Thursday, November 7, 2024
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रायसीना डायलॉग में थलसेनाध्यक्ष जनरल रावत के बयान के मायने


गत तीन वर्षों में रायसीना डायलॉग सत्ता पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभाव रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। यहाँ मीठी, कड़वी, साधारण, गरिष्ठ सभी प्रकार की बातें कही जाती हैं। यहाँ जो कुछ भी कहा जाता है वह सुर्खियाँ बटोरने की हैसियत रखता है। इसी क्रम में थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने भी रायसीना डायलॉग में कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं।

जनरल रावत ने एक बार फिर विश्व समुदाय को संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव संख्या 1373 की याद दिलाई और कहा कि आतंकवाद को समाप्त करने की प्रक्रिया में पहले उसे परिभाषित करना आवश्यक है। ध्यातव्य है कि विश्व में अभी तक आतंकवाद की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं गढ़ी गई है।

आतंकवाद के प्रत्येक भुक्तभोगी देश के लिए अपनी अलग परिभाषा है ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य में किसी हिंसक घटना के लिए यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है कि वह आतंकी घटना है भी या नहीं।

सुन त्ज़ू ने भी आर्ट ऑफ़ वॉर में कहा था कि शत्रु को तभी समाप्त किया जा सकता है जब उसकी पहचान निश्चित हो जाए। जब तक आतंकवाद की परिभाषा नहीं गढ़ी जाएगी उसे समाप्त करने की बात करना बेमानी है। जनरल रावत ने यह भी कहा कि आतंकवाद को आर्थिक पोषण देने वाले अफ़ीम और चरस के धंधे भी बंद होने चाहिए।

जनरल रावत के वक्तव्य का सबसे महत्वपूर्ण अंग आतंकवाद को लेकर मीडिया में प्रसारित किए जा रहे समाचार और उससे जनता में उपजे दृष्टिकोण को लेकर रहा। इस संदर्भ में जैसा कि अक्सर होता है मुख्य धारा के मीडिया ने जनरल रावत के वक्तव्य को गलत तरीके से प्रस्तुत किया।

जनरल ने मीडिया पर लगाम लगाने को नहीं कहा बल्कि उन्होंने कहा कि मीडिया जिस स्तर पर आतंकवादी घटनाओं को कवरेज देता है उससे आतंकी संगठनों का मनोबल बढ़ता है। आतंकवादी भी यही चाहते हैं कि उनकी कृत्यों का अधिक से अधिक प्रचार हो जिससे भय का वातावरण स्थाई रूप से बना रहे।

उन्होंने स्पष्ट रूप से इसे ‘terro-vision’ का नाम दिया और कहा कि आतंकवादी संगठन प्रोपेगंडा युद्ध का सहारा लेते हैं और आतंकी घटनाओं का आवश्यकता से अधिक प्रचार उनके मंसूबों को बढ़ावा देता है।

साथ ही जनरल रावत ने सोशल मीडिया के माध्यम से ज़हरबुझे मज़हबी उन्माद को तेज़ी से फ़ैलने से रोकने की वकालत भी की। उनका संकेत कश्मीर की ओर था जहाँ कुछ समय पहले व्हाट्सप्प ग्रुप बनाने वालों को निकटतम पुलिस थाने में अपनी पहचान दर्ज कराना अनिवार्य किया गया था।

पाकिस्तान का नाम न लेते हुए जनरल रावत ने कहा कि जब तक राज्य की सत्ता द्वारा आतंक पोषित होता रहेगा तब तक वह समाप्त नहीं होगा। इतिहास भी हमें यही बताता है कि भारत से अलग होकर जब पाकिस्तान बना तभी से वह क़ुर्बान अली के उस सिद्धांत पर चल रहा है जिसने भारत को हजार घाव देने का संकल्प लिया था।

पहले पाकिस्तान ने प्रत्यक्ष युद्ध लड़े जिसमें असफल होने पर अफ़ग़ानी मुजाहिदों के बल पर आतंकवाद का सहारा लिया। अब जब हमने उसका भी मुँहतोड़ जवाब देना सीख लिया है तब पाकिस्तान प्रोपेगंडा युद्ध का सहारा लेता है जिसमें मानवाधिकार हनन इत्यादि जैसे मुद्दों को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर जोर-शोर से उठाता है।

रायसीना डायलॉग में जनरल बिपिन रावत का वक्तव्य

‘भारत के लिए ईरान, तालिबान पर अपने ‘प्रभाव’ का इस्तेमाल कर सकता है’

ईरान के सूत्रों के मुताबिक़, तेहरान अफ़गान सरकार की ओर से तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है। अगर भारत आतंकवादी संगठन के साथ बातचीत के लिए तेहरान की मदद का इस्तेमाल करना चाहता है तो वो हमेशा इसके लिए तैयार हैं।

ईरानी विदेश मंत्री जावेद ज़रीफ़ ने द्विपक्षीय वार्ता के लिए भारतीय नेताओं से मुलाक़ात की, और साथ ही ‘रायसीना डायलॉग’ को संबोधित भी किया। इस द्विपक्षीय वार्ता के मद्देनज़र तेहरान के तालिबान के साथ संबंध होने की बात का ख़ुलासा हुआ।

तालिबान पर अपने प्रभाव के इस्तेमाल को ईरान ने स्वीकारा

हाल ही में, एक ईरानी प्रतिनिधिमंडल तेहरान में तालिबान से मिला, हालाँकि उच्च-स्तरीय ईरानी सूत्रों का कहना है कि पहली बैठक मॉस्को में हुई थी। उन्होंने कहा, “तालिबान पर हमारा कुछ प्रभाव है, लेकिन हम आमतौर पर अफ़ग़ान सरकार की तरफ से इसका इस्तेमाल करते हैं। हमें भारत के लिए भी इसका इस्तेमाल करके खुशी मिलेगी।”

फ़िलहाल, भारत द्वारा ऐसे किसी भी प्रकार के प्रस्ताव को स्वीकारने की बात सामने नहीं आई है। अनुमान के तौर पर पिछले 17 वर्षों में भारत ने कुछ संपर्क बनाए हैं, हालाँकि इस बात की कोई पुष्टि नहीं है कि ये संपर्क कितने व्यापक और गहरे हैं।

किसी भी मामले में, भारत की स्थिति काबुल सरकार की तरफ से चारो तरफ से घिरी है। सूत्रों की मानें तो तालिबान के साथ किसी तरह का संपर्क आवश्यक रूप से इस स्थिति पर प्रभाव डालेगा।

अफ़ग़ानिस्तान में अपने क़दम पीछे ले सकता है ट्रम्प प्रशासन

वाशिंगटन से ‘लीक’ हुई एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रम्प प्रशासन अफ़ग़ानिस्तान में अपने क़दम पीछे ले सकता है, क्योंकि अमेरिका को ऐसा लगता है कि 7,000 अफ़ग़ानी सेनानियों ने तालिबान के साथ मिलकर क्षेत्रीय युद्धाभ्यास को फिर से शुरू कर दिया है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अमरीका ने तालिबान के साथ सीधी बातचीत की थी, जिसका चौथा दौर बुधवार को क़तर में होगा। ख़बरों के अनुसार, अमेरिका ने क़तर में वार्ता आयोजित करने की तालिबानी माँग के आधार पर रियाद जाने से इनकार कर दिया, जिसकी योजना पहले निर्धारित थी।

अमेरिका बना पड़ोसी देशों के उपहास का पात्र

रिपोर्टों के मुताबिक़, समझौते के मसौदे में देश के नागरिकों के हस्तक्षेप के चलते अमेरिकी सैनिकों की वापसी शामिल थी। अन्य लोगों के मुताबिक़ मुख्य शहरी केंद्रों को तालिबान से दूर रखते हुए, अमेरिका आतंकवाद-विरोधी भूमिका के लिए ख़ुद पर प्रतिबंध लगा सकता है। लेकिन, अभी तक इस मुद्दे पर किसी भी प्रकार की स्थिति साफ़ नहीं हो सकी है, इस कारण से अमेरिका पड़ोसी देशों के उपहास का पात्र बन गया है।

दूसरी ओर, ईरानी सूत्रों के मुताबिक़ यह ‘समझौता’ देशों के पुराने समूह – सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और पाकिस्तान को एक साथ एक ही मंच पर वापस लाया है, ये वो देश हैं जिन्होंने तालिबान सरकार का समर्थन किया था।

संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने की थी पाकिस्तान की आर्थिक मदद

1990 के दशक में, अमरीकी विशेष दूत जलमय ख़लीलज़ाद का भी तालिबान के साथ बातचीत करने का एक लंबा इतिहास रहा है, जो तब अमेरिकी तेल हितों के लिए काम कर रहा था। पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद भी की थी जिससे वो तालिबानी वार्ता के लिए इस्लामाबाद को आगे ला सके।

वार्ता के लिए अफ़ग़ान के साथ मंच साझा करने से तालिबान का इनकार

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA), हमदुल्ला मोहिब, जो पिछले सप्ताह भारतीय अधिकारियों के साथ बातचीत के लिए दिल्ली आए थे, उनसे किसी भी तरह की बातचीत के लिए मना कर दिया गया था, जिसमें प्रभावकारिता संबंधी शांति वार्ता शामिल थी।

इसके बाद हमदुल्ला मोहिब ने दिसम्बर के अंत में यूएई, सऊदी अरब और अमेरिका के साथ हुई बैठक में अफ़ग़ान सरकार का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन अफ़ग़ान सरकार द्वारा वार्ता में शामिल होने की माँग के बावजूद, तालिबान ने उसे एक मंच पर आने से दूर रखा।

अफ़ग़ान सरकार के लिए, तालिबान वार्ता एक ‘जल्दबाज़ी’ का मामला है, इसकी वजह अमेरिका के भीतर अलग-अवग विचारधारा का होना है।

तालिबान का बढ़ता क़द, देशों पर मँडराता ख़तरा

ईरान और अफ़ग़ानिस्तान सरकार ने एक विश्वास पत्र आपस में साझा किया है जो उन्होंने भारत सरकार के साथ भी साझा किया, कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान और भारत दोनों देशों की सुरक्षा के लिए तो ख़तरा साबित होगा ही, लेकिन ‘पाकिस्तान के लिए तो उसके अस्तित्व को नष्ट करने के समान होगा’।

अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वो इस स्थिति को किस नज़रिये से देखता है। लेकिन इस कटु सत्य से भी मुँह नहीं मोड़ा जा सकता कि तालिबान एक अन्य महाशक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है, जिसका आकार दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।

इस बाबत, भारत सरकार ने रूस के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव के साथ बातचीत की और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर अमेरिकी दूत जलमय ख़लीलज़ाद के शामिल होने की भी उम्मीद है।

कश्मीर: सरकार की ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ नीति ने मार गिराए 253 आतंकवादी

गृह मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में 28 दिसंबर तक जम्मू और कश्मीर में मुठभेड़ों में 253 आतंकवादी मारे जा चुके हैं। वर्ष 2017 में यह आँकड़ा 213 था, 2016 में 150 और 2015 में 108। सरकार ने यह भी कहा कि 2017 में 18 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया।

आतंकवाद के खिलाफ ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति और सुरक्षा बलों द्वारा दी गई प्रभावी प्रतिक्रिया, आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने में कारगार साबित हुई है। रिपोर्टों के अनुसार, राज्य में 300 से अधिक आतंकवादी सक्रिय हैं, जिनकी मदद कुछ स्थानीय लोग कर रहे हैं।

गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर द्वारा कल लोकसभा में दिए गए लिखित जवाब के अनुसार, सरकार ने युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिनमें रोजगार के अवसर प्रदान करना और ‘यूथ एक्सचेंज’ कार्यक्रम शामिल हैं। विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए पीएम विकास पैकेज, 2015 के तहत 80,068 करोड़ रुपये भी प्रदान किए गए हैं।

सरकार ने स्कूलों और कॉलेज छोड़ने वालों को विकल्प और अवसर प्रदान करने तथा स्नातकों, डिप्लोमा धारक युवाओं को दक्ष और रोजगार पाने योग्य बनाने के लिए विशेष उद्योग पहल (SII) जैसी कई अन्य पहल भी की हैं। सरकार ने जम्मू और कश्मीर से बाहर के राज्यों में अध्ययन करने के लिए 12 वीं कक्षा या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना भी शुरू कर दिया है।

हमने पहले अपनी रिपोर्ट में बताया था कि वामपंथी आतंकवाद (LWT) से निपटने के लिए, आंतरिक सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार की पहल ने किस प्रकार से सकारात्मक परिणाम निकाले हैं। वर्तमान NDA सरकार क्षेत्र में आतंक को खत्म करने के लिए “कैरट एंड स्टिक” नीति के प्रयोग से ‘वामपंथी-आतंकवाद’ (LWT) की समस्या से सफलतापूर्वक लड़ रही है।

सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के गढ़ों में व्यापक और निर्धारित लक्षित अभियान चलाए हैं और आतंकवादियों का सफाया करने में सफल रहे हैं। राज्य सरकार के साथ-साथ सुरक्षा बलों ने भी पुनर्वास की पहल की है ताकि नक्सली बंदूकों को त्यागकर बिना किसी हिंसा के मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इस दृष्टिकोण को सरकार की सफल पहलों में से एक माना जा रहा क्योंकि कई नक्सली अपने शिविरों से बाहर आ चुके हैं और अब सामाजिक जीवन का हिस्सा हैं।

सरकार ने इस क्षेत्र में सड़क, रेलवे, स्कूल, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय परिव्यय के साथ इसका समर्थन किया है। प्रौद्योगिकी और मोबाइल नेटवर्क तक पहुंच ने क्षेत्र में बड़े बदलाव लाए हैं, क्योंकि इसने स्वास्थ्य देखभाल और शैक्षिक लाभ प्रदान करने में सफलता हासिल की है और स्थानीय लोगों को अपनी आजीविका के अवसरों को बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में मदद की है।

दंतेवाड़ा-बीजापुर सीमा के साथ-साथ नक्सल विरोधी अभियान के दौरान तिमिनार और पुसनार के जंगलों में आठ नक्सलियों को मार गिराए जाने के बाद हाल ही में, कुछ नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हें नक्सल शिविरों में बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रशासन, सरकार की विभिन्न नीतियों और पहलों के माध्यम से, आत्मसमर्पण करने वाले कई पूर्व नक्सलियों के पुनर्वास में कामयाब रहा है।

ओडिशा में महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी नवीन पटनायक की BJD

बीजू जनता दल के वर्तमान अध्यक्ष नवीन पटनायक ने साफ़ शब्दों में कहा “उनकी पार्टी महागठबंधन का हिस्सा नहीं होगी।” नवीन पटनायक ने 8 जनवरी 2018 को अपने एक बयान में कहा था कि महागठबंधन पर फ़ैसला उनकी पार्टी बाद में करेगी क्योंकि इस विषय पर निर्णय के लिए पार्टी कुछ समय लेगी। लेकिन बुधवार की सुबह नवीन पटनायक ने स्पष्ट कर दिया कि 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी महागठबंधन से दूर रहेगी। इसके साथ ही यह भी कहा कि उनकी पार्टी भाजपा-कॉन्ग्रेस से समान दूरी बनाए रखेगी। पटनायक के इस स्टेटमेंट के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी के महागठबंधन की कोशिश को झटका लगा है।

2014 लोकसभा चुनाव में बीजेडी का प्रदर्शन

ओडिशा में नवीन पटनायक की पार्टी हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका में रहती है। यहाँ कुल 21 लोकसभा सीटें हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में पटनायक को 21 में से 20 सीटें मिली थी। इस तरह ओडिशा में पटनायक की पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनाव में ही कॉन्ग्रेस की पकड़ को कमजोर कर दिया था। हलांकि भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा की एक सीट पर खाता खोलकर 2019 में बेहतर प्रदर्शन का संकेत दे दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में पटनायक की पार्टी को 44.1 प्रतिशत वोट मिले थे।

ओडिशा में पटनायक के इस कदम से भाजपा को मिलेगा लाभ

ओडिशा में पिछले कुछ समय से अमित शाह पार्टी कैडर को मजबूत कर रहे हैं। ओडिशा के प्रदेश अध्यक्ष बसंत पंडा के नेतृत्व में भाजपा ने बूथ स्तर तक के लिए कार्यकर्ताओं की फ़ौज तैयार कर ली है। बसंत पंडा ने ओडिशा के किसानों से कर्ज माफ़ी का वादा किया है। यही नहीं पार्टी ने हाल में भाजपा महासचिव अरूण सिंह को राज्य का चुनाव प्रभारी बनाया है। ऐसे में यदि बीजेडी और कॉन्ग्रेस अलग होकर ओडिशा में चुनाव लड़ती है तो इसका सीधा फ़ायदा भाजपा को मिलेगा।

मोदी देश के दूसरे अंबेडकर, गरीबी में पले PM ने गरीबी के दर्द को समझा: उत्तराखंड मुख्यमंत्री

भाजपा सरकार ने लोकसभा में 323/3 की बहुमत से सामान्य वर्ग के वंचित और ग़रीब लोगों के लिए 10% आरक्षण की सुविधा देने वाले बिल को पारित करा दिया है। राज्यसभा में इस आरक्षण बिल का पारित होना अभी बाक़ी है। मोदी सरकार के इस फ़ैसले पर अपनी राय ज़ाहिर करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने मोदी को देश का दूसरा अंबेडकर बताया है।

अपने बयान में मुख्यमंत्री त्रिवेंन्द्र सिंह रावत ने कहा “प्रधानमंत्री मोदी 21वीं सदी में पैदा होने वाले दूसरे अंबेडकर हैं। उन्होंने देश के आर्थिक रूप से गरीब लोगों के लिए शानदार फ़ैसला लिया है।” रावत ने सरकार के इस फ़ैसले के लिए प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए कहा कि आज एक गरीब के घर में पैदा होने वाले प्रधानमंत्री ने देश के गरीबों के दर्द को समझा है।  

संविधान संशोधन की ज़रूरत

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि भले ही 10 फ़ीसदी आरक्षण को कैबिनेट और लोकसभा में मंज़ूरी मिल गई हो, लेकिन इसे लागू करने की डगर अभी भी मुश्किल है। इस फ़ैसले को ठोस स्वरूप देने के लिए सरकार यह बिल राज्यसभा में भी पारित कराना होगा। इसके बाद संविधान में संशोधन करने की ज़रूरत पड़ेगी।

संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 15 और 16 संशोधित होंगे। अनुच्छेद 15 क्लॉज़ 4 के अनुसार सरकार किसी भी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है।

संभव है कि इसी क्लॉज़ में संशोधन हो और उसमें आर्थिक पिछड़ेपन को भी जोड़ा जाए। अनुच्छेद 16 क्लॉज़ 4 के अनुसार भी सरकारी नौकरियों में सरकार किसी भी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकती है जिसे संशोधित कर इसमें आर्थिक पिछड़ेपन का प्रावधान किया जा सकेगा।

हालाँकि, सरकार के इस फ़ैसले का कई पार्टियों ने स्वागत किया है जिसमें बीजेपी की धुर विरोधी पार्टी कॉन्ग्रेस भी शामिल है। इसके अलावा एनसीपी (राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी) और आम आदमी पार्टी ने भी इस फ़ैसले का समर्थन किया है।

बता दें कि केंद्र और राज्यों में पहले ही अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फ़ीसदी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए 22 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है। कई राज्यों में आरक्षण का प्रतिशत 50% से भी ज़्यादा है।

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक पर बहस का कारण?

मंगलवार को ‘नागरिकता संशोधन विधेयक 2016’ लोकसभा में पास हो गया है। इस बिल को लेकर असम की सड़कों से लेकर संसद तक काफी विरोध प्रदर्शन हो रहा है। भाजपा ने इस विधेयक को पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश से विस्थापन की पीड़ा झेल रहे हिन्दू, पारसी, ईसाई, बौद्ध, जैन और सिख अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए अहम फ़ैसला बताया है। बिल के पारित होने पर गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में अपने भाषण में कहा, “नागरिक संशोधन विधेयक सिर्फ असम के लिए नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में रह रहे प्रवासियों पर भी लागू होता है। यह कानून देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। असम का भार सिर्फ असम का नहीं है, पूरे देश का है।”

नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद भाजपा प्रवक्ता मेहदी आलम बोरा पहले व्यक्ति बन गए हैं जिन्होंने अपना विरोध दर्ज़ करने के लिए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफ़ा भी दे दिया है। उनका कहना है कि वो इस बिल का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह असम समाज के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे को प्रभावित कर समाज को नुकसान पहुँच सकता है।

विधेयक और इससे जुड़े विरोध की कुछ अहम बातें

सोमवार से ही इसके खिलाफ कुछ राजनीतिक दल और संगठन असम में जोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। असम में सोमवार से ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) समेत 30 संगठनों ने बंद की घोषणा की था। मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने संसद में इस विधेयक पर प्रदर्शन किया। असम के लोगों को डर है कि बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थी उनकी संस्कृति और भाषाई पहचान के लिए खतरा हो सकते हैं। दूसरी ओर, तृणमूल कॉन्ग्रेस ने इसे बाँटने वाली राजनीति बताया है। केन्द्रीय भाजपा मंत्री एस एस आहुलवालिया का कहना है कि यह विधेयक उन देशों के अल्पसंख्यकों के लिए लाया गया है जो बांग्लादेश, पश्चिमी पाकिस्तान से अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं। वहीं अक्सर साम्प्रदायिक और भड़काऊ बयान देने वाले एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने विधेयक को संविधान के ख़िलाफ़ बताया है। उनका कहना है कि भारत में धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जानी चाहिए।

नागरिक संशोधन विधेयक: एक नज़र में टाइमलाइन

राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद से समझौता हुआ था कि 1971 के बाद असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों को निकाला जाएगा। 1985 के असम समझौते (‘आसू’ और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता) में नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च 1971 थी। नागरिकता बिल में इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है। यानी नए बिल के तहत 1971 के आधार वर्ष को बढ़ाकर 2014 कर दिया गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई शरणार्थियों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर नागरिकता मिल जाएगी।

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य के अनुसार इस विधेयक से असम के स्थानीय समुदायों के अस्तित्व पर खतरा हो गया है। वे अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बन गए हैं। कैबिनेट द्वारा नागरकिता संशोधन बिल को मंजूरी देने से नाराज असम गण परिषद ने राज्य की एनडीए सरकार से अलग होने का ऐलान किया है।

यह संशोधन विधेयक 2016 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि ये विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा। इसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई हो।

नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। भाजपा ने 2014 के चुनावों में इसका वादा किया था। कॉन्ग्रेस, तृणमूल कॉन्ग्रेस, सीपीएम समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना और जेडीयू ने भी ऐलान किया था कि वह संसद में विधेयक का विरोध करेंगे। बिल का विरोध कर रहे बहुत से लोगों का कहना है कि यह धार्मिक स्तर पर लोगों को नागरिकता देगा। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी के अनुसार केंद्र के इस फैसले से करीब 30 लाख लोग प्रभावित होंगे। विरोध कर रही पार्टियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावनाओं के खिलाफ है।

नागरिकता बिल पर भाजपा का विज़न क्या हो सकता है?

राजनितिक क़यास कहीं न कहीं ये मान कर लगाए जा रहे हैं कि भाजपा द्वारा असम में नागरिकता बिल पारित करने के पीछे यहाँ पर अल्पसंख्यक समुदाय की बड़ी तादाद के साथ हिन्दू धर्म के नागरिकों को भी संरक्षण देने की मंशा है। हो सकता है कि ऐसे प्रस्ताव से असम को मुस्लिमों के एकाधिकार में आने से रोका जा सकेगा। कुछ लोगों का मानना है कि असम राज्य में मुस्लिम बड़ी राजनीतिक ताकत न बन सकें यह सुनिश्चित करने के लिए असम को अतिरिक्त हिन्दू आबादी की ज़रूरत है। असम में मुस्लिम आबादी 34% से ज्यादा है। इनमें से 85% मुस्लिम ऐसे हैं जो बाहर से आकर बसे हैं।  ऐसे लोग ज्यादातर बांग्लादेशी हैं। पूर्वोत्तर में असम सरकार में मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा उन्हें ‘जिन्ना’ कह कर बुलाते हैं।

रिपोर्ट्स के अनुसार, 1951 से असम की जनगणना के आंकड़ों बताते हैं कि यहाँ पर 1951-61 के दौरान हिंदू 33.71% और मुस्लिम 38.35% बढ़े। जबकि 1961 से 71 के बीच हिंदू 37.17% और मुस्लिम 30.99% बढ़े। 1971 से 1991 के बीच असम की जनसँख्या में हिंदू 41.89% और मुस्लिम 77.41% बढ़े (1981 में असम में जनगणना नहीं हुई थी)। 1991 से 2001 के दौरान हिन्दुओं की जनसंख्या में असम में वृद्धि नहीं हुई, जबकि मुस्लिम 29.30% बढ़े।  इसके अलावा 2001 से 2011 के दौरान हिंदू 10.9% और मुस्लिम आबादी 29.59 बढ़ी। नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) के अंतिम ड्राफ्ट में असम में रह रहे 40 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। ड्राफ्ट में 2.89 करोड़ नाम हैं, जबकि आवेदन मात्र 3.29 करोड़ लोगों ने किया था।फिलहाल असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया जारी है।

जिग्नेश-केजरीवाल-लालू गिरोह आरक्षण पर फैला रहा है झूठ, सचेत रहिए

अप्रैल 2018 में कुछ दंगाई नेताओं ने, जो खुद को दलितों के हिमायती बताते हैं, एक जातीय आग लगाई थी जिसकी भेंट 14 लोग चढ़ गए। व्हाट्सप्प पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST एक्ट पर दिए गए निर्देश को नेताओं ने यह कहकर फैलाया कि सरकार आरक्षण की व्यवस्था हटा रही है। उसके बाद जो जान-माल की हानि हुई वो सबके सामने है।

चूँकि आगजनी हुई, ग़रीब सब्ज़ीवालों के दुकान तोड़े गए, हिंसा चरम पर पहुँचकर 14 लोगों को लील गई, तो इस आंदोलन को मोदी-विरोधी नेताओं ने ‘सफल’ कहा। लेकिन कुछ ही दिनों में सच सामने आया और सरकार भी परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को नकार बैठी।

इस हिंसक आंदोलन से सीख लेकर अरविन्द केजरीवाल और जिग्नेश मवानी जैसे नेता फिर से जातीय हिंसा को हवा देने पर तुले हुए हैं। कल जब लोकसभा में संविधान संशोधन के ज़रिए सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण का विधेयक पास हो गया, और आज राज्य सभा में इस पर चर्चा हो रही है, तब ये दंगाई नेता इस तरह के बयान दे रहे हैं जिसका कोई सिर-पैर नहीं है।

फ़िलहाल जिग्नेश मेवानी का ट्वीट पढ़िए जिसमें वो, हमारी मुख्यधारा की मीडिया की तरह ‘विश्वस्त सूत्रों’ से बात करते हुए फ़र्ज़ी बात लिख रहे हैं:

“RSS के लोगों से बात हुई- भाजपा 10% ग़रीबों को आरक्षण क्यों दे रही है? जो पता चला वो बेहद ख़तरनाक है। RSS जाति आरक्षण के हमेशा से ख़िलाफ़ रही है। अभी पहले चरण में संविधान संशोधन करके आर्थिक आधार शुरू करेंगे। फिर SC, ST और OBC का सारा आरक्षण ख़त्म करके केवल आर्थिक आधार रखेंगे।”

ज्योंहि ये ट्वीट आया, गैंग के टुटपुँजिए जीव दौड़ पड़े। इसी फ़र्ज़ी ख़बर फैलाने वाले इस गिरोह के सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने भी बता दिया की उन्होंने भी ‘कई लोगों’ से बात कर ली है। सुपरलेटिव विशेषणों का प्रयोग करना तो वो काफ़ी समय से जानते हैं, तो यहाँ भी ‘बेहद ख़तरनाक’ लिखते हुए उन्होंने जिग्नेश के ट्वीट को मेंशन करते हुए ट्वीट किया:

“मेरी कई लोगों से बात हुई। सब लोगों को लग रहा है कि भाजपा कि यही चाल है। बेहद ख़तरनाक।”

ऐसा विश्लेषण और तार्किकता सिर्फ़ इनके ख़ुराफ़ाती दिमाग़ में ही आ सकती है जहाँ मोदी सरकार द्वारा इस बात को स्वीकारने पर कि सामान्य वर्ग में भी वंचित और ग़रीब हैं, इन्हें लगने लगता है कि आरक्षण ख़त्म कर दिया जाएगा। ट्वीट पढ़ने से एक ही बात समझ में आती है कि जिग्नेश अपनी कल्पना को यथार्थ मानते हुए बेबुनियाद आरोप मोदी पर मढ़कर भीमा कोरेगाँव या अप्रैल वाले जातीय दंगों की तरह कुछ नई आग लगाना चाहता है।

जब आरक्षण की बात हो रही हो तो बिहार को बर्बाद करनेवाली पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, कैसे पीछे रह जाती! लालू यादव की पार्टी ने फ़रमाया:

“सवर्ण पैदा हुए मोदी ने पहले गुजरात में अपनी जाति को पिछड़ा बनाया फिर 14 में खुद की जाति के नाम दलित पिछड़ों को मूर्ख बना कर खूब वोट लूटा! अब मोदी ने अपना असली मनुवादी जातिवादी रंग दिखा दिया! जिनमें सिर्फ 5% गरीब हैं उन्हें देश की आबादी का 10% आरक्षण में दे बहुजनों को लूट लिया!”

राजद ने इस पूरे मसले में अलग स्तर की जासूसी कर दी कि सवर्णों में 5% ही ग़रीब हैं और आरक्षण 10% को दे दिया गया है। ये क्वांटम लेवल का कैलकुलेशन है जिसका गणित सिर्फ़ लालू यादव या उनकी पार्टी ही जानती है कि इस 10% को जब 50% के ऊपर रखा गया है तो बहुजन कैसे लुट गए?

चुनाव आ रहे हैं और इस तरह की अफ़वाहें अब आम हो जाएँगी। वैसे भी आदत से मज़बूर लोग हर बात में जातिवाद, मनुवाद और तमाम वाद ले आते हैं और फिर इन वादों का वाद्य बजाते रहते हैं। केजरीवाल और इनके गिरोह की पूरी कोशिश रहती है कि ऐसे अफ़वाह फैलाकर अपने मतलब की बात करें। बिहार चुनावों के समय भी इन्होंने यही काण्ड किया था और अफ़वाह उड़ाई थी की भाजपा आरक्षण के विरोध में हैं।


सोलापुर में गरजे पीएम; सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने के फैसले को बताया ऐतिहासिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज महाराष्ट्र के सोलापुर पहुँचे जहाँ उन्होंने कई विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखी और साथ ही एक विशाल जनसभा को भी सम्बोधित किया। इस दौरान पीएम ने नागरिकता संशोधन विधेयक और सामन्य वर्ग के गरीब लोगों को आरक्षण देने संबंधी निर्णय पर भी अपनी बात रखी। इस से पहले पीएम ने 3,168 करोड़ रुपयों के मूल्य की ढांचागत और आवासीय परियोजनाओं का उद्घाटन किया। पीएम ने 1,811 करोड़ रुपए की आवासीय परियोजनाओं का शुभारम्भ किया जिसके अंतर्गत लोगों को करीब तीस हज़ार मकान उपलब्ध कराए जाने हैं।

मोदी ने महाराष्ट्र के पश्चिमी शहर सोलापुर में एक भूमिगत सीवरेज प्रणाली और तीन सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्रों की भी शुरुआत की। इसके अलावे उन्होंने सोलापुर स्मार्ट सिटी इलाके में एक जलापूर्ति और सीवेज प्रणाली की आधारशिला भी रखी। इस से वहाँ की आम जनता को बड़े फायदे मिलने की उम्मीद है। इस से शहर की जलापूर्ति में भी सुधार आएगा। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग 211 (नया राष्ट्रीय राजमार्ग 52) पर सोलापुर (तुलजापुर) उस्मानाबाद खंड में चार लेन के सड़क मार्ग का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर आम जनता को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आरक्षण को लेकर विपक्षी दलों द्वारा जनता को गुमराह करने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कल रात को लोकसभा में पास हुआ सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने वाला बिल ऐतिहासिक है। पीएम ने इसे अपने नारे ‘सबका साथ-सबका विकास’ से जोड़ कर देखने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि इसी तंत्र को मजबूत करने के लिए ये विधेयक लाया गया है।

नागरिकता संशोधन बिल पर बोलते हुए पीएम ने कहा, “पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आये माँ भारती के बेटे-बेटियों को, भारत माता की जय बोलने वालों को भारत की नागरिकता देने का रास्ता साफ़ हुआ है। उन्होंने कहा कि ये लोग हमारे भाई-बहन हैं और इन्हे भारत माँ के आँचल में जगह देने का रास्ता साफ़ किया गया है।”

इंफ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में अपनी सरकार द्वारा किये गए बड़े कार्यों का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि सबसे बड़ा पुल हो, सबसे बड़ी सुरंग हो, सबसे बड़े एक्सप्रेसवे हों, सब इसी सरकार में या तो बन चुके हैं या फिर काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि इन प्रोजेक्ट्स के बड़े होने से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका लोकेशन है क्योंकि ये सभी ऐसी जगहों पर बन रहे हैं या बन गए हैं जहाँ की परिस्थितियाँ पहले काफ़ी मुश्किल थी।

आवासीय योजनाओं के बारे में पीएम ने लोगों को जानकारी देते हुए कहा कि आज गरीब, कामगार परिवारों के 30 हज़ार घरों के प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास यहां हुआ है। उन्होंने बताया:

“इसके जो लाभार्थी हैं वो कारखानों में काम करते हैं, रिक्शा, ऑटो चलाते हैं, ठेले पर काम करते हैं। मैं आप सभी को विश्वास दिलाता हूं कि बहुत जल्द आपके हाथों में आपके अपने घर की चाबी होगी।”

कॉन्ग्रेस पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में शामिल बिचौलिए मिशेल का नाम लेते हुए अख़बारों के हवाले से कहा कि वो सिर्फ इसी घोटाले में शामिल नहीं था बल्कि पहले की सरकार के समय फ़्रांस से लड़ाकू विमान का जो सौदा किया जा रहा था, उसमें भी उसकी भूमिका थी। उन्होंने सवाल दागा कि कहीं वो डील भी मिशेल ‘मामा’ के कारण ही तो नहीं रुक गई थी? उन्होंने कहा कि जाँच एजेंसियों के साथ-साथ देश की जनता भी इन बातों का जवाब ढूंढ रही है।

प्रधानमंत्री अगस्त 2014 के बाद दूसरी बार सोलापुर के दौरे पर हैं। रैली के मद्देनजर चार हज़ार पुलिसकर्मियों, 10 आईपीएस अधिकारियों और अर्धसैनिक बलों की कई कंपनियों को तैनात किया गया था। वहाँ प्रधानमंत्री की रैली को लेकर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रधानमंत्री का स्वागत किया। गडकरी ने कहा कि पिछले साढ़े चार सालों में पीएम मोदी के नेतृत्व में महाराष्ट्र के विकास को नई रफ़्तार दी गई है।

म्यांमार में सित्वे पोर्ट हुआ चालू, भारत ने चीन को दी मात

ईरान में चाबहार के बाद अब म्यांमार में भी भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट चालू हो चुका है जिसके बाद दक्षिण एशिया में भारत की रणनीतिक एवं व्यापारिक साख़ मज़बूत होनी निश्चित है। इसे चीन के बेल्ट एन्ड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जवाब के रूप में देखा जा रहा है।

राज्य सभा में केंद्रीय राज्यमंत्री मनसुख मंडविया ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया कि म्यांमार में भारत के सहयोग से निर्मित सित्वे पोर्ट अब काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। ध्यातव्य है कि सित्वे पोर्ट का निर्माण कालादान मल्टी मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के अंतर्गत हुआ है जिसके बहुआयामी उद्देश्य हैं।

कालादान प्रोजेक्ट भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों और कलकत्ता को म्यांमार के रखाइन और चिन राज्यों से जल तथा भूमि मार्ग से जोड़ने के लिए 2008 में प्रारंभ किया गया था। भारत ने इस पूरे प्रोजेक्ट पर लगभग ₹3170 करोड़ का निवेश किया है जिसमें से सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में अंतर्देशीय जलमार्ग पर लगभग ₹517 करोड़ व्यय हुए हैं।

भारत और म्यांमार ने 22 अक्टूबर 2018 को सित्वे पोर्ट और पालेत्वा में जलमार्ग के संचालन हेतु एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान में चाबहार के साथ म्यांमार में सित्वे पोर्ट का संचालन प्रारंभ होने से यह पहली बार होगा जब भारत अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर किसी पोर्ट पर कार्य करेगा।

भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के अंतर्गत सित्वे पोर्ट चालू होने से दक्षिण एशिया में व्यापारिक प्रभुत्व तथा शक्ति संतुलन के आयामों में भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखा जाएगा। सैन्य, सुरक्षा एवं रणनीतिक पक्ष देखें जाएँ तो साढ़े चार वर्ष पूर्व प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार चीन म्यांमार को अपना ‘दूसरा तट’ बनाने की योजना बना रहा था।

भारतीय महासागर को घेरने की चीन की तथाकथित ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स’ रणनीति का एक मोती सित्वे पोर्ट भी था। इंस्टिट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज़ एंड एनालिसिस में प्रकाशित नम्रता गोस्वामी की रिपोर्ट के अनुसार अंडमान सागर में चीन सिगनल इंटेलिजेंस एकत्र करने के उपकरण लगा रहा था जिससे भारत की गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके।

चीन ने कालादान परियोजना को बाधित करने के भरसक प्रयास किए थे। यदि चीन म्यांमार स्थित सित्वे पोर्ट पर अपना अधिकार स्थापित कर लेता तो बंगाल की खाड़ी में भारतीय नौसेना को अपनी प्रभावी क्षमता पुनः प्राप्त करना अत्यंत कठिन होता। चीन ने म्यांमार के आतंकी गुटों से भी सम्पर्क स्थापित किए थे ताकि उन्हें बांग्लादेश और म्यांमार के मार्ग से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में घुसपैठ कराया जा सके।

सित्वे पोर्ट चालू होने से भारत और म्यांमार के मध्य सांस्कृतिक संबंध भी प्रगाढ़ होंगे। एक समय में तत्कालीन बर्मा के राजा मनुस्मृति के अनुसार राजकाज चलाते थे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी बर्मा में रह रहे भारतीयों ने सहयोग किया था। दोनों देशों के मध्य नागरिक संबंध और मजबूत करने के लिए भारत सरकार मिज़ोरम-म्यांमार कालादान सड़क भी बना रही है जिसमें ₹1,600 करोड़ निवेश किए गए हैं।

गत वर्ष 2018 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने म्यांमार सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जिसके बाद मणिपुर और मिज़ोरम से भारतीय नागरिक अपना वैध पासपोर्ट दिखाकर सीमापार जा सकेंगे।


भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था, नोटबंदी-जीएसटी से मिला फ़ायदा: वर्ल्ड बैंक

वर्ल्ड बैंक ने हाल में एक रिपोर्ट ज़ारी करके भारत को दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश बताया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 वित्तीय वर्ष में भारत का विकास दर 7.3% रहने की संभावना है। वर्ल्ड बैंक की मानें तो 2018-19 के दौरान देश की जीडीपी 7.3% के दर से बढ़ेगी। वहीं, अगले दो साल में देश की जीडीपी 7.5% तक पहुँच जाएगी। इस रिपोर्ट में इस बात की भी चर्चा है कि देश की अर्थव्यवस्था इसी रफ़्तार से आगे बढ़ती रही तो अपने आजादी के 100 साल पूरा होने से पहले 2,030 तक भारत उच्च-मध्यवर्गीय आया वाला देश बन जाएगा।

भारत की स्थिति चीन से बेहतर

वर्ल्ड बैंक ने अपने रिपोर्ट में यह दावा किया है कि आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था पड़ोसी देश चीन से बेहतर स्थिति में होगी। विश्व बैंक के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में चीन की विकास दर 6.2% रहने की संभावना है। यही नहीं 2021 में चीन की विकास दर 2019-20 की तुलना में 0.2% के दर से घटकर महज 6% रह जाएगी। वर्ल्ड बैंक के इस डेटा के हवाले हम कह सकते हैं कि आने वाले समय में भारत की अर्थव्यवस्था चीन से बेहतर और मज़बूत स्थिति में होगी।

नोटबंदी-जीएसटी से देश की अर्थव्यवस्था को मिला फ़ायदा

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में नोटबंदी और जीएसटी का भी ज़िक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के कारण अस्थाई मंदी के बाद देश की अर्थव्यस्था में आश्चर्यजनक वृद्धि हो रही है। वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट ने नोटबंदी पर विपक्षी दलों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों को गलत साबित किया है। यही नहीं अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए मोदी सरकार द्वारा जो साहसी कदम उठाया गया, उस सराहनीय प्रयास के परिणाम की एक झलक वर्ल्ड बैंक के इस रिपोर्ट में देखने को मिल रही है।

कृषि व विनिर्माण क्षेत्र में सुधार

वर्ल्ड बैंक के रिपोर्ट से पहले केंन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने एक रिपोर्ट जारी करके वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश की जीडीपी 7.2% रहने की संभावना ज़ाहिर की है। जीडीपी में वृद्धि के लिए सीएसओ ने कृषि व विनिर्माण क्षेत्र को सराहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कृषि व विनिर्माण सेक्टर में अच्छे प्रदर्शन की वजह से 2017-18 की तुलना में 2018-19 में जीडीपी में वृद्धि हुई है।