उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के ख़िलाफ़ देश भर में हुए दंगों के बाद ‘लिबरल-सेक्युलर’ मीडिया ने इस्लामी और वामपंथी प्रोपेगेंडाबाज़ों के साथ हाथ मिला लिया है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि यूपी में विरोध-प्रदर्शनों के नाम पर दंगों को अंजाम देने के दौरान पुलिसकर्मियों और मीडियाकर्मियों पर जानलेवा हमले किए गए, उन्हें ज़िंदा जला देने की कोशिश तक की गई। लेकिन, इन सब बातों से बे-ख़बर प्रोपेगेंडाबाज़ों ने फ़र्ज़ी ख़बरों के ज़रिए पुलिस को बदनाम करने का दुष्प्रचार शुरू किया।
लिबरल मीडिया गैंग ने पुलिस को लेकर यह झूठ फैलाया कि दंगों के दौरान पुलिस ने मुस्लिम भीड़ पर अत्याचार किए, उन्हें गिरफ़्तार किया। यह भी झूठ फैलाया किया कि पुलिस ने दंगे पर क़ाबू करते हुए लोगों को चोटिल किया, उनका ख़ून बहाया।
ऐसी ही एक एक ख़बर हाल ही में सामने आई कि CAA के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन के बाद सआदत मदरसे के छात्रों को पुलिस ने 20 दिसंबर को हिरासत में लिया था। इस दौरान उन्हें चोटें आईं थी, उनकी हड्डियाँ टूट गईं थी और यहाँ तक कि उनके मलाशय से ख़ून बह रहा था। लेकिन, ये ख़बर झूठी हैं क्योंकि इस मामले पर पीड़ितों ने ख़ुद इस बात से इनकार किया कि पुलिस ने उनका शोषण किया। अब जब उन छात्रों ने ही पुलिस पर लगे आरोपों का खंडन कर दिया तो इसका मतलब यह हुआ कि पुलिस को बदनाम करने के लिए लिबरल मीडिया ने षड्यंत्र रचा था।
टेलीग्राफ ने इस प्रकरण को लेकर एक के बाद एक कई झूठी ख़बरें फैलाई। ऐसी ही एक ख़बर थी 29 दिसंबर की। इसमें यह दावा किया गया था कि एंटी-सीएए दंगों के दौरान, उत्तर प्रदेश पुलिस ने मुजफ्फरनगर शहर के सआदत हॉस्टल-कम-अनाथालय के लगभग 100 बच्चों को हिरासत में लिया और उन्हें प्रताड़ित किया।
टेलीग्राफ ने अपनी ख़बर में लिखा कि हिरासत में लिए गए लड़कों को टॉयलेट जाने से कई बार मना कर दिया गया था और उनमें से कुछ को इतना टॉर्चर किया गया कि उन्हें रेक्टल ब्लीडिंग (मलाशय से खून) हुई थी।
कॉन्ग्रेस पार्टी के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें यह भी बताया गया कि मदरसा के नाबालिग छात्रों को गिरफ़्तार किया गया था और कुछ को कथित तौर पर प्रताड़ित किया गया, इस वजह से उन्हें रेक्टल ब्लीडिंग (मलाशय से खून) हुई थी।
यहाँ तक कि British Daily- The Guardian ने भी इस घटना के बारे में आधा-सच ही बताया। उस आधे सच में यह दावा किया गया था कि पुलिस ने मौलवी और उसके 35 छात्रों को हिरासत में लिया, जिनमें 15 कथित तौर पर नाबालिग और अनाथ थे और उन्हें पास के पुलिस बैरक में ले जाया गया, जहाँ उनके कपड़े उतारे गए और मारपीट की गई। इस ख़बर में यह दावा भी किया गया था कि पुलिस ने मौलवी (असद रज़ा हुसैनी) की गुदा में रॉड डाल दी, जिससे उनके गुदा से ख़ून बहने लगा।
कविता कृष्णन जो कि अति-वामपंथी कट्टरपंथी तत्व के रूप में भारत विरोधी प्रचार के लिए जानी जाती हैं, उन्होंने भी यूपी पुलिस के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाना जारी रखा। उसने दावा किया कि मदरसा के बच्चों को यूपी पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया था, जिससे उनके गुदा से ख़ून बह रहा था।
India, not long ago, was angry at rape.
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) January 1, 2020
Madarsa schoolboys of a UP, tortured by @UPPolice suffered rectal bleeding.
What do you think causes rectal bleeding?
If after this, you choose silence @priyankachopra @k_satyarthi, you lose the right to speak for kids. @UNICEF @NobelPrize pic.twitter.com/Y1Qjmg3eK4
वामपंथी स्वरा भास्कर ने भी इसी तरह के बयान दिए, जिसमें दावा किया गया कि ‘कथित’ बलात्कार मुजफ्फरनगर में हुआ और इस घटना के लिए उन्होंने यूपी पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराया।
The alleged rape of children in Muzzafarnagar by @Uppolice cops- This Allegation NEEDS TO BE INVESTIGATED like NOW!!!!!!! @PMOIndia surely surely this needs your most urgent attention! Peeps We must raise our voices for this no matter what side of the CAA-NRC debate we are on! https://t.co/kJNS7hVXMH
— Swara Bhasker (@ReallySwara) January 2, 2020
इन सभी झूठी ख़बरों का खंडन द प्रिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में किया और यह स्पष्ट किया कि सआदत छात्रावास के नाबालिग लड़कों ने ख़ुद दावा किया कि उनके गुदा से ख़ून बहने की ख़बरें झूठी हैं। सीतापुर के रहने वाले 21 साल के इरफ़ान हैदर ने द प्रिंट को बताया कि ‘कुछ मदरसा छात्रों को पुलिस यातना का दंश झेलना पड़ा’ जैसी सारी ख़बरें झूठी थी, इनका कोई आधार नहीं था।
मदरसे के मौलवी असद रज़ा हुसैनी के एक रिश्तेदार और विश्वासपात्र नावेद आलम ने, द प्रिंट को बताया कि यह सच नहीं है। न तो बच्चों और न ही मौलाना साहब को रेक्टल ब्लीडिंग हुई, न ही उन्हें बेरहमी से पीटा गया, जो अपने आप में एक भयानक अनुभव होता। ऐसा कुछ हुआ ही नहीं, इसलिए हमें कोई आरोप लगाने की ज़रूरत नहीं है।
एक अन्य रिश्तेदार, मोहम्मद आज़म ने कहा, “हमें अपना मुँह ख़ुदा को दिखाना है। इसलिए झूठ बोलने का कोई मतलब नहीं है। जो हुआ वह अपने आप में एक बड़ी बात थी।”
ग़ौर करने वाली बात यह है कि मीडिया गिरोह हो या फिर कोई खास वर्ग, CAA की आड़ में विरोध-प्रदर्शन के नाम पर दंगा करने वालों की पोल पुलिस खोल ही देती है। मुज़फ़्फ़रनगर के एसपी सतपाल अंतिल ने बताया था, “मीनाक्षी चौक और महावीर चौक के बीच कम से कम 50000 लोगों की भीड़ थी, जो पुलिस पर हमला कर रही थी और हिंसा और बर्बरता में लिप्त थी। जब हमने भीड़ को रोकने की कोशिश की, तो दंगाइयों एक समूह परिसर के अंदर गया और परिसर के अंदर से हम पर गोलीबारी शुरू कर दी। इसके बाद हमने परिसर में प्रवेश किया और फिर 70 लोगों को गिरफ़्तार किया।”
This is to clarify regarding false rumours and malicious campaign against Muzaffarnagar Police that no casualties have happened due to police action in Muzaffarnagar incidents on 20.12.2019. Vehicles were torched in arsoning, firing by a violent mob for which FIRs ‘ve been regd &
— MUZAFFARNAGAR POLICE (@muzafarnagarpol) December 22, 2019
यूपी पुलिस ने भी ट्विटर के माध्यम से मुज़फ़्फ़रनगर पुलिस के ख़िलाफ़ झूठी अफ़वाहों और दुर्भावनापूर्ण अभियान के बारे में लोगों को सच्चाई से अवगत कराया था। पुलिस ने बताया था कि 20.12.2019 को मुज़फ़्फ़रनगर की घटनाओं में पुलिस कार्रवाई के कारण कोई हताहत नहीं हुआ था। बल्कि इसके उलट, दंगाइयों ने आगजनी कर वाहनों में आग लगाई, एक हिंसक भीड़ ने पुलिस पर फायरिंग की। इसके लिए FIR दर्ज की गई। फिर पुलिस ने विश्वसनीय साक्ष्य के आधार पर उपद्रवियों को गिरफ़्तार किया।
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दंगों से कुछ तस्वीरें, जो बताती हैं पुलिस वाले भी चोट खाते हैं, उनका भी ख़ून बहता है…