Wednesday, October 2, 2024
Home Blog Page 5512

झाड़ू के साथ लहराया था तिरंगा, केजरीवाल के ख़िलाफ़ FIR दर्ज

भारतीयों के लिए तिरंगा सिर्फ एक ध्वज नहीं है, यह एक भावना है। इसे देखकर इंसान के भीतर का राष्ट्रवाद स्वत: ही जागरूक हो उठता है। ऐसे में तिरंगे का अपमान शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा, जो झेल सकता है।

2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान केजरीवाल पर राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का मामला सामने आया था। इसमें याचिका दर्ज करने वाले की शिकायत थी कि आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्न ‘झाड़ू’ को तिरंगे के साथ में लहराया गया है। अब कोर्ट ने इस पूरे मामले पर दिल्ली के सीएम केजरीवाल तथा आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ FIR की अनुमति दी है।

मध्य प्रदेश के सागर जिले की एक अदालत ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पर FIR की अनुमति 5 साल पहले के पुराने मामले में दे दी है। इस याचिका को दर्ज करने वाले का नाम राजेंद्र मिश्र है। इनकी शिकायत है कि 2014 में लोकसभा के चुनावों के दौरान केजरीवाल के साथ उनकी पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को झाड़ू के साथ लहराया था।

राजेंद्र मिश्र ने झाड़ू के साथ राष्ट्रीय ध्वज को लहराने पर इसे राष्ट्रध्वज का अपमान बताया और कोर्ट में याचिका दर्ज की। इस आधार पर ही कोर्ट ने फैसला लिया। फिलहाल केजरीवाल या आम आदमी पार्टी के किसी भी नेता ने इस मामले पर कोई भी बयान नहीं दिया है।

आपको याद दिला दें 2016 में योग दिवस के दिन पीएम मोदी द्वारा तिरंगे को ओढ़ने पर उन्हें काफी ट्रोल किया गया था, जिसमें कई राजनैतिक दल भी शामिल थे। ट्रोलिंग में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी थे। अब सवाल यह है कि 2014 के इस मामले के दोबारा उजागर होने के बाद वही लोग क्या अपनी पार्टी और पार्टी के संयोजक केजरीवाल पर इस तरह के प्रश्न चिह्न लगाएँगे या फिर उनके समर्थन में सफाई पेश करेंगे।

’50 लाख बच्चों’ के पिता ‘वृक्ष मानव’ का 96 की उम्र में निधन

पर्यावरण को जीवन देने वाले, 8 साल की उम्र से पर्यावरण के प्रति समर्पित होने वाले, विश्‍वेश्‍वर दत्‍त सकलानी का 96 की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने अपना जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया। जब वो आठ साल के थे, तब उन्होंने पहला पौधा लगाया था। अंतिम सांस लेने तक परिवार के मुताबिक उन्होंने करीब 50 लाख पौधे लगाए।

पर्यावरण के प्रति उनके समर्पण भाव को इस बात से समझा जा सकता है कि उनके परिवार में चार बेटे और पाँच बेटियाँ थीं, लेकिन उनके बेटे संतोष की मानें तो वो हमेशा कहा करते थे,  “मेरे नौ बच्चे नहीं, 50 लाख बच्‍चे हैं, और मैं अब उन्‍हें जंगलों में तलाशा करूंगा।”

भाई और पत्नी की मृत्यु के बाद नहीं टूटे विश्‍वेश्‍वर

भाई और पत्नी के निधन के बाद विश्‍वेश्‍वर के लिए उनका दुख भूल पाना मुश्किल था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। मौत का दुख सहने के लिए पौधे लगाने लगे। और अंतिम साँस लेने तक उन्होंने पर्यावरण को सुरक्षित करना अपना ज़िम्मा समझा। विश्‍वेश्‍वर ने टिहरी-गढ़वाल में पर्यावरण की तस्वीर बदल दी और करीब 50 लाख पौधे लगाए। पत्नी की मृत्यु के बाद आई दूसरी पत्नी भी उनकी इस मुहीम में शामिल हो गईं और लोगों को पर्यावरण के महत्व को समझाने लगीं।

1986 में प्रधानमंत्री ने किया सम्मानित

1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी उनके इस कार्य से प्रभावित हुए। तब विश्‍वेश्‍वर को इंदिरा प्रियदर्शिनी अवार्ड से सम्‍मानित किया गया था। उनके बेट संतोष स्‍वरूप सकलानी कहते हैं, “उन्‍होंने करीब 10 साल पहले देखने की शक्ति खो दी थी। पौधे रोपने से धूल और कीचड़ आँखों में जाता था, जिससे उन्‍हें परेशानी होने लगी थी। पिता जी जब छोटे थे, तब से उन्‍होंने पौधे रोपना शुरू किया था।” संतोष कहते हैं, “1958 में माँ का निधन हो गया, इसके बाद वो पेड़-पौधों के और करीब हुए।”

विश्‍वेश्‍वर ने तैयार कर दिया एक घना जंगल

सकलानी का काम भले ही उत्तराखंड तक ही सीमित रहा हो, लेकिन अपने जिले में उन्होंने पर्यावरण को बचाने का काम बखूबी किया। सूरजगांव के आस-पास उन्‍होंने एक घना जंगल तैयार किया, हालाँकि अब वह तेज़ी से गायब हो रहा है। उनके बेट संतोष कहते हैं, “दुर्भाग्‍य से जंगल का बड़ा हिस्‍सा पिछले कुछ सालों में खत्‍म हो गया है क्‍योंकि लोगों को दूसरे कार्यों के लिए जगह चाहिए।”

गाय के गोबर से किया ऐसा काम, सरकार ने दे डाले 10 इनाम

कहा जाता है अगर क्षमता हो तो इंसान क्या नहीं कर लेता, साधारण मिट्टी से भगवान की मूरत बनाने वाला एक कारीगर, मूर्ति निर्माण करके न केवल अपनी कारीगरी को जीवंत करता है अपितु उस मिट्टी को भी पूजन योग्य बना देता है, जिसके ज़मीन पर पड़े रहने की वज़ह से लोग केवल उसे धूल समझते हैं।

अपनी क्षमता का विस्तार करते हुए कुछ ऐसा ही कारनामा गुजरात के आणंद जिले में आने वाले झरोखा गाँव के जयेश पटेल ने कर दिखाया है। अभी तक आपको गाय का गोबर सिर्फ उपला (कंडा) बनाने वाली चीज़ लगती होगी। लेकिन जयेश ने गोबर से वो सभी चीज़ें निर्मित की हैं, जिनके बारे में कोई आम सोच वाला व्यक्ति सोच भी नहीं सकता है।

पर्यावरण का ख़्याल रखते हुए जयेश ने गोबर की मदद से इकोफ्रेंडली गमले, प्लाईवुड और अगरबत्ती निर्मित की है, जिनकी बिक्री गुजरात में धड़ल्ले से हो रही है। जयेश आज के समय में न केवल गाय का दूध बेचकर पैसे कमा रहे हैं, बल्कि गाय के गोबर से कई प्रयोग करके भी वो मालामाल हो रहे हैं।

जयेश हमारे आज के समाज में एक प्रेरणा की तरह हैं, जो अपने कार्य से इस बात की शिक्षा देते हैं कि गाय कोई ऐसा जानवर नहीं है, जिसका लालन-पालन केवल दूध के लालच में किया जाए।

जयेश के पास एक या दो गाय नहीं है बल्कि 15 गाय है। वो बेहद खुलकर इस पर बात करते हुए कहते हैं कि वो पहले गाय का दूध बेचकर पैसे कमा रहे थे लेकिन अब वो गाय के गोबर के प्रयोग से और भी ज्यादा धनवान बनते जा रहे हैं।

जयेश को एक किलो गोबर से 10 रुपए मिलते हैं और रोज़ाना के हिसाब से वो पूरे 14 से 15 किलो गोबर बेचते हैं। अपने द्वारा किए जा रहे गोबर के साथ प्रयोगों से हटकर जयेश ने बताया कि यदि चाहें तो इससे जैविक खाद बनाकर ऊँचे दामों पर बेचा जा सकता है।

इसके अलावा जयेश ने बताया कि वो गाय के गोबर का अधिक से अधिक उपयोग करने की कोशिशें करते हैं। इसलिए उन्होंने गोबर को सुखाने की मशीन भी बनाई है।

इस मशीन में वो गाय के गोबर को पहले सुखाते हैं और फिर उसका पाउडर बनाते हैं। इस पाउडर से वो अलग-अलग प्रॉडक्ट बनाने का प्रयास करते हैं और जो नहीं बना पाते हैं, उसे वो कच्चे माल के रूप में बेच कर भी पैसा कमा लेते हैं। अपने इस अनोखे विचार के कारण जयेश को गुजरात सरकार द्वारा 10 अवार्ड भी दिया जा चुका है।

नागरिकता संसोधन बिल को ख़त्म करें: नॉर्थ ईस्ट नेताओं का गृहमंत्री से आग्रह

नॉर्थ ईस्ट की नेशनल पीपुल्स पार्टी, मिजो नेशनल फ्रंट समेत नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) की अन्य पार्टी के नेताओं ने राजनाथ सिंह से मिलकर नागरिकता संसोधन बिल को ठंडे बस्ते में डालने का आग्रह किया।

नागरिकता संसोधन बिल के मुद्दे पर राजनाथ सिंह से मिलने के लिए नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) के सात नेता दिल्ली पहुँचे थे। नेडा की तरफ से राजनाथ सिंह से मिलने आए नेताओं में मुख्य रूप से मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा, मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा और भाजपा नेता मित सिंह शामिल थे।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिलने आए नेडा के सभी नेताओं ने नागरिकता संसोधन बिल पर अपनी राय रखी। नेडा के नेताओं ने इस  मुद्दे पर नॉर्थ ईस्ट की जनता व सिविल सोसाइटी के लोगों की भावनाओं के बारे में भी गृहमंत्री को बताया।

नेडा के सात नेताओं में से ज्यादातर लोगों ने बिल के विरोध में अपनी राय रखी। उन्होंने देश के गृहमंत्री से कहा कि बिल पर हमें पुनर्विचार की जरूरत है। संगमा ने इस मीटिंग के बाद कहा कि नॉर्थ ईस्ट के ज्यादातर मुख्यमंत्री इस मसले पर एकमत हैं।

ऐसे में बेहतर होगा कि सरकार इस बिल पर पुनर्विचार करे। गृहमंत्री ने इस मुलाकात के बाद कहा कि हम जल्द ही नॉर्थ ईस्ट के सभी मुख्यमंत्रीयों के साथ बैठकर नागरिकता संसोधन बिल पर गहराई से बात करेंगे।

नागरिकता संसोधन विधेयक एक नज़र में

राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद से समझौता हुआ था कि 1971 के बाद असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों को निकाला जाएगा। 1985 के असम समझौते (ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ‘आसू’ और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता) में नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च 1971 थी। नागरिकता बिल में इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है। यानी नए बिल के तहत 1971 के आधार वर्ष को बढ़ाकर 2014 कर दिया गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई शरणार्थियों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर नागरिकता मिल जाएगी।

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य के अनुसार इस विधेयक से असम के स्थानीय समुदायों के अस्तित्व पर खतरा हो गया है। वे अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बन गए हैं। कैबिनेट द्वारा नागरकिता संशोधन बिल को मंजूरी देने से नाराज़ असम गण परिषद ने राज्य की एनडीए सरकार से अलग होने का ऐलान किया है।

यह संशोधन विधेयक 2016 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि ये विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा। इसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कुछ भी हो।

नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। भाजपा ने 2014 के चुनावों में इसका वादा किया था। कॉन्ग्रेस, तृणमूल कॉन्ग्रेस, सीपीएम समेत कुछ अन्य पार्टियाँ लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना और जेडीयू ने भी ऐलान किया था कि वह संसद में विधेयक का विरोध करेंगे। बिल का विरोध कर रहे बहुत से लोगों का कहना है कि यह धार्मिक स्तर पर लोगों को नागरिकता देगा। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी के अनुसार केंद्र के इस फैसले से करीब 30 लाख लोग प्रभावित होंगे। विरोध कर रही पार्टियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावनाओं के खिलाफ है। जबकि भाजपा नागरिकता बिल को पारित करके असम व दूसरे राज्यों में रहने वाले बाहरी लोगों को देश से बाहर निकालना चाहती ताकि नॉर्थ ईस्ट के मूल नागरिकों को किसी तरह से कोई समस्या न हो।

अप्रैल 2014 से 1.37 करोड़ ग्रामीण आवासों का निर्माण, लगभग 7 करोड़ लोगों को मिला अपना घर

मोदी सरकार की चर्चा में न रहनेवाली योजनाओं ने कितने लोगों के जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाला है, वो नीचे दिए गए आँकड़ों से सामने आता है। न सिर्फ़ घर, बल्कि उसमें बिजली, पानी, गैस सिलिंडर की सुविधा के साथ-साथ रोज़गार की गारंटी को सम्मिलित करते हुए सरकार ने साबित किया है कि एक योजना में बाक़ी योजनाओं के समावेश से ग़रीबों के जीवन पर कितना फ़र्क़ पड़ सकता है।

राज्यों के सहयोग से ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2014 से 1.37 करोड़ आवासों का निर्माण कार्य पूरा किया गया। आवासों के निर्माण कार्य पूरा होने का वर्षवार ब्यौरा (प्रत्येक आवास का तस्वीर सहित संपूर्ण ब्यौरा pmay-g.nic.in पर उपलब्ध है) निम्न है :  

आवासों के निर्माण कार्य पूरा होने का वर्षवार ब्यौरा

सारणी से स्पष्ट है कि जहाँ 2014-15 में 12 लाख आवासों का निर्माण हुआ था, वहीं 2018-19 में यह संख्या पाँच गुनी बढ़कर 65 लाख हो जाने वाली है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 20 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण का शुभारंभ किया था। राज्यों के सहयोग से ग्रामीण विकास मंत्रालय को विश्वास है कि मार्च, 2019 तक एक करोड़ आवासों का लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा। पीएमएवाई-जी योजना के अंतर्गत निर्धनतम लोगों को आवास देने का लक्ष्य रखा गया है जो अभी कच्चे घरों में रहते हैं। 4.75 लाख घरों के निर्माण की मंजूरी लंबित है क्योंकि राज्य सरकारों द्वारा भूमिहीनों को ज़मीन देने का कार्य पूरा नहीं हो पाया है। ऐसे मामले तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और बिहार से संबंधित है।

ग्रामीण आवास कार्यक्रम से न सिर्फ गरीबों को आवास मिलता है बल्कि उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 90/95 दिनों का रोज़गार भी प्राप्त होता है। इन आवासों को सौभाग्य योजना के तहत विद्युत आपूर्ति की जाती है तथा उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन दिए जाते हैं।

इन आवासों में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत शौचालयों का निर्माण किया जाता है। 1.37 करोड़ ग्रामीण आवासों के लाभान्वितों के लिए दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत आजीविका के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। पीएमएवाई-जी योजना के तहत निर्धनतम लोगों के चयन के लिए त्रिस्तरीय प्रक्रिया अपनाई जाती है – सामाजिक-आर्थिक जनगणना 2011, ग्राम सभा और जीयो–टैगिंग।

साभार: पत्र सूचना कार्यालय

अब सेना में कोर ऑफ़ मिलिट्री पुलिस में महिलाएँ जवानों के रूप में होंगी शामिल

रक्षा मंत्री निर्मला सीतरमण ने सेना के मिलिट्री पुलिस कोर्प्स में महिला जवानों को शामिल करने के निर्णय को मंजूरी दे दी है। पूरी प्रक्रिया के तहत 20% महिलाएँ शामिल की जाएँगी।

रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार (जनवरी 18,2019) को कहा कि सरकार ने सशस्त्र बलों में अपना प्रतिनिधित्व बढ़ाने के उद्देश्य से सैन्य पुलिस में महिलाओं को शामिल करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है।

अभी तक महिलाएँ सेना में सिर्फ अधिकारी के पद पर, वो भी कुछ सीमित शाखाओं जैसे, मेडिकल, कानूनी, शैक्षणिक, सिग्नल और इंजीनियरिंग जैसी चुनिंदा शाखाओं में ही प्रवेश कर पाती थीं।

महिलाओं को सेना के सैन्य पुलिस के कुल कोर का 20% शामिल करने के लिए एक श्रेणीबद्ध तरीके से शामिल किया जाएगा। रक्षा मंत्री के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस खबर की घोषणा की गई।

इस साल सेना दिवस पर, महिलाओं ने इतिहास में पहली बार एक महिला, लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी ने समस्त पुरुष सेना की टुकड़ी की परेड की, जिसमें 144 पुरुष शामिल थे।

एक अन्य पहल में, एक महिला अधिकारी ने सेना की ‘डेयरडेविल्स मोटरसाइकिल डिस्प्ले’ टीम का नेतृत्व करते हुए मेहमानों को सलामी दी। कप्तान शिखा सुरभि ने 33 पुरुषों की टीम का नेतृत्व किया।

इस निर्णय के अनुसार, महिलाओं को सैन्य पुलिस के कुल कोर का 20% शामिल करने के लिए एक श्रेणीबद्ध तरीके से शामिल किया जाएगा। उनकी भूमिका बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों की जांच करने से लेकर सेना की सहायता के लिए जहां भी आवश्यकता होगी। इसे सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक अहम कदम के तौर पर देखा जा रहा है।

इस महीने की शुरुआत में, राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में रक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री सुभाष भामरे ने कहा था कि सेना के पास महिलाओं के रूप में 3.80% कर्मचारी हैं, वायु सेना के पास 13.09% और नौसेना में 6% हैं।

शाह फैसल! भाई साब किस लाइन में आ गए आप?

मित्रो! 2010 में जब लगा था कि कश्मीर में आईएएस अफ़सर बनकर ये फ़ैसल अब उन लोगों से अपने बाप का दादा, परदादा का और बाकी सब का बदला लेगा, जिनकी गोलियों से बचकर वो भारतीय प्रशासनिक सेवा का हिस्सा बना है, तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन यही फैसल ‘डेफिनिट’ बनकर राजनीति में आने का ‘केजरीवाल टर्न’ ले लेगा।

जबसे ‘नई वाली राजनीति’ फ़ेम और मशहूर फ़िल्म समीक्षक सर अरविंद केजरीवाल प्रशासनिक सेवाओं को छोड़कर राजनीति में आए हैं, तब से आम आदमी जब किसी अफ़सर के राजनीति में आने की ख़बरें सुन लेता है, तो हफ़्ता भर वो खुद को चूँटी काटकर यकीन दिलाना चाहता है कि क्या वाक़ई में ये भी फ़िल्म रिव्यु लिखकर देश बदलने आया है?

भाई साहब ,ये किस लाइन में आ गए आप?

देश जानता है कि पिछले कुछ सालों में इस देश में ‘नई वाली राजनीति’ और ‘नई वाली हिंदी’ आज के युवा के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी हैं। जो जलवा इन दोनों ने काटा हुआ है, तो जनता बस यही सवाल पूछ पा रही है, “कहें तो कहें क्या, करें तो करें क्या?” जातिवाचक पत्रकार चाहे गोदी मीडिया का नाम लेते हों लेकिन इस देश में छोटी गंगा बोलकर गंदे नाले में कुदा देने का जो गोरखधंधा है, उसकी TRP सबसे ज़्यादा है।

2010 में देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्था का हिस्सा बनकर ‘मुस्लिम यूथ आइकन’ बने शाह फ़ैसल जम्मू कश्मीर चुनाव से पहले अपना पद छोड़ देते हैं और सबसे पहले उमर अब्दुल्ला से मिलने पहुंचते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उमर अब्दुल्ला कश्मीर के लिए फ़िक्र करते हैं। जबकि कई पीढ़ियों से कश्मीर पर  राज करने वाले अब्दुल्ला परिवार ने कश्मीर की आवाम का आज तक कौन-सा भला किया है, शायद यह सब जानकारी सामरिक कारणों से गुप्त ही रखे गए होंगे, या फिर कभी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में उस भलाई के कुछ अवशेष मिल सकें।

कौन नहीं जानता है कि उमर अब्दुल्ला और उनके परिवार ने कश्मीर की आवाम के लिए उतने ही प्रयास किए हैं, जितने कॉन्ग्रेस दलितों के लिए आज़ादी के बाद से करती आई है। हर चुनाव में दलितों का हितैषी माना जाने वाला राजपरिवार दलितों का कितना हिमायती है इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंचवर्षीय आती और जाती रहीं, लेकिन देश का पिछड़ा दलित कभी अगड़ा नागरिक नहीं बन सका।

उसी तरह से संसद में पाक अधिकृत कश्मीर के मसले पर “POK क्या तुम्हारे बाप का है?” जैसे नज़रिया देने वाले फ़ारूक़ अब्दुल्ला उसी उमर अब्दुल्ला के बापू हैं, जो आपको कश्मीर के शुभचिंतक नज़र आते हैं। भारत-पाकिस्तान बँटवारे पर इन्हीं फ़ारूक़ अब्दुल्ला साहब की राय थी कि जिन्ना ने नहीं बल्कि नेहरू, गाँधी, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और सरदार पटेल ने मिलकर बँटवारा कराया था।

आपके कथनी और करनी दोनों से ही आप कश्मीर के युवाओं को ही नहीं, उन जैसे, और अपने जैसे युवाओं पर भी भरोसे करने जैसे विचारों को भी एकदम सड़क पर ला देते हैं। शाह साहब, आप वही हैं जिसने भारत को रेपिस्तान कहा था, इसलिए कन्हैया कुमार और JNU के देशद्रोही गिरोह से आपका सहानुभूति रखना तो बनता ही है।

रेपिस्तान वाला बयान सुनकर DSP भूरेलाल भी कह रहे हैं…

तो जनाब! अब बात करते हैं मुद्दे की। कश्मीर के 2010 बैच के IAS अफसर शाह फ़ैसल आ गए हैं नौकरी-पेशा का टंटा खत्म कर के उसी फ़िल्ड में, जिसके लिए प्राचीन दन्तकथाओं में एक राजमाता ने कहा था ‘बेटा सत्ता ज़हर है’। लेकिन क्या इसे महज़ इत्तेफ़ाक़ ही कहेंगे कि दन्तकथा के अगले अध्याय में वही राजमाता कहती हैं कि बेटा ज़हर की खेती करने वालों को सत्ता मत दो।

कितनी बड़ी दुविधा शाह फ़ैसल के जीवन में आ कर खड़ी हो गई है कि एक ओर जहाँ सामान्य श्रेणी का एस्पिरेंट UPSC लिखते-लिखते ‘मनोहर’ कहानियों को टक्कर देने वाला लेखक बन जाता है, लेकिन अफ़सर नहीं बन पाता है, वहीं शाह फ़ैसल अफ़सर बनने के दिन से ही कश्मीर के युवाओं के लिए कभी प्रेरणा बने, कभी क्रन्तिकारी बने, कभी उग्र अभिव्यक्तिकार बने, लेकिन कभी नेता नहीं बन पा रहे थे। सो वो अब दफ़्तर से अपना बोरिया-बिस्तरा उठाकर राजनीति की गलियों में क़दम रखने जा रहे हैं।

जबकि, प्रशासन में रहते हुए शाह फ़ैसल खनन घोटाला अधिकारी भी बन सकते थे, लेकिन अब उन्होंने शायद खनन घोटाला मंत्रालय चुनना बेहतर समझ लिया है। आईएस अफ़सर वाला जो स्वैग आईएस चंद्रकला सोशल मीडिया पर झोंका करती थी, मुखर्जी नगर में आधी भीड़ उसी स्वैग को लेकर उमड़ी हुई है। लेकिन अफ़सर बन जाने के बाद कमाई में इतना इज़ाफा होने की ख़बरें जबसे बाज़ार में गर्म हैं, उस दिन से भीड़ बढ़ ही रही है, कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हालात ये हैं कि आज की डेट पर मुखर्जी नगर में उतने विश्वामित्र नहीं हैं, जितनी मेनकाएँ नज़र आती हैं। हालाँकि, ये मेरे जैसे एक ‘मिसोज़िनिस्ट’ का व्यक्तिगत मत हो सकता है।

सूत्र तो यह भी बता रहे हैं कि शाह फ़ैसल ने यह निर्णय ट्विटर पर चल रहे #10YearsChallenge की वजह से लिया है। 10 साल पहले जो हालात राजनीति में थे, वो उनको ही ‘रीस्टोर’ करने के मकसद से शायद राजनीति में उतरना चाह रहे हों। क्योंकि 10 साल में इस देश में हो चुकी है भैया लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की जमकर हत्या, जिस वजह से गुलफ़ाम हसन साहब का भी दम यहाँ घुटने लगा है।

अब आ ही गए हो तो ये लो यार अँगूर खाओ

मने हम कह सकते हैं कि JNU में जनता के टैक्स के पैसों, जिसमें मनुवादी, ब्राह्मणवादी सवर्णों का भी पैसा शामिल है, से मिलने वाली सब्सिडी पर नारे लगा रहे कन्हैया कुमार पर लगे देशद्रोह के आरोपों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपहास बताकर राजनीति में पहला कदम तो शाह फ़ैसल आज रख ही चुके हैं। इसके बाद हमारी दिलचस्पी इस बात में और बढ़ गई है कि शाह फ़ैसल अब जब इस ज़हरीली राजनीति में उतर ही गए हैं, तो उनके अगले कदम क्या हो सकते हैं?

इसी उत्सुकतावश, हमारे स्लीपर सैल संवाददाता, अलीगढ़ जाकर ‘लाल कुँआ, पिलर लम्बर बारा’ के ठीक नीचे बैठे बाबा से मिले और उनसे आपके राजनीतिक भविष्य के बारे में उन्होंने राय माँगी। जिसके बाद बाबा ने हमें व्हाट्सएप्प यूनीवर्सिटी पर कुछ तस्वीरें भेजकर शाह फ़ैसल के रुझान जारी किए हैं, जिन्हें हम ‘ऐज़ इट इज़’ और बिना किसी एडिटिंग के एक्स्क्लुसिव्ली आपके साथ शेयर कर रहे हैं:

रामभक्तों के बीच अपनी सेक्युलर छवि को बुलंद करते फैजल
महागठबंधन को अपनी नम आँखों से साक्षात देखते फैजल
फ़िल्म रिव्यू देने की ज़िम्मेदारी लेकर सर केजरी के कामों में हाथ बंटाकर उनका काम हल्का करते फैजल
मोदी जी के बदले व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के प्रोपैगेंडापति को इंटरव्यू देते फैजल
योगी जी को गौरक्षा का वचन देते फैजल
सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने पर मोदी जी के गले पड़ते फैजल
कुनाल कामरा को राहुल गाँधी से ज्यादा कॉमेडी करने और कट्टर हिन्दुओं के प्रति सतर्क करते फैजल
कैंडिड तस्वीर लेते हुए लप्रेकी फैजल
लालू जी का चारा तलाशते हुए फैजल

आप हमारे इरादों और मसख़री को दिल पर ना लें साहब! हम केजरीवाल के जले हैं, सो फ़ैसल को फूँक-फूँक कर पीना हमारी मज़बूरी हो चुका है।

किसानों की बात करते हुए सत्ता पाने वाली कॉन्ग्रेस हर राज्य में कर रही विचित्र काण्ड

किसानों से वादे करके सत्ता में आई कॉन्ग्रेस कर्ज़माफ़ी के नाम पर घोटाला और किसानों को गुमराह कर रही है। मध्यप्रदेश के खरगोन में किसानों से कर्ज़माफ़ी के नाम पर मज़ाक किया जा रहा है। दो महीने से कर्ज़माफ़ी का इंतजार कर रहे कुछ किसानों के पैरों तले जमीन तब खिसक गई, जब कर्ज़माफ़ी की सूची में उन्होंने देखा कि सूची में सिर्फ़ 25 और 300 रुपए माफ़ होना दर्शाया गया है।

अब सवाल उठता है कि 2 लाख रुपए तक कर्ज़माफ़ी का वादा कहाँ गया? मामले पर प्रशासन भी कोई हिसाब नहीं लगा पा रहा है। प्रशासन का कहना है कि 31 मार्च 2018 तक की अवधि में जिन किसानों पर ऋण है, उन्हीं की सूची जारी की गई है। ‘जय किसान ऋण मुक्ति योजना’ के तहत स्थानीय टाउन हॉल में कर्ज़माफ़ी की ये सूची लगाई गई थी।

ढाई लाख के कर्ज़ में हुई 25 रुपए की माफ़ी

जिन किसानों पर हज़ारों का कर्ज़ लदा हुआ था, उनका सिर्फ़ नाम मात्र का कर्ज़ माफ़ किया गया। जैतपुर के किसान प्रकाश की मानें तो उनपर ढाई लाख रुपए का कर्ज़ था लेकिन सिर्फ 25 रुपए माफ़ किया गया। इसी तरह सिकंदरपुरा के अमित के 300 रुपए माफ़ होने का जिक्र है। अमित का कहना है कि उन पर 30 हजार रुपए का कर्ज़ था।

किसानों की मानें तो किसी भी असुविधा से बचने के लिए उन्होंने अपने स्तर पर कर्ज़ की राशि जुटाकर बैंक में जमा करवाई और खाता शून्य कर फिर से कर्ज़ लिया, लेकिन जारी की गई सूची में इस बात उल्लेख नहीं किया गया है। कृषि विभाग का कहना है कि जिले में 2,57,600 संभावित ऋणी कृषक हैं। इनमें सहकारी बैंक के 1,52,000 और राष्ट्रीयकृत बैंकों के 20,600 कृषक शामिल हैं।

उड़द खरीदी को लेकर भी नाराज़ है किसान

किसानों की मुश्किल सिर्फ कर्ज़माफ़ी तक ही सीमित नहीं है। शायद यही वजह है कि किसानों को अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करनी पड़ी, और उन्होंने औक दमोह-सागर हाईवे को जाम कर दिया। दरअसल, किसान उड़द ख़रीदी में कई समस्याओं से परेशान हैं। किसानों का आरोप है कि उनकी समस्या नहीं सुनी जा रही है और मामले का निराकरण नहीं हो रहा है।

कर्नाटक में भी मिल चुका है किसानों को धोखा, 397 किसान कर चुके हैं आत्महत्या

मध्यप्रदेश में कॉन्ग्रेस का ये पहला कारनामा नहीं है, यही कारण है कि केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कॉन्ग्रेस पर आरोप लगाते हुए इस बात को स्पष्ट किया था कि कर्नाटक में 45 हज़ार करोड़ रुपए का कृषि ऋण माफ़ होना था, लेकिन 75 करोड़ रुपए का भी भुगतान नहीं किया।

इसके कारण किसानों को बैंक का नोटिस मिल रहा है। यही कारण है कि कॉन्ग्रेस सरकार के छह महीने के शासनकाल में 397 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। किसानों के कुल 90 हजार करोड़ रुपए के ऋण के लिए कॉन्ग्रेस ने बजट में 3 करोड़ रुपए भी आवंटित नहीं किए हैं।

जिन किसानों ने नहीं लिया ऋण, उनको भी मिली ‘माफ़ी’

बीते दिनों मध्य प्रदेश के ग्वालियर में किसानों के साथ धोखा देने और घोटाला करने का का कारनामा सामने आया था। जिसमें सहकारी समितियों द्वारा जारी की गई ऋणदाताओं की सूची में उन किसानों का नाम भी डाल दिया गया था, जिन्होंने कोई कर्ज़ लिया ही नहीं। बावजूद इसके उनका कर्ज़ माफ़ कर दिया गया। जिसके बाद किसानों ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की शाखा व समितियों पर पहुंच कर आपित्त जताई थी कि बिना कर्ज़ के कैसी कर्ज़माफ़ी?

किसानों के कर्ज़माफ़ी की स्थिति नहीं बता पा रही कॉन्ग्रेस

राजस्थान में किसानों की कर्ज़माफ़ी का विवरण नहीं दिया जा रहा है। विधानसभा में सरकार से किसानों की कर्ज़माफ़ी व इससे जुड़ी औपचारिकताओं पर स्थिति स्पष्ट करने में भी नाकाम साबित हो रही है। प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा, “सरकार ने इस प्रकार का लंगड़ा आदेश निकाल कर किसानों को भ्रमित किया है, सरकार स्पष्ट करे कि कर्ज़माफ़ी की घोषणा के एक महीना एक दिन के बाद कितना पैसा किसानों के खाते में पहुंचा।”

डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों से मेक इन इंडिया पहल को मिली सहायता: नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज गांधीनगर स्थित महात्मा गांधी प्रदर्शनी सह सम्मेलन केन्द्र में वाइब्रेंट गुजरात के 9वें संस्करण का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उज़्बेकिस्तान, रवांडा, डेनमार्क, चेक गणराज्य और माल्टा के राष्ट्रप्रमुख उपस्थित थे। इसके अलावा उद्योगजगत के प्रतिनिधियों समेत 30 हज़ार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने उद्योग जगत के प्रतिनिधियों तथा कंपनियों को भारत आने और यहाँ निवेश करने का आमंत्रण दिया क्योंकि अवसंरचना और सुविधाएँ बेहतर हुई हैं और व्यापार की स्थिति निवेशक अनुकूल है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले चार वर्षों के दौरान व्यापार करने में आसानी श्रेणी में भारत ने 65 स्थानों की छलाँग लगाई है। भारत को आने वाले वर्षों में इस श्रेणी के 50वें स्थान तक लाने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विश्व बैंक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और मूडी जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने भारतीय अर्थव्यवस्था तथा अर्थव्यवस्था के लिए किए गए सुधारों में विश्वास व्यक्त किया है। जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के कार्यान्वयन से लेनदेन की लागत में कमी आई है। प्रधानमंत्री ने कहा भारत की औसत विकास दर 7.3 प्रतिशत है जो 1991 के बाद से सर्वाधिक है। इसी के साथ औसत महँगाई दर 4.6 प्रतिशत है जो 1991 के बाद से न्यूनतम है।

प्रधानंमत्री ने कहा कि पिछले चार वर्षों के दौरान मेरी सरकार का लक्ष्य प्रशासन को बढ़ाना और सरकार को कम करना रहा है। हम अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधार कर रहे हैं। हम विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने कहा कि भारत में स्टार्टअप का सबसे बड़ा परितंत्र है। नौजवानों के लिए रोज़गार के अवसरों के सृजन हेतु सरकार ने विनिर्माण को बढ़ावा दिया है। डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रमों से मेक इन इंडिया पहल को सहायता मिली है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 2017 में भारत में रिकॉर्ड पर्यटक आए हैं। 2016 की तुलना में पर्यटकों की संख्या में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि पूरे विश्व के संदर्भ में केवल 7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले चार वर्षों के दौरान हवाई यात्रा में दस से अधिक प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारत असीम संभावनाओं वाला देश है। यह एक मात्र देश है जो लोकतंत्र, जनसांख्यिकी और माँग का विकल्प देता है।

वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के बारे में प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र प्रमुखों की उपस्थिति से यह एक वैश्विक मंच बन गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग केवल राष्ट्रीय राजधानी तक सीमित नहीं है बल्कि इसका विस्तार राज्यों की राजधानियों तक हो गया है।

गुजरात के मुख्यमंत्री श्री विजय रूपाणी ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व और नीति आधारित प्रशासन की सराहना करते हुए उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया कि व्यापार को आसान बनाने के लिए हर संभव सहायता व सुविधा प्रदान की जाएगी।

इस अवसर पर उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति श्री शौक़त मिरजियोयेव, डेनमार्क के प्रधानमंत्री श्री लार्स लोक रासम्युसिन, चेक गणराज्य के प्रधानमंत्री श्री आंद्रेज बबिज और माल्टा के प्रधानमंत्री डॉ. जोसेफ मस्कट भी उपस्थित थे।

इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए एक विशेष संदेश देते हुए कहा कि गुजरात हम दो व्यक्तियों के बीच सुदृढ़ सम्बन्ध को रेखांकित करता है। हम दोनों साथ मिलकर भविष्य के लिए असीम संभावनाओं का निर्माण कर रहे हैं।

तीन दिवसीय समारोह के दौरान निम्न प्रमुख कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे – वैश्विक कोष के प्रमुखों के साथ गोलमेज सम्मेलन, अफ्रीका दिवस, एमएसएमई सम्मेलन, विज्ञान, तक़नीकी इंजीनियरिंग और गणित शिक्षा व शोध में संभावनाओं पर गोलमेज बैठक आदि। इसके अतिरिक्त भविष्य के तक़नीकों व अंतरिक्ष में खोज पर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। बंदरगाह आधारित विकास विषय पर एक सेमिनार आयोजित किया जाएगा।

वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन के पहले संस्करण का आयोजन 2003 में किया गया था। उस समय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। सम्मेलन का उद्देश्य गुजरात में निवेश को आकर्षित करना था।

लोकसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा मार्च के पहले सप्ताह में होने की उम्मीद

ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग मार्च के पहले सप्ताह में लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर सकता है। ज़ी न्यूज़ के अनुसार, आयोग के सूत्रों ने शुक्रवार को यह संकेत देते हुए लोकसभा चुनाव के साथ कुछ राज्यों – आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश – के विधानसभा चुनाव भी कराने की संभावना व्यक्त की है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल आगामी तीन जून को समाप्त होने वाला है।

बता दें, आयोग ने 2004 में लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की 29 फ़रवरी को चार चरण में, 2009 में 2 मार्च को पाँच चरण में और 2014 में 5 मार्च को नौ चरण में कराने की घोषणा की थी। उल्लेखनीय है कि पिछले तीनों लोकसभा चुनाव अप्रैल से मई के दूसरे सप्ताह में संपन्न करा लिए गए थे।

लोकसभा के साथ कुछ राज्यों में विधान सभा का कार्यकाल ख़त्म होने की वज़ह से  चुनाव के क़यास इसलिए भी लगाए जा रहे हैं क्योंकि, सिक्किम विधानसभा का कार्यकाल आगामी मई तथा आंध्र प्रदेश, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल आगामी जून में पूरा हो रहा है।

इस बीच जम्मू कश्मीर विधानसभा भी पिछले साल नवम्बर में भंग किए जाने के कारण नई विधानसभा के गठन की छह महीने की निर्धारित अवधि इस साल मई में पूरी होने से पहले चुनाव आयोग के लिये, राज्य में चुनाव कराना अनिवार्य है। जम्मू कश्मीर विधानसभा का छह साल का निर्धारित कार्यकाल 16 मार्च 2021 तक था लेकिन बहुमत वाली सरकार के गठन की सम्भावनाएँ समाप्त होने के कारण, इसे नवंबर 2018 में ही भंग कर दिया गया था।