भारत का कण-कण अपनी शूरवीरता कहानी कहती है। इसके पग-पग पर बलिदान की गाथा है। विदेशी आक्रांताओं से लड़ते हुए यहाँ से वीरों ने ना समय देखा और ना उम्र, ना परिवार और ना परिणाम, बस राष्ट्र और धर्म को बचाने के अपने सनातन कर्तव्यों के लिए खुद को बलि वेदी पर न्योछावर कर दिए। ऐसे लाखों शूरवीरों की कहानी भारत की इस पवित्र भूमि में समाहित है। ऐसे ही एक शूरवीर का नाम हमीर सिंहजी गोहिल है।
गहलोत राजवंश के क्षत्रिय कुल में जन्म लेने वाले महाप्रतापी हमीर सिंहजी गोहिल एक ऐसे शख्सियत हैं, जिन्होंने सनातन परंपरा के मान्य द्वादशलिंगों में से प्रथम लिंग सोमनाथ मंदिर को बचाने के लिए अपने प्राणों की चिंता नहीं की। अब हमीर सिंह गोहिल पर ‘केसरी वीर’ नाम से एक फिल्म आ रही है, जिसमें उनके पराक्रम को दिखाया गया है। इस फिल्म में सुनील शेट्टी और विवेक ओबेरॉय मुख्य भूमिका में हैं।
प्रिंस धीमन और कनु चौहान द्वारा निर्मित केसरी वीर 14 मार्च 2025 को देश भर के सिनेमा घरों में रिलीज होगी। वीर हमीर सिंह जी गोहिल पर गुजराती में कई किताबें लिखी गई हैं और साल 2012 में एक गुजराती फिल्म ‘वीर हमीरजी- सोमनाथ नी सखाते’ बनी है। इस फिल्म को अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म की श्रेणी में भारतीय प्रस्तुति के रूप में भी चुना गया था। हालाँकि, अंतिम कट में यह फिल्म पिछड़ गई।
हाल ही में ऐसी ही एक फिल्म छावा रिलीज हुई है, जिसमें छत्रपति शिवाजी के पुत्र छत्रपति संभाजी के पराक्रम को दिखाया गया है। संभाजी ने मुगल आक्रांता औरंगजेब को नाकों चने चबवा दिया था। अंत में वे औरंगजेब की क्रूरता के शिकार बन गए, लेकिन उन्होंने अपने धर्म का त्याग नहीं किया। इस फिल्म को खूब सराहा जा रहा है।

हमीर सिंह गोहिल और जफर खान का आक्रमण
भारत के इतिहास में वीर हमीर सिंह गोहिल को पराक्रम और उनके साहस के लिए याद किया जाता रहेगा। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद तुगलक-II के गर्वनर जफर खान की सेना से युद्ध करते हुए अद्वितीय साहस का परिचय दिया था। उन्होंने अपने भील दोस्त वेगड़ा जी के साथ अपनी अंतिम साँस तक युद्ध किया और सोमनाथ मंदिर को बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
बात 14वीं शताब्दी की है। गुजरात के अमरेली जिले के अर्थिला के राजा थे भीमजी सिंह गोहिल। उनके तीन बेटे थे। दुदाजी, अर्जुनजी और हमीरजी। एक बार अपने मझले भाई अर्जुन जी के साथ वे मुर्गों की लड़ाई के चक्कर में दोनों भाई के बीच विवाद हो गया और अर्जुन जी ने उन्हें सौराष्ट्र छोड़कर जाने का आदेश दे दिया। वे 200 क्षत्रियों को लेकर मारवाड़ की ओर चले गए।
कुछ समय के बाद अर्जुन जी अपनी गलती का अहसास हुआ और अपने छोटे भाई हमीर जी बुलवा भेजा। वे आपस आ गए। घर पहुँचकर वे अपने भाइयों और भाभी से मिले। इस तरह पूरी प्रजा हमीर जी के वापस आने पर खुश थी। तीनों भाई जंगलों में जाकर शिकार खेलने और युद्ध का लगातार अभ्यास करते। उनकी उम्र 16 साल थी, लेकिन अभी शादी नहीं हुई थी।
उधर, गुजरात के हालात बदल रहे थे। दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद तुगलक द्वितीय जूनागढ़ में अपने गवर्नर शम्ससुद्दीन को हटाकर जफर खान को गवर्नर नियुक्त किया था। जफर खान बेहद ही क्रूर और धर्मांध था। वह गुजरात में हिंदुओं पर तरह-तरह से अत्याचार करता था और मंदिरों को ध्वस्त करता। जफर खान का अगला निशाना हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल सोमेश्वर धाम यानी सोमनाथ मंदिर था।
उसने सोमनाथ में रसूल खान को थानेदार नियुक्त किया और आदेश दिया को मंदिर में हिंदुओं को इकट्ठा ना होने दे। कहा जाता है कि उस दिन महाशिवरात्रि था और हर कोई भगवान शिव का अभिषेक करना चाहता था। रसूल खान ने उन्हें रोकने के लिए श्रद्धालुओें के साथ मारपीट शुरू कर दी। इसे आक्रोशित हिंदू श्रद्धालुओं ने रसूल खान को मार डाला। इससे जफर खान को सोमनाथ मंदिर पर हमला करने का मौका मिल गया।
उधर, भीमजी सिंह गोहिल और उनके दोनों बेटे बदले हालात के लिए तैयार हो रहे थे, जबकि हमीर सिंह जी को इसके बारे में जानकारी नहीं थी। एक दिन वे दरबारगढ़ आए और अपने सबसे बड़े भाई दूदाजी की पत्नी खाना माँगा। तब उनकी बड़ी भाभी ने कहा, “क्यों देवर जी, इतनी जल्दी क्या है? खाना खाकर सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए साका करने जाना है?”
हमीर सिंह जी को पहली बार सोमनाथ मंदिर पर संकट के बारे में पता चला। उन्होंने अपनी भाभी से पूछा कि ‘क्या सोमनाथ पर संकट है?’ तब उनकी भाभी ने बताया कि दिल्ली का सूबेदार जफर खान अपने दल के साथ हमले के लिए रास्ते में है। यह बात सुनकर हमीर सिंह जी बिना खाना खाए ही खड़े हो गए। वे अपने 200 साथियों को लेकर जफर खान से लड़ने के लिए तैयारी करने लगे।
कहा जाता है कि रास्ते में हमीर सिंह जी को अंधेरी रात में किसी महिला के शोक गीत गाते हुए आवाज सुनाई दी। एक झोंपड़ी में एक वृद्ध चारण यह शोक गीत गा रही थी। हमीर सिंह ने वहाँ जाकर पूछा तो महिला ने कहा कि वह अपने मृत पुत्र के लिए शोकगीत गा रही है। इसके बाद वीर हमीर सिंह ने लाखबाई चारण नाम की वृद्धा से अपने लिए भी शोकगीत गाने को कहा और बताया कि वह सोमनाथ के लिए साका करने जा रहे हैं।

तब महिला ने कहा, “बेटा हमीर तुम विवाहित हो?” तब हमीर सिंह ने कहा कि नहीं। तब वृद्ध चारण महिला ने कहा कि रास्ते में जो मिले उससे विवाह कर लेना, क्योंकि कुँवारों को युद्ध में वीरगति प्राप्त करने भी अप्सरा वरण नहीं करती हैं। रास्ते में उन्हें द्रोणगढा गाँव में भीलों के सरदार वेगड़ा मिल गए। दोनों मित्र थे। वेगड़ा ने अपनी युवा कन्या राजबाई थी, जिसका विवाह उन्होंने हमीर सिंह से कर दिया।
वेगड़ा भी हमीर सिंह जी के साथ जफर खान के खिलाफ युद्ध के लिए अपनी 1200 सैनिकों को लेकर निकल गए। वे सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में पहुँचकर जफर खान की सेना का इंतजार करने लगे। जफर खान अपनी सेना के साथ जैसे सोमनाथ मंदिर की ओर बढ़ा, दोनों ओर के सैनिकों में भीषण युद्ध हुआ। जफर खान के सैनिक गाजर-मूली की तरह काटे जाने लगे। आखिरकार जफर खान ने हाथियों पर लाए तोपों का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
इससे हमीर सिंह जी की सेना को भारी नुकसान हुआ। वेगड़ा अपनी सेना के साथ बाहरी रक्षा कवच के रूप में जफर खान से लड़ रहे थे। वहीं, हमीर सिंह मंदिर और गर्भगृह को बचा रहे थे। इसी बीच जफर खान के एक महावत ने अपनी हाथी को इशारा करके वेगड़ा को रौंद दिया। हमीर सिंह के साथी वीर वेगड़ा वीरगति को प्राप्त हो गए। जफर खान ने मंदिर को तीन तरफ से घेर रखा था और चौथी तरफ समुद्र था।
जफर खान की विशाल सेना को 200 राजपूतों की सेना ने रात भर उलझा कर रखा। रात में निर्णय हुआ कि सुबह होते ही जफर खान की सेना पर हमला किया जाएगा। ऐसा ही हुआ। सिर पर केसरिया साफा बाँधे शौर्यवान राजपूतों की सेना ने जफर खान पर हमला कर दिया। दोनोें से तरफ से भीषण युद्ध हुआ था। जफर खान की विशाल सेना के बीच राजपूत वीरगति को प्राप्त होने लगे।
इसी बीच जफर खान ने भी हमीर सिंह जी पर पीछे से हमला कर दिया। उनका सिर कट कर धरती पर गिर गया, लेकिन धड़ युद्ध करता रहा। आखिरकार बेजान धड़ कब तक लड़ता? वीर हमीर सिंह गोहिल सोमनाथ को बचाते हुए भगवान शिव के धाम चले गए। अकेले 9 दिनों तक वे जफर खान को मंदिर में घुसने नहीं दिए। उधर वृद्धा चारण हमीर सिंह जी गोहिल के लिए शोकगीत गाती रहीं। ऐसा रहा है हमीरसिंह जी का स्वर्णिम इतिहास।
सोमनाथ मंदिर का बार-बार विध्वंस
सोमनाथ मंदिर, जिसे सोमेश्वर भी कहा जाता है, भगवान शंकर को समर्पित हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। कपिला, हिरण और सरस्वती नामक तीन नदियों का संगम पर यह स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर को स्वयं चंद्रदेव ने बनवाया था। कालांतर में इस मंदिर का 649 ईस्वी में वल्लभी के यदुवंशी क्षत्रियों ने इसका निर्माण कराया। इस मंदिर पर पहला हमला अरब का सूबेदार अल जुनैद ने 725 ईस्वी में किया था।
इसके बाद प्रतिहार वंश के क्षत्रिय महाराजा नागभट्ट-II ने 815 ईस्वी में इस मंदिर का फिर से निर्माण कराया था। उन्होंने अपने आलेखों में इसका जिक्र किया है। उन्होंने इतिहास में लिखवाया है कि उन्होंने सोमेश्वर सहित सौराष्ट्र के कई तीर्थों का दौरा किया था। अरब यात्री अलबरूनी ने अपने संस्मरण में इस मंदिर के वैभव के बारे में विस्तार से बताया था। इससे गजनी का कबायली शासक महमूद आक्रर्षित हो गया।
उसने सोमनाथ पर आक्रमण कर लूटने की योजना बनाई और अपने 5000 सैनिकों को लेकर गुजरात की ओर चल पड़ा। सन 1026 में महाराजा भीमदेव सिंह सोलंकी-I का शासन था। उस समय तुर्क मुस्लिम शासक महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला कर दिया और लूटपाट करके इस ज्योतिर्लिंग को तोड़ दिया। कहा जाता है कि मंदिर से उसने उस समय वह 2 करोड़ दीनार लूटकर ले गया था।
एक शिलालेख के अनुसार, महाराजा कुमारपाल (शासनकाल 1143-72) ने ‘उत्कृष्ट पत्थरों से और रत्नों’ से सन 1169 में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया। उन्होंने लकड़ी के इस मंदिर को पूरी तरह बदल दिया। सन 1299 में उलुग खान के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने गुजरात पर फिर हमला किया। इसमें क्षत्रिय राजा कर्ण सिंह मंदिर को बचाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
उसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण सौराष्ट्र के चूड़सामा वंश के क्षत्रिय राजा महिपाल-I ने सन 1308 में करवाया। बाद में उनके बेटे खेंगारा गद्दी पर बैठे तो उन्होंने शिवलिंग की की स्थापना करवाई। यह कार्य उन्होंने सन 1331 और 1351 के बीच की थी। सन 1395 में इस मंदिर को तीसरी बार ज़फ़र खान ने नष्ट कर दिया। वह मोहम्मद बिन तुलगक-II का सेनापति था। बाद में वह गुजरात का सुल्तान बन गया था।
इसके बाद 1451 में गुजरात के सुल्तान मोहम्द बेगड़ा ने इसे फिर से नष्ट कर दिया। इसके बाद आजाद भारत में इस मंदिर के पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ। मंदिर के निर्माण की देखरेख और धन इकट्ठा करने के लिए सोमनाथ ट्रस्ट की स्थापना की गई थी। इस मंदिर की स्थापना के लिए 11 मई 1951 को भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने स्थापना समारोह आयोजित किया था।

हमीर सिंह की समाधि पर चढ़ाकर मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है ध्वज
वर्तमान में इस ट्रस्ट के आजीवन अध्यक्ष भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इस मंदिर को बचाने के लिए अपना प्राण उत्सर्ग करने वाले वीर हमीर सिंह गोहिल की प्रतिमा मंदिर में स्थापित है, जिसे मंदिर में आने वाले श्रद्धालु बड़े भक्तिभाव से पूजते हैं। वीर हमीर सिंह गोहिल के साथ भील समुदाय के उनके साथी वीर वेगड़ा की प्रतिमा भी मंदिर में स्थित है।
इसके अलावा, सोमनाथ मंदिर के बाहर घोड़े पर सवार और हाथ में भाला लिए वीर हमीर सिंह जी गोहिल की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है। इसका मंदिर और श्रद्धालुओं में विशेष महत्व है। सोमनाथ मंदिर के शिखर पर फहराया जाने वाला झंडा पहले वीर हमीर सिंह गोहिल के स्मारक पर चढ़ाया जाता है। उसके बाद मंदिर के शिखर पर लगाया जाता है।