कहा। उनसे अनुरोध किया गया कि वे ज़िला मजिस्ट्रेट के साथ सहयोग करें और उन्हें बताया गया कि केंद्रीय अर्धसैनिक बल का एक जवान 30 अप्रैल 2019 की सुबह तक उन पर कड़ी नज़र रखेगा। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह वास्तव में ‘हाउस अरेस्ट’ नहीं है क्योंकि वे पर्यवेक्षक के साथ कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं और उनकी प्रत्येक गतिविधि की वीडियोग्राफी की जाएगी।

अपने उद्दंड स्वभाव के लिए बदनाम अनुब्रत मंडल ने CNN न्यूज 18 को बताया, “इस तरह के निर्देश का TMC के वोट शेयर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि मुझ पर चुनाव आयोग की निगरानी से हमारा वोट शेयर बढ़ेगा। यदि वे मेरे मोबाइल फोन लेना चाहते हैं, तो मुझे कोई समस्या नहीं है क्योंकि मैं किसी अन्य फोन का उपयोग कर सकता हूँ। जहाँ तक बात ‘क्लोज वॉच’ की है तो यह मेरे लिए एक चिंता का विषय है, मेरा एक सिद्धांत है कि चुनाव के दौरान मैं कहीं नहीं जाता। मैं पार्टी कार्यालय में बैठता हूँ।”

मंडल ने यह भी कहा कि उन्होंने उन सभी को सिरदर्द, शरीर में दर्द आदि की दवा दी है जिनको जरूरत थी और उन्हें उम्मीद है कि मतदान अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि इस प्रतिबंध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि मतदान से संबंधित सभी काम पहले ही हो चुके थे।

दरअसल, बीरभूम में भाजपा कार्यालय के बाहर पुलिस तैनात थी, जहाँ यह आरोप लगाया गया था कि TMC के गुंडों ने कार्यालय में तोड़फोड़ की थी। मंडल ने इस आरोप का खंडन किया और कहा कि बीजेपी इन हमलों का ज़िक्र केवल ‘ध्यान आकर्षित’ करने के लिए कर रही है।

वर्तमान में, बीरभूम जिले की दो सीटों (बीरभूम और बोलपुर) पर मतदान हो रहा है, अनुब्रत मंडल पर यह प्रतिबंध ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली TMC के लिए कयामत ढा सकता है। वर्तमान में, इन दोनों सीटों पर TMC का ही क़ब्ज़ा रहा है जिसका श्रेय अक्सर मंडल को ही दिया जाता है।

2016 में भी, पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान, अनुब्रत मंडल को चुनाव आयोग ने 24 घंटे निगरानी में रखा था। जुलाई 2013 में, उन्होंने बीरभूम में एक सार्वजनिक बैठक में अपने समर्थकों से पुलिस पर बम फेंकने और पंचायत चुनावों में TMC विद्रोही उम्मीदवारों के घर जलाने को कहा था। सितंबर 2018 में TMC कार्यकर्ताओं को पार्टी के बागी होने का निर्देश देते हुए उन्हें कैमरे में देखा गया था। अप्रैल 2019 में, तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के नेता अनुब्रत मंडल ने चुनाव आयोग (EC) के अधिकारियों से अपील की कि आयोग उन्हें चुनाव में धांधली करने दे और अपने लोगों (TMC कार्यकर्ता) को प्रति बूथ पर 500-600 वोटों का “प्रबंध” करने की अनुमति दे।

महागठबंधन ने वाराणसी से बदला उम्मीदवार, BSF से बर्ख़ास्त तेज बहादुर यादव को टिकट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कथित रूप से कमज़ोर प्रत्याशी देने का दबाव झेल रहे महागठबंधन ने वाराणसी से अपना उम्मीदवार बदल दिया है। अब तक निर्दलीय ताल ठोक रहे ताज बहादुर यादव को इस क्षेत्र से सपा-बसपा महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया है। तेज बहादुर यादव पहले बीएसएफ के जवान थे, जहाँ से उन्हें निकाला जा चुका है। उन्होंने वहाँ दिए जाने वाले भोजन को लेकर वीडियो बनाया था और उसे सोशल मीडिया में वायरल कर दिया था। उनके ख़िलाफ़ 2 मोबाइल फोन लेकर ऑपरेशनल ड्यूटी पर जाने और भोजन की गुणवत्ता को लेकर ग़लत अफवाह फैलाने का मामला साबित हुआ था, जिसके बाद उन्हें निलंबित किया गया था।

वाराणसी से अजय राय को कॉन्ग्रेस ने टिकट दिया है। अजय राय पिछले लोकसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ उतरे थे लेकिन उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था। तेज बहादुर यादव को बड़े स्तर पर विपक्ष का समर्थन मिलने की बात तभी से चल रही थी जब हाल ही में उन्होंने आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह से मुलाक़ात की थी। महागठबंधन ने बीएचयू से स्नातक और वाराणसी की मेयर शालिनी यादव का टिकट काटते हुए तेज बहादुर को मौक़ा दिया है। शालिनी यादव अपना नामांकन वापस लेंगी।

वाराणसी में 2009 में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने जीत दर्ज की थी। 2014 में जोशी कानपूर से लड़े और जीते थे। उस चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी ने अरविन्द केजरीवाल को रिकॉर्ड मतों से परास्त किया था। मोदी एक बार फिर से मैदान में हैं और उनके ख़िलाफ़ कॉन्ग्रेस द्वारा प्रियंका गाँधी के उतारे जाने की चर्चा थी लेकिन अंतिम समय में अजय राय को उम्मीदवार बनाया गया। अभी हाल ही में नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में विशाल रोड शो भी किया था।

अमेठी से राहुल गाँधी हारे तो छोड़ दूँगा राजनीति: पाकिस्तानी PM के ‘दोस्त’ का बड़ा बयान

कॉन्ग्रेस नेता और पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने रविवार (अप्रैल 28, 2019) को एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि अगर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी लोकसभा चुनाव में अमेठी से हार जाते हैं तो वे राजनीति छोड़ देंगे। इसके साथ ही सिद्धू ने कहा कि लोगों को राष्ट्रवाद यूपीए अध्यक्ष और रायबरेली से सांसद सोनिया गाँधी से सीखनी चाहिए। आपको याद दिला दें कि सिद्धू ने दिसंबर 2018 में कॉन्ग्रेस पार्टी के द्वारा तीन विधानसभा चुनावों में जीत के बाद राहुल गाँधी को मैन ऑफ द मैच और मैन ऑफ द सीरीज घोषित कर दिया था।

अमेठी लोकसभा सीट पर राहुल गाँधी का मुकाबला 2014 में कड़ी टक्कर देने वाली भाजपा सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी से है। हालाँकि सिद्धू ने इस बात को साफ तौर पर नकार दिया कि स्मृति ईरानी, राहुल गाँधी को कड़ी टक्कर दे रही हैं। वहीं, राहुल गाँधी इस लोकसभा चुनाव में अमेठी के साथ-साथ केरल के वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं।

इस दौरान कॉन्ग्रेस नेता सिद्धू ने भाजपा के इन आरोपों का भी खंडन किया कि कॉन्ग्रेस के शासन में 70 वर्षों में कोई विकास नहीं हुआ। सिद्धू ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि ज्यादातर आर्थिक विकास कॉन्ग्रेस के शासन काल में ही हुआ है और सूई से लेकर विमान तक सब कुछ कॉन्ग्रेस के कार्यकाल में ही बना है। इसके साथ ही सिद्धू ने राजीव गाँधी की हत्या के बाद कॉन्ग्रेस की अगुवाई करने वाली सोनिया गाँधी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व के कारण ही कॉन्ग्रेस पार्टी 2004 से 2014 तक केंद्र में सत्ता में बरकरार रह सकी।

भाजपा से कॉन्ग्रेस में शामिल हुए सिद्धू ने भारतीय जनता पार्टी पर तंज कसते हुए कहा कि जो भी इस पार्टी के प्रति वफादार रहता है, उसे राष्ट्रवादी माना जाता है और जो लोग इसे छोड़ देते हैं, उन्हें राष्ट्र विरोधी करार दिया जाता है। सिद्धू ने यह भी कहा कि राफेल सौदे को लेकर हुए विवाद की वजह से इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार तय है।

दिल्ली कॉन्ग्रेस में भूचाल: शीला के विरोध में 12 नेताओं का इस्तीफा, मनोज तिवारी से मिले

दिल्ली में कॉन्ग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के ख़ुद के संसदीय क्षेत्र में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। उत्तर-पूर्वी दिल्ली से इस बार तीनों प्रमुख पार्टियों ने पूर्वांचल के ब्राह्मणों पर भरोसा जताया है। जहाँ भाजपा से मौजूदा सांसद मनोज तिवारी मैदान में हैं, कॉन्ग्रेस ने अपने सबसे बड़े ट्रम्प कार्ड पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को उतारकर माहौल गरमा दिया है। आम आदमी पार्टी दिलीप पांडेय पर दाँव खेल रही है। दीक्षित और तिवारी, ये दोनों ही अपनी-अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। ऐसे में, इस सीट पर प्रदेश अध्यक्षों की लड़ाई देखने को मिल रही है। शीला दीक्षित से पहले ज़िले के कद्दावर कॉन्ग्रेसी भीष्म शर्मा को इस सीट से टिकट का दावेदार माना जा रहा था। भीष्म शर्मा 4 बार विधायक रह चुके हैं और यहाँ उनका अच्छा-ख़ासा प्रभाव है।

कॉन्ग्रेस ने भीष्म को नज़रअंदाज़ करते हुए शीला दीक्षित को उतार दिया। शीला और भीष्म में पुरानी प्रतिद्वंद्विता है और इसीलिए शीला ने प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभालते ही सबसे पहले भीष्म शर्मा पर गाज गिराई। लम्बे समय से बग़ावती तेवर में चल रहे शर्मा को शीला ने 6 वर्षों के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। निलंबन के बाद भीष्म शर्मा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने के आरोपों को सिरे से नकार दिया। भीष्म शर्मा को दिल्ली कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन कैम्प का माना जाता है। अब उनके पार्टी से जाते ही सियासी बवाल शुरू हो गया है। कॉन्ग्रेस के 12 नेताओं ने पार्टी में अलग-अलग पदों से इस्तीफा दे दिया है। इन नेताओं ने भीष्म के समर्थन और शीला के विरोध में इस्तीफा दिया।

इस बाबत प्रतिक्रिया देते हुए भीष्म शर्मा ने कहा:

मैंने अपने जीवन के 41 साल कॉन्ग्रेस को दिए हैं। किसी भाजपा नेता से मिलना पार्टी विरोधी गतिविधि कैसे हो सकता है? मैं मनोज तिवारी से कई बार मिला। वह यहाँ के सांसद हैं। उनसे शिष्टाचार के नाते भी मुलाक़ात की जा सकती है और अपने क्षेत्र की समस्याओं को लेकर भी। मैंने अपनी बातें भी पार्टी के मंच पर रखी हैं। पार्टी विरोधी किसी गतिविधि में शामिल नहीं रहा।”

प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ने शीला दीक्षित द्वारा भीष्म शर्मा को निलंबित किए जाने को असंवैधानिक करार दिया था। भीष्म शर्मा के समर्थक शीला के ख़िलाफ़ प्रदर्शन की तैयारी भी कर रहे हैं। हालाँकि, कॉन्ग्रेस में विभिन्न पदों से इस्तीफा देने वाले नेतागण पार्टी में तो बने रहेंगे लेकिन उन्होंने राहुल गाँधी को अपना इस्तीफा भेजते हुए भीष्म शर्मा का समर्थन किया। उनका पूछना था कि शर्मा को कारण बताओ नोटिस जारी क्यों नहीं किया गया और उनका पक्ष क्यों नहीं सुना गया? मनोज तिवारी ने शीला के साथ मुक़ाबले को रोचक बताया और कहा कि वह पूर्व मुख्यमंत्री का यहाँ स्वागत करते हैं।

मनोज तिवारी के समर्थन में दिल्ली भाजपा ने अमित शाह के रोड शो का प्रोग्राम भी बनाया है। दिलीप पांडेय ने तिवारी पर पूर्वांचलवासियों की भावनाओं को आहत करने का आरोप लगाया। पांडेय ने ख़ुद के बारे में कहा कि वो अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में घर-घर का दौरा किया है। पांडेय भी दिल्ली में आप का संयोजक रह चुके हैं। ऐसे में, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में मुक़ाबला दिलचस्प बना हुआ है।

जब हुआ 2 साध्वियों का मिलन और भावुक हो रो पड़ीं प्रज्ञा ठाकुर, भोपाल के रण में नया मोड़

कभी मध्य प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी धुरी रहीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भोपाल में साध्वी प्रज्ञा से मुलाकात की। दो साध्वियों के इस मिलन के दौरान प्रज्ञा सिंह ठाकुर भावुक हो गईं और फफक-फफक कर रो पड़ीं। नीचे दिए गए वीडियो में देखा जा सकता है कैसे साध्वी प्रज्ञा गाड़ी में बैठी रो रही हैं और उमा भारती उन्हें दुलार रही हैं। उमा भारती ने इस दौरान हँसकर माहौल को ठंडा करना चाहा और पुचकारा भी। शुरुआत में ऐसी चर्चा चल रही थी कि साध्वी प्रज्ञा के भोपाल से लड़ने और उनके ख़ुद के साथ तुलना होने के कारण पूर्व मुख्यमंत्री ख़ुश नहीं थीं लेकिन इस वीडियो के आने के बाद तमाम अटकलों पर विराम लग गया। उमा भारती और साध्वी प्रज्ञा के इस मिलन को भोपाल की राजनीति का नया मोड़ माना जा रहा है।

कुछ दिनों से ख़बरें चलाई जा रही थीं कि उमा और प्रज्ञा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और दोनों के बयानों के ग़लत मतलब निकाले जा रहे थे लेकिन आज इन अटकलों पर विराम लग गया। उमा ने प्रज्ञा सिंह के पाँव छुए और उन्हें टिका लगाकर खीर भी खिलाई। प्रज्ञा सिंह से मुलाक़ात के बाद बाद उमा भारती ने कहा:

“मैं उनका (प्रज्ञा) बहुत सम्मान करती हूँ। मैंने उन पर हुए अत्याचार देखे हैं। इस मायने में वे पूजनीय हैं। मैं उनके लिए प्रचार करुँगी। वहीं, प्रज्ञा ने कहा- साधु-संन्यासी कभी एक-दूसरे से नाराज नहीं होते। मैं उनसे मिलने आई हूँ और हम दोनों के बीच हमेशा से आत्मीय संबंध रहे हैं, बाकी बातें राजनीतिक प्रपंच के लिए बना ली जाती हैं।”

मध्य प्रदेश के खजुराहो से 4 बार सांसद रह चुकीं उमा भारती भोपाल की सांसद भी रह चुकी हैं क्षेत्र की राजनीति में आज भी उनका प्रभाव है और शायद इसी कारण उनके भोपाल से चुनाव लड़ने की चर्चा चल रही थी। उमा भारती के मना करने के बाद इस सीट से भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा पर दाँव खेला। वर्तमान में उमा भारती मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और झाँसी की सांसद हैं। साध्वी प्रज्ञा का मुक़ाबला 10 वर्षों तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह से है। दिग्विजय विवादित बयानों की वजह से जाने जाते रहे हैं और 26/11 मुंबई हमले को उन्होंने आरएसएस की साज़िश करार दिया था। दिग्विजय सिंह ने साध्वी प्रज्ञा के चुनाव मैदान में उतरने के बाद ‘हर नर्मदे’ के नारे को अपना चुनावी वाक्य बना लिया है।

साध्वी प्रज्ञा ने कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान अपने ऊपर हुए ज़ुल्म को चुनावी मुद्दा बनाया है। कॉन्ग्रेस द्वारा जबरन इज़ाद किए गए कथित ‘हिन्दू आतंकवाद’ को मुद्दा बनाकर दिग्विजय को लगातार घेर रही प्रज्ञा ठाकुर को जनता की सहानुभूति भी मिल रही है। जेल में और हिरासत में रहने के दौरान अपने साथ किए गए टॉर्चर को लगातार बयान करके साध्वी प्रज्ञा ने कॉन्ग्रेस को निशाने पर रखा है। उधर दिग्विजय सिंह ने कन्हैया कुमार का समर्थन करते हुए कहा कि वो 8 एवं 9 मई को चुनाव प्रचार करने भोपाल आएँगे। सीपीआई दफ्तर पहुँचे दिग्विजय ने इस दौरान महात्मा गाँधी और कार्ल मार्क्स की तुलना करते हुए कहा कि दोनों में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है।