कई देशों में 'National day of mourning', अर्थात शोक का दिवस मनाया जाता है। फिर भारत के हिन्दू/सिख अपने साथ हुई त्रासदी व इसके गुनहगारों को क्यों न याद करें?
लोकतांत्रिक व्यवस्था में आलोचना के लिए हमेशा स्थान रहेगा और परंपरा के अनुसार विपक्ष प्रधानमंत्री के भाषण को एक निरुत्साह वाला भाषण भी बता सकता है पर एक आम भारतीय के लिए उनका संबोधन आशा देता है और उसे प्रेरित भी करता है।
प्रधानमंत्री का आज का वक्तव्य हमें आशावान बनाता है कि हम भविष्य में दशकों से प्रोपेगेंडा का हिस्सा रहीं कई और स्थापित धारणाओं और मान्यताओं को ध्वस्त होते हुए देखेंगे।
जब सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश सुधारों का जोखिम उठा सकते हैं तो पूरी दुनियाँ को सभ्यता सिखाने वाले पश्चिमी देश अफगानिस्तान से आँखें मूँदकर कैसे भाग सकते हैं?
यह दीर्घकालीन लोकतंत्र के हित में है कि अवैध रूप से देश में घुसने और रहने वाले विदेशी नागरिकों की वजह से लगातार बदल रही डेमोग्राफी के संभावित परिणामों पर न केवल बहस हो बल्कि इसे रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाये जाएँ।
राम मंदिर के निर्माण से भारत के राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य में आए बदलावों को समझिए। ये एक इमारत नहीं बन रही है, ये देश की संस्कृति का प्रतीक है। वो प्रतीक, जो बताता है कि मुग़ल एक क्रूर आक्रांता था। वो प्रतीक, जो हमें काशी-मथुरा की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है।