माओ को अपना परमपिता बनाने के लिए नित नए साक्ष्य लानेवाले कामभक्त वामपंथी और उनका धूर्त गिरोह विचित्र-विचित्र काम करता रहता है। जैसे कि भाजपा शासित प्रदेशों को तो छोड़िए, सपा-बसपा-कॉन्ग्रेस-तृणमूल-विलुप्तप्राय तथाकथित वामपंथी पार्टियों के प्रदेशों में होनेवाले ग़ैरक़ानूनी कामों और जघन्य अपराधों के लिए हर बार अमित शाह और मोदी दोषी हो जाते हैं, क्योंकि प्रदेश में हो न हो, केन्द्र में तो उनकी सरकार है ही।
ऐसे ही जब घोटालों पर घेरा न जा सका, तो लगातार हिंसक घटनाएँ करवाई गईं व्हाट्सएप्प पर अफ़वाह फैलाकर। इनमें से अप्रैल में हुए तथाकथित दलितों के द्वारा किए दंगों में 14 लोगों की मौत और सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान प्रमुख है। चाहे जयपुर में पुलिस चौकी को जलाना हो, बंगाल में होने वाले तमाम साम्प्रदायिक दंगे हों, कश्मीर में पत्थरबाज़ों को इकट्ठा करना हो, सबकी जड़ में व्हाट्सएप्प से भीड़ जुटाने का नुस्ख़ा दिख जाता है। और गलती किसकी? मोदी की। मतलब मोदी अब समुदाय विशेष को इकट्ठा कराकर हिन्दुओं के ख़िलाफ़ दंगे कराता है। ज़ाहिर है कि दिमाग से तो नहीं ही सोचते हैं ये चम्पू।
फिर रक्षा सौदे में दलाली करने वाला क्रिश्चियन मिशेल भारत लाया गया। इसका काम दलाली का है, जिसे अंग्रेज़ी में ‘लॉबीयिस्ट’ या ‘मिडिलमेन’ कहा जाता है, लेकिन करते दलाली ही हैं। दलाल को पैसा मिलता रहे, तो वो सबका है, पैसा मिलना बंद हो, गर्दन फँसने लगे तो वो किसी का नहीं। दलाल मिशेल पर यूपीए सरकार के दौर में अगस्ता-वेस्टलैंड नामक कम्पनी द्वारा वीवीआईपी हेलिकॉप्टर के लिए सरकार द्वारा दलाली (पढें घूस) लेने का आरोप है।
पूरा सौदा ₹3,700 करोड़ रुपए का था, और दलाल मिशेल के साथ एक और दलाल को यूपीए सरकार की तरफ से 58 मिलियन यूरो (₹463 करोड़) घूस में दिया गया। भारतीय जाँच एजेंसियों ने बताया कि उनके पास लगभग ₹431 करोड़ के भुगतान के डॉक्यूमेंट्स हैं। ये कोई छोटा आँकड़ा नहीं है, हालाँकि यूपीए सरकार के ‘लाख करोड़’ रूपए के घोटालों का नाम सुनने के बाद हमें लगता है कि सौ-दो सौ करोड़ में तो कमला पसंद गुटखे की पुड़िया के छल्ले आते हैं।
अब, इसी घोटाले की जाँच के दौरान जो बातें सामने आईं वो चौंकाने वाली थी। राफ़ेल मामले पर राहुल गाँधी ने जो बवाल काटा था कि HAL (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) को क्यों नहीं बनाने दिया फ़ाइटर जेट, उन्हीं की पार्टी की मुखिया रहीं उनकी माता सोनिया गाँधी, और कैबिनेट के लोगों ने यही हेलिकॉप्टर बनाने का काम इसी HAL को नहीं दिया था। ये बात तो ख़ैर अलग ही है कि पिछले पाँच वर्षों में यही संस्था जो हेलिकॉप्टर नहीं बना पाती थी, राफ़ेल जैसे जेट बना लेगी।
तो, राहुल गाँधी को इस बात पर भी देश के हर जिले में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताना चाहिए कि आखिर HAL पर जो हाल में हड़कम्प उन्होंने मचाया था, उसे हेलिकॉप्टर बनाने का ऑर्डर क्यों नहीं दिया गया। क्या यूपीए, अपने ही लॉजिक के अनुसार, भारतीय संस्था को एक हेलिकॉप्टर बनाने लायक नहीं समझती? लेकिन इसका जवाब न तो राहुल गाँधी से आएगा, न ही कॉन्ग्रेस प्रवक्ताओं से, न ही कामभक्त वामपंथी गिरोह के सरगनाओं से। शायद, ये राज भी RDX अंकल के बेटे लकी के साथ ही चला गया!
दलाल मिशेल के नोट्स और कोडवर्ड्स को तो जाँच एजेंसियाँ तोड़ ही लेंगी, लेकिन लाजवाब बात यह है कि ED (एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) को जाँच के दौरान जो बातें जानने को मिलीं, उसे लम्पटों का धूर्त गिरोह नहीं मान रहा। ये वही गिरोह है जो गौरी लंकेश हो या डभोलकर, पनसरे या कलबुर्गी, इनकी हत्या के आधे घंटे में बता देता है कि कैसे मोदी और अमित शाह ये काम करवा रहा है। ये वही गिरोह है जो प्रशांत पुजारी, डॉक्टर नारंग, अंकित श्रीवास्तव जैसी हत्याओं के हत्यारों का नाम जानने के बाद भी चुप रहता है।
यही कारण है कि दलाल मिशेल द्वारा ‘मिसेज़ गाँधी’ और ‘इटैलिएन महिला का पुत्र R’ वाला संकेत किसी को समझ ही में नहीं आया कि आखिर इस देश में ‘मिसेज़ गाँधी’ है कौन! और यह भी कि इटालिएन लेडी का पुत्र, जिसका नाम अंग्रेज़ी के ‘आर’ से शुरु होता है!
न तो घटना के होने के दस मिनट बाद से तीन दिन बाद तक में कोई प्राइम टाइम हो रहा है, जैसा कि अमूमन हो जाता है, न ही कोई ट्वीट करते हुए ये पूछ रहा है कि मिशेल ने आखिर जो नाम लिया उसका क्या मतलब है। सवाल यह भी नहीं आ रहे कि जो डॉक्यूमेंट्स ईडी आदि एजेंसियों के पास हैं, उनके आधार पर राहुल गाँधी से ये पूछा जाए कि HAL के बारे में अब क्या ख़्याल है?
ये पूरा इकोसिस्टम है जो सोचता है कि अगर वो इस पर बात नहीं करेंगे तो देश की जनता को लगेगा कि ‘मिसेज़ गाँधी’ तो महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा ही होंगी क्योंकि बाकी तो कोई असली गाँधी है नहीं। दूसरी बात यह भी है कि गाँधी के एक बेटे का नाम भी रामदास गाँधी था, तो लोगों के लिए ये समझना मुश्किल है कि यहाँ ‘मिसेज़ गाँधी’ कौन है। वैसे भी, देश में जैसे-जैसे नरगधों और नरगधियों ने इतिहास लिखे हैं, कोई लक्ष्मणसूर्य पोहा ये न कह दे कि कस्तूरबा गाँधी वाक़ई में इतालवी महिला थी जो महात्मा गाँधी से दक्षिण अफ़्रीका प्रवास के दौरान मिली थी और दोनों में प्रेम हो गया।
ऐसे मुद्दों पर सहज शांति बताता है कि सत्ता से बाहर जाने के बावजूद इनके चाटुकारों की फ़ौज की पैठ कितनी है। सरकार बदलते ही भीड़ हत्या के मामलों की रिपोर्टिंग में ऐसे बदलाव आता है कि कल तक का ‘गौरक्षकों ने पहलू खान को घेरकर मार डाला’, परसों के मिरर नाउ में, उसी इलाके में उसी तरह की हुई हिंसा पर ‘नवयुवक को भीड़ें ने घेरकर पीटा’ कहकर बताया जाता है। पहले वो नवयुवक मुस्लिम हुआ करता था, अब वो बस नवयुवक है।
ये सब बहुत ही सूक्ष्म तरीके से किये जाने वाले कार्य हैं जहाँ हेडलाइन में पहचान जोड़कर आप किसी राज्य की पुलिस को ‘मजहब’ विरोधी दिखा सकते हैं, और कभी उस ख़बर को ऐसे लिखेंगे कि आपकी ध्यान ही नहीं जाएगा। वैसे ही, बंगाल चुनाव के दौरान तृणमूल काडरों द्वारा भाजपाइयों की हत्या और लगातार हो रही हिंसा पर रवीश कुमार जैसे लोग ममता बनर्जी का नाम तक नहीं लिख पाते, लेकिन किसी भाजपा शासित प्रदेश के पंचायत चुनावों में होने वाली झड़प पर इतना लिखते हैं कि बिहार का आदमी पढ़कर सोच में पड़ जाए कि वो जहाँ है, वहाँ कितनी हिंसा हो रही है।
कमलनाथ जैसे नेता को मुख्यमंत्री बनने पर ‘कोर्ट के फ़ैसले’ का इंतज़ार करने को कहा जाता है, लेकिन मोदी तो 2002 से ही कुर्ते में तलवार छुपाए घूम रहा है जबकि हर कोर्ट और जाँच एजेंसी से वो बरी किया जा चुका है। इन सब पर न तो नैरेटिव बनता है, न लेख लिखे जाते हैं, न ट्वीट होता है, नो फ़ेसबुक पोस्ट आते हैं।
अच्छी बात यह है कि अब नैरेटिव वन-वे नहीं है कि पुरोधा ने लिख दिया, हमने मान लिया। न तो कोई विरोध का ज़रिया, न ही प्लेटफ़ॉर्म कि आम आदमी अपनी बात कह सके। अब जनता को दिखने लगा है कि नंगे लोग नंगई पर उतर आएँ तो एक परिवार की सेवा में रोआँ तो झाड़ेंगे ही, एक्सट्रा नंबर के लिए अपनी चमड़ी भी छील सकते हैं। ये लोग लाइन में लगकर ‘मिसेज़ गाँधी’ और उनके सुपुत्र ‘आर’ के लिए अपने कपड़े उतार कर उनके घरों के पर्दे बनवा रहे हैं। लेकिन जनता उस पर जल्द ही पेट्रोल छिड़ककर आग लगाएगी क्योंकि फिर से सस्ता हो गया है।