Friday, November 15, 2024
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शाहीन बाग़ की आवारा भीड़ पर बावली हुई जा रही मीडिया की नज़र में कोटा के बच्चों की जान सस्ती

उम्मी हबीबा की बात करें तो उसकी माँ के कुल 5 बच्चे हैं और वो मीडिया अटेंशन का कारण इसीलिए बन रही है, क्योंकि वह अपने बच्चों को सीएए विरोधी प्रदर्शन में लेकर आती है। क्या 20 दिन की बच्ची से उसकी मर्जी पूछी जा सकती है? क्या उसे पता भी है कि वो कहाँ है और उसका इस्तेमाल किसलिए किया जा रहा है?

पहली घटना, दिल्ली के शाहीन बाग़ में। वही शाहीन बाग़ जहाँ पुलिस पर पत्थर फेंके गए, आगजनी की गई, दंगे किए गए और सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाया गया। वहाँ कुछ प्रदर्शनकारी सस्ता प्रचार स्टंट करते हुए दिखते हैं और मीडिया उन्हें देश-विदेश में आंदोलनकारियों के रूप में दिखाता है। क्यों? क्योंकि एक 20 दिन की नवजात बच्ची वहाँ मोदी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराने पहुँची है। चौंक गए न? मीडिया में तो यही चल रहा है- सीएए की सबसे कम उम्र की प्रदर्शनकारी उम्मी हबीबा, जिसका जन्म हुए अभी महीना भर भी नहीं हुआ। वो मोदी के ख़िलाफ़ धरना दे रही है।

दूसरी घटना, राजस्थान के कोटा में एक साल में 962 बच्चों की मौत हो जाती है। 25 दिसंबर को 1, 26 को 3, 27 को 2, 28 को 6, 29 को 1, 30 को 4 और 31 को 5 मासूम काल के गाल में समा गए। यानी, 7 दिनों में 22 मौतें। केवल दिसंबर महीने में 99 बच्चों की मौत हो गई। अस्पताल में व्यवस्था नहीं है, संसाधन नहीं है और उपकरणों की कमी है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि ये कोई नई बात नहीं। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री कहते हैं कि सीएए से ध्यान भटकाने के लिए इस मुद्दे को उठाया जा रहा है। मीडिया यहाँ चुप है। सवाल नहीं पूछ रहा। क्यों? क्योंकि यहाँ भाजपा की सरकार नहीं।

जहाँ तक शाहीन बाग़ में उम्मी के मोदी विरोधी प्रदर्शन में शामिल होने का सवाल है, स्पष्ट है कि उस नवजात को ठंड के मौसम में उसके परिवार ने वहाँ पर लाया है। उसे तो ये तक नहीं पता कि सीएए क्या है, मोदी कौन है, उसके आसपास क्या हो रहा है और उसे कहाँ लेकर जाया जा रहा है? ये एक सस्ता पब्लिसिटी स्टंट है, जो मीडिया अटेंशन के लिए किया गया। ठीक उसी तरह, जैसे हिजाब और जैकेट के ऊपर से मरहम-पट्टी किए हुए प्रदर्शनकारी ‘पुलिसिया बर्बरता’ के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते दिखे।

मीडिया के लिए वामपंथियों के पब्लिसिटी स्टंट का ज़्यादा मोल है और कोटा के जेके लोन अस्पताल में 962 बच्चों का मरना एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर ध्यान देना वो उचित नहीं समझती। शाहीन बाग़ वाले मसले में मोदी-विरोध है, वो बिकता है। कोटा की ख़बर में राज्य सरकार की नाकामी है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का असंवेदनशील रवैया और कॉन्ग्रेस पर सवाल उठते हैं, इसीलिए मीडिया के लिए यहाँ कोई ख़ास मसाला नहीं है। मुजफ्फरपुर और गोरखपुर वाली बात कोटा में नहीं है। इसीलिए, मीडिया मुट्ठी भर उपद्रवियों, दंगाइयों और बवालियों के आंदोलन को ज़्यादा तवज्जो देता है।

मुख्यमंत्री का बयान संवेदनहीन है क्योंकि राजस्थान के गृह सचिव वैभव गालरिया ने प्रारंभिक जाँच में पाया है कि हॉस्पिटल के सिस्टम में, इंफ्रास्ट्रक्चर में काफ़ी गड़बड़ियाँ हैं। हॉस्पिटल के नवजात शिशु वाले आईसीयू में ऑक्सीजन सप्लाई सही नहीं है। संक्रमण से बचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है और ज़रूरी दवाओं का अभाव है। साफ़ ज़ाहिर होता है कि मुख्यमंत्री अपनी सरकार की विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ऐसे बयान दे रहे हैं। अफ़सोस ये कि मुजफ्फरपुर की तरह (जहाँ सत्ताधीशों से ज़्यादा डॉक्टरों से सवाल-जवाब किया गया) यहाँ सवाल पूछने के लिए मीडिया का अभाव है।

अगर उम्मी हबीबा की बात करें तो उसकी माँ के कुल 5 बच्चे हैं और वो मीडिया अटेंशन का कारण इसीलिए बन रही है, क्योंकि वह अपने बच्चों को सीएए विरोधी प्रदर्शन में लेकर आती है। क्या 20 दिन की बच्ची से उसकी मर्जी पूछी जा सकती है? क्या उसे पता भी है कि वो कहाँ है और उसका इस्तेमाल किसलिए किया जा रहा है? उसकी अम्मी संविधान बचाने की बात करते हुए धरने पर बैठी हुई हैं। संविधान को किस से क्या ख़तरा है, इसका उत्तर ख़ुद वामपंथियों के पास भी नहीं है। ऐसे लोग एक बच्ची के स्वास्थ्य के साथ खेलेंगे और बाद में मोदी को जिम्मेदार ठहराएँगे। चित भी मेरी और पट भी मेरी।

मेनस्ट्रीम मीडिया और कथित संवेदनशील बुद्धिजीवी तथा लिबरल गिरोह जो किसी माँ के हाथ में बच्चे की नाक में लगी ऑक्सीजन पाइप वाली तस्वीर दिखा कर संवेदना दिखा रहा था, आज वो चुप हैं क्योंकि कॉन्ग्रेस के सरकार में बच्चों का इस संख्या में मरना जायज है। इस देश के मीडिया की दुर्गति यही है कि जब तक ‘भाजपा’ वाला धनिया का पत्ता न छिड़का गया हो, इन्हें न तो दलित की मौत पर कुछ कहना है, न बड़ी संख्या में नवजात शिशुओं की मृत्यु पर इन्हें वो ज़ायक़ा मिल पाता है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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