Sunday, October 13, 2024
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फैक्टचेक: क्या आरफा खानम घंटे भर में फोटो वाली बकरी मार कर खा गई?

अगर आप दोनों ही इमेज को देखेंगे तो पता चलेगा कि स्क्रीनशॉट में शेयर किए गए आरफा की बकरी और मटन वाली तस्वीरों में साइज का अंतर है। एक तस्वीर बड़ी है, दूसरी छोटी। अब कोई यह कह देगा कि दूसरी इमेज जूम कर के भी तो लगाई जा सकती है।

हाल ही में स्वघोषित पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने एक ट्वीट शेयर किया था जिसमें उन्होंने अत्यंत ही निश्छल भाव से एक मेमने (बकरी का बच्चा) को हृदय से लगा कर पकड़ा हुआ था। यूँ तो पशुओं से प्रेम प्रदर्शित करना सोशल मीडिया पर काफी प्रचलित है लेकिन आरफा खानम द्वारा ऐसा करना कई लोगों को आश्चर्यजनक लगा। कुछ लोगों ने फब्तियाँ भी कसीं कि ये फोटोशॉप है, लेकिन पिछले अनुभव के आधार पर हम यही कह सकते हैं कि सुश्री शेरवानी ने कभी भी जानवरों का फोटोशॉप नहीं किया है। हाँ, स्वयं की तस्वीरों के साथ डिजिटल छेड़-छाड़ के लिए उन पर कई आरोप लगे हैं।

बाहरहाल, जैसे ही ट्वीट आया तो लोगों ने इसे खूब पसंद किया और रीट्वीट करने लगे। इस ट्वीट के वायरल होते ही, एक दूसरा स्क्रीनशॉट भी वायरल हो गया। आरफा के पाँच बज कर दस मिनट वाले ट्वीट के साथ एक ट्वीट छः बज कर दस मिनट का था, जिसके स्क्रीनशॉट को कई लोगों ने एक दूसरे को व्हाट्सएप्प पर भेजना शुरु किया। किसी ने यह लिखा कि देखो जिस बकरी को सीने से चिपका कर फोटो खिंचा रही थी, घंटे भर में उसे मार कर खा गई।

व्हाट्सएप्प पर घूमती तस्वीर की सच्चाई क्या है?

क्या है असली सच्चाई?

जब हमने इस दावे पर काम करना शुरु किया तो सबसे पहली बात जो सामान्य बुद्धि विवेक से पता चली कि घंटे भर में बकरे का मांस पकाना अत्यंत मुश्किल है। उसमें भी, मांस उपलब्ध हो तब तो किसी तरह कूकर में पपीते के टुकड़े डाल कर सिटी लगवाई जा सकती है, लेकिन बकरे को हलाल कर के बनाने में घंटे से ज्यादा ही समय लगेगा।

पार्ट टाइम पंचर एक्सपर्ट और पार्ट टाइम शेफ जुबैर से हमने सेकेंड ओपिनियन लेने की कोशिश की तो जुबैर ने हमें बहरीन से वीडियो कॉल पर बताया, “देखिए, अगर बकरी कटी हो तो एक घंटे में पकाई जा सकती है, लेकिन जिंदा बकरी को हलाल करने, छीलने, काटने, धोने और पकाने में कम से कम तीन से चार घंटे तो लग ही जाएँगे।”

यूँ तो हमें सीधे ऑल्टन्यूज की नासा वाली तकनीक अपना कर गूगल इमेज में रीवर्स इमेज सर्च कर के सच्चाई तक पहुँच जाना चाहिए था लेकिन उस तकनीक को हम अफोर्ड नहीं कर सकते। अतः, हमने तय किया कि व्हाट्सएप्प पर घूमती इस तस्वीर की गुणवत्ता जाँची जाए।

अगर आप दोनों ही इमेज को देखेंगे तो पता चलेगा कि स्क्रीनशॉट में शेयर किए गए दोनों ही तस्वीरों में साइज का अंतर है। एक तस्वीर बड़ी है, दूसरी छोटी। अब कोई यह कह देगा कि दूसरी इमेज जूम कर के भी तो लगाई जा सकती है। हमने उस बात पर भी ध्यान दिया तो पाया कि अगर यह इमेज सिर्फ जूम की हुई होती तो पूरी तस्वीर लगभग दोगुनी बड़ी होती।

यहाँ प्रोफाइल की तस्वीर दुगुनी बड़ी है, लेकिन मटन की तस्वीर उतनी ही बड़ी है जितनी अमूमन ट्विटर पर सिंगल तस्वीर होती है। जाहिर सी बात है कि यह तस्वीर और उसका टेक्स्ट किसी शरारती तत्व ने चिपकाया है। मटन की तस्वीर की सिमेट्री आप चेक करेंगे तो पाएँगे की उसकी तस्वीर पूरी आ गई है, लेकिन नीचे में लिखा टेक्स्ट कट रहा है जिसमें समय, दिनांक, और भारत लिखा हुआ है।

यहाँ हमने प्रतीक नाम के एक रीवर्स गूगल सर्च एक्सपर्ट से बातचीत की तो उसने बताया, “मैंने दोनों तस्वीरों को माइक्रोस्कोप लगा कर देखा तो पाया कि दोनों में फोंट का अंतर है, और फोरेंसिक एक्सपर्ट इसे एक नजर में नकार देंगे।” जब प्रतीक ने कह दिया, तो हम समझ गए कि सच ही कहा जा रहा होगा। फिर भी हमने अपना अन्वेषण जारी रखा।

इस तस्वीर में कई समस्याएँ हैं जो बताती हैं कि तस्वीर झूठी है, फर्जी है

साथ ही, एक और बात जो गौर करने योग्य है और ऑल्टन्यूज के स्तर का अन्वेषण खोजती है वो यह है कि इस तस्वीर की क्वालिटी एचडी नहीं है। आजकल के फोन में स्क्रीनशॉट भी फुल एचडी होते हैं, और व्हाट्सएप्प कभी भी इतनी बेकार तस्वीर नहीं बनाता। जाहिर सी बात है कि दुष्ट लोगों ने सुश्री आरफा जी को बदनाम करने की कोशिश की है।

एक बात और, जो शायद हम सबसे पहले कर लेते तो आर्टिकल लम्बा नहीं होता, वो यह है कि हम आरफा खानम शेरवानी के ट्विटर पर चेक कर लेते कि क्या उन्होंने ऐसा ट्वीट किया है? या फिर ऑल्टन्यूज के सोफिस्टिकेटेड तकनीक से ‘आर्काइव’ से ट्वीट निकाल लेते, तो भी पता चल जाता। लेकिन फिर हमने सोचा कि फैक्टचेकिंग के सबसे कुख्यात नाम की तरह ही, 1904 में किसी किताब में छपी तस्वीर पर विश्वास न कर के उसकी एचडी तस्वीर माँग लेंगे तो हम भी बड़े फैक्टचेकर कहलाएँगे।

आरफा का मटन वाला एक ट्वीट

आगे, हमने जब मटन और आरफा को सर्च किया तो सिर्फ एक ट्वीट मिला जिसमें उन्होंने मटन के एक डिश को इमली की चटनी के साथ खाने की बात को मुँह में पानी लाने वाला बताया था। प्रकृति और पशु प्रेमी होने का इससे बड़ा और क्या सबूत होगा कि आरफा ने उसी मेमने को नहीं खाया, जिसे गोद में ले कर तस्वीर खिंचा रही थीं। हालाँकि, हम जज नहीं करते, और आपको भी नहीं करना चाहिए। सबके प्रेम को प्रदर्शित करने का तरीका अलग होता है।

इसी लेख में थोड़ा और ज्ञान दे दूँ, ताकि ये फैक्टचेक ऑल्टन्यूज के स्तर की हो जाए, तो आपको बताता चलूँ कि अंग्रेजी में एक कविता है ‘पोरफिरियाज़ लवर’ जिसमें प्रेमी ने प्रेमिका का गला उसके बालों से ही घोंट दिया था क्योंकि उसे लगा कि इस वक्त वह उससे सबसे ज्यादा प्रेम कर रही थी, तो उसी अवस्था को अंतिम बना दिया जाए। हो सकता है आरफा का पशु प्रेम वैसा ही हो। लेकिन हमें क्या, हम जज नहीं करते।

क्या है निष्कर्ष?

तो, कुल मिला कर निष्कर्ष यह निकला कि ये तस्वीर कुछ शरारती और असामाजिक तत्वों की कारगुजारी है। ये वो लोग हैं जो नहीं चाहते कि लोग शांति से बकरी-प्रेम प्रदर्शित कर सकें।

नोट: लेख लिखने वाला रिपोर्टर ऑल्टन्यूज में नौकरी करना चाहता है, किसी की पहचान हो तो सीवी आगे बढ़ाने में मदद करें। पहले से ही आभार प्रकट कर रहा हूँ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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