यह बता पाना कठिन है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी के नाम पर ब्राह्मण सम्मेलन करवा रही है कि ब्राह्मण सम्मेलन के नाम पर प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी। पहले सम्मेलन को ब्राह्मण सम्मेलन का नाम दिया गया और बताया गया कि पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र ब्राह्मणों के इन सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं। बाद में उसे प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी का नाम दिया गया। इसलिए यह भ्रम बना कि दल क्या करना चाहता है। हाल ही में अलीगढ़ में हुई गोष्ठी के बाद वहाँ दल के मुस्लिम नेता नाराज़ हो गए हैं। इन मुस्लिम नेताओं का कहना है कि गोष्ठी के लिए छपवाए गए बैनर और होर्डिंग्स में मुस्लिम नेताओं को नहीं रखा गया। नाराजगी इसलिए भी है कि इन बैनर में शहर के मेयर मोहम्मद फुरकान को भी जगह नहीं मिली।
बसपा के मुस्लिम नेताओं का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व द्वारा दल के कार्यक्रमों में मुस्लिम समाज के नेताओं की अनदेखी की जा रही है और यदि ऐसा होता रहा तो यह दल के लिए घातक होगा। इन नेताओं का मानना है कि कार्यक्रम के लिए बने बैनरों और अखबारों में छपे विज्ञापनों में कम से कम मेयर का नाम और चेहरा लगाया जाना चाहिए था। नेताओं ने बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती को आगाह किया कि ऐसा करना दल के हित में नहीं है। एक स्थानीय नेता तो यहाँ तक प्रश्न उठाया है कि क्या मुस्लिम नेता प्रबुद्ध नहीं हो सकते? यह प्रश्न काफी हद तक सही है। आखिर बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए उसे समाज में उचित स्थान दिलाने का दावा करने वाला दल यदि यह मानने लगे कि प्रबुद्ध वर्ग में केवल ब्राह्मणों को स्थान मिलना चाहिए तो उसके भीतर का वैचारिक भ्रम जनता को दिखेगा।
मुस्लिम नेताओं की ऐसी प्रतिक्रिया के पीछे क्या केवल यही कारण है कि इन गोष्ठियों, बैनर और होर्डिंग्स पर उन्हें स्थान नहीं दिया जा रहा या यह असंतोष इससे कहीं आगे की बात है? उत्तर प्रदेश में बसपा की ओर से ब्राह्मणों को खुश रखने और साथ लेकर चलने की कोशिश बहुत समय के अंतराल के बाद ही सही, एक बार फिर से आरंभ हो गई है। सतीश चंद्र मिश्र को आगे रखकर दल अलग-अलग तरीकों से प्रदेश के ब्राह्मणों के साथ संवाद स्थापित करने की कोशिश में जुट गया है। अपने इस प्रयास के बावजूद दल की यह समस्या है कि वह किसी भी मंच पर ब्राह्मणों के साथ अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को रखने का खतरा मोल नहीं ले सकता। यही कारण है कि प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी में मंच पर मुस्लिम नेताओं को जगह नहीं मिल रही है। इस विषय पर दल के वरिष्ठ मुस्लिम नेता तो चुप रह सकते हैं पर कम अनुभवी और स्थानीय नेताओं को बोलने से रोक पाना चुनौती होगी।
बहुजन समाज पार्टी एक बार पहले भी ब्राह्मणों को सफलतापूर्वक अपने साथ लाने में कामयाब हुई थी। दल उसी सफलता को फिर से दोहराना चाहता है, बस प्रश्न यह है कि ऐसा करना उसके लिए कितना आसान या मुश्किल होगा? प्रदेश के ब्राह्मण इससे पहले जब दल के पक्ष में थे तब और आज की राजनीति में बड़ा अंतर है। तब से अब तक प्रदेश की राजनीति में जातिगत समीकरणों में काफी उथल-पुथल हुई है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भी यह देखा जा चुका है। वैसे भी जब बसपा की सरकार थी उस समय ब्राह्मणों को कुछ ख़ास मिला नहीं था। उल्टा तत्कालीन प्रशासन का रवैया ब्राह्मणों के लिए कुछ सुखद नहीं रहा था। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इस बार ब्राह्मण बसपा के पक्ष में खड़े होने के लिए कितने उत्सुक होंगे?
प्रश्न यह भी उठता है कि उसी सफलता को दोहराने की कोशिशों के दौरान दल के लिए अपने मुस्लिम वोट की रक्षा कर पाना संभव हो सकेगा? यह प्रश्न इसलिए भी उठेगा क्योंकि हाल में संपन्न हुए अलग-अलग चुनावों में मुस्लिम वोट के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। यह माना जाने लगा है कि मुसलमान अपना वोट उसी दल को देंगे जो भाजपा को हराने की क्षमता रखता हो। उत्तर प्रदेश में भी मुस्लिम वोट बैंक यदि उस दल के साथ रहेगा जो भाजपा को हराने की क्षमता रखता हो तो बहुजन समाज पार्टी का मुस्लिम मतदाता क्या उसके साथ ही रहेगा? यह प्रश्न तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब ब्राह्मणों को साथ लेकर चलने के प्रयास में बसपा अभी से मुस्लिम नेताओं को नाराज़ करने का जोखिम उठा रहा है।