दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों में चल रही जाँच हर दिन तूल पकड़ती जा रही है। इसमें अभी तक 700 एफआईआर और कई चार्जशीट फाइल हो चुकी हैं। इसके साथ ही उमर खालिद, ताहिर हुसैन, खालिद सैफी, पिंजड़ा तोड़ के सदस्य, कॉन्ग्रेस नेता इशरत जहाँ जैसे लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। अब दिल्ली पुलिस ने पहला ऐसा आरोप-पत्र दायर किया है, जिसमें दिल्ली को जलाने के लिए रची गई साजिश की सारी डिटेल हैं।
एफआईआर नंबर 59/200 में दायर आरोप पत्र बताता है कि साजिश 5 दिसंबर 2019 से रची जानी शुरू हो चुकी थी और मास्टरमाइंड शर्जील इमाम, उमर खालिद व अन्य ने लोगों को उकसाना शुरू कर दिया था। इसके अलावा इस आरोप-पत्र में योगेंद्र यादव जैसे लोगों की भूमिका का भी जिक्र है, जिन्हें अभी तक हिरासत में नहीं लिया गया है। योगेंद्र यादव का नाम चार्जशीट की शुरुआत में ही है। उन्होंने 8 दिसंबर को शर्जील इमाम, उमर खालिद व अन्य के साथ गुप्त बैठक की थी।
एफआईआर संख्या 59/2020 में दायर हुई चार्जशीट, जिसमें पूरी साजिश का विवरण है, लगभग 17,000 पृष्ठों की है। मगर मीडिया इसमें से कोई छोटी सी जानकारी उठाकर झूठ फैलाता है और केवल आधा सच बताकर अपना नैरेटिव चलाता है।
हाल में एक ऐसा झूठ कपिल मिश्रा के नाम पर सामने आया था। मीडिया ने फैलाया कि चार्जशीट में पुलिस ने कपिल मिश्रा को ‘whistleblower’ कहा है।
बाद में इस झूठ को कई मीडिया संस्थानों ने चलाया और एनडीटीवी से लेकर बार एंड बेंच और प्रोपेगेंडा वेबसाइट द क्विंट के पत्रकारों ने भी इसे फैलाया।
#DelhiRiots | Cops describe hate speech neta as ‘whistleblower’@Saurabh_Unmute reports pic.twitter.com/h4djtOC2eY
— NDTV (@ndtv) September 23, 2020
Coming up on NDTV, the Delhi Police riots chargesheet describes the BJP’s inciter-in-chief Kapil Mishra as a ‘whistleblower.’@Saurabh_Unmute with the details.
— Sreenivasan Jain (@SreenivasanJain) September 23, 2020
एनडीटीवी ने कपिल मिश्रा को ‘घृणा फैलाने वाला नेता’ बताया और दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने उन्हें चार्जशीट में ‘whistleblower’ कहा है। फिर इंडिया टुडे ने भी इसका अनुकरण किया और अपने आर्टिकल का शीर्षक दिया, “दिल्ली दंगे: क्या कपिल मिश्रा एक ‘whistleblower है? पुलिस चार्जशीट यही इशारा करती है।”
इंडिया टुडे ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया “दिल्ली पुलिस यह कहती दिख रही है कि साजिशकर्ता खुद को बचाने के लिए ‘झूठी कहानी’ बना रहे थे। इसके अलावा यह ये संकेत भी देती है कि भाजपा नेता कपिल मिश्रा दिल्ली के दंगों के मामले में “व्हिसल ब्लोअर” में से एक हो सकते हैं।”
द क्विंट ने भी चार्जशीट का हवाला देकर लिखा, “चैट से पुष्टि होती है कि साजिशकर्ताओं को पर्दाफाश होने का डर था। इसलिए उन्होंने झूठी कहानी बनाकर दोष खुद को बेगुनहाह बताने की कोशिश की और व्हिसल ब्लोअर्स को धमकाया भी।” अपनी रिपोर्ट में उन्होंने इस ओर इशारा किया कि हो सकता है ये whistleblower कपिल मिश्रा ही हो, जिसका आरोप-पत्र में जिक्र है।
इसके बाद कानूनी मामलों पर सबसे प्रमाणिक जानकारी के लिए एक विश्वसनीय स्रोत के रूप में पहचाना जाने वाला बार एंड बेंच ने भी दुर्भावनापूर्ण तरीके से इस झूठ को आगे बढ़ाया।
कॉन्ग्रेस नेताओं और उनके ट्रोलर्स के हाथों में ये बात पहुँचने के बाद इस झूठ को और रफ्तार मिली। कई ऐसे लोग सामने आए जिन्होंने मीडिया के फर्जी दावे को आगे फैलाया।
Kapil Mishra, the ‘whistleblower’ in Delhi riots case? pic.twitter.com/yXM9LEMFAK
— Ruchira Chaturvedi (@RuchiraC) September 23, 2020
सच्चाई क्या है? क्या दिल्ली दंगे मामले में दायर चार्जशीट में कपिल मिश्रा को वाकई ‘whistleblower’ कहा गया है।
हर मीडिया रिपोर्ट, जिसमें दावा किया गया कि दिल्ली दंगों की चार्जशीट में कपिल मिश्रा को ही ‘whistleblower’ कहा गया है, उसने अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए कुछ स्क्रीनशॉट का इस्तेमाल किया।
यह तस्वीर बार एंड बेंच की है। इसी को इंडिया टुडे ने भी इस्तेमाल किया है ये बताने के लिए कि चार्जशीट में कपिल मिश्रा को ‘whistleblower’ कहा गया।
हालाँकि ऐसे दावे करते हुए इन सभी मीडिया चैनलों ने एक सच को बड़ी चालाकी से दरकिनार कर दिया। दरअसल, चार्जशीट में पहले कहा गया, “चैट से पुष्टि होती है कि साजिशकर्ताओं को पर्दाफाश होने का डर था। इसलिए उन्होंने झूठी कहानी बनाकर दोष खुद को बेगुनाह बताने की कोशिश की और व्हिसल ब्लोअर्स को धमकाया भी।” मगर आगे यह आरोप-पत्र यह भी कहता है कि इसकी पुष्टि संरक्षित गवाहों (protected witnesses) से की गई है।
अब यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि आखिर कैसे मीडिया ने तस्वीर को क्रॉप करके उसका इस्तेमाल किया और सबसे महत्तवपूर्ण भाग को रिपोर्ट्स में शामिल करना जरूरी भी नहीं समझा कि आखिर कैसे ‘whistleblowers’ को डराया गया।
सबसे पहले किसी को भी ध्यान देना होगा कि पुलिस कहती है, “फर्जी नैरेटिव बनाकर और whistleblower को धमका कर।” इसमें दो बातें निकलतीं है। पहली फर्जी नैरेटिव गढ़ना और दूसरा whistleblowers को धमकाना।
इस भाग में दिल्ली पुलिस ने पहले “Delhi Protest Support Group” (DPSG) ग्रुप के स्क्रीनशॉट शेयर किए, जहाँ खालिद सैफी, राहुल रॉय और अन्य कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ एफआईआर करवाने की बात कर रहे थे।
इसमें नोटिस करने वाली बात यह है कि दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप में हुई यह चैट 24 फरवरी रात 1 बजे की है। वही समय जब हिंसा शुरू हो चुकी थी। मगर, मीडिया ने बड़े सलीके से आगे 700 से अधिक पृष्ठों को दरकिनार कर दिया, जिसमें इस बात पर गौर करवाया गया है कि पूरी साजिश 5 दिसंबर से होनी शुरू हुई।
चार्जशीट में आगे पुलिस ने जब कपिल मिश्रा से संबंधित चैट का हवाला दिया, जिससे यह संकेत मिल रहा था कि कैसे दंगे करवाने वालों ने सारी साजिश में अपनी भूमिका कबूल की और खालिद सैफी जैसे ने ध्यान भटकाने के लिए कपिल मिश्रा को फँसाने की कोशिश की और झूठा नैरेटिव गढ़ा।
इन चैट्स जिनमें whistleblower को धमकाने की बात सामने आती है, उसी से साफ हो जाता है कि कपिल मिश्रा का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ यह शब्द उनके लिए है, जिन्हें धमकाया गया।
यह वो तस्वीर है जिसे मीडिया ने क्रॉप कर दिया।
देखिए। इस चैट में, दंगे के पूरे एक दिन बाद, राहुल रॉय लोगों को ग्रुप से मैसेज लीक करने पर धमकाता है। इसके अलावा इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि ग्रुप में स्वीकार किया गया है कि दंगे मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोगों और डीएसपीजी ग्रुप के लोगों ने भड़काए। बता दें पूरी चैट 25 फरवरी की है।
इन चैट्स से पता चलता है कि इसके बाद राहुल राय और कुछ लोगों में बहस शुरू हो गई थी, जिन्होंने पिंजरा तोड़ और अन्य मास्टरमाइंड पर आरोप लगाया था कि उनके कारण आम लोगों का जीवन खतरे में आ गया है। इसी के बाद राहुल रॉय ने 25 फरवरी को लोगों को धमकी दी।
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि दिल्ली पुलिस के पास कई ऐसे गवाह हैं जिन्होंने ग्रुप में विरोध किया था और हिंसा पर आपत्ति जताने पर उन्हें धमकाया और चुप रहने को कहा जा रहा था।
तो इस प्रकार, इस मामले में मीडिया ने जो कुछ भी किया है, उसे 3000-पृष्ठ की अंतिम रिपोर्ट में से लिया गया है और केवल उस हिस्से को उजागर किया गया है जहाँ चार्जशीट में कपिल मिश्रा का उल्लेख है। इतने में भी उसे बिना किसी संदर्भ के कोट किया गया ताकि राहुल द्वारा भेजी गई चैट को छिपाया जा सके। यह सब लगभग वैसा ही है, जैसे कि मीडिया ने सीधे तौर पर “कपिल मिश्रा” शब्द खोजा और पूरी चार्जशीट को पढ़े बिना ही उसमें से एक झूठी कहानी लिख दी, जबकि रिपोर्ट बहुत विस्तृत है।
बता दें कि राहुल रॉय और उनकी पत्नी सबा दीवान को कुछ समय पहले दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों के कनेक्शन और मास्टरमाइंड होने के लिए समन जारी किया था। शॉर्ट फिल्म मेकर राहुल रॉय ने ही DSPG समूह की शुरुआत की थी और उन्हें दंगों के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक के रूप में देखा जा रहा है।
कपिल मिश्रा को चार्जशीट में नहीं कहा गया ‘व्हिसल ब्लोअर’, दिल्ली पुलिस ने खुद की पुष्टि
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले कपिल मिश्रा को लेकर उपजे विवाद पर दिल्ली पुलिस ने एनडीटीवी की पत्रकार को बयान जारी करके लताड़ लगाई थी। दिल्ली पुलिस ने अपने ऊपर लगे आरोपों के ख़िलाफ़ बयान जारी करते हुए बताया था कि एनडीटीवी की एंकर जिस तरह से अपने शो में दावा कर रही हैं कि पुलिस ने कपिल मिश्रा को ‘व्हिसल ब्लोअर’ कहा, वह दावा सत्य से कोसों दूर हैं। दिल्ली पुलिस ने अपने बयान में कहा था कि पुलिस ने कहीं भी कपिल मिश्रा को व्हिसल ब्लोअर नहीं कहा है और न उन्होंने ऐसा कुछ कहीं लिखा है।
बयान में आगे लिखा गया, “शायद एंकर का नैरेटिव तब पूरा होता यदि दिल्ली पुलिस ने कपिल मिश्रा का विस्तृत बयान न लिया होता। परंतु अन्वेषण, स्टूडियो और कैमरा के सामने नहीं होता। कपिल मिश्रा का विस्तृत बयान रिकॉर्ड पर आ जाने से आहत एंकर ने सच्चे व्हिसल ब्लोअर को नजरअंदाज करते हुए दर्शकों को गुमराह करने का प्रयास किया है।”
इस बयान में आगे बताया गया था कि एंकर ने अपने शो में दूसरा कौन सा मुद्दा उठाया। बयान के मुताबिक:
“रिपोर्ट में दूसरा मुद्दा यह उठाया गया कि कपिल मिश्रा के मौजपुर में रहते ही पत्थरबाजी शुरू हो गई थी। दिल्ली पुलिस ने तमाम अन्वेषण के बाद पाया कि दंगे और पत्थरबाजी 23 फरवरी को चाँद बाग के दंगाइयों ने सोची-समझी साजिश के तहत, लगभग 11 बजे सुबह से ही शुरू कर दी थी और प्रथम घायल पीड़ित की एमएलसी 12;15 बजे, दिन को अस्पताल में बनी थी, जबकि कपिल मिश्रा 23 तारीख को 3:30 बजे दोपहर मौजपुर आए थे। इससे स्पष्ट है कि पुलिस और पब्लिक पर सीएए विरोधियों द्वारा हमला 23 फरवरी की सुबह ही शुरू हो गया था।”
दिल्ली पुलिस का दावा था कि एनडीटीवी एंकर ने इन सभी तथ्यों को छिपाते हुए एक कहानी रचने की शरारतपूर्ण कोशिश की है। परंतु NDTV के अपनी ही रिपोर्टर की यह टिप्पणी कि डीएसपी Anti riot gear पहने हुए थे और आसपास पत्थर भी दिखाई पड़ रहे थे, से पुलिस की चार्जशीट में लिखी इस बात की जाने-अनजाने में पुष्टि होती है कि पथराव लगभग 11 बजे सुबह से ही शुरू हो गया था।
(नुपूर जे शर्मा द्वारा मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई यह रिपोर्ट यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं)