‘मानहानि- मानहानि: घोघो रानी, कितना पानी’
तो आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने घोघो रानी को बता बता दिया कि कितना पानी था। सुप्रीम कोर्ट ने बता दिया है कि पानी चुल्लू भर है और ‘पीत पत्रकारिता’ के डूब मरने के लिए यह काफी है। माननीय सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद मंगलवार (अगस्त 27, 2019) को प्रोपगेंडा न्यूज पोर्टल The Wire ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह द्वारा दायर किए गए मानहानि के मुक़दमे को निरस्त किए जाने की माँग वाली अपनी याचिका वापस ले ली।
इसके बाद से चुनाव से पहले द वायर के कंधे पर बन्दूक रखकर जहर उगलने वाले अब भूमिगत हो गए हैं। खैर, इनकी चमड़ी इतनी मोटी है कि सालभर बाद प्रोपगेंडा फर्जी निकल भी जाए तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता। वे एक नया प्रोपगेंडा गढ़ने में व्यस्त हो जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘द वायर’ को फटकार लगाते हुए जो कुछ कहा वो उन सभी लोगों को दिन में 5 वक़्त पढ़ना चाहिए, जो टीवी स्क्रीन काली कर के पत्रकारिता को कोसते हैं और खुद उसे खोखला करते जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा – “आजकल यह मीडिया की संस्कृति बन गई है कि वह लोगों को जवाब देने के लिए सिर्फ 10-12 घंटे का नोटिस देती है और इसके बाद रिपोर्ट पब्लिश कर देती है!”
‘द वायर’ की ओर से पेश ‘वरिष्ठ वकील’ और कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से अपील की कि वो गुजरात की अदालत में ट्रायल का सामना करने के लिए तैयार हैं, इसलिए उनकी याचिका को वापस लेने की अनुमति दी जाए। इस पर नाराजगी जताते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि यह एक सभ्य देश है और यह कैसी संस्कृति हम विकसित कर रहे हैं, जिसमें हम रात में किसी को नोटिस भेजते हैं और फिर सुबह रिपोर्ट प्रकाशित कर देते हैं?
कपिल सिब्बल को दिए गए इस जवाब के बाद या तो उन्हें ‘वरिष्ठ’ कहने पर रोक लगनी चाहिए या फिर वरिष्ठ शब्द को एक गाली घोषित कर दिया जाना चाहिए। लेकिन जो भी हो, वह नजीर होना चाहिए।
वर्ष 2017 में ‘द वायर’ में छपे एक लेख के खिलाफ अमित शाह के बेटे जय शाह ने न्यूज पोर्टल के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर दिया था। इसके बाद द वायर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। मंगलवार को जस्टिस बीआर गवई ने कहा- “यह और कुछ नहीं बल्कि पीत पत्रकारिता है। यह कैसी पत्रकारिता है? प्रेस की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, लेकिन यह एकतरफा नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट के इसी वक्तव्य को ध्यान में रख ‘द वायर’ से लेकर ‘द क्विंट‘ और ‘स्क्रॉल‘ के साथ-साथ उन सभी आदरणीय वरिष्ठ पत्रकारों का स्मरण करिए जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता की गरिमा को दफ़न करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखा है।
द वायर, क्विंट, स्क्रॉल का नाम आते ही एक नाम सबसे कॉमन हो जाता है, वो है एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार का! ख़ास बात है कि वो भी वरिष्ठ हैं। इन प्रोपगेंडा न्यूज़ पोर्टल्स को मेनस्ट्रीम करने का सबसे ज्यादा प्रचार यदि किसी ने किया है तो वो सत्यान्वेषी पत्रकार रवीश कुमार हैं। रवीश ने इन सबको अपने जहर उगलने का माध्यम बनाया है और अब अपने आप सीधे किनारे हो गए।
अपने स्टूडियो से लेकर फेसबुक पोस्ट तक में रवीश कुमार ने ‘द वायर’ की इस रिपोर्ट से आदतन खूब बवाल मचाया था। उन्होंने अमित शाह के बेटे जय शाह पर वायर द्वारा लगाए गए आरोपों की आड़ में एक घोघो रानी का भी जिक्र किया और पूछा कि कितनी मानहानि है? लेकिन, आज घोघो रानी चुप है। रवीश बता नहीं रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट जिस ‘द वायर’ के प्रोपगेंडा को ‘पीत पत्रकारिता’ बता दिया है, उस पर घोघो रानी के क्या विचार हैं?
जबकि होना तो यह चाहिए कि आज के प्राइम टाइम में सुप्रीम कोर्ट को भी गोदी बता दिया जाना चाहिए। आज ऑड दिवस है, आज सुप्रीम कोर्ट का निर्णय घोघो रानी के मनमुताबिक़ नहीं है। ऐसा लगता है मानो खेल दिवस पर घोघो रानी खेल कर गई।
सुप्रीम कोर्ट उस द वायर को ‘येलो जर्नलिज़्म’ कहकर दुत्कार चुका है, जिसका हवाला देकर सत्यान्वेषी पत्रकार रवीश कुमार यहाँ-वहाँ लोगों को काटते फिरते हैं। लेकिन क्या अब रवीश कुमार अपने इन्हीं मनगढ़ंत आरोपों के लिए माफी माँगेंगे?
आप रवीश कुमार के ठीक एक साल पुराने इस लेख को जरूर पढ़िए। 2017 में अमित शाह के बेटे जय शाह पर रवीश कुमार ने पूरे आत्मविश्वास के साथ हर तरह के आरोप उन्नत भाषाशैली और मुहावरों के साथ लगाए थे, जो कि सुप्रीम कोर्ट के एक ही फटकार में सब घुस्सड़ घाटी में चले गए।
लेकिन क्या यह धूर्त, पाखण्डी, कुतर्की जर्नलिस्ट अपने पाठकों और श्रोताओं को ये बताएँगे कि उन्होंने उनके सामने झूठ परोसा था, क्या वो स्क्रीन काली कर शोक मनाते हुए अपने ऑडियंस को ये बताएँगे कि हिंदी मीडिया को कोसते हुए जब वो झूठ परोस रहे थे तब किसकी गोदी में बैठे थे?
नहीं, वो नहीं बताएँगे। क्योंकि यही उनके काम करने की शैली है और यही उनकी विचारधारा की नंगई है। इसके बिना घोघो रानी मर जाएगी, उसका यही खाद पानी है। आप आँख मूँदकर अपनी विचारधारा के अहंकार को संतुष्ट करने वाले एक पाखंडी बुद्धिजीवी की बातों को अभी भी ब्रह्मसत्य मानते चलिए, क्योंकि आपने अपना अंधेरा चुना है, इसलिए उसमें लीन रहिए आपको यही शोभा देता है। क्योंकि उनका प्रोपगेंडा ही अब काली स्क्रीन की पहचान है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय जरा देर से आया है लेकिन ये फैसला आपके कान खड़े जरूर कर देता है कि द वायर को पत्रकारिता का सूर्य कहने वाले रवीश कुमार के दावे साल भर में ही फर्जी निकल जाते हैं। लेकिन, तब तक ऐसे ही कितने ही ‘द वायर’ अपने हिस्से का नुकसान बाजार में बेच चुके होंगे।
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इसी तरह के आरोप रवीश कुमार की पसंदीदा वेबसाइट ‘कारवाँ’ भी NSA अजीत डोभाल और उनके बेटों पर लगा चुकी है। जब बिना किसी इन्तजार के ही रवीश कमार और ‘कारवाँ’ ने NSA डोभाल के परिवार को ‘D-कम्पनी’ बता दिया था। इसके बाद इस पूरे आरोप पर कोई स्पष्टीकरण नहीं आया, ना ही कारवाँ की ओर से और ना ही रवीश कुमार की ओर से।
हालाँकि, अजीत डोभाल के बेटे ने जरूर मानहानि का दावा करने की ओर कदम बढ़ाए थे और रवीश कुमार ने इसके बाद ‘मानहानि’ पर ही प्रलाप शुरू करते हुए कहा था कि मानहानि पत्रकारिता को ख़त्म कर देगी। सवाल यह है कि अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए जहर उगलने वाले लोग पत्रकारिता शब्द से अपना नाम आखिर किस हैसियत से जोड़ लेते हैं? वास्तव में होना तो यह चाहिए कि ऐसे अनर्गल आरोप लगाकर अपनी TRP की दुहाई देने वाले लोगों को तो पड़ोसियों पर अपनी खुन्नस निकालने वाले लोगों की श्रेणी में शामिल किया जाना चाहिए। जबकि, इसके विपरीत ये लोग पत्रकारिता के स्वघोषित मसीहा बन चुके हैं।
यह इस देश का दुर्भाग्य है कि ‘बड़े नाम’ जब सोशल मीडिया पर लम्बे लेख लिखते हैं, तो हमें महसूस होना शुरू हो जाता है कि इतना टाइप करने वाला झूठ तो नहीं लिख रहा होगा। हमारे ऑपइंडिया संपादक अजीत भारती एक लेख में बता चुके हैं कि ऐसे ही ‘प्रोपेगैंडाधीशों’ के ‘भगत’ कितने बड़े स्तर तक ब्रेनवॉश किए जा चुके हैं। वो अब खुलेआम कहने लगे हैं कि रवीश कुमार जैसे हठधर्मी लोग चाहे जो कुछ कहे हम उसे गलत मानेंगे ही नहीं।
समय आ गया है कि रवीश कुमार को उसी ऐतिहासिक काली स्क्रीन वाले स्टूडियो से यह घोषणा कर देनी चाहिए कि हिंदी पत्रकारिता में जिस कूड़े के परोसे जाने की वो बात करते आए हैं, असल में उस कूड़े की फैक्ट्री खुद रवीश कुमार हैं। यह कूड़ा ‘द वायर’ से लेकर उनके ‘विश्वसनीय सूत्र’ व्हाट्सएप्प मैसेज, कारवाँ से होकर सीधे रवीश के प्राइम टाइम, ब्लॉग और फिर सोशल मीडिया से उड़ेला जाता है।
रवीश को अपने भगत-जनों पर पूरा यकीन रहता है कि अपनी कुटिल मुस्कान के साथ वो अगर पूरब दिशा को ‘हें-हें-हें’ के स्वर के साथ पश्चिम कह दें, तो उनके भगत-जन तुरंत छाती कूटते हुए सबको जाकर बता आएँगे कि आज से यही पश्चिम है, सुप्रीम कोर्ट चाहे कुछ भी कह दे उनको क्या?