Wednesday, November 6, 2024
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धार्मिक स्थल से ऐलान के बाद मामूली विवाद ने लिया हिंसक रूप

नई दिल्ली। झारखण्ड की राजधानी रांची स्थित कांके थाना क्षेत्र के मुरूम गांव में मामूली विवाद ने बड़ा रूप ले लिया। इस दौरान युवकों के दो गुटों में जमकर मारपीट हुई। इसके बाद गुस्साई भीड़ ने पुलिस की टीम पर भी हमला बोल दिया, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए और उनके वाहन को भी भीड़ ने आग के हवाले कर दिया। साथ ही उपद्रवियों ने कई घरों और दुकानों में भी आग लगा दी, जिसके चलते कई लोग गांव छोड़कर चले गए हैं। हालांकि पुलिस अधीक्षक, यातायात पुलिस अधीक्षक ने लोगों से शांति बनाए रखने और किसी भी तरह के अफवाह पर ध्यान न देने की अपील की है।

धार्मिक स्थल से ऐलान के बाद भड़की हिंसा

दरअसल नए साल के मौके पर पिकनिक मना कर लौट रहे युवक की मोटरसाइकिल होचर गांव के एक युवक की मोटरसाइकिल से टकरा गई, जिसके बाद विवाद शुरू हुआ। इसके बाद मुरूम गांव के युवक के घर पर लोगों ने हमला कर दिया, जिसके बाद दो गांव आमने-सामने हो गए। कुछ देर बाद ही धार्मिक स्थल से ऐलान होने के बाद दो गुट आपस मे भीड़ गए और पत्थरबाजी शुरू हो गई। उपद्रवियों ने पुलिस की बोलेरो समेत दो अन्य बोलेरो और तीन मोटरसाइकिल को आग के हवाले कर दिया।

घटना की सूचना मिलते ही थाना प्रभारी अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और भीड़ से शांति की अपील की। लेकिन भीड़ मानी नहीं तो पुलिस ने बल का प्रयोग करना शुरू कर दिया। इसके बाद भीड़ और आक्रोशित हो गई और पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया, जिसमें थानेदार और उनके ड्राइवर घायल हो गए। भीड़ ने धार्मिक स्थल के पास खड़ी थानेदार की गाड़ी को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद भारी संख्या में पुलिसबल मौके पर पहुंची और हालात को काबू में कर लिया। पूरे घटना क्षेत्र को छावनी में तब्दील कर दिया गया।

पुलिस ने की शांति की अपील

हालात की गंभीरता को देखते हुए एसएसपी अनीश गुप्ता, एसपी यातायात अजीत पीटर डुंगडुंग, एसपी ग्रामीण आशुतोष शेखर, कांके के सीओ प्रभात भूषण सिंह सहित एक दर्जन थानेदार व डीएसपी मौके पर पहुंचे। इसके बाद भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई। इस दौरान एसएसपी ने लोगों से अपील किया है कि अफवाहों पर ध्यान न दें। जो दोषी हैं, उनकी पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

500 अज्ञात उपद्रवियों के खिलाफ मामला दर्ज

मुरूम गांव की स्थानीय महिला के बयान पर तीन गांव होचर, मुरूम व कनादु के 59 लोगों को नामजद आरोपित बनाया गया है। इसमें जिला परिषद सदस्य मोजीबुल अंसारी भी शामिल हैं। इसके अलावा पांच सौ अज्ञात उपद्रवियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है।

इससे पहले भी रांची में पुलिस पर हुआ था हमला

बता दें कि बीते वर्ष 28 दिसंबर को भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया था, जिसमें रांची जिले के पुलिस उपाधीक्षक उदय चंद्र झा शहीद हो गए थे। दरअसल थाने की गाड़ी से धक्का लगने पर एक बच्चे की मौत हो गई थी, जिसके बाद भीड़ सड़क पर प्रदर्शन करने लगी थी। इस दौरान लोगों को समझाने गई पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया था, जिसमें उदय चंद्र झा शहीद हो गए थे। इसके अलावा यूपी के बुलंदशहर जिले में भी भीड़ ने इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या कर दी थी। इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपित को गिरफ्तार कर लिया है।

घोड़े की लीद के सेवन से उपजते हैं ऐसे तर्क और आतंकियों के प्रति इतना प्रेम

एनआईए (NIA) ने जब से कुछ आतंकियों को पकड़ा है तब से लगातार सोशल मीडिया पर NIA का मज़ाक उड़ाया जा रहा है। एक से बढ़कर एक तर्क गढ़े जा रहे हैं। मोदी विरोध अपनी जगह है लेकिन उस विरोध में तथाकथित लिबरल बुद्धिवादी और विद्वान इतने आगे निकल चुके हैं कि जब तक उनकी आँखों के सामने विस्फोट नहीं होगा तब तक वो ये भी नहीं मानने को तैयार हैं कि ऐसे ‘जुगाड़-टेक्नोलॉजी’ से भी बम बनाया जा सकता है।   

आईईडी ( IED) ऐसे ही जुगाड़ से बनाया जाता है। बम बनाने के लिए बनारस में कुकर, टिफिन और साइकिल का भी इस्तेमाल हुआ था। अगर यहाँ प्रेशर कुकर मिल जाता तब भी ये कोई न कोई कुतर्क गढ़ लेते। ऐसी प्रतिक्रियाओं से ही ऐसे नरपिशाचों  का मनोबल बढ़ता है।

अभी साल भर पहले सेना ने दंतेवाड़ा के जंगलों से गुण्डाधुर नाम के एक नक्सली कमांडर को उसके साथियों सहित पकड़ा था, जिनके पास से कुछ पाइप बम बरामद किए गए थे जो रॉकेट लॉन्चर की तरह काम करते थे। इनको बनाने के लिए वाहनों का प्रेशर नोज़ल काम में लिया गया था जो कि पाइप बम में मौजूद विस्फोटक को ठीक रॉकेट लॉन्चर की तरह दूर तक फेंकता था। यह पाइप बम आम पाइप बम से कई गुना ज्यादा खतरनाक था क्योंकि साधारण पाइप बम के धमाके में इतनी तीव्रता नहीं होती थी। जिससे सेना के वाहनों को कभी-कभी कम क्षति पहुँचती थी और उसमें मौजूद जवानों के बचने की पूरी सम्भावना बनी रहती थी। लेकिन प्रेशर नोज़ल से बने रॉकेट लॉन्चर की तरह काम करने वाले पाइप बम की मारक क्षमता साधारण पाइप बम से कई गुना अधिक थी। इसे दूर से रिमोट कंट्रोल डिवाइस से भी चलाया जा सकता था।

पूछताछ में गिरफ्तार नक्सली कमांडर ने बताया कि प्रेशर बम से एक-दो वाहन ही चपेट में आते हैं लेकिन इस तकनीक से एक बार में एक से ज्यादा वाहनों और जवानों को टार्गेट किया जा सकता है। इसके दायरे में आए वाहनों या जवानों का बचना नामुमकिन है। प्रेशर बम को ज़मीन में 20 से 25 डिग्री के कोण पर दबाकर रखा जाता था, ताकि पहले वाहन के पीछे चल रहे अन्य वाहन भी धमाके के दायरे में आ सकें।

ये सारी बातें इसलिए बतानी ज़रूरी हैं क्योंकि पिछले दो-चार दिन से एक से बढ़कर एक हाई क्वालिटी ईर्ष्या और कुढ़न की डोज़ लिए हुए पत्रकार और तथाकथित विद्वान जो सरकार का मज़ाक उड़ाते हुए लिख रहें हैं कि NIA जिसको रॉकेट लॉन्चर कह रही है, वो राकेट लॉन्चर नहीं था बल्कि वह तो ट्रैक्टर की ट्रॉली का प्रेशर नोज़ल था।

यह तो कमाल की बात हो गयी कि एक आदमी के पास आईईडी बम नहीं पकड़ा गया, सिर्फ कुछ किलोग्राम पोटैशियम नाइट्रेट, अमोनियम नाइट्रेट, सल्फर पेस्ट, सुगर मैटेरियल, लोहे के पाइप व छड़ें, कंचें, नोकदार कीलें, तार के बंडल, सैकड़ो डिजिटल अलार्म घड़ियां, मोबाइल फोन सर्किट, मोबाइल की बैटरियाँ, रिमोट कंट्रोल डिवाइस, वायरलेस स्विच पकड़े गए। अब बताइये कि इनमें आईईडी बम कहाँ है? यह तो सिर्फ सामान भर था। जब आईईडी बम पकड़ा जायेगा तब ही माना जायेगा कि ये लोग आतंकवादी हैं? नहीं, तब तक हमारे कई मीडिया के पुरोधा और तथाकथित समाज सेवकों की नज़र में वर्कर माने जायेंगे। हो सकता है फिर भी ये लोग नहीं माने। ऐसे हाई क्वालिटी के महानुभाव तब भी कहेंगे कि सिर्फ आईईडी बनाया ही तो है, फोड़ा कहाँ है?

जब तक कहीं किसी स्कूल-कॉलेज में, मंदिर में, बाजारों, बस अड्डों पर बम नहीं फोड़ेंगे तब तक ये नहीं मानेंगे कि पकड़े गए लोग आतंकवादी हैं। वैसे, ऐसे महानुभाव तब भी कहेंगे कि बम धमाके में जो लोग पकड़े गए हैं वह तो इनोसेंट हैं, यह काम तो आरएसएस का है, या यह हिन्दू आतंकवाद है, और सिर्फ समुदाय विशेष से होने की वजह से मोदी सरकार इनको फँसा रही है।

शायद इन्होंने नक्सलियों और आतंकवादियों के काम करने के तरीकों को ठीक से नहीं जाना है जो साधारण चीजों से भी खतरनाक से खतरनाक बम बनाने में एक्सपर्ट हैं। या फिर जानबूझकर ये ऐसी दलीलें लाते हैं ताकि इनके गिरोह के लोग, और वो आतंकी बचे रहें जिन्हें इनका मूक समर्थन मिलता रहता है।

इसलिए यह किसी हालत में नहीं मानेंगे कि पकड़े गए लोग आतंकवादी हैं। यह तो तभी मानेंगे जब इनके कान के नीचे धमाका होगा ।

नये साल पर किसानों को मोदी सरकार का बड़ा तोहफा; 0% ब्याज पर मिलेगा कर्ज

ख़बरों के अनुसार नये साल पर केंद्र सरकार किसानों को बड़ा तोहफा देने का मूड बना चुकी है। अभी कुछ दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाहने केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह से उनके दिल्ली स्थित आवास पर मुलाक़ात की थी, तभी से ये अटकलें तेज हो गई थी कि सरकार चुनावी साल में किसानों के लिए बड़ी घोशनाए करने वाली है। मोदी सरकार किसानों को हर एक क्रॉप सीजन में एक प्रति एकड़ चार हजार रुपये देने की तैयारी कर रही है। इतना ही नहीं, किसानों को एक लाख तक के ब्याज मुक्त कर का लाभ भी दिया जा सकता है। ये सारे पैसे किसानों को डायरेक्ट ट्रान्सफर यानी सीधे उनके बैंक खातों में दिए जायेंगे।

वहीं इन फैसलों से केंद्र सरकार के खजाने पर सालाना ढाई लाख करोड़ तक का बोझ पड़ने की उम्मीद है। इसके अलावे अन्य योजनाओं की भी घोषणा की जा सकती है। कहा जा रहा है कि केंद्र ने प्रधानमंत्री कार्यालय और नीति आयोग के साथ बैठक भी बुलाई है जो इसी सप्ताह होने की उम्मीद है। इन बैठकों में कृषि और खाद्य सम्बन्धी मंत्रालयों और विभागों के प्रमुख अधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री खुद इन योजनाओं की निगरानी कर रहे हैं और उन्होंने कई किसान नेताओं से मुलाकात कर उनका सुझाव भी मांगा है।

बता दें कि अभी हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी को मुद्दा बनाया था और हिंदी बेल्ट के तीनो राज्यों में भाजपा की हार हुई थी। विश्लेषकों ने कांग्रेस द्वारा किसानों से किये गए कर्जमाफी के वादे को उसकी जीत की प्रमुख वजहों में से एक गिनाया था। इसके बाद से ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी इस मुद्दे को लेकर पीएम मोदी पर अक्सर निशाना साधते रहे हैं। ख़बरों से पता चलता है कि इन चुनावों में मिली हार के बाद सचेत भाजपा ने किसानों को बड़ी रहत देने के लिए चुनावी साल में ये फैसला लिया है।

पिछले साल केंद्र सरकार ने दस लाख करोड़ के कृषि ऋण का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसे हासिल भी किया गया लेकिन अब कई दलों द्वारा किया जा रहे कर्जमाफी के चुनावी वादों के बाद बैंकों ने किसानों को कर्ज देना लगभग बंद कर दिया है। ताजा निर्णय में रुपये और अहयता सीधे किसानों के पास भेजे जायेंगे। इसके लिए किसानों से कुछ जानकारियां जैसे कि जमीन विवरण, आधार कार्ड डिटेल, फसल की जानकारी इत्यादि मांगी जा सकती है।

बता दें कि केंद्र सरकार लगातार 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने की बात कहती आ रही है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने भी कुछ दिनों पहले कहा था कि सरकार किसानों की आया दुगुनी करने के लिए अमान्य फसलों की खेती के अलावे पशु, मछली इत्यादि के पालन के लिए भी प्रोत्साहित कर रही है। अब देखना यह है कि होने वाली घोषणाओं में इन योजनाओं के साथ-साथ किसानों को और क्या सौगातें मिलती है।

सचिन तेंदुलकर के कोच रमाकांत आचरेकर का निधन; क्रिकेट जगत ने जताया शोक

भारतीय क्रिकेट के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले दिग्गज कोच रमाकांत अचरेकर का कल उनके मुंबई स्थित आवास में निधन हो गया। 87 वर्षीय आचरेकर काफी दिनों से व्हीलचेयर पर थे और उनकी तबियत भी ख़राब चल रही थी। उनके परिजनों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को फोन पर बताया कि उन्होंने कल शाम को अंतिम साँस ली। मुंबई क्रिकेट में अभूतपूर्व योगदान देने वाले आचरेकर को क्रिकेट के भगवन कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट करियर को नयी ऊँचाइयों तक पहुंचाने के लिए जाना जाता है। बचपन में ही सचिन आचरेकर के संपर्क में आ गए थे और उन्होंने काफी दिनों तक उनकी निगरानी में ही अपने क्रिकेट करियर को आकार दिया। स्वर्गीय आचरेकर सचिन के अलावा अजित अगरकर, विनोद काम्बली और प्रवीन आमरे सहित कई दिग्गजों के कोच भी रहे थे।

सचिन तेंदुलकर ने आचरेकर के निधन पर शोक जताया। अपने शोक सन्देश में तेंदुलकर ने कहा;

“आचरेकर सर की उपस्थिति में क्रिकेट स्वर्ग में भी समृद्ध होगा। उनके कई विद्यार्थियों की तरह मैंने भी क्रिकेट की एबीसीडी सर के मार्गदर्शन में ही सीखा है। मेरी ज़िन्दगी में उनके योगदान को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। उन्होंने उस आधार को बनाया जिस पर आज मई खड़ा हूँ। पिछले महीने ही मैंने सर के कुछ अन्य विद्यार्थियों के साथ उनसे मिला था और उनके साथ कुछ समय बीताया था। हम पुरानी बातों को याद कर हँसे भी। आचरेकर सर ने हमें साफ़-सुथरा खेलने और साफ़-सुथरे तरीके से जीने के गुर सिखाये थे। मुझे अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने के लिए धन्यवाद।

वहीं विश्व में क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी ने भी आचरेकर के निधन पर शोक जताया। वहीं भारतीय क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था बीसीसीआई ने अपने शोक सन्देश में कहा कि आचरेकर ने न सिर्फ अच्छे क्रिकेटर्स बनाये बल्कि उन्हें एक अच्छा आदमी बनना भी सिखाया। बीसीसीआई ने कहा कि भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान अभूतपूर्व है।

रमाकांत आचरेकर के शिष्य रहे पूर्व भारतीय क्रिकेटर अजीत अगरकर ने उनके निधन पर शोक जताते हुए उन्हें ‘बहुत बहुत ख़ास’ आदमी बताया और लिखा “सभी चीजों के लिए धन्यवाद सर”।

भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित रामाकांत आचरेकर मुंबई के दादर स्थित शिवाजी पार्क में क्रिकेट का प्रशिक्षण देने के लिए प्रसिद्ध थे। उनके निधन की खबर सुनते ही देर शाम सचिन और अगरकर उनके निवास पर पहुंचे।


राजस्थान सरकार का नया फरमान; सरकारी दस्तावेजों से हटेंगे दीनदयाल उपाध्याय के फोटो

राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने नया फरमान जारी करते हुए सभी सरकारी दस्तावेजों से एकात्म मानवतावाद के पुरोधा पंडित दीनदयाल उपाध्याय का नाम हटाने का आदेश जारी किया है। सरकार ने ये आदेश सभी सरकारी डिपार्टमेंट, कारपोरेशन और एजेंसियों को ये आदेश जारी किया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो सभी 73 सरकारी विभागों में ये आदेश लागू होगा। ये आदेश राज्य की नवगठित सरकार की पहली कैबिनेट मीटिंग के चार दिन बाद आया है। बता दें कि चार दिन पहले हुए कैबिनेट मीटिंग में अशोक गहलोत मंत्रिमंडल ने ही अपनी पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के कई फैसलों को भी पलट दिया है।

राज्य सरकार ने आदेश जारी करते हुए कहा कि सभी सरकारी लैटरपैड से स्वर्गीय उपाध्याय की फोटो वाले लोगो हटा दिए जाएँ। गौरतलब है कि दिसम्बर 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने यह निर्णय लिया था कि सभी सरकारी लैटरपेड पर पंडित उपाध्याय की फोटो वाला लोगो इस्तेमाल किया जायेगा। उस आदेश में कहा गया था;

“पंडित दीनदयाल उपाध्याय की सही आकार की एक तस्वीर पहले से मौजूद लैटरपेड में लगाईं जाये और भविष्य में छपने वाले लैटरपेड में इसे अनिवार्य रूप से छपवाया जाये।”

अब ताजा आदेश के बाद वसुंधरा सरकार का ये फैसला पलट दिया गया है। इसके निर्णय के पीछे कारण बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश और समाज के लिए कोई भी ऐसा उल्लेखनीय कार्य नहीं किया था जिस से उनकी फोटो को अशोक स्तम्भ के साथ स्थान दिया जाये। साथ ही सरकार ने सभी दस्तावेजों पर उनकी फोटो की जगह राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह इस्तेमाल करने का आदेश दिया। इसके अलावे ताजा कैबिनेट बैठक में पंचायती चुनावों में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता सम्बन्धी बंदिश भी खत्म करने का निर्णय लिया गया।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे और जन संघ के संस्थापकों में से एक थे। भाजपा उन्हें अपना आदर्श पुरुष मानती है और केंद्र सरकार की कई योजनायें उनके नाम पर चल रही है। फरवरी 1968 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी। गांधीजी के तीन प्रमुख विचारों- स्वदेशी, स्वराज्य और सर्वोदय को आगे ले जाने वाले पंडित उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे थे।

संसद में राफेल पर चर्चा के दौरान पूरे तेवर में दिखे जेटली; कॉन्ग्रेस के हर एक आरोप का दिया करारा जवाब

संसद की कार्यवाही के दौरान देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली आज पूरी रौ में दिखे। राफेल मुद्दे पर चर्चा के दौरान उन्होंने राहुल गाँधी और कांग्रेस के हर एक आरोपों और सवालों का जवाब तो दिया ही, साथ ही विपक्षी पार्टी पर करारा हमला बोला। राफेल सौदे में विमानों की खरीद से लेकर ओफ़्सेट पार्टनर चुनने और जेपीसी की मांग तक, जेटली ने हर एक मुद्दे पर कई बातों को स्पष्ट किया और साथ ही कांग्रेस पर पलटवार भी करते रहे। पूरी बहस के दौरान कांग्रेस के सांसद कागज़ के हवाई जहाज उड़ाते रहे जिस से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन काफी नाराज दिखी। जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी केंद्र सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा रहे थे तब श्रीमती महाजन ने उन्हें टोकते हुए अनिल अम्बानी का नाम न लेने की सलाह दी और कहा कि जो सदन में नहीं हैं उनका नाम न लें।

कांग्रेस द्वारा राफेल की जांच के लिए जेपीसी के गठन की मांग को ठुकराते हुए जेटली ने कहा;

“कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें स्वभाविक रूप से सच्चाई नापसंद होती है। उन्हें सिर्फ पैसे का गणित समझ में आता है, देश की सुरक्षा का नहीं। जेपीसी में संयुक्त संसदीय समिति नहीं हो सकती है, यह नीतिगत विषय नहीं है। यह मामला सौदे के सही होने के संबंध में है। उच्चतम न्यायलय में यह सही साबित हुआ है।”

इस से पहले राहुल गाँधी ने सदन में एक टेप चलाने की अनुमति मांगी। कांग्रेस द्वारा उस टेप को लेकर देश के पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर पर निशाना साधा जा रहा है। लोकसभाध्यक्ष ने राहुल से कहा कि वो तभी उन्ही ये मांग मान सकती है जब वह इस टेप के सत्य होने की बात लिखित में स्वीकार करें लेकिन फिर अपने ही दांव में फंसे राहुल गाँधी ने सदन के सामने उस ऑडियो क्लिप की ट्रांसक्रिप्ट पढ़ने की मांग कर दी। लेकिन श्रीमती महाजन ने उनकी इस मांग को भी ठुकरा दिया। वहीं जेटली ने पलटवार करते हुए कहा कि ये टेप फर्जी है इसलिए राहुल गांधी घबरा रहे हैं, कुछ लोगों को सच पसंद नहीं।

“राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं, वो जिस टेप की बात कर रहे हैं वो पूरी तरह फर्जी है इसलिए सत्यता नहीं बताई।”

– अरुण जेटली, केंद्रीय वित्त मंत्री

लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अनिल अम्बानी का नाम लेने की मनाही के बाद राहुल गाँधी ने अम्बानी को डबल ए (एए) से संबोधित करना शुरू कर दिया जिस पर चुटकी लेते हुए जेटली ने क्वाचोत्री की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से इंगित करते हुए कहा कि राहुल गाँधी बचपन में ‘क्यू’ की गोद में खेले थे। साथ ही उन्होंने कांग्रेस से नेशनल हेराल्ड, बोफोर्स और अगस्ता वेस्टलैंड को लेकर जवाब माँगा। राफेल पर अपनी सरकार की उपलब्धि गिनाते हुए जेटली ने कहा;

”जो यूपीए के ज़माने में शर्तें थीं उनसे बेहतर शर्तों पर सौदा करने का हमने फ़ैसला किया. इस बातचीत में एयरफ़ोर्स विशेषज्ञों को शामिल किया गया. हमने सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद 2016 में दस्सौल्ट के साथ समझौता किया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा है कि सारी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है.”

“कांग्रेस के मुख्य वक्ता ने सब कुछ झूठ बोला है, पिछले छह माह से इस मामले में बोला गया हर शब्द फर्जी और झूठा है।”

– अरुण जेटली, केंद्रीय वित्त मंत्री

शीर्ष अदालत द्वारा राफेल मामले में केंद्र सरकार को दिए गए क्लीन चिट का जिक्र करते हुए जेटली ने कहा कि राहुल गाँधी ने इस बारे में जो भी कहा है वो शीर्ष अदालत के निर्णय के खिलाफ है।उन्होंने कांग्रेस पर सच को नकारने का आरोप लगाते हुए कहा कि राहुल को विमान की समझ ही नहीं है। अरुण जेटली ने ऑडियो क्लिप को लेकर भी राहुल गाँधी पर निशाना साधते हुए कहा कि वो इसकी पुष्टि क्यों नहीं कर रहे। उन्होंने सदन को ये भी बताया कि राफेल में तीस से पचास प्रतिशत तक सामान भारत में खरीदने की बात है। साथ ही उन्होंने कांग्रेस को ऑफसेट का मतलब समझने की नसीहत दी। अनिल अम्बानी को लेकर लगे आरोपों पर उन्होंने कहा कि ये हमने नहीं बल्कि दस्सौल्ट ने तय किया कि ऑफसेट पार्टनर कौन होंगे।

इस से पहले राहुल गाँधी ने राफेल पर सरकार को घेरते हुए उन्ही आरोपों की झड़ी लगाईं जो वह अक्सर बोलते रहे हैं। उन्होंने राफेल को लेकर अपने सारे आरोपों को सदन में दोहराया। कमोबेश ये वही आरोप हैं जिन्हें वो अक्सर मीडिया के सामने कई बार दोहरा चुके हैं।

यूट्यूब से गायब हुआ ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ का ट्रेलर; अनुपम खेर ने किया गुस्से का इजहार

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की बायोपिक ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब ताजा मामला यूट्यूब से फिल्म के ट्रेलर के गायब हो जाने का है। बता दें कि फिल्म का ट्रेलर रिलीज होते ही कांग्रेस ने फिल्म के प्रदर्शन रोकने की धमकी दी थी। विरोध प्रदर्शनों के बाद फिल्म के अभिनेता अनुपम खेर ने यहाँ तक कहा था कि अगर डॉक्टर सिंह चाहते हैं तो उनके लिए फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी जा सकती है।

अनुपम खेर ने ट्वीट कर के कहा कि विडियो स्ट्रीमिंग वेबसाइट यूट्यूब पर फिल्म के ट्रेलर का विडियो खोजने पर चोटी के 50 परिणामों में भी ट्रेलर नहीं आ रहा है। अनुपम खेर ने कहा;

“प्रिय यूट्यूब, मुझे कई सन्देश और कॉल मिल रहे हैं जिनमे कहा जा रहा है कि आपकी वेबसाइट पर अगर #TheAccidentalPrimeMinister का ट्रेलर टाइप किया जाता है तो यह दिखाई नहीं देता है या पचासवें स्थान पर है। हम कल नंबर एक पर ट्रेंड कर रहे थे। कृपया मदद करें।”

बता दें कि ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ इसी नाम से लिखी गई संजय बारू की किताब पर आधारित है। संजय पूर्व प्रधानमंत्री सिंह के मीडिया सलाहकार रहे हैं और उनके साथ करीब से काम किया है। इस फिल्म में संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना निभा रहे हैं। फिल्म में मनमोहन सिंह के किरदार में अनुपम खेर लोगों को खासे पसंद आ रहे हैं और अब तक लगभग चार करोड़ लोग यूट्यूब पर इसका ट्रेलर देख चुके हैं। इसे 11 जनवरी से सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया जायेगा।

भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस फिल्म के ट्रेलर को शेयर किया था जिसके बाद काफी सियासी बवाल मच गया था। उधर मध्य प्रदेश में कांग्रेस के छात्र संगठन के अध्यक्ष विपीन वानखेड़े ने सिनेमाघरों के मालिकों को चेतावानी देते हुए कहा है कि अगर उन्होंने फिल्म का प्रदर्शन किया तो वो परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहें। उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्हें होने वाले नुकसान के जिम्मेवार वो खुद होंगे।

राम मंदिर अध्यादेश पर विचार करने से पहले अदालती फ़ैसले का करेंगे इंतज़ार: मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर पर अध्यादेश को लेकर केंद्र सरकार का रुख साफ़ करते हुए कहा है कि इस पर किसी भी प्रकार का विचार करने से पहले शीर्ष अदालत के फैसले का इन्तजार किया जायेगा। एएनआई की सम्पादक स्मिता प्रकाश को दिए साक्षात्कार में पीएम ने विभिन्न मुद्दों से जुड़े सवालों का बेधड़क जवाब दिया और इसी क्रम में राम मंदिर पर भी अपनी सरकार और पार्टी का रुख स्पष्ट किया। प्रधानमंत्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि तीन तलाक पर भी केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायलय के निर्णय के बाद ही अध्यादेश लाया था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर के मसले पर अगली सुनवाई 4 जनवरी को करने वाला है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के वकीलों पर अदालत की करवाई को धीमी करने का भी आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने भाजपा के 2014 घोषणापत्र की चर्चा करते हुए कहा कि इस मुद्दे का हल संविधान के दायरे में रह कर ही निकाला जायेगा। उस घोषणापत्र में कहा गया था कि भाजपा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संविधान के भीतर सभी संभावनाएं तलाशने के अपने रुख को दोहराती है। दरअसल प्रधानमंत्री से यह पूछा गया था कि क्या भाजपा राम मंदिर मुद्दे को हमेशा भावनात्मक तौर पर उठाती है। इस से जुड़े सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने कहा;

“अदालती प्रक्रिया खत्म होने दीजिए। जब अदालती प्रक्रिया खत्म हो जाएगी, उसके बाद सरकार के तौर पर हमारी जो भी जवाबदारी होगी, हम उस दिशा में सारी कोशिशें करेंगे।”

उधर प्रधानमंत्री के बयानों का अयोध्या मामले के दोनों पक्षकारों से स्वागत किया है। मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी और मणिराम दास छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमल नयन दास ने मोदी के बयान का स्वागत करते हुए इसकी सराहना की। महंत दास ने इस बात पर चिंता जताई कि अगर अध्यादेश को अदालत के फैसले से पहले लाया गया तो वो कानूनी अड़चनों में फँस सकता है। वहीं अंसारी ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का फैसला ही सर्वमान्य होना चाहिए। महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने पीएम के इस बयान पर हमला बोलते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘‘भगवान राम कानून से बड़े नहीं हैं’ क्योंकि उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए किसी अध्यादेश पर निर्णय न्यायिक प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही करेगी।

वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट कर मोदी के बयानों की प्रसंशा की। अपने ट्वीट में आरएसएस ने कहा कि ये मंदिर निर्माण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

विश्व हिन्दू परिषद ने भी मोदी के इन बयानों के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर मंदिर निर्माण की मांग उठाई। विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री से बहुत उम्मीदें है और उन्होंने उनसे मिलने का समय भी माँगा है।

माओवंशियों के लिए तो ‘मिसेज़ गाँधी’ कस्तूरबा हुईं, और ‘R’ से उनका पुत्र रामदास गाँधी

माओ को अपना परमपिता बनाने के लिए नित नए साक्ष्य लानेवाले कामभक्त वामपंथी और उनका धूर्त गिरोह विचित्र-विचित्र काम करता रहता है। जैसे कि भाजपा शासित प्रदेशों को तो छोड़िए, सपा-बसपा-कॉन्ग्रेस-तृणमूल-विलुप्तप्राय तथाकथित वामपंथी पार्टियों के प्रदेशों में होनेवाले ग़ैरक़ानूनी कामों और जघन्य अपराधों के लिए हर बार अमित शाह और मोदी दोषी हो जाते हैं, क्योंकि प्रदेश में हो न हो, केन्द्र में तो उनकी सरकार है ही। 

ऐसे ही जब घोटालों पर घेरा न जा सका, तो लगातार हिंसक घटनाएँ करवाई गईं व्हाट्सएप्प पर अफ़वाह फैलाकर। इनमें से अप्रैल में हुए तथाकथित दलितों के द्वारा किए दंगों में 14 लोगों की मौत और सार्वजनिक सम्पत्ति का नुकसान प्रमुख है। चाहे जयपुर में पुलिस चौकी को जलाना हो, बंगाल में होने वाले तमाम साम्प्रदायिक दंगे हों, कश्मीर में पत्थरबाज़ों को इकट्ठा करना हो, सबकी जड़ में व्हाट्सएप्प से भीड़ जुटाने का नुस्ख़ा दिख जाता है। और गलती किसकी? मोदी की। मतलब मोदी अब समुदाय विशेष को इकट्ठा कराकर हिन्दुओं के ख़िलाफ़ दंगे कराता है। ज़ाहिर है कि दिमाग से तो नहीं ही सोचते हैं ये चम्पू। 

फिर रक्षा सौदे में दलाली करने वाला क्रिश्चियन मिशेल भारत लाया गया। इसका काम दलाली का है, जिसे अंग्रेज़ी में ‘लॉबीयिस्ट’ या ‘मिडिलमेन’ कहा जाता है, लेकिन करते दलाली ही हैं। दलाल को पैसा मिलता रहे, तो वो सबका है, पैसा मिलना बंद हो, गर्दन फँसने लगे तो वो किसी का नहीं। दलाल मिशेल पर यूपीए सरकार के दौर में अगस्ता-वेस्टलैंड नामक कम्पनी द्वारा वीवीआईपी हेलिकॉप्टर के लिए सरकार द्वारा दलाली (पढें घूस) लेने का आरोप है। 

पूरा सौदा ₹3,700 करोड़ रुपए का था, और दलाल मिशेल के साथ एक और दलाल को यूपीए सरकार की तरफ से 58 मिलियन यूरो (₹463 करोड़) घूस में दिया गया। भारतीय जाँच एजेंसियों ने बताया कि उनके पास लगभग ₹431 करोड़ के भुगतान के डॉक्यूमेंट्स हैं। ये कोई छोटा आँकड़ा नहीं है, हालाँकि यूपीए सरकार के ‘लाख करोड़’ रूपए के घोटालों का नाम सुनने के बाद हमें लगता है कि सौ-दो सौ करोड़ में तो कमला पसंद गुटखे की पुड़िया के छल्ले आते हैं।

अब, इसी घोटाले की जाँच के दौरान जो बातें सामने आईं वो चौंकाने वाली थी। राफ़ेल मामले पर राहुल गाँधी ने जो बवाल काटा था कि HAL (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) को क्यों नहीं बनाने दिया फ़ाइटर जेट, उन्हीं की पार्टी की मुखिया रहीं उनकी माता सोनिया गाँधी, और कैबिनेट के लोगों ने यही हेलिकॉप्टर बनाने का काम इसी HAL को नहीं दिया था। ये बात तो ख़ैर अलग ही है कि पिछले पाँच वर्षों में यही संस्था जो हेलिकॉप्टर नहीं बना पाती थी, राफ़ेल जैसे जेट बना लेगी। 

तो, राहुल गाँधी को इस बात पर भी देश के हर जिले में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताना चाहिए कि आखिर HAL पर जो हाल में हड़कम्प उन्होंने मचाया था, उसे हेलिकॉप्टर बनाने का ऑर्डर क्यों नहीं दिया गया। क्या यूपीए, अपने ही लॉजिक के अनुसार, भारतीय संस्था को एक हेलिकॉप्टर बनाने लायक नहीं समझती? लेकिन इसका जवाब न तो राहुल गाँधी से आएगा, न ही कॉन्ग्रेस प्रवक्ताओं से, न ही कामभक्त वामपंथी गिरोह के सरगनाओं से। शायद, ये राज भी RDX अंकल के बेटे लकी के साथ ही चला गया! 

दलाल मिशेल के नोट्स और कोडवर्ड्स को तो जाँच एजेंसियाँ तोड़ ही लेंगी, लेकिन लाजवाब बात यह है कि ED (एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) को जाँच के दौरान जो बातें जानने को मिलीं, उसे लम्पटों का धूर्त गिरोह नहीं मान रहा। ये वही गिरोह है जो गौरी लंकेश हो या डभोलकर, पनसरे या कलबुर्गी, इनकी हत्या के आधे घंटे में बता देता है कि कैसे मोदी और अमित शाह ये काम करवा रहा है। ये वही गिरोह है जो प्रशांत पुजारी, डॉक्टर नारंग, अंकित श्रीवास्तव जैसी हत्याओं के हत्यारों का नाम जानने के बाद भी चुप रहता है। 

यही कारण है कि दलाल मिशेल द्वारा ‘मिसेज़ गाँधी’ और ‘इटैलिएन महिला का पुत्र R’ वाला संकेत किसी को समझ ही में नहीं आया कि आखिर इस देश में ‘मिसेज़ गाँधी’ है कौन! और यह भी कि इटालिएन लेडी का पुत्र, जिसका नाम अंग्रेज़ी के ‘आर’ से शुरु होता है!

न तो घटना के होने के दस मिनट बाद से तीन दिन बाद तक में कोई प्राइम टाइम हो रहा है, जैसा कि अमूमन हो जाता है, न ही कोई ट्वीट करते हुए ये पूछ रहा है कि मिशेल ने आखिर जो नाम लिया उसका क्या मतलब है। सवाल यह भी नहीं आ रहे कि जो डॉक्यूमेंट्स ईडी आदि एजेंसियों के पास हैं, उनके आधार पर राहुल गाँधी से ये पूछा जाए कि HAL के बारे में अब क्या ख़्याल है? 

ये पूरा इकोसिस्टम है जो सोचता है कि अगर वो इस पर बात नहीं करेंगे तो देश की जनता को लगेगा कि ‘मिसेज़ गाँधी’ तो महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा ही होंगी क्योंकि बाकी तो कोई असली गाँधी है नहीं। दूसरी बात यह भी है कि गाँधी के एक बेटे का नाम भी रामदास गाँधी था, तो लोगों के लिए ये समझना मुश्किल है कि यहाँ ‘मिसेज़ गाँधी’ कौन है। वैसे भी, देश में जैसे-जैसे नरगधों और नरगधियों ने इतिहास लिखे हैं, कोई लक्ष्मणसूर्य पोहा ये न कह दे कि कस्तूरबा गाँधी वाक़ई में इतालवी महिला थी जो महात्मा गाँधी से दक्षिण अफ़्रीका प्रवास के दौरान मिली थी और दोनों में प्रेम हो गया। 

ऐसे मुद्दों पर सहज शांति बताता है कि सत्ता से बाहर जाने के बावजूद इनके चाटुकारों की फ़ौज की पैठ कितनी है। सरकार बदलते ही भीड़ हत्या के मामलों की रिपोर्टिंग में ऐसे बदलाव आता है कि कल तक का ‘गौरक्षकों ने पहलू खान को घेरकर मार डाला’, परसों के मिरर नाउ में, उसी इलाके में उसी तरह की हुई हिंसा पर ‘नवयुवक को भीड़ें ने घेरकर पीटा’ कहकर बताया जाता है। पहले वो नवयुवक मुस्लिम हुआ करता था, अब वो बस नवयुवक है। 

ये सब बहुत ही सूक्ष्म तरीके से किये जाने वाले कार्य हैं जहाँ हेडलाइन में पहचान जोड़कर आप किसी राज्य की पुलिस को ‘मजहब’ विरोधी दिखा सकते हैं, और कभी उस ख़बर को ऐसे लिखेंगे कि आपकी ध्यान ही नहीं जाएगा। वैसे ही, बंगाल चुनाव के दौरान तृणमूल काडरों द्वारा भाजपाइयों की हत्या और लगातार हो रही हिंसा पर रवीश कुमार जैसे लोग ममता बनर्जी का नाम तक नहीं लिख पाते, लेकिन किसी भाजपा शासित प्रदेश के पंचायत चुनावों में होने वाली झड़प पर इतना लिखते हैं कि बिहार का आदमी पढ़कर सोच में पड़ जाए कि वो जहाँ है, वहाँ कितनी हिंसा हो रही है। 

कमलनाथ जैसे नेता को मुख्यमंत्री बनने पर ‘कोर्ट के फ़ैसले’ का इंतज़ार करने को कहा जाता है, लेकिन मोदी तो 2002 से ही कुर्ते में तलवार छुपाए घूम रहा है जबकि हर कोर्ट और जाँच एजेंसी से वो बरी किया जा चुका है। इन सब पर न तो नैरेटिव बनता है, न लेख लिखे जाते हैं, न ट्वीट होता है, नो फ़ेसबुक पोस्ट आते हैं। 

अच्छी बात यह है कि अब नैरेटिव वन-वे नहीं है कि पुरोधा ने लिख दिया, हमने मान लिया। न तो कोई विरोध का ज़रिया, न ही प्लेटफ़ॉर्म कि आम आदमी अपनी बात कह सके। अब जनता को दिखने लगा है कि नंगे लोग नंगई पर उतर आएँ तो एक परिवार की सेवा में रोआँ तो झाड़ेंगे ही, एक्सट्रा नंबर के लिए अपनी चमड़ी भी छील सकते हैं। ये लोग लाइन में लगकर ‘मिसेज़ गाँधी’ और उनके सुपुत्र ‘आर’ के लिए अपने कपड़े उतार कर उनके घरों के पर्दे बनवा रहे हैं। लेकिन जनता उस पर जल्द ही पेट्रोल छिड़ककर आग लगाएगी क्योंकि फिर से सस्ता हो गया है।  

वामपंथी लम्पट गिरोह चुप रहता है जब ‘गलत’ भीड़ ‘गलत’ आदमी की हत्या करती है

ग़ाज़ीपुर में निषाद जाति के लोगों ने सुरेश वत्स नाम के पुलिसवाले को डंडों से पीट कर मार दिया। पुलिसवालों की गलती यह थी कि वो कहीं से ड्यूटी करके लौट रहे थे। निषाद आरक्षण माँगनेवालों ने दिन भर कुछ ढंग का किया नहीं था, तो पीएम की रैली से लौटते पुलिस की गाड़ी पर धावा बोल दिया। पहले पत्थरबाज़ी की, और जब पुलिसवाले बाहर आए रास्ता क्लियर कराने तो डंडों से बुरी तरह से पीटा। इसमें एक की मौत हो गई, कई घायल हैं। 

अप्रैल में ऐसे ही कॉन्ग्रेस-सपा-बसपा-वामपंथी पार्टियों के फैलाई गई अफ़वाह के बाद जब भारत के सताए हुए, वंचितों और आरक्षितों ने जब अपना रूप दिखाया तो चौदह लोगों की जानें गई थीं। अफ़वाह एक सुनियोजित षड्यंत्र था जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बिलकुल ही मरोड़कर ऐसा बताया गया कि आरक्षण की व्यवस्था खत्म की जा रही है। व्हाट्सएप्प का सहारा लिया गया और देश को शोषितों, वंचितों, और आरक्षितों का एक और रूप दिख गया कि इन्हें भी इकट्ठा करके दंगा कराया जा सकता है। 

हाल ही में बुलंदशहर में भी एक ऐसी ही भीड़ ने कई गौहत्यायों के मद्देनज़र पास के पुलिस स्टेशन के सामने धरना दिया। उसी में किसी ने भीड़ में होने का फायदा उठाया और गोली चलने से एक पुलिस अफसर की मौत हो गई। इसके साथ ही, एक नवयुवक की भी मृत्यु हो गई। 

बुलंदशहर वाले कांड पर बहुत बवाल हुआ जब योगी आदित्यनाथ ने कहा कि गौहत्या करनेवालों को सजा दी जाएगी और अफसर की हत्या की जाँच होगी। इसमें से पहले हिस्से को वामपंथी लम्पट पत्रकार और तथाकथित बुद्धिजीवी गिरोह के सरगनाओं ने ऐसे पोस्ट करना शुरु किया जिसमें ऐसा दिखा कि योगी आदित्यनाथ को गायों से मतलब है, पुलिसवाले से नहीं। जबकि ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि पुलिसवाले की मौत की जाँच नहीं होगी। 

निषाद पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई इस भीड़ हत्या पर इसी गिरोह का कोई व्यक्ति कुछ नहीं बोल रहा क्योंकि इसमें न तो गाय का एंगल है, न ही मरने वाला समुदाय विशेष से या दलित है। इस भीड़ हत्या, या लिंचिंग, में वैसे विशेषण नहीं हैं जिससे कुछ ढंग की ख़बर मैनुफ़ैक्चर की जा सके। इसलिए ऐसी भीड़ से न तो नसीरुद्दीन शाह जैसे लोगों को डर लगेगा, न ही माओवंशी कामपंथी वामभक्तों को। 

अप्रैल वाला आंदोलन एक दंगा था, जो कराया गया। यहाँ खाली बैठी जनता पाँच सौ रुपए लेकर सेना की गाड़ियों पर पत्थरबाज़ी के लिए हर शुक्रवार पत्थर लेकर मस्जिदों से बाहर निकलती है। वैसी ही खाली जनता हर जगह उपलब्ध है। बड़े नेताओं की लिस्ट में अपना नाम ऊपर उठाने के लिए, समाज पर उसके प्रभाव की चिंता किए बिना, छुटभैये नेता ‘इंतज़ाम हो जाएगा’ के नाम पर गाँव-घर के नवयुवकों को गाड़ी में पेट्रोल के नाम पर इकट्ठा करके आग लगवाते हैं। 

जातिगत आरक्षण एक ऐसा कोढ़ है जो हर समझदार आदमी को दिखता ज़रूर है, लेकिन उसी समझदार आदमी को पब्लिक में ये स्वीकारने में समस्या होती है क्योंकि अगर वो नेता है तो उसका करियर खत्म है। अवसर देकर बेहतर बनाने की जगह कमतर लोगों को आगे धक्का देने की परम्परा ने ऐसी भीड़ तैयार कर दी है जहाँ हर कोई अपने को दूसरे से ज़्यादा नकारा दिखाने की होड़ में है। यहाँ हालत यह है कि एक के बाद एक जातियाँ अपनी बेहतरी के लिए शिक्षा का लाभ लेने की जगह, अपने आप को बेकार साबित करने पर तुली हुई है। 

चूँकि, बाकी तरह के आरोपों से भाजपा सरकार बरी हो जा रही है तो अब हिंसा का ही रास्ता बचा है जिसका सहारा लेकर अव्यवस्था फैलाई जा सकती है। अख़लाक़ की मौत को कैसे भुनाया गया वो सबको पता है। रोहित वेमुला की माँ को चुनावों के दौरान कितना घुमाया गया ये उसकी आत्मा जानती है। नजीब अहमद को कहाँ गायब कर दिया गया किसी को पता नहीं लेकिन उसकी माँ हर मंच पर घसीटी गई। जुनैद का नाम लेता रहा गया जबकि सीट के झगड़े की लड़ाई थी। ऐसे ही कई मामले हुए जो सामाजिक थे, निजी झगड़ों का नैसर्गिक परिणाम, लेकिन उसे राजनैतिक रंग देकर चुनावों में बढ़त ली गई। एक पूरे समाज को बताया गया कि तुम्हारे ख़िलाफ़ साज़िश चल रही है। 

ये आज़माया हुआ हथियार है। इसका परीक्षण कई बार करके देख लिया गया है। अफ़वाहों का इस्तेमाल हिंसा भड़काने के लिए सबसे ज़रूरी होता है। कुछ ऐसा कह देना जिस पर विश्वास करना मुश्किल हो पर जाति और धर्म के नाम पर कश्मीर में हुई बात सुनाकर कन्याकुमारी के लोगों को सड़क पर रॉड लेकर उतारा जा सकता है। 

रेल की पटरियों कभी जाटों की भीड़ आ जाती है, कभी गूजरों की भीड़ दिल्ली पर चढ़ाई कर देती है, कभी SC/ST एक्ट के बारे में अफ़वाह फैलाकर दंगा करा दिया जाता है। इन सबके बाद केन्द्र की सरकार को हर जाति के विरोध में दिखाया जाता है। हर धर्म के विरोध में केन्द्र सरकार को विरोधी बताते हैं, कभी ये कहकर कि समुदाय विशेष को अपने हिसाब से चलने दो, कभी ये कहकर कि राममंदिर क्यों नहीं बन रहा! जबकि सारे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश या आदेश होते हैं जड़ में। 

घोटालों पर इस सरकार को खींचना असंभव हो गया, और सुप्रीम कोर्ट ने राफ़ेल पर फ़ैसला दे ही दिया तो अब अंतिम शस्त्र छोटे समूहों को भड़काना है। पहले इन्हें भड़काया जाएगा कि तुम दूसरी जातियों से ज़्यादा बुरी स्थिति में हो, भीड़ इकट्ठा होगी किसी बैनर तले, फिर पुलिस सुरक्षा व्यवस्था को सुचारु रखने के लिए हथकंडे अपनाएगी तो उससे होने वाले नुकसान का दोषी भी पुलिस और सरकार को ही ठहराया जाएगा। उसके बाद सरकार हर उस अनियंत्रित भीड़ के विरोध में खड़ी दिखेगी, जो हिंसक होकर आग लगाने से लेकर, जान लेने के लिए सक्षम है, और लेती रही है। 

ये इंतज़ार है कि कैसे एक ‘सही’ भीड़, ‘सही’ व्यक्ति की हत्या कर दे। क्योंकि ‘गलत’ (मजहब विशेष/दलित) भीड़ो ने ‘गलत’ (हिन्दू/सवर्ण) लोगों की जानें खूब ली हैं, लेकिन उस पर बात नहीं होती। ‘सही’ व्यक्ति की हत्या के बाद देश में ऐसा माहौल बनाया जाएगा जिससे लगेगा कि हर जगह पर वैसा व्यक्ति असुरक्षित है। अभी आनेवाले दिनों में भीड़ हिंसा बढ़ सकती है क्योंकि राजस्थान और मध्यप्रदेश में नई सरकारों के आते ही भीड़ लगनी शुरु हो गई है। यूरिया से लेकर गैस सिलिंडर के लिए लोग अब लाइनों में खड़े हो रहे हैं। ऐसी भीड़ों को किसी भी उपाय से केन्द्र की तरफ मोड़ा जाएगा कि तुम्हारे हर समस्या की जड़ में मोदी है। 

जब तक ‘सही’ भीड़, ‘सही’ व्यक्ति की हत्या नहीं करती है तब तक पुलिसकर्मी की मौत पर लोग चुप रहेंगे। क्योंकि यहाँ ‘गलत’ भीड़ ने ‘गलत’ आदमी की जान ले ली। यहाँ अगर पुलिस के लोग जान बचाने के चक्कर में गाड़ी से किसी को धक्का भी मार देते तो इस्तीफा मोदी से ही माँगा जाता। यहाँ न तो दलित मरा, न समुदाय विशेष का शख्स। उल्टे तथाकथित दलितों ने पुलिस वाले की जान ले ली क्योंकि उन्हें लगा कि वो जान ले सकते हैं। ये मौत तो ‘दलितों/वंचितों’ का रोष है जो कि ‘पाँच हज़ार सालों से सताए जाने’ के विरोध में है। है कि नहीं लम्पटों?