Tuesday, October 1, 2024
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यूपी में कॉन्ग्रेस का ‘त्याग’, सपा-बसपा-रालोद के बड़े नेताओं के लिए छोड़ी 7 सीटें

उत्तर प्रदेश में महागठबंधन और कॉन्ग्रेस के बीच आँख-मिचौली का खेल जारी है। पहले कॉन्ग्रेस, सपा और बसपा के साथ लड़ने की ख़बर आ रही थी लेकिन अखिलेश यादव और मायावती ने कॉन्ग्रेस पार्टी को दरकिनार कर सीटों का समझौता कर लिया। पत्रकारों द्वारा बार-बार पूछने के बावजूद अखिलेश कहते रहे कि उनके गठबंधन में कॉन्ग्रेस शामिल है और 2 सीटों पर लड़ रही है।

यूपी महगठबंधन ने गाँधी परिवार की पारम्परिक लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी न उतारने का फ़ैसला किया है। कॉन्ग्रेस पहले तो सपा-बसपा पर हमलावर रही लेकिन ताज़ा ऐलान जनता के लिए काफ़ी भ्रामक है क्योंकि कॉन्ग्रेस ने महागठबंधन के बड़े नेताओं व उनके परिवार की सीटों पर उम्मीदवार न उतारने का निर्णय लिया है। इस घोषणा के अनुसार सपा का गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी, कन्नौज और फ़िरोज़ाबाद सीट छोड़ने का निर्णय लिया है।

मैनपुरी से सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ने वाले हैं। कन्नौज से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सपा से ताल ठोकेंगी। वहीं फ़िरोज़ाबाद से वरिष्ठ सपा नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को टिकट दिया गया है। हालाँकि, चर्चा है कि सपा से अलग हो चुके मुलायम के भाई शिवपाल यादव के भी चुनाव लड़ने की संभावना है। ऐसे में, सपा का पारिवारिक कलह एक बार फिर सतह पर आता दिख रहा है। फिलहाल कॉन्ग्रेस ने इन तीनों सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारने का निर्णय लिया है। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाक़ों में प्रभाव रखने वाले रालोद संस्थापक अजीत सिंह जिस भी सीट से चुनाव लड़ेंगे, कॉन्ग्रेस वहाँ अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी

चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत सिंह के ख़िलाफ़ भी कॉन्ग्रेस उम्मीदवार नहीं उतारेगी। बसपा अध्यक्ष मायावती के ख़िलाफ़ भी कॉन्ग्रेस उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी। उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने ऐलान किया कि पीलीभीत और गोंडा सीटों को अपना दल के लिए छोड़ दिया जाएगा। इसके अलावा कॉन्ग्रेस ने जान अधिकार पार्टी व महान दल के साथ भी गठबंधन का ऐलान किया।

कॉन्ग्रेस ने अब तक यूपी में अपने 35 प्रत्याशियों के नाम जारी कर दिए हैं। प्रियंका गाँधी ने लखनऊ पहुँच कर कार्यकर्ताओं के साथ मुलाक़ातों का दौर शुरू कर दिया है। उन्होने प्रदेश की जनता से एक पत्र के माध्यम से कॉन्ग्रेस को वोट देने की अपील की। प्रियंका 18 से 20 मार्च तक प्रयागराज, भदोही, मिजार्पुर और वाराणसी के दौरे पर रहेंगी। इसका कार्यक्रम पहले ही जारी हो चुका है।

मोदी… वाजपेयी नहीं हैं – मर्यादा की LoC और आधी रात घर में घुसकर मारने वाले में अंतर है

कुछ परम आशावादी लोग, अभी भी यह मानने को राजी नहीं हैं कि मोदी ही आएगा। बेशक उनके पास कोई विकल्प नहीं हैं, लेकिन उनके भीतर ‘चमत्कार’ की जो एक विशेष ग्रंथि है, वह उन्हें इस बात का लगातार यकीन दिला रही है कि बेशक काला कौवा पीएम बन जावेगो लेकिन मोदी तो गयो।

चूँकि मैं ऐसे चमत्कारों और ग्रंथियों का पुराना सर्जन हूँ तो बता सकता हूँ कि मोदी विरोधियों के इस ‘यकीन’ के पीछे का राज क्या है! दरअसल… यह जो उड़नछल्ले हैं, वे अपने भरोसे की जीत के पीछे वर्ष 2004 के चुनावों में बीजेपी की असफल ‘शाइनिंग इंडिया’ थ्योरी को देख रहे हैं।

जब वाजपेयी सरकार और उनके राजनैतिक मैनेजरों को भरोसा था कि उन्होंने इतना विकास कर दिया है कि गाँव से लेकर शहर तक चमक रहा है और चुनावों में वे फिर से सरकार बनाने जा रहे हैं, लेकिन बावजूद इसके कि वाजपेयी सरकार ने विकास के हर पैमाने पर काम किया था, अटल जी की वापसी नहीं हो सकी।

तो पनामा की बिना फ़िल्टर वाली सिगरेट के धुएँ से निकले उड़नछल्लो, इतना जान लो कि वह साल दूसरा था, यह साल दूसरा है। वह जमाना दूसरा था, यह मिजाज दूसरा है।

क्या तुम जानते हो कि उस हारी हुए बीजेपी नीत राजग सरकार के दौरान भाजपा का अध्यक्ष कौन था? लेकिन अभी का तो पता ही है न कौन है… जो तड़ीपार भी रहा है और जेल में भी रहा है, सुनने में तो यह भी आता है कि वह (पॉलिटिकल) एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भी है।

जब वाजपेयी सरकार गई तो उस वक्त अटल जी का घुटनों का ऑपरेशन हो चुका था, वे ठीक से चल भी नहीं पाते थे, उनको प्राइममिनिस्टरशिप जीवन के ऐसे कालखंड में मिली जब उनका शरीर लगभग निढाल हो चुका था, वे अपने रोजमर्रा के कार्यों के लिए ही नहीं बल्कि राजनीतिक निर्णयों के लिए भी आडवाणी, प्रमोद महाजन, जॉर्ज फर्नांडीज जैसे सहयोगियों पर निर्भर हो चुके थे।

लेकिन अभी का जो नेता है उसका दिल, दिमाग और घुटना एकदम ठीक और ठिकाने पर हैं, और यही वजह है कि वह हवाई जहाज की खड़ी सीढ़ियों को भी दौड़ते हुए चढ़ जाता है।

अटल जी, भौतिक रूप से बेशक भाजपाई और संघी थे, लेकिन अंतरात्मा से प्योर नेहरूवियन ही थे, क्योंकि उन्होंने अपनी राजनीति का ककहरा नेहरु के दौर में ही सीखा था, और उनके व्यक्तित्व पर नेहरु के उस आशीर्वाद की छाप और कृतज्ञता भी सदैव रही, जब नेहरू ने संसद में युवा अटल के एक दिन देश का पीएम बनने की बात कही थी।

लेकिन अभी का जो पीएम है, वह बहुत ही बदमिजाज है और ठेठ है। उसे नेहरू की अंग्रेजियत, गुलाबियत, बौद्धिकता और गुटनिरपेक्षता जैसे ढकोसले कतई आकर्षित नहीं करते, बल्कि अगर भारत के 70 साल के इतिहास में किसी पीएम ने नेहरूवाद को जूते की नोंक पर रखा है तो वह मोदी ही है।

वाजपेयी जहाँ कवि, लेखक, पत्रकार, चिंतक, विचारक और पारिवारिक टाइप व्यक्ति थे, वहीं मोदी इन सबके उलट एक उत्कृष्ट दर्जे के ट्रोलर हैं। वाजपेयी जहाँ भाषा की मर्यादा के पीछे संसद और बाहर घंटों बोल सकते थे, वहीं मोदी अपनी बात ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ से शुरू करते हैं तो शहजादे, मैडम सोनिया और इटली वाले मामा पर खत्म करते हैं।

वाजपेयी सरकार का जब पतन हुआ तो उस समय सोनिया गाँधी लोगों के लिए एक तुरुप का पत्ता थीं, जिनका चलना बाकी था और लोगों ने सोनिया गाँधी वाली कॉन्ग्रेस पर दाँव लगा दिया था। आज जब मोदी फिर से पीएम पद के इम्तिहान में बैठने वाले हैं तब सोनिया ही नहीं बल्कि इटली की पूरी बटालियन खत्म हो चुकी बाजी और फुँक चुका ट्रांसफार्मर है।

अटल जी को जब उनके विकास कार्यों के लिए ‘पुरस्कृत’ करके देश की जनता ने दिल्ली की सत्ता से बेदखल किया तब कॉन्ग्रेस ही नहीं बल्कि तीसरा मोर्चा भी वैकल्पिक राजनीति का एक मजबूत आधार था, जहाँ कई दिग्गज, क्षत्रप और कद्दावर नेता गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेसी सरकार को साकार करने की स्थिति में थे। लेकिन आज तीसरे मोर्चे के नाम पर विरासत की राजनीति के पापा’ज़ बॉय तेजस्वी, अखिलेश, जयंत चौधरी और खुर्राट ममता बनर्जी तथा कहीं की न रहीं मायावती ही बची हुई हैं।

इसलिए ‘शाइनिंग इंडिया अस्त्र’ से मोदी के राजनीतिक जीवन का खात्मा देखने वालों को इस खुशफहमी से बाहर आ जाना चाहिए। आपको पता है उत्तर प्रदेश में हाथ से निकल चुके अपना दल को कौन वापस लेकर आया है? उत्तर प्रदेश भाजपा के सह-प्रभारी गोर्धन झडफिया, जो बीते कई वर्षों से मोदी और अमित शाह के एंटी रहे, लेकिन मोदी जी उनको वापस ले कर आए कि आप काम करो, और पूरी आजादी के साथ करो। पूर्वोत्तर में एनआरसी के मुद्दे को ठन्डे बस्ते में डाल कर असम गण परिषद् सहित अन्य क्षेत्रीय दल फिर से बीजेपी के साथ जुड़ चुके हैं।

जिन संजय जोशी के सहारे बीजेपी के भीतर और बाहर, लोग मोदी विरोध की राजनीति करते थे, मोदी ने उनको भी इन चुनावों में काम पर लगा दिया है और इसलिए जितनी भीड़ इन दिनों भाजपा मुख्यालय में दिखती है उतनी ही भीड़ संजय जोशी के घर पर भी होने लगी है।

बात को लम्बा खींचने से कोई मतलब नहीं हैं जबकि लब्बोलुआब यही है कि मोदी….वाजपेयी नहीं हैं। वाजपेयी जहाँ क्रिएटिव थे वहीं मोदी डिस्ट्रक्टिव हैं, बेशक इसके मतलब कुछ भी निकालते रहिये। वाजपेयी मर्यादा की एलओसी थे, वहीं मोदी आधी रात को घर में घुस कर मारने में यकीन रखते हैं। इसलिए पहले 56 इंच और अब चौकीदार के नाम से रंग-बिरंगे लेख लिखने वालों को मेरी यही सलाह है कि काम बेशक यही करो लेकिन पेस धीमा कर लो, क्योंकि अगले पाँच साल भी यही करना है।

हिन्दूफोबिक ट्वीट करते पकड़ा गया IFCN-सर्टिफाइड इंडिया टुडे

डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार कहा था, “तथ्य सही हैं, लेकिन खबर फ़र्ज़ी है”। मशहूर सांख्यिकीविद नासिम निकोलस तालेब ने अपनी किताब ‘स्किन इन द गेम’ में इसको समझाते हुए एक पूरा अध्याय भी लिखा है। और, आज महान फैक्ट चेकर इंडिया टुडे ने इसकी ताज़ा नज़ीर हमारे सामने प्रस्तुत की।

केरल सरकार के आर्थिक व सांख्यिकीय विभाग द्वारा प्रकाशित 2017 के मातृत्व आँकड़ों के अनुसार वहाँ आज भी बाल-विवाह अति-प्रचलित है। 15-19 आयु-वर्ग में माँ बनने वाली किशोरियों में तीन-चौथाई से ज़्यादा विशेष सम्प्रदाय से हैं। पर भला मजहब विशेष को असहज कर देने वाली बात कैसे कही जा सकती है? ‘ऊपर’ जवाब भी तो देना होता है!

फिर राज्य भी तो केरल है- वामपंथियों का आखिरी किला, जिसकी शत-प्रतिशत साक्षरता दर के पीछे कन्नूर में पनप रहे इस्लामिक कट्टरपंथ और जिहाद, कम्युनिस्टों द्वारा किलो के भाव संघ के स्वयंसेवकों के कत्ले-आम, सबरीमाला और पद्मनाभस्वामी आदि मंदिरों की संपत्तियों और परम्पराओं पर हमले जैसे सौ ऐब छुपाए जाते हैं।

पत्रकारिता के स्पिन गेंदबाज़ों ने यह ट्वीट किया:

ध्यान से देखिए इस ट्वीट और इस लेख की फीचर्ड इमेज को। तीन-चौथाई से ज़्यादा बाल-विवाह हो रहे हैं मजहब विशेष में, और चित्र लगा है हिन्दू बच्ची का। पता है कि 90 प्रतिशत जनता पढ़ने-लिखने की आदत खो चुकी है, और सोशल मीडिया जनित पूरी खबर न पढ़ने के दौर में ‘सही’ हेडलाइन लगा कर मनमुताबिक हवा बनाई जा सकती है।

यह उसी वैचारिक गिरोह के लोग हैं जिन्हें भारत का हिन्दू उद्गम मानने में साँस लेने में समस्या होने लगती है, जिन्हें केन्द्रीय विद्यालय में ‘असतो मा सद्गमय’ सिखाना ‘हिंदुत्व थोपना’ बनकर माइग्रेन का अटैक देने लगता है, पर विशेष समुदाय के नकारात्मक पहलू को छुपाने के लिए हिन्दू प्रतीकों को जेनेरलाइज़ कर ‘भारतीय’ बना देने में कोई दिक्कत नहीं है।

स्वराज्य ने दी सही तस्वीर (pun certainly intended)

इसके उलट ‘मोदी का मुखपत्र’ कहला कर छद्म-उदारवादी साम्यवादी गैंग से दिन-रात गाली खाने वाली स्वराज्य मैगज़ीन ने न इसे बेबात का सनसनीखेज़ बनाने की कोशिश की और न ही असली ‘तस्वीर’ पेश करने से संकोच।

पत्रकार शेफ़ाली वैद्य ने पकड़ा  

लेखिका व स्तंभकार शेफ़ाली वैद्य ने दोनों के स्क्रीनशॉट्स डालते हुए दिखाया कि कैसे तथ्य को तथ्य की तरह बयान करने की जगह इंडिया टुडे ने स्टोरी को विपरीत दिशा में घुमाने की कोशिश की।

जबरन मतान्तरण व मॉब लिंचिंग के शिकार होते पाकिस्तानी ईसाई, जड़ में है ईशनिंदा कानून

पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून एक ऐसा ख़तरनाक हथियार बन कर उभरा है, जिसका दुरूपयोग कर वहाँ का हर आदमी किसी दूसरे धर्म के लोगों से हुई निजी प्रतिद्वंदिता या लड़ाई-झगड़े को इस्लाम बनाम अन्य का रूप दे सकता है। पाकिस्तानी हिन्दुओं व सिखों की बात करने के साथ-साथ हम पाकिस्तानी ईसाईयों की भी बात करेंगे, जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हैं और इस्लामिक क़ानून की गलत धाराओं का शिकार होते रहे हैं।

अगर हम पाकिस्तान का इतिहास और अल्पसंख्यकों की बात करें तो आज़ादी के दौरान गुज़रे कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो पाकिस्तान में ये स्थिति तब नहीं थी, जो आज है। 1971 में पाकिस्तान खंडित हुआ और भारत की मदद से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाक सेना के बर्बर अत्याचार से मुक्ति मिली। पाकिस्तान में रह रहे बाकी अल्पसंख्यक भी वहाँ से निकल लिए। जो बचे-खुचे रह गए, उनकी रक्षा करने में भी वहाँ का शासन असमर्थ साबित हुआ और उन पर अत्याचार और बढ़ते चले गए। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि 1971 के बाद का जो पाकिस्तान है, वहाँ अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह नहीं बची और तरह-तरह के नियम-क़ानून बना कर उन्हें प्रताड़ित करना तेज़ कर दिया।

पाकिस्तान में ईसाईयों की स्थिति समझने के लिए हमें लगभग 6 वर्ष पीछे जाना पड़ेगा। 22 सितंबर 2017 को पेशावर के क्वेटा स्थित ऑल सेंट्स चर्च में इस्लामिक आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया। यह कोई छोटा-मोटा हमला नहीं था। इसमें 127 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा और 250 से भी अधिक गंभीर रूप से घायल हुए। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी तालिबान ने ली थी। ये पाकिस्तान में ईसाईयों पर हुए सबसे ख़ूनी हमलों में से एक है। आतंकियों ने दावा किया कि ईसाईयों व अन्य धर्मों के लोगों पर ऐसे आतंकी हमले होते रहेंगे क्योंकि पाकिस्तानी इसे मुस्लिमों के दुश्मन हैं। बाद में इस हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी समूह जुंदाल्ला से तालिबान ने पल्ला झाड़ लिया। इस हमले के बाद कई पाकिस्तानी ईसाईयों ने डर के मारे चर्च जाना ही छोड़ दिया। इस हमले के बाद भी ऐसे कई हमले हुए।

आज से ठीक 4 वर्ष पहले 15 मार्च 2015 में लाहौर स्थित रोमन कैथोलिक चर्च पर आतंकी हमला हुआ। हमेशा की तरह ये हमले इस्लामिक चरमपंथी आतंकियों द्वारा किए गए थे। मजे की बात तो यह कि इस हमले के आरोप में गिरफ़्तार तालिबानियों के भारत से कनेक्शन बताए गए। कहा गया कि उन्हें भारत से वित्तीय सहायता मिली थी। भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता की स्थिति यह है कि यहाँ बलात्कार के आरोपी पादरी को भी भीड़ द्वारा सर-आँखों पर बिठाया जाता है और उस पर आरोप लगाने वाली ननों पर चर्च कार्रवाई करता है (जो कि गलत है)। पाकिस्तान में ईसाईयों पर हो रहे अत्याचारों की यह एक बानगी भर है। असली अत्याचार तो उन पर हो रहा है जो मरने से पहले भी हज़ार बार मरते हैं। पाकिस्तान के 2% ईसाई वहाँ की जनसंख्या का एक बहुत ही छोटा भाग हैं। प्रतिशत के मामले में भारत में सिखों की जनसंख्या (1.7%) इस से कम है। भारत में सेना से लेकर शासन तक सिखों का अहम योगदान रहा है और वे लगभग सभी विभागों में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काबिज़ हैं।

वैसे, इस मामले में भारत और पाकिस्तान की तुलना बेमानी है। जहाँ भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है वहीं ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान’ एक इस्लामिक देश है जो सभी धर्मों को स्वतन्त्रता देने का झूठा दावा करता रहा है। पाकिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जिसका बँटवारा मज़हब के आधार पर हुआ था। अभी-अभी ख़बर आई है कि इस्लामिक नियम-कानूनों की आड़ में पाकिस्तान में धीरे-धीरे अल्पसंख्यकों को साफ़ किया जा रहा है। यूरोप में रह रहे पाकिस्तानी ईसाईयों ने पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून की आड़ में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनकर घर की लड़कियों को ईशनिंदा क़ानून की आड़ में अपहृत कर के इस्लाम में धर्मान्तरण कर दिया जाता है। आर्टिकल 295C के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराते हुए उन्होंने बताया कि व इस से नाख़ुश हैं क्योंकि इसका बड़े तौर पर दुरूपयोग हो रहा है। उन्होंने इसे एक ख़तरनाक क़ानून करार दिया।

प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों ने कहा कि पाकिस्तान में ईसाईयों का धीमे-धीमे नरसंहार किया जा रहा है। उनका यह डर बेजा नहीं है। ‘United States Commission On Religious Freedom’ की वार्षिक रिपोर्ट 2018 में भी कहा गया है कि पाकिस्तान में नॉन-मुस्लिमों के घर की लड़कियों व महिलाओं का जबरन धर्मान्तरण एक आम बात है। रिपोर्ट में कहा गया है कि धारा 295 व 298 के अंतर्गत ईशनिंदा के तहत अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जा रहा है। अकेले 2011 से 2017 के बीच 100 से अधिक लोगों पर ईशनिंदा के तहत कार्रवाई की गई और उनमे से 40 ऐसे हैं, जिन्हे मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है।

लाहौर चर्च हमले के बाद मृतकों के परिवार वालों की बुरी हालत

ये लोग जेल में बंद न्यायालय अंतिम वर्डिक्ट का इन्तजार करते रहते हैं। अमेरिका की रिपोर्ट में कहा गया है कि पड़ोसी के साथ हुए झगड़े, कार्यस्थल पर हुए झगड़ों से लेकर निजी लड़ाई तक में ईशनिंदा का दुरूपयोग किया जाता है। कई मामलों में तो मुद्दे को अदालत तक पहुँचने ही नहीं दिया जाता, भीड़ ही निर्णय ले लेती है। ऐसे मामलों में भीड़ का निर्णय मृत्युदंड होता है। मॉब लॉन्चिंग की इन घटनाओं में बेचारे अल्पसंख्यक मारे जाते हैं। ईशनिंदा का मामला होने के कारण सरकार भी दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने से डरती है।

अब हम आपको ईशनिंदा क़ानून के उस पहलू से परिचित कराने जा रहे हैं, जो पाकिस्तान के पिछड़ेपन का भी कारण बनता जा रहा है। इसकी पूरी प्रक्रिया को यूँ समझिए। मुस्लिम समाज में तीन तलाक़, बालविवाह, धर्मान्तरण से लेकर कई सामाजिक कुरीतियाँ हैं। पाकिस्तान की सेना आतंकियों के साथ मिल कर कई साज़िशें रचती रहती है। हर समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो गलत के ख़िलाफ़ आवाज उठाते हैं। समाज में ऐसे भी जागरूक व्यक्ति होते हैं जो अपनी सेना या सरकार को गलत रास्ते पर चलते देख उन्हें सचेत करते हैं। ये कार्य सामाजिक आंदोलन चला कर किए जाते हैं, डिजिटल मीडिया द्वारा ब्लॉग लिख कर किए जाते हैं या न्यूज़ चैनलों पर अपनी राय रख कर भी किए जा सकते हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि पाकिस्तान में ऐसे समाजसेवियों या जागरूक व्यक्तियों के साथ क्या किया जाता है? उन पर ईशनिंदा का क़ानून थोप कर उन्हें ही समाज से अलग-थलग कर दिया जाता है। अमेरिका की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र करते हुए कहा गया है कि ऐसे व्यक्तियों के पास पाकिस्तान छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचता, भले ही वे अदालत से निर्दोष ही क्यों न साबित हो गए हों।

अगर आपको इस बारे में कोई भी शक हो तो एक उदाहरण लेते हैं, जिसके बाद आपको पूरा माजरा समझ में आ जाएगा। जुनैद हफ़ीज़ पाकिस्तान के एक प्रोफेसर हैं। मुल्तान स्थित बहाउद्दीन जकारिया यूनिवर्सिटी में महिलाधिकारों को लेकर एक सम्मलेन आयोजित करने की सजा उन्हें ईशनिंदा क़ानून का आरोपित बनाकर दी गई। इसका अर्थ यह हुआ कि पाकिस्तान के शैक्षणिक संस्थान भी इस से अछूते नहीं हैं। आधुनिक विचारों व प्रगतिशील कार्यों के लिए वहाँ कोई जगह नहीं है। जुनैद हाफिज के वकील राशिद रहमान को उनके दफ़्तर में ही मार दिया गया। जब पाकिस्तान में मानवाधिकार की बात करने वाले मुस्लिमों व सामाजिक कार्यकर्ताओं तक पर भी ईशनिंदा क़ानून थोप दिया जाता है तो अल्पसंख्यकों की हालत आप समझ ही सकते हैं। इसी तरह छात्र समाजिक कार्यकर्ता मशाल ख़ान को दिन-दहाड़े मार डाला गया। उन्हें मारने वाले कोई आतंकी नहीं थे बल्कि छात्रों व यूनिवर्सिटी प्रशासन की भीड़ थी।

आशिया बीबी मामले के बारे में आपको पता ही होगा। आठ वर्षों तक झूठे ईशनिंदा के आरोप में जेल में बंद अपनी रिहाई का इन्तजार कर रही इसे महिला आशिया को पाकिस्तानी अदालत ने फाँसी की सज़ा सुनाई थी। आम झगड़े का मामला ईशनिंदा बन गया और उनकी ज़िंदगी का लगभग एक दशक बर्बाद हो गया, प्रताड़ना झेलनी पड़ी सो अलग। उनकी तरफ से बोलने पर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज़ भाटी और पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की ह्त्या कर दी गई। ईशनिंदा क़ानून का कुचक्र इतना व्यापक है कि पाकिस्तान सरकार के मंत्री और राज्यपाल तक को नहीं छोड़ा गया। शाहबाज़ भाटी पाकिस्तान के तत्कालीन मंत्रिमंडल में एकमात्र ईसाई सदस्य थे। वे पाकिस्तान के पहले अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे। जब बड़े-बड़े पदों पर बैठे नेताओं तक की हालत यह है तो आम ईसाईयों की व्यथा समझी जा सकती है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान में अधिकतर ईसाई वही लोग हैं जिन्हे ब्रिटिश राज के दौरान धर्मान्तरित किया गया था। उस दौरान ग़रीब हिन्दुओं को ईसाई बनाना आसान हुआ करता था। जाती प्रथा की आड़ में अपनी सरकार के बैनर तले मिशनरीज ने निर्धन हिन्दुओं को ईसाई बनाया। लेकिन, तब भी उनकी सामाजिक हालत वही रहीव् आज भी पाकिस्तान स्थित पंजाब में अधिकतर ईसाई ग़रीब हैं और मज़दूरी कर के अपना घर-परिवार चलाते हैं। ब्रिटिश राज के समय गोवा से कराँची आकर बेस ईसाई ज़रूर अमीर है लेकिन उनकी संख्या बेहद कम है। पाकिस्तान के सेंट्रल पंजाब स्थित गोजरा शहर में कई ईसाईयों के घर जला डाले गए। 50 के आसपास घरों में आग लगा दी गई जिनमे महिलाएँ व बच्चे मारे गए थे। पुलिस भी आतताइयों का ही साथ देती है।

ख़ुद पाकिस्तान के तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज़ भाटी ने कहा था कि उन्होंने घटना के कुछ दिन पहले ही गोजरा शहर पहुँच कर स्थानीय प्रशासन से ईसाईयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा था। साथ ही उन्होंने स्थानीय पुलिस पर हत्यारों का साथ देने का भी आरोप लगाया। इन घटनाओं का सीधा अर्थ यह निकलता है कि आप पाकिस्तान में चाहे जहाँ भी रहें, अगर आप अल्पसंख्यक हैं तो आपको इस्लामिक कट्टरपंथियों का कोपभाजन बनना पड़ेगा। इसी तरह 2005 में फैसलाबाद में ईसाई विद्यालयों व चर्चों को जला दिया गया था। ईसाई पाकिस्तान में न चर्च में सुरक्षित हैं और न घर में। उनके बच्चे स्कूलों में भी सुरक्षित नहीं हैं। एक ईसाई चैरिटी के 6 कार्यकर्ताओं को उनके दफ़्तर में ही मार डाला गया।

तालाब का गंदा पानी पीने को मजबूर थे लोग, 70 साल के दैत्री नायक ने बदली गाँव की क़िस्मत

शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उड़ीसा के समाजसेवी दैत्री नायक को देश के चौथे बड़े सम्मान पद्म श्री अवॉर्ड से सम्मानित किया। बता दें कि 70 साल के दैत्री नायक उड़ीसा के कोइन्झर ज़िले के बैतरणी गाँव के निवासी हैं। ये गाँव बांसपाल ब्लॉक के अंतर्गत आता है।

बांसपाल ब्लॉक के साथ साथ आस पास के तेलकोई और हरिचंदपुर ब्लॉक के लोग भी पानी की समस्या से जूझ रहे थे। यहाँ पर पीने के पानी और सिंचाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। पानी से संबंधित किसी भी काम के लिए लोगों को बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता था। पहाड़ी इलाका होने की वजह से सरकारी तंत्र के लिए भी यहाँ पर पानी की व्यवस्था कर पाना काफी मुश्किल हो रहा था। जिससे लोग काफी परेशान थे, मगर कुछ कर नहीं पा रहे थे।

सभी लोग हार मानकर परिस्थिति के साथ समझौता करने पर विवश हो गए। जब ग्रामीणों ने इसे ही अपनी किस्मत मान ली, तब 70 वर्षीय दैत्री ने इस समस्या को हल करने का बीड़ा उठाया। दैत्री ने गाँव की किस्मत को बदलने की ठान ली। पथरीली जमीन होने के बावजूद दैत्री ने अपने परिवार के साथ नहर बनाने का काम शुरू किया। पानी के इंतजाम के लिए दैत्री ने तीन साल तक पहाड़ों को तोड़ा और खुदाई की। इस दौरान दैत्री का परिवार पत्थर हटाने में उसकी मदद करता था। दैत्री ने तीन साल तक लगातार मेहनत करने के बाद गाँव में एक किलोमीटर लंबी नहर खोद डाली। इससे गाँव के लोगों के पानी की समस्या खत्म हो गई।

दैत्री नायक के इस साहसिक कार्य के बाद उन्हें ‘उड़ीसा का मांझी’ भी कहा जाने लगा। आपको बता दें कि दशरथ मांझी ने अपने गाँव में सड़क की समस्या को दूर करने के लिए पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया था। वो बिहार में गया के पास के गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे। उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट उँचे पहाड़ को काट कर एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद दशरथ ने इस सड़क को बनाया। उनकी बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी को 55 किमी से 15 किमी कर दिया।

दैत्री के द्वारा नहर बना दिए जाने से अब लोगों को पानी की समस्या से छुटकारा मिल गया है। पहले तो लोगों को मजबूरी में तालाब का गंदा पानी पीना पड़ता था। जिससे लोग काफी बीमार भी पड़ते थे। दैत्री से गाँव के लोगों की ये परेशानी देखी नहीं गई और उन्होंने गाँव के लिए वो कर दिखाया, जिसे करने में सरकार भी सफल नहीं हो पा रही थी। दैत्री के इस कार्य से उड़ीसा के सीएम नवीन पटनायक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके घर जाकर उनके साहस और कर्मठता को सराहा।

टुकड़े-टुकड़े गैंग के सरगना उमर ख़ालिद का पिता पश्चिम बंगाल से चुनाव लड़ने की तैयारी में

JNU के अल्ट्रा-लेफ्ट विंग के सरगना उमर ख़ालिद के पिता सैयद क़ासिम रसूल इलियास पश्चिम बंगाल की जंगीपुर सीट से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की पूरी तरह तैयारी में है। इलियास प्रतिबंधित आतंकी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया (SIMI) का पूर्व सदस्य है, जिसे 2001 में प्रतिबंधित कर दिया गया था।

ख़बरों के मुताबिक़, इलियास मुर्शिदाबाद ज़िले की मुस्लिम बहुल सीट जंगीपुर सीट से वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया (WPI) के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। यह सीट पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत के पास थी। 2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र की आबादी का 61.79% है।

सिमी के पूर्व सदस्य इलियास ने मुख्य रूप से मुर्शिदाबाद के लोगों की बिगड़ती हालत का हवाला देते हुए कहा, “सात से आठ लाख लोग इस क्षेत्र से कोलकाता चले गए हैं बावजूद इसके यहाँ रोज़गार के अवसर बहुत कम हैं। जंगीपुर में अच्छी गुणवत्ता वाले जूट का उत्पादन होता है, लेकिन उन्हें स्थानीय स्तर पर संसाधन युक्त नहीं किया जा पाता और इसलिए लोगों को कोलकाता जाना पड़ता है। मैं अपने अभियान में ऐसे मुद्दों को उजागर कर रहा हूँ।”

वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया को मुख्य रूप से दलित और अल्पसंख्यक मुद्दों को उठाने के लिए जाना जाता है। जबकि वाम मोर्चे ने अपनी सीट-बँटवारे की व्यवस्था के अनुसार जंगीपुर सीट कॉन्ग्रेस को दे दी है, लेकिन WPI मुस्लिम वोटों को काटने में अपनी अहम भूमिका निभा सकती है।

दिलचस्प बात यह है कि, इलियास ने भारतीय चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनने का फैसला ऐसे समय में किया है जब उसका बेटा उमर ख़ालिद, जो ‘ब्रेकिंग-इंडिया’ ब्रिगेड का हिस्सा होने के साथ-साथ ‘भारत तेरे टुकडे़ होंगे, इंशाल्लाह इंशाल्लाह चिल्लाने, ‘अफ़ज़ल हम शर्मिंदा है, तेरे क़ातिल ज़िंदा है’ जैसे देशद्रोह के नारे लगाने का दोषी है और उस पर देशद्रोह के आरोप भी लगे हैं। 1200 पेज़ की चार्जशीट में कथित तौर पर उसके नाम का उल्लेख है जिसमें JNU के अध्यक्ष कन्हैया कुमार, उमर ख़ालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य शामिल थे।

लोकसभा चुनाव 2019 : बिहार में NDA ने सीटों के बँटवारे का किया ऐलान

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए NDA ने बिहार के लिए 40 सीटों के बँटवारे की घोषणा कर दी है। सीटों के इस बँटवारे से यह साफ़ हो गया है कि बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी किन सीटों से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। बता दें कि लोक जन शक्ति पार्टी नवादा के संसदीय क्षेत्र से ही चुनाव लड़ेगी।

आइये सीटों के बँटवारे पर एक नज़र डालते हैं, जो इस प्रकार हैं :

भारतीय जनता पार्टी

  • पटना साहिब
  • पाटलीपुत्र
  • सारण
  • आरा
  • बक्सर
  • औरंगाबाद
  • मधुबनी
  • बेगुसराय
  • उजियारपुर
  • पूर्वी चंपारण
  • शिवहर
  • दरभंगा
  • पश्चिम चंपारण
  • मुजफ्फरपुर
  • अररिया
  • महाराजगंज
  • सासाराम

जनता दल यूनाइटेड

  • सुपौल
  • किशनगंज
  • कटिहार
  • गोपालगंज
  • सीवान
  • भागलपुर
  • सीतामढ़ी
  • जहानाबाद
  • काराकाट
  • गया
  • पूर्णिया
  • मधेपुरा
  • बाल्मिकीनगर
  • मुंगेर
  • बांका
  • झांझरपुर
  • नालंदा

लोकजन शक्ति पार्टी

  • वैशाली
  • हाजीपुर
  • समस्तीपुर
  • खगड़िया
  • नवादा
  • जमुई

पिछले काफी समय से यह उम्मीद लगाई जा रही थी कि नवादा सीट एलजेपी के खाते में ही जा सकती है। सीटों के इस बँटवारे से अब यह बात स्पष्ट हो गई है। वहीं भागलपुर की सीट जेडीयू के हिस्से आई है और इसी के साथ शाहनवाज़ हुसैन के चुनाव लड़ने की स्थिति पर सवालिया निशान अभी भी बरक़रार है। इससे पहले 2014 के चुनाव में शाहनवाज़ हुसैन को इसी सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।

कीर्ति आज़ाद के पार्टी छोड़ने के बाद भी पटना सीट को बीजेपी ने अपने पाले में रखा हुआ है। वहीं शत्रुघ्न सिन्हा के चुनाव लड़ने पर भी संशय बना हुआ है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी इस सीट पर अपना कोई नया उम्मीदवार उतारेगी। इसके अलावा बीजेपी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि बिहार कोटे से पाँचो केंद्रीय मंत्री चुनाव लड़ेंगे।

जानकारी के अनुसार, बिहार में बीजेपी और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और एलजेपी के हिस्से में 6 सीटें आई हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में NDA ने बिहार की 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन उस समय जेडीयू का एनडीए से किसी प्रकार का गठबंधन नहीं था। अबकी लोकसभा चुनाव-2019 में बीजेपी ने जेडीयू के साथ सीटों के बँटवारे पर सहमति बनाने के लिए अपनी जीती हुई 5 सीटें छोड दी हैं।

42 वर्षों से मथुरा में गोसेवा कर रही जर्मन मूल की सुदेवी गोवर्धन को पद्मश्री

जर्मन महिला फ्रेड्रिन इरिन ब्रूनिंग उर्फ़ ‘सुदेवी दासी गोवर्धन’ को केंद्र सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। सुदेवी राधाकुंड धाम में विगत 42 वर्षों से गौसेवा कर रहीं हैं। बीमार और असहाय गायों की सेवा करने के कारण उन्हें ‘गायों की मदर टेरेसा’ भी कहा जाता है। उन्हें पद्म सम्मान मिलने का समाचार पाकर स्थानीय निवासी भी ख़ुश हुए और गौशाला पहुँच कर उन्होंने सुदेवी को माला पहनाकर सम्मानित किया। उन्हें शनिवार (मार्च 16, 2019) को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

पाँच बीघा के क्षेत्र में फैले सुरभि गौशाला का संचालन कर रही सुदेवी ने 1,500 से भी अधिक गायों को पाल रखा है, जिनकी वह लगातार देखभाल करती हैं। इन गायों में से अधिकतर बीमार, नेत्रहीन या अपाहिज हैं। इनमें से 52 गायें नेत्रहीन है जबकि 350 पैरों से अपाहिज है। उनके पैरों की नियमित मरहम-पट्टी की जाती है। सुदेवी के अनुसार, जब मंत्रालय द्वारा उन्हें पुरस्कार मिलने की जानकारी दी गई, तब उन्हें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। फिर स्थानीय निवासियों ने उन्हें इस से अवगत कराया। ये तब की बात है, जब सरकार ने उन्हें पद्मश्री देने की घोषणा की थी।

अपने माता-पिता की इकलौती संतान फ्रेड्रिन 42 वर्ष पहले भारत भ्रमण पर आई थी। इस दौरान उन्होंने ब्रज आकर श्रीकृष्ण के भी दर्शन किए। कृष्ण-भक्ति ने उन्हें अपनी तरफ ऐसा खींचा कि उन्होंने भारत में रहने की ठान ली। ब्रज में उन्होंने एक गाय भी पाल रखी थी, जिसके बीमार होने के बाद उन्होंने उसकी काफ़ी देखभाल की। इसके बाद वह जहाँ भी बीमार गाय देखती, उसकी देखभाल और सेवा में लग जाती। इसके बाद तो जैसे उन्होंने गोसेवा को ही अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने अपना पूरा जीवन ही गोसेवा को समर्पित कर दिया।

सुदेवी के पिता तीस वर्ष पहले तक दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास में कार्यरत थे। इकलौती संतान होने के कारण उन्होंने पिता से मिलने वाली सारी धनराशि को गोसेवा में ही ख़र्च किया। उनकी गौशाला में गायों के लिए एक स्पेशल एम्बुलेंस भी है। अगर किसी गाय की मृत्यु निकट आ जाए और उसके बचने की कोई संभावना न रहे, तब सुदेवी उसे गंगाजल का सेवन कराती है। मरणोपरांत गायों के शरीर का अंतिम संस्कार भी पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है।

सुदेवी बताती हैं कि गायों की सेवा में हर महीने ₹35 लाख तक ख़र्च होते हैं। गायों का इलाज डॉक्टरों द्वारा करवाया जाता है। सुदेवी दानदाताओं और जर्मनी से आने वाले रुपयों की मदद से इस गौशाला का संचालन कर रहीं हैं। सुरभि गौशाला में 70 से 80 कर्मचारी कार्यरत हैं। किराए की भूमि पर गौशाला चला रहीं सुदेवी को उम्मीद है कि उन्हें इस पुरस्कार के मिलने के बाद गौशाला के लिए भूमि उपलब्ध कराई जाएगी। साथ ही, उन्होंने इस बात की भी उम्मीद जताई कि अब गोसेवा के रास्ते में आने वाली अड़चनें दूर होंगी।

सुदेवी ने बताया कि अगर गौशाला के लिए उन्हें भूमि मिल जाती है तो मासिक किराए में ख़र्च हो रहे रुपयों की बचत होगी और उसका उपयोग गौसेवा में किया जाएगा। हाल ही में जब उनके वीजा की अवधि समाप्त हो गई थी तब उन्होंने मथुरा की सांसद हेमा मालिनी से लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तक के दरवाज़े खटखटाए थे। इसके बाद उन्हें वीजा मिल गया था। सुदेवी अविवाहित हैं और अभी भी एक झोपड़ी में ही रहती हैं। स्थानीय निवासियों ने उन्हें भारतीय नागरिकता देने की भी माँग की है।

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद सुमित्रा महाजन ने गाड़ियाँ और सुरक्षा लौटाई

लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा होने के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो गई है। इसी के मद्देनज़र लोकसभा स्पीकर और इंदौर से बीजेपी सांसद सुमित्रा महाजन ने सरकारी गाड़ियाँ और सुरक्षाकर्मी मध्य प्रदेश सरकार को वापस लौटा दिए हैं।

सुमित्रा महाजन ने इस बारे में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को एक पत्र भी लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि आगामी लोकसभा चुनावों के कारण 10 मार्च से पूरे देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। उन्होंने उसी दिन से इंदौर में सरकारी गाड़ियों का उपयोग करना बंद कर दिया था, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष के संवैधानिक पद पर अब भी उनके आसीन होने के कारण सुरक्षा गार्ड और पुलिस की गाड़ियाँ उनकी निजी गाड़ी के साथ चल रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने आगे लिखा कि इंदौर जैसे शांत और सुरक्षित शहर में उन्हें प्रोटोकॉल के तहत मिलने वाली इन गाड़ियों और सुरक्षाकर्मियों की आवश्यकता नहीं है। इसलिए वो इन सभी सुविधाओं का त्याग कर रही है।

हालाँकि अभी तक इंदौर लोकसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग की तरफ से कोई आधिकारिक सूचना जारी नहीं की गई है और सुमित्रा महाजन ने ये भी कहा कि उन्हें पता है कि अभी तक ना तो उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई घोषणा हुई है और ना ही उन्होंने चुनाव संबंधी कोई पर्चा भरा है। बता दें कि इंदौर में 19 मई को मतदान होना है।

दिल्ली BJP की माँग: चुनाव के दौरान मस्जिदों में नियुक्त हों विशेष पर्यवेक्षक ताकि मतदाता ‘भटक’ न जाएँ

भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई ने मुख्य चुनाव अधिकारी (CEO) से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मस्जिदों पर विशेष पर्यवेक्षकों को नियुक्त करने का आग्रह किया है। इसका उद्देश्य लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान मतदाताओं को मज़हबी आधारों पर प्रभावित किए जाने के प्रयास से बचाना है।

दिल्ली बीजेपी ने आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं पर मज़हबी आधारों पर मतदाताओं के धुव्रीकरण का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखकर मस्जिदों में विशेष पर्यवेक्षक नियुक्त करने की अपील की।

दिल्ली बीजेपी ने AAP पार्टी पर आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के सदस्यों द्वारा मज़हबी आधारों पर मतदाताओं को लगातार भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है, इसमें भड़काऊ भाषण और आधारहीन बयान भी शामिल हैं, इसलिए बीजेपी को इस तरह का पत्र लिखना पड़ा। अपने पत्र में बीजेपी ने ऐसे कई उदाहरण भी दिए जिसमें बताया गया कि AAP पार्टी द्वारा जनता को बरगलाने का काम किया जा रहा है। अपने पत्र में बीजेपी ने विधायक अमानतुल्लाह ख़ान के बयान का भी उल्लेख किया।

इसके अलावा बीजेपी का यह भी कहना है कि मस्जिदों के आस-पास दिए जाने वाले भाषण से मुस्लिम जनता नेताओं की नफ़रत का शिकार हो जाते हैं। इन परिस्थितियों में नेताओं के नफ़रत भरे भाषण मतदाताओं पर ग़लत प्रभाव छोड़ सकते हैं।

ख़ासतौर पर रमजान के महीने में इसकी आशंका अधिक है कि सम्प्रदाय विशेष को भड़काने के लिए मज़हब की राजनीति का इस्तेमाल किया जाए। अपनी इस चिंता को व्यक्त करते हुए चुनाव आयोग से अनुरोध किया गया है कि जल्द ही मस्जिदों में विशेष पर्यवेक्षक की नियुक्ति करें जिससे चुनावी माहौल में धर्म के नाम पर राजनीति न हो सके साथ ही किसी पार्टी और मज़हबी नेता द्वारा चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन भी न किया जा सके।