कोरोना की वैश्विक महामारी के बीच कुछ लेफ्ट-लिबरल मीडिया गिरोह इस बात से खफ़ा हैं कि उन्हें ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ के नाम पर लॉकडाउन के दौरान प्रपंच और झूठ फैलाने से रोका जा रहा है। इसी का प्रतिकार करने के लिए अब खीझ और झुंझलाहट में बैठे ‘दी वायर’ की प्रोपेगेंडा पत्रकार आरफा खानम का एक ऐसा ट्वीट वापस चर्चा का विषय है, जिसमें वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ झूठ फैलाते हुए देखी गई हैं।
2019 में किए गए इस ट्वीट में सनसनी-प्रिय पत्रकार आरफा का दावा था कि गोरखनाथ मठ, जिसके कि योगी आदित्यनाथ महंत हैं, उसकी जमीन किसी मुस्लिम नवाब आसफ़ुद्दौला (Asaf-ud-Daula)ने ही दान दी थी। ख़ास बात यह है कि झूठ और बेबुनियाद होने के बावजूद यह ट्वीट डिलीट करना तो दूर, इसे वापस चर्चा का विषय बनाया जा रहा है।
वामपंथी मीडिया गिरोह की ही एक टुकड़ी ‘दी वायर’ की प्रोपेगेंडा पत्रकार आरफा ख़ानम ने इस ट्वीट के जरिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को टारगेट करते हुए लिखा –
“योगी के गोरखपुर स्थित इमामबाड़ा, जिसकी जमीन पर गोरखनाथ मंदिर (जिसके महंत योगी आदित्यनाथ हैं) है, उसकी जमीन एक मुस्लिम शासक नवाब आसफ़ुद्दौला (Asaf-ud-Daula) ने ही दी थी। उसने इस इमामबाड़ा के लिए भी जमीन दी थी। भारत घृणा से भरे हुए नेताओं के दावों के इतर बहुत विस्तृत है।”
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इस ट्वीट के साथ ही आरफा खानम शेरवानी (Arfa Khanum Sherwani) ने अपनी एक तस्वीर भी पोस्ट की है, जो कि आश्चर्यजनक रूप से फोटोशॉप नहीं है।
आरफा खानम का यह झूठ जन्म लेता, इस से पहले यह सवाल उठता है कि आखिर अट्ठारहवीं सदी के आसफ़ुद्दौला ने एक ऐसे मंदिर के लिए भूमि दान किस तरह से दे दी, जिसका इतिहास आठ सौ वर्ष पुराना है?
गोरखनाथ मंदिर का इतिहास, मुस्लिम आक्रान्ताओं ने ही किया था हमला
आरफा खानम के भारत की विभिन्नता के दावे के विपरीत वास्तविकता मंदिर के रिकॉर्ड से पता चलती है। इसमें पता चला है कि गोरखपुर गोरखनाथ मंदिर की संरचना और आकार समय की अवधि के साथ-साथ तब्दील हो गया था। जिसके पीछे कारण यह था कि सल्तनत और मुगल काल के शासन के दौरान मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा इस मंदिर को नष्ट करने के कई प्रयास किए गए थे।
तथ्य यह है कि नवाब द्वारा दान देना तो दूर, गोरखनाथ मंदिर को दो बार मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट किया गया था। सबसे पहले इसे अलाउद्दीन खिलजी ने 14वीं सदी में नष्ट कर दिया, जिससे यह साबित होता है कि यह मंदिर 18वीं शताब्दी से भी पहले का है। इसके बाद में इसे 18वीं सदी में भारत के इस्लामी शासक औरंगजेब ने नष्ट किया था। इसके बावजूद भी ये जगह अभी भी अपनी पवित्रता के लिए, उसके महत्व के लिए जानी जाती है, अपनी पवित्र आभा रखती है।
अपनी ही वेबसाइट नहीं खोलती हैं आरफा
प्रोपेगेंडा रचने से पहले आरफा खानम कम से कम यह तो कर ही सकती थी कि अपना ही वामपंथी पूर्वग्रहों से सनी हुई वेबसाइट ‘दी वायर’ खोलकर एक बार गोरखनाथ मंदिर का इतिहास देख लेती। क्योंकि कुछ बातों को दी वायर भी प्रकाशित कर चुका है।
ऐसे में इस बड़ी भूल के लिए दी वायर के वरिष्ठ पत्रकार चाहें तो मार्च के महीने वाली फ़ाइल दोबारा खोलकर आरफा खानम के कुछ नंबर काट सकते हैं लेकिन इस एक बात का फायदा आरफा खानम को यकीनन मिल सकता है कि वह तो आजकल एक झूठी खबर फैलाने के आरोप के मामले में खुद नपे हुए हैं।
लेकिन एक ऐसा पोर्टल, जिसके संपादक सिद्धार्थ वरदराजन से लेकर हर जर्नलिस्ट तक रोजाना फेक न्यूज़ के कारोबार में संल्पित हों, वहाँ मनगढ़ंत कहानियाँ बनाने पर दंड नहीं बल्कि पारितोषिक का प्रावधान होता होगा। शायद होता ही होगा!
‘ट्रू इंडोलोजी’ के ट्विटर अकाउंट ने भी आरफा खानम के इस दावे को झूठ साबित करते हुए जॉर्ज ब्रिग्स की किताब “गोरखनाथ और कनफटा योगियों” का जिक्र करते हुए बताया है कि गोरखनाथ मंदिर का इतिहास नवाबों से भी बहुत पुराना है। यह माना जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं गोरखनाथ द्वारा की गई थी। और यह यह बहुत पहले से ही मौजूद था।
Gorakhnath temple has a recorded history of atleast 800 years.
— True Indology (@TIinExile) April 12, 2020
The temple existed even before Nawab Asaf-Ud-Daulah was born in 18th century.
How could the Nawab grant land for construction of a temple that existed for hundreds of years before his own birth?
FAKE news! https://t.co/ZMb9t8lEkw
ट्रू इंडोलोजी ने लिखा है कि नवाब आसफ़ुद्दौला द्वारा दान दी गई जमीन पर बनाना तो दूर, गोरखपुर इमामबाड़ा खुद एक ध्वस्त किए गए मंदिर की भूमि पर बनाया गया था। कनिंघम के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आधार पर, सीता राम गोयल ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू मंदिरों’ में इमामबाड़ा को प्राचीन मंदिर स्थलों की श्रेणी में सूचीबद्ध किया है।
फिलहाल एक भी ऐसा साक्ष्य या शिलालेख नहीं है, जिसमें बताया गया हो कि किसी नवाब ने गोरखपुर मंदिर के लिए भूमि दान की थी। हालाँकि, इस दावे के लिए एकमात्र ‘स्रोत’ एक हाल ही में रचा गया स्थानीय मिथक है, जो नवाब गुरु गोरखनाथ से मिला था। लेकिन, यह गलत है क्योंकि गोरखनाथ उस नवाब से सैकड़ों साल पहले के थे और कालचक्र में जाने जैसा कोई यंत्र अभी तक विकसित हुआ नहीं है।
फिलहाल ‘दी वायर’ को सिर्फ एक तथ्य से वास्ता रखना चाहिए और वो ये कि इस समय उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा ‘दी वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन पर एफआईआर दायर की गई है जिसमें उन पर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक ट्वीट करने और जनता के बीच अफ़वाह और शत्रुता फैलाने के मामले में आरोप दर्ज हैं। इस मामले में उन्हें 14 अप्रैल को अयोध्या पुलिस के सामने पेश होना होगा।