Friday, November 8, 2024
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रालोद नेता अजित सिंह ने मोदी, योगी को बोला बैल, बछड़ा; स्मृति ईरानी को कहा हट्टी-कट्टी गाय

राजनीति में खुद को फिर से स्थापित करने के लिए जद्दोजहद कर रहे राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के प्रमुख अजित सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘बैल और बछड़ा’ कहकर चर्चा में आ गए हैं। बृहस्पतिवार (जनवरी 10, 2019) को  मथुरा के कोसीकलाँ कस्बे में ‘किसानों से संवाद’ कार्यक्रम के दौरान एक जनसंवाद रैली को संबोधित करते हुए अजीत सिंह ने केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी को भी नहीं बख्शा और उन्हें ‘हट्टी-कट्टी गाय’ बता दिया।

ख़ास बात यह है की रालोद पार्टी नेता अजीत सिंह की यह असभ्य टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब राष्ट्रीय महिला आयोग कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी को केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण पर अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने के लिए नोटिस भेज चुका है।

जनसंवाद रैली में अजीत सिंह ने कहा, “मैं आजकल अखबारों में पढ़ रहा हूँ कि आजकल आपके गाय-बैल-बछड़े खूब घूम रहे हैं। इन्हें आप लोग स्कूल-कॉलेजों में बंद कर रहे हो। जिन्हें लोग कहते हैं कि ये मोदी-योगी घूम रहे हैं, सच है क्या?’’ अजीत सिंह ने इसके आगे कहा, ‘‘कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि हट्टी-कट्टी गाय आ गई, स्मृति ईरानी भी घूम रही है।” उन्होंने ‘मोदी हाय-हाय’ और ‘मोदी बाय-बाय’ के नारे लगाते हुए कहा कि देश के किसानों और उद्योगपतियों को नोटबंदी के कारण नुकसान उठाना पड़ा।

भाजपा नेता योगेश गोस्वामी ने कहा है, “अजित सिंह ने ऐसा कर के संविधान का अपमान किया है। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और केन्द्रीय कपड़ा मंत्री मंत्री राजनीतिक चेहरे हैं और संवैधानिक पदों पर बैठे हुए हैं, ऐसे लोगों पर अभद्र टिप्पणी करना संविधान का अपमान करना है”

पिछले कुछ समय से विपक्ष के नेताओं में प्रधानमंत्री और NDA सरकार के नेताओं को लेकर व्यक्तिगत अभद्र टिप्पणियाँ करने का चलन बढ़ा है।

मणि शंकर अय्यर 2017 के गुजरात चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘नीच आदमी’ कह चुके हैं। यह पहली बार नहीं है जब मणि शंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कोई जातिगत टिप्पणी की हो, 2014 लोकसभा चुनावों में भी वो नरेंद्र मोदी को ‘चायवाला’ कहकर उनको नीचा दिखाने की कोशिश करना चाहते थे। हालाँकि, यह टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वरदान साबित हुई और ‘चायवाला’ के ‘टैग’ ने उन्हें जनता के बीच और ज्यादा लोकप्रिय बना दिया था।

2014 लोकसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ अमेठी से चुनाव लड़ने वाली वर्तमान केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी विपक्ष से लेकर कुछ मीडिया हाउस तक का आसान निशाना रही हैं। शायद ऐसा उनके एक सशक्त और वाक्पटु नेता के रूप में बढ़ते हुए व्यक्तित्व के कारण भी हो रहा है। हाल ही में एक वामपंथी मीडिया संगठन ‘द टेलीग्राफ’ ने स्मृति इरानी के राहुल गाँधी को लेकर दिए एक बयान को गलत तरीके से पेश कर के ये लिखकर उनकी छवि को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की गई कि स्मृति इरानी ने राहुल गाँधी के ‘पौरुष’ पर प्रश्नचिन्ह लगाए। शायद अपने पूर्वग्रहों के कारण द टेलीग्राफ ‘पुरुषार्थ’ और ‘पौरुष’ में भेद करने में असफल रहा होगा।

शाह फै़सल – ‘पसंद हैं पाकिस्तानी PM इमरान और दिल्ली CM केजरीवाल’

जम्मू-कश्मीर कैडर IAS अफ़सर शाह फै़सल ने 9 जनवरी को अपने पद से इस्तीफ़ा देते हुए इस बात का हवाला दिया था कि भारत समेत कश्मीर में ‘हिन्दुत्ववादी तत्वों’ में ख़तरनाक वृद्धि हो रही है और हर जगह समुदाय विशेष के लोगों को मारा जा रहा है।

उसी फै़सल ने आज अपने पसंदीदा व्यक्तियों की बात करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और दिल्ली के मुख्यमंत्री में अरविंद केज़रीवाल का नाम लेकर कहा है कि वो उनसे अत्यंत प्रभावित हैं।

उनका कहना है – “मैं सच में इमरान खान और केज़रीवाल से बहुत ज्यादा प्रभावित हूँ, लेकिन हम बेहद तनावग्रस्त क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जहाँ पर कार्य करना इतना भी आसान नहीं होता है। इस जगह ने अपनी लेजिटिमेसी को बीते कुछ सालों में खो दिया है।”

ये पहली बार नहीं हैं, कि शाह फै़सल ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की तारीफ़ में बात कही हो। इससे पहले, जब पिछले साल इमरान खान को सत्ता की कुर्सी मिली थी, तब भी फै़सल ने भारत पर आरोप लगाया था, कि नए प्रधानमंत्री के सुलह करने की कोशिशों पर भी भारत उलझा हुआ है।

बता दें कि पिछले साल भारत को ‘रेपिस्तान’ कहने वाले इस पूर्व आईएएस अधिकारी पर विभागीय जाँच बैठी थी। जम्मू-कश्मीर के प्रशासनिक विभाग ने देश की छवि को धूमिल करने पर और आईएएस के पद पर रहकर, शिष्टाचार को बनाए रखने में असफल होने के आरोप में इस जाँच को बिठाया था। जिसके बाद फै़सल ने इस जाँच का और विभाग द्वारा भेजे गए ख़त का बुहत ही बेशर्मी के साथ मजाक उड़ाया।

फिलहाल, अनुमान लगाया जा रहा है कि फै़सल राजनीति की तरफ़ अपना रुख़ करेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्लाह ने इस्तीफ़ा देने के बाद उनका स्वागत भी किया है। हालाँकि, फैस़ल का कहना है कि वो हो सकता है आने वाले चुनावों में भाग लें, लेकिन किसी भी राजनैतिक पार्टी से जुड़ने से उन्होंने साफ़ मना किया है।

साथ ही उनका ये भी कहना है कि कश्मीर के लोगों द्वारा ही उनके आगे के भविष्य का निर्धारण होगा। बता दें कि फै़सल के इस्तीफे के बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नरमपंथी धड़े के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फ़ारूक़ ने ट्वीट के माध्यम से फ़ैसल का स्वागत करते हुए कहा था कि देश भर में मारे जा रहे मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध प्रदर्शन के तौर पर उनका इस्तीफ़ा स्वागत योग्य है। जिस पर शाह फै़सल ने उन्हें उनकी अमूल्य सलाह के लिए शुक्रिया भी अदा किया और कहा कि वो उम्मीद करते हैं, उनमें वो ताक़त और लड़ने का जज़्बा रहे ताकि फै़सल भी उसी दिशा में काम कर पाएँ जिधर उमर फ़ारूक़ हैं।

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The Accidental PM: लुधियाना से कोलकाता तक कई जगह कॉन्ग्रेस का हिंसक प्रदर्शन

अनुपम खेर अभिनीत फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ शुक्रवार (जनवरी 11, 2018) को सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई। फ़िल्म को दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला है। फ़िल्म ने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावज़ूद पहले ही दिन बॉक्स ऑफ़िस पर तीन करोड़ रुपए से भी अधिक की कमाई की। वीकेंड्स पर इसकी कमाई में और उछाल आने की सम्भावना है।

वहीं ख़बरों के अनुसार लुधियाना और दिल्ली से लेकर मध्य प्रदेश तक जगह-जगह कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा हिंसक विरोध प्रदर्शन किए गए। इस कारण कुछ सिनेमाघरों को मज़बूरन फ़िल्म का प्रदर्शन भी रोकना पड़ा। कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने सेंट्रल कोलकाता के क्वेस्ट मॉल में स्थित आईनॉक्स मल्टीप्लेक्स में घुसकर भारी तोड़-फोड़ की और सिनेमाघर की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। शाम के क़रीब आठ बजे कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता अपनी पार्टी के झंडों के साथ मल्टीप्लेक्स में पहुँचे और उन्होंने सिनेमाघर के परदे को फाड़ दिया। इस कारण तय समय पर फ़िल्म का प्रदर्शन नहीं किया जा सका।

कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता यहीं नहीं रुके। उन्होंने फ़िल्म देखने आए दर्शकों को भी डराया-धमकाया और उन्हें ऑडिटोरियम से बाहर जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वो कहीं भी इस फ़िल्म की स्क्रीनिंग नहीं होने देंगे क्योंकि इसमें कॉन्ग्रेस पार्टी के सीनियर नेताओं के प्रति अपमानजनक कंटेंट है। समाचार एजेंसी IANS के मुताबिक़ उपद्रवियों का नेतृत्व कर रहे कॉन्ग्रेस नेता राकेश सिंह ने कहा;

“फिल्म हमारे वरिष्ठ नेताओं जैसे सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के प्रति अपमान है। हमने यहाँ स्क्रीनिंग रोक दी है। हम फ़िल्म को कहीं भी प्रदर्शित नहीं होने देंगे।”

IANS के मुताबिक़ उपद्रवी ‘राहुल गाँधी ज़िंदाबाद’ और ‘कॉन्ग्रेस पार्टी ज़िंदाबाद’ जैसे नारे भी लगा रहे थे। INOX के प्रवक्ता ने बताया कि मल्टीप्लेक्स के संचालकों को बाद में पुलिस की मदद लेनी पड़ी, जिसके बाद फ़िल्म का प्रदर्शन फिर से शुरू कराया जा सका।

लुधियाना में भी यूथ कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कॉन्ग्रेस भवन से लेकर जेएमडी मॉल तक प्रदर्शन किया। पंजाब कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक सिनेमाघर को घेर कर अभिनेता अनुपम खेर का पुतला भी दहन किया। मध्य प्रदेश में जबलपुर के समदड़िया मॉल में भी फ़िल्म के प्रदर्शन को लेकर कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा जम कर हंगामा किया गया। इसी तरह इंदौर में भी कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने हंगामा खड़ा किया, जिस कारण वहाँ सुरक्षा व्यवस्था बढ़ानी पड़ी।

अनुपम खेर ने कॉन्ग्रेस की ऐसी हिंसक नीति का विरोध ट्विटर पर एक वीडियो जारी करके किया। उन्होंने पुलिस व प्रशासन से ऐसे लोगों के साथ सख्ती से निपटने का अनुरोध किया है।

ड्रग्स की तस्करी में लिप्त 2 रोहिंग्या गिरफ़्तार, मिला आधार कार्ड भी

हैदराबाद के राचाकोंडा पुलिस ने दो रोहिंग्या मुसलामानों को ड्रग्स के साथ पकड़ा है। पुलिस ने उनके पास से ड्रग्स एवं नारकोटिक्स भी बरामद किए हैं। पकड़े गए दोनों रोहिंग्याओं के नाम अबीबुस रहमान और मोहम्मद रहीम बताया गया। पुलिस ने उनके पास से याबा ड्रग्स की 1400 टेबलेट्स बरामद की। इसे 150 रुपए प्रति टेबलेट के हिसाब से बेचा जा रहा था। बता दें कि ख़तरनाक याबा ड्रग्स भारत में पूरी तरह से बैन हैं। हैदराबाद में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब शहर में इस तरह की आपराधिक गतिविधियाँ सामने आ रही हैं।

ख़बरों के अनुसार पुलिस को सूचना मिली थी कि दो रोहिंग्या शहर में ड्रग्स तस्करी की गतिविधियों में संलिप्त हैं। इसके आधार पर बालापुर पुलिस स्टाफ ने इन दोनों को पकड़ा और इनकी तलाशी ली। तलाशी में पुलिस को बड़ी सफलता मिली और इन्हे रंगे हाथो गिरफ़्तार कर लिया गया।

पुलिस कमिश्नर महेश भगत ने समाचार एजेंसी एनआईए को इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए बताया कि थाईलैंड और म्यांमार से तस्करी कर लाए जाने वाले इस ड्रग्स को ‘मैड ड्रग्स’ भी कहा जाता है। याबा ड्रग कैथरीन और मेथामफेटामाइन जैसे रासायनिक पदार्थों का ख़तरनाक मिश्रण होता है जोकि एक नशीली दवा है। अधिक जानकारी देते हुए पुलिस कमिश्नर ने बताया;

“मोहम्मद रहीम के पास से एक आधार कार्ड भी सीज किया गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश का पता मौजूद था। ज़ब्त किए गए सामान की कुल क़ीमत 2 लाख रुपए से ज़्यादा बताई जा रही है।”

फ़िलहाल, पुलिस द्वारा इस मामले को धारा-8C के अंतर्गत दर्ज़ किया गया। इसमें आरोपितों पर एनडीपीएस एक्ट 1985, 199, 200, आईपीसी 420 धाराएँ लगाई गईं। पुलिस इस बात की जानकारी जुटाने में लगी हुई है कि आख़िर ये ड्रग्स कहाँ से लाया जाता है।

दरअसल, रोहिंग्या मुस्लिम भारत में म्यांमार और बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ कर यहाँ बस जाते हैं। सुरक्षा कारणों से इन्हें वापस भेजे जाने की लगातार मॉंग हो रही है और कई रोहिंग्याओं को वापस उनके देश भी भेजा जा चुका है। अब इनके आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने की ख़बरों के बाद सुरक्षा बलों के भी कान खड़े हो गए हैं। ख़बरों के अनुसार एक रोहिंग्या परिवार के पाँच सदस्यों को गुरुवार (जनवरी 10, 2018) को मणिपुर की सीमा से म्यांमार भेजा गया।

पानीपत की लड़ाई जितना ही अहम है लोकसभा चुनाव: अमित शाह

भाजपा 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी का माहौल बना चुकी है। शुक्रवार रात (जनवरी 11, 2019) को रामलीला मैदान में भाजपा का 2 दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू हो गया है। लोकसभा चुनाव से पहले अब तक के सबसे बड़े राष्ट्रीय अधिवेशन की शुरूआत करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने आने वाले लोकसभा चुनाव को विचारधारा की लड़ाई बताया है।

उन्होंने अपने भाषण में पानीपत की लड़ाई का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस प्रकार उस समय मराठाओं की हार के कारण इस देश को 200 साल की गुलामी झेलनी पड़ी थी। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को सलाह दी कि इस विचारधारा की लड़ाई में किसी भी तरह की चूक के लिए कोई जगह नहीं है, इसलिए कमर कस के मैदान में उतरें। उत्साहित भीड़ ने “अबकी बार, फिर मोदी सरकार” की नारेबाज़ी भी की।

भाजपा द्वारा यह राष्ट्रीय अधिवेशन 3 प्रमुख राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हार के बाद आयोजित किया गया है। ज़ाहिर सी बात है कि अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य कार्यकर्ताओं और पार्टी सदस्यों में उत्साह का संचार करना होगा।

नई दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के उद्घाटन के अवसर पर पार्टी अध्यक्ष ने राम मंदिर, सपा-बसपा गठबंधन, GST, और आरक्षण जैसे विषयों पर बात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरे देश के चुने हुए प्रतिनिधियों की लगभग 12 हजार की भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली बार भी यहीं से जीत का संकल्प लिया गया था, इस बार भी इसी स्थल को चुना गया है।

उन्होंने लगभग 1 घंटे लम्बे अपने भाषण में कहा कि इस युद्ध में एक तरफ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और गरीब कल्याण की विचारधारा है और दूसरी तरफ स्वार्थ और सत्ता के लिए एकजुट लोगों का जमघट है, जिनके पास ना ही कोई नेता है और ना ही कोई नीति।

अमित शाह ने कहा, “कुछ युद्ध हार-जीत तक ही सीमित होते हैं। कुछ युद्धों का असर एक-आध दशक तक होता है, लेकिन कुछ युद्धों का प्रभाव सदियों तक रहता है। मैं मानता हूँ कि 2019 का युद्ध सदियों तक असर डालने वाला है और इसलिए यह युद्ध जीतना जरूरी है।” इस पर उन्होंने याद दिलाते हुए कहा कि 131 युद्ध जीतने वाले मराठा जब हारे थे तो 200 वर्षों तक की गुलामी झेलनी पड़ी थी।

पार्टी नेताओं को बताया आगामी चुनाव तैयारी का ख़ाका

रामलीला मैदान में भाजपा के 2 दिवसीय इस अधिवेशन में लोकसभा चुनावों को लेकर जिला स्तर तक के नेताओं को चुनावी अभियान की जानकारी दी जानी है।

राम मंदिर के प्रति है भाजपा प्रतिबद्ध

अमित शाह ने जैसे ही कहा कि पार्टी चाहती है कि जल्द से जल्द भव्य राम मंदिर बने, सामने बैठी भीड़ उत्साहित हो गई। अमित शाह ने कहा कि भाजपा हर हाल में राम मंदिर बनाना चाहती है और वह इस कार्य के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही उन्होंने बताया की कॉन्ग्रेस लगातार राम मंदिर बनाने को लेकर विवाद कर के कार्य में विलम्ब कर रही है। जबकि भाजपा सुप्रीम कोर्ट में लंबित राम मंदिर के फैसले को जल्द से जल्द निपटाने का प्रयास कर रही है।

सामान्य श्रेणी के गरीबों को आरक्षण देना ऐतिहासिक फ़ैसला

अमित शाह ने बताया कि सामान्य श्रेणी में आने वाले गरीबों को नौकरी और रोज़गार में आरक्षण देना मोदी जी का एतिहासिक फ़ैसला है। यह गरीब और वंचितों को समानता का अधिकार देगा। शाह ने कहा कि इस फैसले से करोड़ों युवाओं के विकास का रास्ता सरकार ने खोल दिया है।

विपक्ष पर साधा निशाना

राहुल गाँधी का ज़िक्र अमित शाह ने अपने भाषण में 2-3 बार किया। उन्होंने कहा, “मिशेल मामा पकड़े जाते हैं तो वह पसीने-पसीने हो जाते हैं, क्वात्रोची अंकल उनके घर जाते थे। दरअसल यह उनका भय है।” इसके आगे शाह ने कहा कि राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि उसमें कोई गड़बड़ी नहीं हुई, लेकिन फिर भी उन पर बेवजह आरोप लगाए जा रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे लोगों के देश छोड़कर भागे जाने को लेकर भी राहुल गाँधी पर हमला करते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस काल में वह यहीं सुरक्षित थे क्योंकि सत्ता में भागीदार बैठे थे। अब चौकीदार बैठा है तो ऐसे लोगों को डर है।

महागठबंधन का नहीं है कोई अखिल भारतीय असर

महागठबंधन के मुद्दे पर अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटा पाना नामुमकिन है। साथ ही ये भी कहा कि वो नरेंद्र मोदी को 1987 से जानते हैं और उनके नेतृत्व में कभी कोई चुनाव नहीं हारे हैं। अमित शाह ने कहा कि इन 5 सालों में देश का विकास व गौरव चार गुना बढ़ा है और देश की जनता मोदी जी के पीछे चट्टान की तरह खड़ी है। ना केवल भारत बल्कि दुनिया में मोदी जी जैसा लोकप्रिय नेता किसी और दल में भी नहीं है। उन्होंने कहा, “जिस उत्तर प्रदेश को लेकर विपक्ष में इतनी जद्दोजहद मची है, वहां भी भाजपा 73 से 74 हो सकती है लेकिन 72 नहीं।”

अधिवेशन में उद्घाटन के अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली, नितिन गडकरी और पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के साथ ही कई भूतपूर्व मुख्यमंत्री मौजूद थे।

बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह ने करण के चैट शो में की महिला-विरोधी टिप्पणी

करण जौहर के पॉपुलर चैट शो ‘कॉफ़ी विद करण’ के दौरान हार्दिक पांड्या को महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी करना मँहगा पड़ गया। महिलाओं के बारे में हार्दिक के इस टिप्पणी पर बीसीसीआई ने कड़ा कदम उठाया। इस चैट शो में हार्दिक पांड्या के साथ के एल राहुल भी हिस्सा ले रहे थे। यही वजह है कि इन दोनों पर जाँच पूरी होने तक बीसीसीआई ने क्रिकेट खेलने से बैन लगा दिया है।

हार्दिक और केएल राहुल के बाद कॉफ़ी विद करण के इसी चैट शो का एक विवादास्पद वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में रणवीर सिंह महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी करते हुए नजर आ रहे हैं। इस वीडियो के ज़रिए लोग रणवीर को ट्रोल कर रहे हैं। हलाँकि, रणवीर की यह वीडियो पुरानी है, लेकिन सोशल मीडिया पर एक बार फिर से यह वीडियो वायरल हो रही है।

कॉफ़ी विद करण चैट शो में रणवीर ने ये कहा

कॉफ़ी विद करण के इस चैट शो में रणवीर ने करीना और अनुष्का के बारे में सेक्सिस्ट टिप्पणी की है। वीडियो में शो के दौरान रणवीर ने कहा, “मैं बचपन में जिस स्विमिंग क्लब में था वहाँ करीना कपूर आती थी। उनको स्विम सूट में देखते हुए मैं बच्चे से लड़का बन गया।” इसी शो में एक जगह रणवीर ने अनुष्का से कहा, “आप कहें तो मैं आपकी a** को पिंच कर सकता हूँ।”  शो के दौरान रणवीर से इस तरह की बात को सुनकर अनुष्का असहज हो गई। लेकिन शो में होने की वजह से उन्होंने इस बात को हँसी में टाल दिया।

चैट शो के दौरान इन दोनों ही बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने रणवीर के इस वीडियो को शेयर करते हुए जमकर आलोचना करनी शुरू कर दी।

राजद विधायक प्रह्लाद यादव की सरेआम गुंडागर्दी, जमीन विवाद में मार-पीट

बिहार के लखीसराय से एक वीडियो वायरल हो रही है। यह वीडियो राजद के सूर्यगढ़ा विधायक प्रह्लाद यादव की है। न्यूज एजेंसी एएनआई ने प्रह्लाद यादव से जुड़े 34 सेकेंड के इस वीडियो को ट्वीटर पर साझा किया है। इस वीडियो में प्रह्लाद यादव एक शख्स को थप्पड़ मारते हुए दिख रहे हैं। यही नहीं कई बार माँ-बहन से जुड़ी गंदी गालियाँ देते हुए भी राजद विधायक को इस वीडियो में सुना जा सकता है। इस पूरे वीडियो को देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह मामला जमीन विवाद से जुड़ा हुआ है। एएनआई ने अपने ट्वीट में लिखा है कि इस मामले में एक मुकदमा रजिस्टर कर लिया गया है।

प्रह्लाद यादव की शह पर जीवन यादव ने नबालिग को बेरहमी से पीटा था

यह अक्टूबर 2016 की बात है। लखीसराय विधायक प्रह्लाद यादव से जुड़ी एक ख़बर मुख्यधारा की मीडिया आ रही थी। इस ख़बर में राजद विधायक प्रह्लाद यादव और उनके भाई के दबंगई की चर्चा की गई थी। दरअसल राजद विधायक के भाई ने राजा कुमार नाम के एक नाबालिग को जमकर पीटा था। अपने विधायक भाई की शह पर जीवन ने इस घटना को अंजाम दिया था। राजा विधायक और उसके भाई के आतंक का शिकार सिर्फ इसलिए हो गया था, क्योंकि उसने अपने जमीन पर विधायक के भाई द्वारा जबरन कब्ज़े का विरोध किया था। लखीसराय में प्रह्लाद यादव का आतंक कुछ इस तरह है कि लोग उसके ख़िलाफ़ बोलने के लिए मुँह तक नहीं खोलते।

2002 में विधायक के भाई पर 14 लोगों की हत्या का आरोप

जानकारी के लिए आपको बता दें कि प्रह्लाद यादव और उनके भाई जीवन यादव लखीसराय व आसपास जिला में बड़े बालू माफ़िया के रूप में जाने जाते हैं। 12 मई 2002 में बालू उठाव के दौरान जातिय रंजिश में 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस मामले में मोस्ट वांटेड विधायक प्रह्लाद यादव के भाई जीवन यादव पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था।

आलोक वर्मा एक दीमक था, जो CBI को लंबे समय से कर रहा था खोख़ला! ये रहे सबूत

सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हाल ही में उच्च स्तरीय समिति द्वारा उनके पद से हटाया गया था। इस समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, न्यायाधीश सीकरी (जो चीफ़ जस्टिस की जगह आए थे) और कॉन्ग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे। आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने का महत्वपूर्ण कारण उन पर लगे भ्रष्टाचारों के आरोप हैं। इस मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज़ की थी।

केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट में आलोक वर्मा के ख़िलाफ बहुत ही संज़ीदा आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट में आयोग ने बताया कि 31 अगस्त 2018 को उन्हें शिकायत मिली। जिस पर उन्होंने सीबीआई से 11 सितंबर को मामले से जुड़े प्रासंगिक रिकॉर्डों को 14 सितंबर तक पेश करने को कहा। लेकिन आयोग के कई बार याद दिलाने के बाद भी इन रिकॉर्डों को 23 अक्टूबर तक पेश नहीं किया गया। जिसके बाद ही आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने का फैसला लिया गया।

पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा के लिए मुश्किलें और भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे मामले जो उनके पद के कारण दबे रह गए थे, अब खुल कर सामने आ रहे हैं। जो साबित करते हैं कि अपने पद और दायित्वों के प्रति की गई बेईमानी उनके गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये का परिणाम नहीं हैं, बल्कि उनके भीतर छिपे बेईमान शख़्स की हकीकत है। इस लेख में हम आपको आलोक वर्मा पर लगे कुछ केसों के बारे में बताएंगें, जो साबित करते हैं कि सीबीआई प्रमुख के पद से हटाया जाना कितना अनिवार्य था।

हाल ही में आयोग ने आलोक वर्मा को 6 नए आरोपों में फिर से घेरे में ले लिया है। इन मामलों पर एंटी करप्शन वॉचडॉग ने जाँच के बाद पिछले साल 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दायर की थी।

आलोक पर लगाए गए 6 नए आरोपों में नीरव मोदी मामला और विजय माल्या के केस भी शामिल हैं। आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 26 दिसंबर 2018 को सीबीआई से एक ख़त के ज़रिए, इन मामलों से जुड़े हर दस्तावेज़ पेश करने को कहा गया था, ताकि पूरी जाँच को तार्किकता के धरातल पर सँभव किया जा सके। देश से फ़रार हुए माल्या और नीरव मोदी से जुड़े कागज़ों की माँग अगले बुधवार (जनवरी 16, 2019) तक की गई है, जबकि बाकि दस्तावेज़ों की तारीख़ को पेंडिंग रखा गया है।

आलोक वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने नीरव मोदी के मामले में जाँच बिठाकर छानबीन कर अपराधियों को पकड़ने से ज्यादा मामला को रफ़ा-दफ़ा करने का प्रयास किया था। इसके बाद आलोक पर सी शिवशंकरन का मामला समेट कर उन्हें बचाने का भी आरोप है। बता दें कि सी शिवशंकरन पर IDBI बैंक के साथ 600 करोड़ रुपए के लोन फ्रॉड का आरोप है।

मोइन कुरैशी केस में भी आयोग की रिपोर्ट में आलोक वर्मा पर संदेह जताया गया कि उन्होंने सतीश साना से 2 करोड़ की रिश्वत ली थी। इस रिपोर्ट के सबूतों (circumstantial evidence) के आधार पर पूरा सच सामने आ सकता है, अगर कोर्ट के द्वारा जांच का आदेश मिले।

आईआरसीटीसी केस में भी आलोक वर्मा पर आरोप है। इस केस में उन्होंने संदिग्ध राकेश सक्सेना का नाम FIR से नाम हटवा दिया था। जिसके पीछे कारण बताया गया कि राकेश सक्सेना उनके करीबियों में से एक थे।

पशु तस्करी के मामले से भी आलोक अछूते नहीं हैं। इस मामले में भी उन पर कई आरोप लगे हैं, हालांकि इनकी अभी पुष्टि नहीं हुई है।

हरियाणा में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रही जाँच में पुख़्ता सबूत के लिए समय और रिसोर्सेज की जरूरत पर आयोग ने बल दिया। हालाँकि आयोग का कहना है कि अगर इस पर उन्हें कोर्ट से जाँच का आदेश मिलेगा तो वो इसका निष्कर्ष दो हफ्तों में जरूर निकाल देंगे।

दिल्ली एयरपोर्ट पर सोने की तस्करी करने वाले राज़कुमार पर भी आलोक वर्मा ने कोई कदम नहीं उठाया था। इसकी पुष्टि भी आयोग की रिपोर्ट द्वारा की गई है।

इसके अलावा भी बहुत से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जो आलोक की साख पर सवाल उठाते हैं। लखनऊ की ब्राँच में नियुक्त एडिशनल एसपी सुधाँशु खरे ने भी आलोक पर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में एटीएस एडिशनल एसपी राजेश साहनी की आत्महत्या के मामले पर आलोक ने जाँच करने से मना कर दिया था। खरे का कहना है कि ऐसा उन्होंने यूपी पुलिस के कुछ अफसरों को बचाने के लिहाज़ से किया था। जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस मामले पर सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

खरे ने आलोक वर्मा पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में पकड़े गए कुछ लोगों को बचाने का भी आरोप लगाया था। साथ ही रंजीत सिंह और अभिषेक सिंह नाम के लोगों को लखनऊ एसबीआई बैंक फ्रॉड के आरोपों से बचाने का भी प्रयास किया था।

आश्चर्य की बात है कि खरे ही वो अधिकारी हैं, जिन्होंने संयुक्त निदेशक राजीव सिंह के खिलाफ विभाग जाँच करने की माँग की थी, लेकिन राजीव पर जाँच बिठाने की जगह आलोक ने खरे पर ही प्रारंभिक जाँच के आदेश दे दिए।

ये सारे मामले और सीवीसी की रिपोर्टों में लगाए गए आरोप निश्चित रूप से ही बेहद गंभीर हैं। मुख्य रूप से विजय माल्या, नीरव मोदी, आईआरसीटीसी मामले जैसे हाई प्रोफाइल मामले। इनके साथ अन्य मामलों को मिलाकर देखेंगे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आलोक वर्मा सीबीआई डायरेक्टर नहीं बल्कि वो दीमक थे, जो अपने पद और कुर्सी से जुड़े दायित्वों के साथ-साथ सीबीआई जैसी संस्था को लगातार खोखला कर रहे थे।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न्यायमूर्ति सीकरी ने सीवीसी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद
आलोक वर्मा को पद से हटाने का फ़ैसला किया जबकि कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन दोनों के फ़ैसले पर अपनी आपत्ति दर्ज़ की थी।

बरखा जी, पीरियड्स को पाप और अपवित्रता से आप जोड़ रही हैं, सबरीमाला के अयप्पा नहीं!

बरखा एक सुंदर-सा नाम है जिसका अर्थ है वर्षा या बारिश। बारिश की प्रक्रिया बहुत ही रोचक होती है। धरती का पानी किसी भी रूप में हो, चाहे वो गंदा नाला हो, नदी हो, समुद्र हो, पोखर हो या झील, गर्मी के कारण वाष्प बनकर, तमाम गंदगी को त्यागकर अपने शुद्ध रूप में, आसमान में पहुँचता है। वहाँ शीतलता के कारण वो बादल बनता है, फिर वही पानी बनकर हम पर वापस बरसता है। ये होती है बरखा!

ये नाम मुझे इसलिए याद आया क्योंकि भारत की मशहूर पत्रकार हैं बरखा दत्त जो अमेरिका को बराबर याद दिलाती हैं कि हमने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया, तुम्हारे यहाँ आजतक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनीं। ये बात उनके उस आर्टिकल में दिखी जिसे उन्होंने ट्विटर के माध्यम से शेयर किया है और कहा है कि आइए और असहमति जताइए।

इस आर्टिकल के शीर्षक से लेकर अंत तक कई जगह कॉन्सैप्चुअल ग़लतियाँ हैं, जो नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि बरखा तो वो है जो तमाम प्रदूषणों को तज कर शुद्ध, शीतल जल बनकर आती है। यहाँ बरखा ने जो लिखा है वो मानसिक प्रदूषण का वैयक्तिकरण है क्योंकि लिखने वाले को इतनी मेहनत तो करनी चाहिए कि वो जिस विषय पर लिख रही है, उसके बारे में अपनी अवधारणाओं और पूर्वग्रहों से बाहर निकलकर कुछ सोचने की कोशिश करे!

बरखा दत्त ने ऐसा कुछ नहीं किया, बस पहले पैराग्राफ़ से एक गलत सोच को सार्वभौमिक सत्य और सनातन धर्म का निचोड़ मानकर ऐसे समाँ बाँधा कि लेफ़्ट-लिबरल आह-वाह करते पगला गए होंगे। वाशिंगटन पोस्ट के ‘ग्लोबल ओपिनियन’ स्तम्भ में शीर्षक से ही बरखा जी ने क्रिएटिविटी और अपनी नासमझी दोनों का परिचय दिया है। ‘स्टेन्स’ शब्द पर किया गया खेल रोचक ज़रूर है, लेकिन जैसा कि वोल्टेयर ने कहा है, ‘अ विटी सेईंग प्रूव्स नथिंग’, तो उस शब्द से साबित कुछ नहीं हुआ।

बरखा दत्त के विचारों के मूल में जो बात है, वो यहाँ आकर शुरु और ख़त्म हो जाती है कि “menstruation should not bar us from praying at a temple”। मतलब, माहवारी या पीरियड्स के लिए किसी भी महिला को मंदिरों में पूजा करने से रोका नहीं जाना चाहिए। ऊपर से यह कथन बिलकुल सही लगता है, तर्कसंगत भी कि आज के दौर में ऐसी बातों की कोई जगह कैसे है?

लेकिन बात ‘अ टेम्पल’ की नहीं है, बात है ‘द टेम्पल’ की। अंग्रेज़ी का थोड़ा बहुत ज्ञान मुझे भी है, इसलिए पता चल जाता है कि बुद्धिजीवी जो ढेला फेंक रहे हैं, वो कहाँ गिरेगा। एक अक्षर से आपने जेनरलाइज़ कर दिया कि महिलाओं को पीरियड्स के कारण पूजा करने से मंदिरों में रोकना ग़लत है, लेकिन आप यह तो बताइए कि कितने मंदिरों में, और क्यों?

आगे बरखा जी ने लिखा है कि ‘मायथोलॉजी के अनुसार’ स्वामी अयप्पा, जो कि वहाँ के देवता हैं, वो ‘एक बैचलर थे’ इसलिए उन्होंने नियम बनाए कि उनके यहाँ कौन आकर आशीर्वाद ले सकता है। बरखा जी, हम लोग एक विचित्र देश में रहते हैं। विचित्र इस कारण कि आप इस देवता के मंदिर में जाने का ढिंढोरा दुनिया भर में भारतीय महिलाओं के प्रोग्रेस पर धब्बे के रूप में दिखा सकती हैं, लेकिन आपको और धब्बे नहीं दिखते।

दूसरी विचित्र बात यह है कि इस देश में मंदिरों के देवी-देवता को ‘लीगल पर्सन’ का दर्जा मिला हुआ है। जैसे कि आपको शायद ज्ञात होगा, और आपने अनभिज्ञता में उसे ज़रूरी नहीं समझा हो, कि अयोध्या केस में ‘रामलला’ भी एक पार्टी है जिसे सुप्रीम कोर्ट तक स्वीकारती है। उसी तरह, अयप्पा स्वामी भी अपने परिसर में कौन आए, न आए उसी तरह डिसाइड कर सकते हैं जैसे कि आप, अपने घर के लिए करती हैं। घर तो छोड़िए, आपके टाइमलाइन पर कोई कुछ बोल देता है तो वो ट्रोल कह दिया जाता है।

आखिर मूर्ति और मंदिर को पत्थर से ज़्यादा क्यों मानते हैं हिन्दू?

जो लोग ईश्वर को मानते हैं, वो मंदिरों को मानते हैं, वो उन बातों को भी मानते हैं जो जानकार पुजारी या शास्त्र बताते हैं। जैसे कि हनुमान की उपासना महिलाएँ कर सकती हैं, पर आप उन्हें छू नहीं सकती। इसके पीछे तर्क यह है कि बजरंगबली की प्राण-प्रतिष्ठा किसी मंदिर या पूजाघर में होने के बाद उनमें उस देवता का एक अंश आ जाता है, और हमारे लिए पत्थर की मूर्ति देवता हो जाती है। जब आप मूर्ति को देवता मानते हैं, और प्राण-प्रतिष्ठा कराकर स्थापित करते हैं, तो आप यह नहीं कह सकते कि मैं तो नहीं मानती कि हनुमान को छूने से उनका ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाएगा।

उसी तरह सबरीमाला में जो देवता हैं, उनकी प्रकृति ब्रह्मचारियों वाली है, और आप वहाँ, वहाँ के स्थापित नियमों के साथ छेड़-छाड़ करके जा रही हैं, तो आपको मनोवांछित फल नहीं मिलेगा। यहाँ आप सामाजिक व्यवस्थाजन्य जेंडर इक्वैलिटी की बात को ग़लत तरीके से समझने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि अगर यहाँ स्त्रियों का जाना वर्जित नहीं रहा तो क्या मूर्ति के पास बैठकर मांसाहार सही होगा? वहाँ क्या जूठन फेंक सकते हैं? क्योंकि मांसाहार तो संविधान प्रदत्त अधिकार है कि हमारी जो इच्छा हो, हम खा सकते हैं। यहाँ मंदिर को आप एक स्थान मात्र नहीं, देवस्थान मानते हैं इसलिए आप उसके नियमों को भी मानते हैं कि यहाँ मांसाहार वर्जित है। कल को संवैधानिक अधिकारों के नाम पर मंदिर में मांस ले जाना भी सही कहा जाएगा क्योंकि बस स्टेशन में तो मना नहीं होता!

उसके बाद बरखा जी ने “institutional weaponization of bigotry against women” का ज़िक्र किया है जिसका मतलब उतना ही ख़तरनाक है जितनी अंग्रेज़ी के ये भारी-भरकम शब्द। कुल मिलाकर मैडम यह कह रही हैं कि व्यवस्थित तरीके से महिलाओं के साथ भेदभाव करने का हथियार तैयार कराया जा रहा है! जी! कल को इसी तर्क से पुरुषों के ट्वॉयलेट महिलाओं को न घुसने देने की बात भी व्यवस्थित तरीके से महिलाओं के साथ भेदभाव की संज्ञा दी जा सकती है? जब एबसर्ड बातें ही करनी हैं, तो ये भी सही!

बरखा दत्त को न तो हिन्दू धर्म के बारे में पता है, न ही वो ऐसी कोशिश करती दिखती हैं। क्योंकि मैंने कोशिश की तो मुझे वैसे लोग मिल गए जो इस पर शोध कर चुके हैं, या इस विषय की अच्छी समझ रखते हैं। हो सकता है वो बेकार ही लोग होते, जिन्हें बरखा दत्त समझ नहीं पाती, यही कह देतीं कि कुतर्की है, लेकिन कोशिश तो कर लेती! उन्होंने नहीं की।

क्या कहते हैं इस विषय पर जानकार

मैंने नितिन श्रीधर नाम के एक लेखक से बात की जिन्होंने सबरीमाला और पीरियड्स को लेकर एक पुस्तक लिखी है जिसमें तमाम समाजों और संस्कृतियों में इसकी अवधारणा को लेकर बात की गई है। उन्होंने बरखा दत्त के आर्टिकल को पढ़ने के बाद संक्षेप में यह कहा:

“बरखा दत्त का लेख सिर्फ़ इसलिए ग़लत नहीं है कि वो हिन्दू संस्कृति की इन बुनियादी बातों से अनभिज्ञ हैं जैसे कि मंदिर ऊर्जा का एक केन्द्र होता है, न कि घूमने-फिरने की जगह; या यह कि मंदिर में उस देवता का एक विशिष्ट तत्व और विशिष्ट ऊर्जा का वास होता है, जिसे सुरक्षित रखना ज़रूरी है; बल्कि इस स्तर पर भी उनके लेखन में समस्या है कि वो पश्चिमी संस्कृति के ईसाई मत में पीरियड्स को लेकर फैली भ्रांतियों को हिन्दू धर्म पर थोप रही हैं।

हिन्दू धर्म में माहवारी या पीरियड्स को ‘अशौच’ कहते हैं जिसका ‘नैतिक पतन’ से कोई वास्ता नहीं। ये किसी भी तरह से किसी पाप की तरफ़ इशारा नहीं करता। हिन्दू धर्म में अशौच का मतलब बस इतना है कि रजस्वला स्त्री ‘रजस्’ की ऊँची अवस्था को प्राप्त है। यहाँ ‘रज’ का तात्पर्य रक्त से है, और ‘रज’ को राजसिक ऊर्जा भी कहते हैं। ‘रज’ ही ‘रजोगुण’ भी है।

यही कारण है कि जब आप ‘रजस्’ की ऊँची अवस्था में होते हैं तो आप धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने या मंदिरों में जाने की स्थिति में नहीं होते। जब पीरियड्स के लिए ‘अशौच’ का प्रयोग होता है तो उसका मतलब बस यही है। पीरियड्स को अशुद्धता से जोड़ने की बात ईसाई मत में है जहाँ इसे ईव के पतन से जोड़कर देखा जाता है। उनके लिए पीरियड्स में होना पाप की स्थिति में होने जैसा है। ये हमारा दुर्भाग्य है कि भारतीय लोग पश्चिमी संस्कृति की इन बातों का अंधानुकरण करते हैं, और फिर उन्हें हिन्दू परम्पराओं के साथ मिलाकर कुछ का कुछ बना देते हैं।”

बरखा दत्त चाहतीं तो इसके दूसरे नज़रिए को देख पातीं क्योंकि वो एक पत्रकार हैं, राजनेता नहीं कि उन्हें विचारधारा के खूँटे में बँधे रहने की बाध्यता है। केरल के ही क़रीब छः मंदिर ऐसे हैं जहाँ पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। दुर्गा को सिंदूर सिर्फ़ महिलाएँ ही लगा सकती हैं। कामख्या मंदिर के बारे में मैं क्या लिखूँ जहाँ रजस्वला होती देवी की उपासना होती है क्योंकि बरखा दत्त की बुनियाद ही हिली हुई है जहाँ वो ‘अ टेंपल’ कहते हुए भारत के हर मंदिर में रजस्वला लड़की के जाने पर प्रतिबंध की बात ‘ग्लोबल ओपिनियन’ में रख रही हैं।

आर्टिकल का अंत झूठ और अनभिज्ञता की बुनियाद पर खड़े लेख के अंत होने के नैसर्गिक तरीक़े से ही होता है जहाँ वो कहती हैं कि औरतों की उपलब्धियों का जश्न मनाने की हर बात बेकार है अगर ये माना जाता रहे कि “female blood is a social blot” (स्त्री का ख़ून समाज पर लगा कलंक है)।

अपने आप को वो एक जगह नारीवादी भी बताती हैं जो कि कोई बुरा काम नहीं है लेकिन अगर वो नारीवाद को समझ पातीं तो उन्हें इस बात का अहसास होता कि नारीवाद, नारी के पुरुष बनने की कोशिश नहीं है, बल्कि नारीवाद नारियों को समान अवसर देने की बात है। साथ ही, कोई भी ‘वाद’ सामाजिक या धार्मिक दायरे से बाहर नहीं हो सकता क्योंकि हम इसी समाज का हिस्सा हैं, जो आप चाहें, या न चाहें, धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से चलता है।

जो मान्यताएँ ग़लत हैं, उन्हें हम नकारेंगे। कोई परम्परा है जो कि स्त्री की स्वतंत्रता का हनन करती है, तो उसका विरोध होना चाहिए लेकिन स्त्री की स्वतंत्रता का ये बिलकुल मतलब नहीं है कि आप ज़िद करके एक बड़ी जनसंख्या के धार्मिक अनुष्ठान को सिर्फ़ इसलिए भंग करने पर तुली हैं क्योंकि उसके कुछ नियम आपकी समझ से बाहर हैं।

अंत में, बरखा जी, मंदिर वो जाते हैं जिनकी आस्था है भगवान में। मंदिरों को पर्यटन स्थल की तरह देखने के लिए भी लोग जाते हैं, उस पर मनाही नहीं है। लेकिन किसी दूसरे की धार्मिक मान्यताओं का हनन सिर्फ़ इसलिए करना क्योंकि आप कर सकती हैं, सर्वथा अनुचित है। मैं चाहूँगा कि आप इस धर्म को समझने की कोशिश करें, कुछ जानकार लोगों से बात करें, अपने आप को अंतिम अथॉरिटी मानने की कुलबुलाहट पर नियंत्रण रखें और दूसरों को सुनने की कोशिश करें।

चूँकि आप गोमांस खा सकती हैं, तो क्या कल आप संविधान के मौलिक अधिकारों का हवाला देकर किसी मंदिर के गर्भगृह में बैठकर गोमांस खाएँगी? क्योंकि आपके तर्क के अनुसार आप ‘ग्लोबल ओपिनियन’ वाले स्तम्भ में यह भी लिख सकती हैं कि इक्कीसवीं सदी के भारत में मंदिरों में मन का भोजन खाने पर पाबंदी हैं। आपको शायद पता न हो, पर कुतर्क इसी को कहते हैं। आप अगर चाहें तो सबरीमाला पर अपने दस मिनट इस लेख पर दे सकती हैं, क्या पता नए आर्टिकल के लिए किसी ‘बिगट’ के कुछ शब्द आपको स्ट्राइक कर जाएँ!

कोशिकाओं में ऊर्जा स्रोत की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक डॉ सुब्बाराव का भी आज है जन्मदिन

आज स्वामी विवेकानंद का जन्मदिवस है जो सदैव विज्ञान की वकालत करते थे और धर्म को भी एक प्रकार का विज्ञान मानते थे। दैवयोग से आज एक महान वैज्ञानिक डॉ येल्लाप्रगडा सुब्बाराव का भी जन्मदिन है जिनका नाम बहुत कम लोगों ने सुना है। सुब्बाराव का जन्म 12 जनवरी 1895 को तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के भीमावरम नगर में हुआ था। स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनके परिजनों की मृत्यु हो जाने के कारण उन्होंने मैट्रिकुलेशन तीन साल में पास किया था। उसके बाद उनकी शिक्षा मित्रों के सहयोग से पूरी हुई।

डॉ येल्लाप्रगडा सुब्बाराव ने Adenosine Triphosphate (ATP) मॉलिक्यूल की कार्यप्रणाली का पता लगाया था जिससे कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है। हम हाई स्कूल में विज्ञान की पुस्तकों में पढ़ते हैं कि कोशिकाओं में ऊर्जा तब उत्पन्न होती है जब उसमें कार्बोहायड्रेट ऑक्सीजन के साथ जलता है। कोशिकाओं में माईटोकोन्ड्रिया होता है जहाँ यह ऊर्जा ATP मॉलिक्यूल के रूप में उत्पन्न होती है। हमारे शरीर की मांसपेशियाँ इस ऊर्जा की मदद से कार्य करती हैं। डॉ सुब्बाराव की यह खोज उन्हें डीएनए की खोज करने वाले वाटसन और क्रिक जैसे वैज्ञानिकों के समतुल्य ला खड़ा करती है।

परन्तु दुर्भाग्य से अधिकांश भारतीयों ने पाठ्यपुस्तकों में डॉ सुब्बाराव का नाम तक नहीं पढ़ा होगा। डॉ सुब्बाराव की प्रारंभिक अकादमिक पढ़ाई मद्रास मेडकल कॉलेज में हुई थी। सुब्बाराव राष्ट्रवादी विचारधारा के व्यक्ति थे और गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर खादी का लैबकोट पहनते थे, इसीलिए अंग्रेज प्रोफेसर उनसे नाराज थे। पढ़ाई में अच्छा होने के बावजूद सुब्बाराव को MBBS के स्थान पर LMS की कमतर डिग्री दी गई थी जिसके कारण उन्हें मद्रास मेडिकल सर्विस में दाख़िला नहीं मिला था।

लक्ष्मीपति आयुर्वेदिक कॉलेज में एनाटोमी पढ़ाते हुए उनकी रुचि आयुर्वेद में बढ़ी और उन्होंने इस विषय पर काफ़ी रिसर्च भी किया। उनकी आगे की पढ़ाई का खर्च उनके होने वाले श्वसुर कस्तूरी सत्यनारायण मूर्ति ने वहन किया। बाद में जब वे हार्वर्ड पढ़ने गए तब भी उनके श्वसुर ने उनकी सहायता की। डॉ सुब्बाराव ने 1930 में पीएचडी की डिग्री अर्जित की थी।

उन दिनों अमेरिका में बाहर से आने वालों को सरलता से वीसा नहीं मिलता था। डॉ सुब्बाराव ‘फिज़िशियन’ बनकर अमेरिका गए और उन्होंने वहाँ उन्होंने सायरस फिस्के के साथ मिलकर ATP की खोज की। हमारे शरीर को जब ऊर्जा की आवश्यकता होती है तब वह ATP को Adenosine Diphosphate (ADP) में कन्वर्ट करता है। डॉ सुब्बाराव के शोध ने शरीर में मौजूद फॉस्फोरस के महत्व को समझाया था। उन्होंने विभिन्न प्रकार के एंटीबायोटिक पर भी काम किया था जिसके फलस्वरूप ऑरियोमाइसीन नामक शक्तिशाली एंटीबायोटिक बना।

डॉ सुब्बाराव ने कैंसर के इलाज के लिए मेथोरेक्सेट नामक केमिकल को भी सिन्थेसाइज़ किया था जिससे कीमोथेरेपी के लिए सबसे पहला एजेंट निर्मित हुआ। भारत के स्वतंत्र होने के एक वर्ष पश्चात ही 1948 में डॉ सुब्बाराव का देहांत हो गया था। उनके बारे में पत्रकार डोरोन एट्रिम ने लिखा था “आपने शायद डॉ सुब्बाराव का नाम नहीं सुना होगा जबकि वे इसलिए जिए ताकि आप जीवित रह सकें।”