Friday, March 29, 2024
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जब नक्सलियों की ‘क्रांति के मार्ग’ में डिल्डो अपनी जगह बनाने लगता है तब हथियारों के साथ वाइब्रेटर भी पकड़ा जाता है

पिस्तौल-बंदूक के साथ दूसरे तरह की 'बंदूकों' का मिलना बताता है कि क्रांति की राह में सर्वहारा कभी प्राथमिकता होती ही नहीं, वामपंथी वस्तुतः सेक्स के भूखे, फ़्रस्ट्रेटेड, बलात्कारी और स्त्रियों को वासना की वस्तु समझने वाले लोग हैं, जिनकी सारी क्रांति एक डिल्डो या फिर किसी आदिवासी लड़की की योनि में सिमट कर जबरन स्खलित हो जाती है।

कल सुरक्षा बलों ने पलामू के सलामदिरी में माओवादी आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ में ‘हथियार’ पकड़े। पीआईबी त्रिपुरा ने इसकी जानकारी देते हुए दो तस्वीरें शेयर की जिसमें पिस्तौल-बंदूक, गोली और मोबाइल फोन आदि के साथ दो और भी ‘क्रांतिकारी’ वस्तुएँ नजर आईं जो हल्के गुलाबी और गहरे गुलाबी रंग की थीं।

आम तौर पर माओवंशी वामपंथी छात्राओं को नशा खिला कर बलात्कार करने से ले कर जंगलों में नव-वामपंथनों को सेक्स गुलाम बना कर इस्तेमाल करने के लिए कुख्यात रहे हैं, अतः गुलाबी रंग के दो शेड में दिख रहे इन दो वस्तुओं को देख कर लोगों की जिज्ञासा जगी तो उस पर सबका ध्यान गया।

एक वस्तु जो आकार में छोटी है, और उससे तार जुड़े दिख रहे हैं, कथित तौर पर उसे ‘वाइब्रेटर’ कहा जा रहा है। हालाँकि, कुछ लोग उसे यूएसबी/बैटरी संचालित पंखा भी कह रहे हैं। दूसरे लोग ऐसे लोगों को ‘भोला-भाला’ बताते हुए कह रहे हैं कि बगल में जो दूसरा यंत्र है, उसे शायद कूलर या एसी न कह दिया जाए।

सॉल्ट न्यूज की तकनीक द्वारा जाँच

हमने सॉल्ट न्यूज की पेटेंटेड उन्नत तकनीक का प्रयोग कर के गूगल पर रीवर्स इमेज सर्च किया तो उसे ‘सेक्स ट्वॉय’ यानी कि ‘यौन आनंद प्रदान करने वाला यंत्र’ कहा गया। फिर हमने पंचर और रबर मामलों के जानकार मोहम्मद जुबैर को फोन कर के पता किया कि फोटो में जो दिख रहा है, वो वही है क्या।

जुबैर ने फोन पर बात करते हुए बताया, “देखिए, मेरा तो दिन-रात का काम रबर का ही है। मैं देख कर ही पहचान जाता हूँ कि कौन से ट्यूब की रबर किस क्वालिटी की है, और कितनी चलेगी। इसमें जब पॉलिथीन में लिपटी वस्तु पर मैंने ज़ूम किया तो मैंने पाया कि वह वस्तु रबर की ही बनी हुई है, और लचीली भी है।”

हमने जब उनसे पूछा कि इतने विश्वास से कैसे कह रहे हैं तो उन्होंने बताया कि कभी-कभी वह स्वयं भी ऐसे यंत्रों का सहारा लेते हैं तो उसका अनुभव भी काम आया है। हालाँकि, हमें किसी के निजी मामलों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है तो काम की बातें करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि फोटो में दिखने वाली वस्तु ‘डिल्डो’ है जिसका प्रयोग यौन आनंद पाने हेतु लोग-बाग करते हैं।

वामपंथियों का क्रांतिकारी इतिहास

पिछले कुछ समय में वामपंथियों की विकृत कामवासना अपने ही विचारधारा की लड़कियों का बलात्कार करने से ले कर उन्हें जंगलों में सर्वहारा की लड़ाई के नाम पर ‘सेक्स स्लेव’ बनाने की खबरों के रूप में सामने आती रही हैं। जेएनयू के अनमोल रतन हों, या फिर गढ़चिरौली पुलिस को आत्मसमर्पण करने वाली मोती उर्फ राधा हो, लड़कियों के बलात्कार और वामपंथियों का चरित्र गुँथा हुआ मिलता है।

चाहे जलना जंगल (बोकारो) का संतोष महतो हो, सपन तुडु हो, हजारीबाग इलाके के सुदर्शन और विनय हों, मनीष और करम हों, राँची के गुरुपीरा का कुंदन प्रधान हो, लक्खीसराय का सिधु कोड़ा हो, माओवादी नक्सली आतंकियों ने आदिवासी लड़कियों को, नाबालिग बच्चियों को, अपने काडर के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की पत्नियों तक का लगातार बलात्कार किया है और आवाज उठाने पर सबके सामने गला भी रेता है।

मँजे हुए वामपंथी अक्सर जेएनयू की पाठशाला में सेक्स पर आलेख लिखने से ले कर, नई छात्राओं को इसके फायदे गिनाते हुए, उसे शारीरिक स्वतंत्रता से जोड़ कर पहले इन्हें बरगलाते हैं और फिर लगातार उनका शारीरिक शोषण होता रहता है।

एक बहुत बड़े कामपंथी नेता बताते हैं, “अमूमन, सर्वहारा की क्रांति में लड़कियों का इतना ही महत्व है। लेकिन ‘इतना ही’ का मतलब कम न समझें। जंगलों में भी शरीर की जरूरतें होती ही हैं। फासीवादियों से हमारी लड़ाई लम्बी चलेगी, इसलिए हमें जंगल में भी कॉलेज जैसा माहौल चाहिए। क्रांति तो होती रहेगी, लेकिन माहौल में किसी भी तरह की कमी होने से सीनियर नेता दुखी हो जाते हैं।”

हमने एक नववामपंथन को डेढ़ सौ फेसबुक शेयर का विश्वास दिलाया तो उन्होंने कहा, “मूल बात तो यह है कि ज्योंहि आप वामपंथी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता लेते हैं, या फिर फेसबुक पर मोदी को फासीवादी कह कर, नारी देह पर लम्बे लेख लिखने लगती हैं, तभी से आपकी देह तो कम्यून की प्रॉपर्टी हो जाती है। जब देह ही आपकी नहीं रही तो फिर उससे मोह कैसा?”

आगे उन्होंने कहा, “डिल्डो के मिलने से इतनी बात क्यों हो रही है? बवाल करना बैकवर्ड लोगों और ट्रोलों का कार्य है। क्या जंगल में शारीरिक भूख पेड़ों से मिटाई जाएगी? कुछ लोग यह भी मजे ले रहे हैं कि नक्सली मर्द आखिर डिल्डो से कर क्या रहे हैं? अरे भाई! उनका डिल्डो, उनका शरीर, उनकी क्रांति, उनकी इच्छा कि वो अपने किस हथियार का क्या प्रयोग करते हैं। यह किसी की निजी पसंद है, समाज या फासीवादी सरकार यह तय नहीं करेगी कि कौन सा नक्सली किस वस्तु को कैसे प्रयोग में लाए।”

जंगल के नक्सली ‘डिल्डो’ से करते क्या हैं?

आम तौर पर इस ‘खिलौने’ का प्रयोग स्त्रियों में ज्यादा देखा गया है, लेकिन माओवादियों से हुई मुठभेड़ में इसका मिलना बताता है कि बात गंभीर है। मैं तो ऐसे मामलों में खुली दृष्टि रखता हूँ, अतः मैं इसे लिंग के दर्शन में नहीं बाँधना चाहता। इसलिए मैंने डिल्डो मामलों के जानकार अनमोल वामरतन से बात करने की कोशिश की।

“हम सब जानते हैं कि जंगलों से माओवादी कम होते जा रहे हैं। वामपंथनों की सप्लाय भी कम पड़ गई है क्योंकि विश्वविद्यालयों में राष्ट्रवादी विचारधारा के सुसंस्कृत लोग पहुँच रहे हैं। सीडी देने के बहाने आप उन्हें बुला नहीं सकते क्योंकि टोरेंट पर सब कुछ उपलब्ध है।”

“ऐसे में जब कोई सिधु कोडा, करम दा, कामरेड कुंदन, कामरेड सपन आदि कैंपस रिक्रूटमेंट हेतु कैंप लगाते हैं तो वामपंथनें उतनी संख्या में नहीं आतीं। जो आती हैं, उनको सीनियर नेता अपना शिकार बनाते हैं। ऐसे में जूनियरों में आंदोलन को ले कर काफी उदासीनता दिखने लगती है। इसी को जागृत रखने के लिए, क्रांति की मशाल जलाए रखने के लिए ऐसे यंत्रों का सहारा लिया जाता है।” अनमोल वामरतन ने बताया।

अब बात यह है कि ‘डिल्डो’ का प्रयोग वामपंथनों की जगह वामपंथी क्रांतिकारी तो नहीं कर रहे?

अनमोल बताते हैं, “हाँ करते हैं, इसमें दिक़्क़त क्या है? जंगल है, लोग एडवेंचरस हो ही जाते हैं। दूसरी बात, वामपंथी कौन सा विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करते हैं कि उन्हें पता चले कि कौन-सी चीज का क्या काम है! कई बार सीनियर नेता भी उन्हीं से अपनी दैहिक जरूरतें पूरी कर लेते हैं, तो उन्होंने भी सोचा होगा कि क्रांति के मार्ग में ‘डिल्डो’ भी अपनी जगह बना ही लेगा।”

क्या है दूसरा पक्ष?

हमने दूसरा पक्ष जानने की कोशिश की तो मुझे कपूर्वानंद और फैजान भाई ही उचित लगे क्योंकि ये लोग धरती पर दिखती हर चीज या चर्चित विषय पर जानकारी रखते हैं। खास कर जब बात वामपंथियों की हो रही हो तो ये लोग टीवी पर इस पक्ष पर सारगर्भित वचनामृत से आम जन तक ज्ञानवृष्टि कर देते हैं। फोन किया तो दोनों ने मेरा नाम सुनते ही ‘भाग #₹& के’ कह कर गरियाते हुए फोन काट दिया।

फिर मैंने ‘नक्सली सेक्स मामलों के नए जानकार’ धैर्यकांत मिश्रा से बात की। उन्होंने तीन ‘ज्वाइंट’ का पैसा लेने के बाद कहा, “अजीत भारती जी, क्या एक नक्सली को शारीरिक सुख लेने का अधिकार नहीं है? आप भी तो अखंड सिंगल हैं, आपको तो कम-से-कम उस नक्सली का दर्द समझ में आना चाहिए। लानत है महाराज! आप उस नक्सली के मनोविज्ञान को समझिए जो एक तरफ़ फ़ासिवादी सरकार से लड़ भी रहा है और दूसरी तरफ़ अपने शरीर को वो सुख भी दे रहा जो उसका शरीर डिज़र्व करता है। ये डिल्डो सिर्फ़ डिल्डो नहीं, एक तमाचा है देश की मोड़ी सरकार पर जो अपने नक्सली नागरिकों को उसके सेक्सुअल राइट से कोसों दूर रखता है।”

“क्या इस डिल्डो के मिल जाने के बाद हमें सरकार से सवाल नहीं पूछना चाहिए? ‘जंगल में मंगल’ कह कर उपहास किया जा रहा है। एक डर का माहौल बनाया जा रहा है। मुझे तो डर है कि कल को अगर CRPF को नकली हाथ मिल जाए तो लोग उसका भी मजाक उड़ाएँगे लेकिन कोई भी एक नक्सली की पीड़ा को नहीं समझेगा। इस डिल्डो के मिलने के बाद मेरा दिल रो रहा है, मैं सो नहीं पा रहा हूँ और एक नागरिक होने के कारण आपको भी नहीं सोना चाहिए।”

“मुझे तो नींद नहीं आएगी क्योंकि मैं उस नक्सली की पीड़ा को अपनी पीड़ा से जोड़ कर देख रहा हूँ कि कितनी मेहनत से उसने यह वस्तु किसी वामपंथन के बैग से टपाई होगी, और अब वो भी पकड़ ली गई। आप यह सोचिए कि एक ही पकड़ी गई, बंदूकें तो कई हैं। इसका मतलब यह है कि कई लोग एक से ही काम चला रहे थे। यहाँ कोई मनरेगा नहीं है कि सबको इतने दिन संतुष्टि की गारंटी मिलेगी ही। सरकारों ने इस बुनियादी अधिकार के लिए कोई नीति नहीं बनाई है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।”

“2014 से पहले ऐसा नहीं होता था, जंगल में पूरी व्यवस्था रहती थी। लेकिन इस सरकार ने अडानी-अम्बानी को सारे जंगल बेच दिए हैं। कल को वहाँ नेचर फ़्रेश का तेल मिल जाए तो ज़्यादा हैरानी नहीं होगी। आखिर क्या हो रहा है इस देश में? पवन सिंह ने एक बार एक गीत गाया था – ‘ए राजा! चलऽ ना पिपरवा के तरवा ओहि जे सारा काम हो जाई’, लेकिन किसको पता था कि पिपरवा के तरवा फासीवादी सरकार की दमनकारी पुलिस पहले से बैठी होगी, निंदनीय!”

चूँकि धैर्यकांत ने ‘अखंड सिंगल’ वाली बात कह कर मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया, तो मैंने उसकी पेमेंट काट ली और ज्वाइंट में मंगोलियाई घोड़े की लीद मिला दी।

क्या कहते हैं संघी ट्रोल

चंदन नाम के एक स्वघोषित संघी ट्रोल ने नाम छपवाने की शर्त पर कहा, “मेरा नाम छापिएगा तब ही बोलूँगा। आपने यह देखा कि डिल्डो जंगल में मिलने का मतलब क्या है? इसका सीधा मतलब है कि वामपंथी न तो क्रांति कर पा रहे हैं न ही वामपंथनों को संतुष्ट कर पा रहे हैं। मैं ऊपर के लोगों की तरह यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि पुरुष लोग इसका इस्तेमाल कर रहे होंगे।”

“इसका एक ही अर्थ है कि इस सरकार ने वामपंथियों का मनोबल ही नहीं, पौरुष भी तोड़ दिया है। अब, ऐसे टूटे हुए पौरुष वालों का जंगल के वीराने में वामपंथनें क्या करेंगी? इसलिए उन्होंने विश्वविद्यालय से आने वाली नई वामपंथनों से यह यंत्र मँगवाया और अपनी दैहिक जरूरतों को पूरा कर रही थीं। मैं उनका सम्मान करता हूँ कि उन्होंने खराब क्वालिटी के वामपंथियों से संसर्ग करने की जगह एक रबर के यंत्र को चुना। यही तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।”

“साथ ही, यूँ तो वामपंथियों को मच्छर भी काट ले तो मैं प्रसन्न होता हूँ, पर नारीवादी होने के कारण मेरा हृदय फफक-फफक कर चीत्कार रहा है कि पूरे जंगल में एक ही यंत्र से काम लेने वाली वामपंथनें अब क्या करेंगी? यह एक विचारणीय प्रश्न है। संभव है कि जेएनयू में इस पर एक सेमिनार आयोजित करवाया जाए और इसके समाधान पर प्रकाश डाला जाए।”

आगे क्या होगी वामपंथियों की नीति?

सीताराम केंचुली ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “सरकार ने अपने विचारों से अलग लोगों को नई तरह की हिंसा से दबाने की कोशिश की है। ठीक है कि फंड के अभाव में हमारे कार्यकर्ता थोड़े कमजोर हो गए हैं, तो शारीरिक संतुष्टि के लिए ये सब उपाय किए जा रहे हैं। आप ही बताइए कि बंदूक पकड़ने का तो समझ में आता है, मोबाइल का भी समझ सकते हैं कि षड्यंत्र रचने में सहयोगी होता है, लेकिन एक अदद डिल्डो को पकड़ कर इस फासीवादी सरकार ने कौन सी बहादुरी दिखाई है?”

वहीं, वरिष्ठ वामपंथन निंदा करैत ने केंचुली जी की बातों का समर्थन करते हुए कहा, “आगे से हमारे काडरों को हाशमी दवाखाना और अलीगढ़ के हकीम एम जान से सर्टिफिकेट ले कर ही फील्ड में पोस्टिंग दी जाएगी। ये सब पकड़ा जाता है, फिर न्यूज बना दी जाती है तो कार्यकर्ताओं में हीनभाव आ जाता है। जरूरत पड़े तो रामदेव जी के योग की वीडियो भी दिखाई जाएगी। क्रांति के मार्ग में मेन काम पर ही बाधा हो जाना, हर तरह से गलत है। चुनाव जीतें न जीतें, सरकारी कर्मचारियों के नरसंहार आदि के लिए तो काडर को मजबूत होना ही होगा।”

वहीं, अंधकार करैत ने भी अपनी राय देते हुए सरकार को जम कर कोसा, “मेरी तो उमर नहीं रही कि ऐसी तस्वीरें देख सकूँ, लेकिन मैं इतना अवश्य ही जानता हूँ कि सरकार को समझना चाहिए कि विरोध अपनी जगह है, और डिल्डो-वाइब्रेटर तक पकड़ कर प्रदर्शन करवा देना अलग। थोड़ा तो लिहाज करते मोदी जी… वामपंथ तो संख्या बल में भी कमजोर है, अब आप हमें कितना कोने में ढकेलिएगा साहब? हाँ हैं हम सेक्सुअली कमजोर, नहीं संतुष्ट कर पाते वामपंथनों को… हो गए खुश? क्या मिल गया इससे? 2024 में दस सीट और जीत जाओगे, लेकिन जिसका डिल्डो छिन गया है, उसकी हाय जरूर लगेगी।”

करैत द्वय ने जिस तरह से अपनी बात कही, कई लोगों को शक हुआ कि कहीं इन्हीं का तो नहीं पकड़ लिया गया। लेकिन, स्थानीय पुलिस ने बताया कि जाँच चल रही है, कई लोगों के फिंगर प्रिंट पाए गए हैं, अतः सही मालिक तक पहुँचने में समय लगेगा। उन्होंने आगे कहा, “हालाँकि, हमारी जाँच के दायरे में ये सब नहीं आता, न ही हमारी प्राथमिकता है ये सब सुलझाना।”

निष्कर्ष

कुल मिला कर बात यह है कि मैं जब वामपंथियों को कामपंथी कहा करता था, तो उसका आधार उनके ही भागे हुए महिला काडरों द्वारा अपने सीनियर माओवादियों के हाथों सेक्स स्लेव बन कर, बलात्कार और व्यवस्थित शारीरिक शोषण करने की खबरें हुआ करती थीं। लेकिन पिस्तौल-बंदूक के साथ दूसरे तरह की ‘बंदूकों’ का मिलना बताता है कि क्रांति की राह में सर्वहारा कभी प्राथमिकता होती ही नहीं, वामपंथी वस्तुतः सेक्स के भूखे, फ़्रस्ट्रेटेड, बलात्कारी और स्त्रियों को वासना की वस्तु समझने वाले लोग हैं, जिनकी सारी क्रांति एक डिल्डो या फिर किसी आदिवासी लड़की की योनि में सिमट कर जबरन स्खलित हो जाती है।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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