राहुल गाँधी की हार न मानने की क़ाबिलियत का मैं व्यक्तिगत रूप से फ़ैन होता जा रहा हूँ। आप ख़ुद देखिए कि मोदी सरकार को घेरने के लिए वो दिन-रात एक कर के सबूत जुटाने के प्रयास कर रहे हैं। उनका जब हर किस्सा झूठा साबित होता है तब भी राहुल गाँधी राफ़ेल डील पर अड़े रहते हैं। लेकिन लगातार अपने भगीरथ प्रयासों के बावजूद भी राफ़ेल डील को घोटाला साबित न कर पाने की निराशा राहुल गाँधी के चेहरे से कहीं भी नहीं झलकती है।
अब राहुल गाँधी को आख़िरकार आठ महीने बाद ये पता चल गया है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में गले आख़िर क्यों लगाया था। दुनिया के सामने यह खुलासा करने के लिए उन्होंने जो देश, काल और वातावरण चुना, वो है JNU!
राहुल गाँधी ने कल ही JNU में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने वाले क़िस्से का ज़िक्र करते हुए कहा, “जब मैंने संसद में पीएम मोदी को गले लगाया, तो मैं महसूस कर सकता था कि वह हैरान हैं, वह समझ नहीं पाए कि क्या हुआ। मुझे लगा कि उनके जीवन में प्यार की कमी है।”
इसके साथ ही राहुल गाँधी ने लगे हाथ एक बार फिर याद दिलाते हुए कहा कि उन्होंने परिवार के 2 लोगों को खोया है, जिस वजह से वो प्यार का महत्त्व समझते हैं। चुनाव जीतने के लिए फोटोशॉप से लेकर कॉन्ग्रेसी आई टी सेल के कुकर्मों पर निर्भर हो चुके राहुल गाँधी ने अब परिवार के दिवंगत सदस्यों को भी मैदान में उतार लिया है।
‘विक्टिम कार्ड’ खेलकर चुनाव जीतना और मुद्दों को भुनाना कॉन्ग्रेस पार्टी का बहुत पुराना शौक रहा है। अब प्रियंका गाँधी के बयान आते हैं कि वो अपने पति रॉबर्ट वाड्रा के साथ हर समय खड़ी रहेंगी।
वोटर से ज़्यादा ‘डेली सोप’ अब कॉन्ग्रेस के नेता देखने और समझने लगे हैं। लेकिन वर्तमान में हालात बदल चुके हैं। अब जनता के हाथों में वो कम्प्यूटर नहीं है जो राजीव गाँधी उनको सौंप कर गए थे, ना ही अब भावनाओं को बेचकर वोट कमा लेने का समय है। फिर भी राष्ट्रवाद और मानवीय भावनाओं में वोट बैंक तलाशने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी अब ऐसे तथ्य मीडिया के सामने लाती है जिनसे वोटर की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा सके।
गाय की पूजा करने वाले लोगों की भावनाओं को आहत करने के लिए सड़कों पर खुले आम गाय काटकर जश्न मनाने वाली पार्टी के अध्यक्ष कल ही लटकती धोती सँभालते-सँभालते तिरुमला में भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर भी पहुँच गए।
राफ़ेल डील पर सस्ते और घटिया सबूत जुटाकर रोजाना मीडिया को इकठ्ठा कर लेने वाले राहुल गाँधी अब पहले से ज़्यादा आत्मविश्वास में नज़र आ रहे हैं। ये राहुल गाँधी आस्तीन चढ़ाकर एक ‘महान अर्थशास्त्री’ के सुझाए अध्यादेश को गुस्से में जनता के सामने फाड़कर फेंकने वाले से अलग है।
ये वो गाँधी है, जो नफ़रत को मोहब्बत से जीतने का सन्देश देता नज़र आ रहा है। ये राहुल गाँधी जनेऊ पहनता है, धोती पहनने लगा है, मंदिर में पूजा-पाठ करने लगा है, चाहे स्वप्न में ही सही, लेकिन अमरनाथ यात्रा भी करने लगा है, इससे पता चलता है कि राहुल गाँधी की नई PR टीम उन्हें सही दिशा में ट्रेनिंग दे रही है। लेकिन धोती पहनना और उसे पहनकर चलना सीखना अभी भी बाक़ी है। धोती पहनना सीखना और फिर पहनकर चलना, ये सब इतना कठिन कार्य होता है कि इतने में कम से कम 2 पंचवर्षीय योजनाएँ निकल जाएँगी।
अब जब राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस गौमाता, हिंदुत्व और भगवान की शरण में पहुँचकर वोट बैंक तलाश रही है, तो वो ख़ुद अपने कट्टर वोट बैंक के लिए पहेली बनते जा रहे हैं। ख़ैर जो भी है, ये राहुल गाँधी का प्यार बाँटने और धोती में लिपटने का क़िस्सा श्री सत्यनारायण कथा के उस हिस्से की ही तरह है, जिसमें तमाम ज़िन्दगी भगवान का नाम ना लेने वाले व्यक्ति के मरते समय सिर्फ़ एक बार ‘नारायण’ जप लेने मात्र से उसे नरक के बदले बैकुंठ लोक प्राप्त हो जाता है।
मैं तो यही सलाह दूँगा कि राहुल गाँधी अभी धोती और त्रिपुण्ड पर ध्यान न देकर प्यार मोहब्बत वाले भाषण देकर जनता का दिल जीतने पर फोकस करें। वरना अभी धोती सँभालते रह गए तो बाद में EVM से छेड़छाड़ वाले बयानों का ही सहारा बाक़ी रह जाएगा।