गत तीन वर्षों में रायसीना डायलॉग सत्ता पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभाव रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। यहाँ मीठी, कड़वी, साधारण, गरिष्ठ सभी प्रकार की बातें कही जाती हैं। यहाँ जो कुछ भी कहा जाता है वह सुर्खियाँ बटोरने की हैसियत रखता है। इसी क्रम में थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने भी रायसीना डायलॉग में कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं।
जनरल रावत ने एक बार फिर विश्व समुदाय को संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव संख्या 1373 की याद दिलाई और कहा कि आतंकवाद को समाप्त करने की प्रक्रिया में पहले उसे परिभाषित करना आवश्यक है। ध्यातव्य है कि विश्व में अभी तक आतंकवाद की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं गढ़ी गई है।
आतंकवाद के प्रत्येक भुक्तभोगी देश के लिए अपनी अलग परिभाषा है ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य में किसी हिंसक घटना के लिए यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है कि वह आतंकी घटना है भी या नहीं।
सुन त्ज़ू ने भी आर्ट ऑफ़ वॉर में कहा था कि शत्रु को तभी समाप्त किया जा सकता है जब उसकी पहचान निश्चित हो जाए। जब तक आतंकवाद की परिभाषा नहीं गढ़ी जाएगी उसे समाप्त करने की बात करना बेमानी है। जनरल रावत ने यह भी कहा कि आतंकवाद को आर्थिक पोषण देने वाले अफ़ीम और चरस के धंधे भी बंद होने चाहिए।
जनरल रावत के वक्तव्य का सबसे महत्वपूर्ण अंग आतंकवाद को लेकर मीडिया में प्रसारित किए जा रहे समाचार और उससे जनता में उपजे दृष्टिकोण को लेकर रहा। इस संदर्भ में जैसा कि अक्सर होता है मुख्य धारा के मीडिया ने जनरल रावत के वक्तव्य को गलत तरीके से प्रस्तुत किया।
जनरल ने मीडिया पर लगाम लगाने को नहीं कहा बल्कि उन्होंने कहा कि मीडिया जिस स्तर पर आतंकवादी घटनाओं को कवरेज देता है उससे आतंकी संगठनों का मनोबल बढ़ता है। आतंकवादी भी यही चाहते हैं कि उनकी कृत्यों का अधिक से अधिक प्रचार हो जिससे भय का वातावरण स्थाई रूप से बना रहे।
उन्होंने स्पष्ट रूप से इसे ‘terro-vision’ का नाम दिया और कहा कि आतंकवादी संगठन प्रोपेगंडा युद्ध का सहारा लेते हैं और आतंकी घटनाओं का आवश्यकता से अधिक प्रचार उनके मंसूबों को बढ़ावा देता है।
साथ ही जनरल रावत ने सोशल मीडिया के माध्यम से ज़हरबुझे मज़हबी उन्माद को तेज़ी से फ़ैलने से रोकने की वकालत भी की। उनका संकेत कश्मीर की ओर था जहाँ कुछ समय पहले व्हाट्सप्प ग्रुप बनाने वालों को निकटतम पुलिस थाने में अपनी पहचान दर्ज कराना अनिवार्य किया गया था।
पाकिस्तान का नाम न लेते हुए जनरल रावत ने कहा कि जब तक राज्य की सत्ता द्वारा आतंक पोषित होता रहेगा तब तक वह समाप्त नहीं होगा। इतिहास भी हमें यही बताता है कि भारत से अलग होकर जब पाकिस्तान बना तभी से वह क़ुर्बान अली के उस सिद्धांत पर चल रहा है जिसने भारत को हजार घाव देने का संकल्प लिया था।
पहले पाकिस्तान ने प्रत्यक्ष युद्ध लड़े जिसमें असफल होने पर अफ़ग़ानी मुजाहिदों के बल पर आतंकवाद का सहारा लिया। अब जब हमने उसका भी मुँहतोड़ जवाब देना सीख लिया है तब पाकिस्तान प्रोपेगंडा युद्ध का सहारा लेता है जिसमें मानवाधिकार हनन इत्यादि जैसे मुद्दों को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर जोर-शोर से उठाता है।