Saturday, April 27, 2024
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घसीट कर सड़क पर ले गए, एक के सीने और एक के सिर में मारी गोली: राम मंदिर के लिए बलिदान हो गए कोठारी बंधु, सेवा कार्यों से अब भी उनके मिशन को आगे बढ़ा रही बहन

अपने 2 बेटों के एक साथ बलिदान होने के बाद उनके माता-पिता मानसिक तौर पर काफी व्यथित रहते थे। आखिरकार 16 जनवरी, 2002 को पूर्णिमा के पिता का देहांत हो गया।

अयोध्या में सोमवार (22 जनवरी, 2024) को रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान हो गए हैं। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हुई प्राण प्रतिष्ठा से भाव विभोर लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए अयोध्या की तरफ कूच कर गए हैं। इस अवसर पर देश और दुनिया का हिन्दू समाज उन कारसेवकों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है जिन्होंने मुगल से मुलायम काल तक चली जद्दोजहद में खुद को राम के नाम पर न्योछावर कर दिया। उन तमाम ज्ञात और अज्ञात बलिदानियों में कोठारी बंधुओं का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है।

ऑपइंडिया ने बलिदानी रामकुमार और शरद कोठारी की बहन पूर्णिमा से मिल कर वर्तमान हालातों की जानकारी जुटाई। पूर्णिमा कोठारी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में आमंत्रित थीं। वो इस ऐतिहासिक समय की साक्षी बन कर बेहद खुश हैं। फिलहाल वो और उनके सहयोगी अयोध्या में टेढ़ी बाजार के पास एक कैम्प लगा कर दूर-दराज से आ रहे श्रद्धालुओं की सेवा में व्यस्त हैं। यहाँ वो न सिर्फ श्रद्धालुओं बल्कि आसपास तैनात पुलिस के जवानों को अपने खर्च पर चाय-नाश्ता करवा रहीं हैं। यह कैम्प ‘राम शरद कोठारी स्मृति मंच’ के बैनर तले हो रहा है।

श्रद्धालुओं और पुलिसकर्मियों को जलपान कराते ‘राम शरद स्मृति मंच’ के सदस्य

मूलतः राजस्थान के, व्यापार के चलते बसे कोलकाता में

कोठारी परिवार मूल रूप से राजस्थान के बीकानेर का रहने वाला है। पूर्णिमा के पिता अपनी युवावस्था में ही व्यापार के सिलसिले में पश्चिम बंगाल चले गए थे। यहाँ पर उन्होंने छोटा सा आयरन प्लांट खोला था। परिवार की आजीविका का साधन वही था। कालांतर में वो 3 बच्चों के पिता बने। इसमें रामकुमार और शरद नाम के 2 बेटे और एक बेटी पूर्णिमा शामिल हैं। शरद और राम कुमार अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के साथ पिता के कारोबार में हाथ बँटा रहे थे। पूर्णिमा भी पढ़ाई करने के साथ घर के कार्यों में अपनी माता का हाथ बँटाती थीं।

किशोरावस्था में ही जुड़ गए थे ‘बजरंग दल’ से

पूर्णिमा कोठारी ने ऑपइंडिया को बताया कि हिन्दू संगठन से जुड़ने वाली उनकी पहली पीढ़ी उनके बलिदानी भाई ही थे। रामकुमार और शरद की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में हुई थी। यहाँ दोनों भाई विद्या भारती द्वारा संचालित भारत भारती स्कूल के छात्र थे। ‘भारत भारती विद्यालय’ की शिक्षा-दीक्षा से प्रभावित होकर दोनों भाई कोलकाता में भी ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ (RSS) की शाखाओं में जाने लगे थे। रामकुमार और शरद अपने साथ चचेरे भाई को भी शाखाओं में ले जाते थे और पढ़ाई व कारोबार के बाद मिले समय में धर्म प्रचार किया करते थे।

अयोध्या की ट्रेन में खुद बिठा कर आए थे माता-पिता

पूर्णिमा बताती हैं कि जब 1990 में अयोध्या में कारसेवा का ऐलान हुआ तो रामकुमार और शरद वहाँ जाने की तैयारी करने लगे। परिजनों को उन दोनों ने खुद ही तैयार किया था। बचपन से ही साथ रहने की वजह से दोनों भाई हर कहीं एक साथ ही जाते थे। आखिरकार 22 अक्टूबर, 1990 को रामकुमार और शरद कोठारी अयोध्या के लिए ट्रेन पकड़ कर निकल गए। बकौल पूर्णिमा, उनके माता-पिता अपने दोनों बेटों को छोड़ने रेलवे स्टेशन तक गए थे।

पानी माँगने के बहाने पुलिस ने मारी गोली

पूर्णिमा कोठारी ने बताया कि उन्हें घटना की जानकारी 2 नवंबर, 1990 को अयोध्या में मौके पर मौजूद एक पत्रकार से मिली थी। तब कोठारी बंधु अन्य कारसेवकों के साथ लाल कोठी के पास एक मकान में छिपे हुए थे। इस दौरान किसी मुस्लिम अधिकारी का नाम लिया जा रहा था जो रामभक्तों पर बड़ी क्रूरता से पेश आ रहा था। जिस घर में रामकुमार और शरद छिपे थे, उसमें थोड़ी देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। किसी ने बाहर से पानी माँगा तो 19 वर्षीय शरद को लगा कि शायद कोई कारसेवक बाहर फँस गया है।

पूर्णिमा ने हमें आगे बताया कि शरद ने पानी माँग रहे व्यक्ति के कारसेवक होने के भ्रम में दरवाजा खोला दिया। बाहर से पुलिस वालों द्वारा शरद को गिरेबान पकड़ कर खींच लिया गया और घसीट कर सड़क पर ले जाया गया। यहाँ शरद के सीने में गोली मार दी गई और वो तड़पने लगे। छोटे भाई को तड़पता देख कर लगभग 23 वर्षीय रामकुमार भी बाहर निकल गए। वो और गोलियाँ लगने से बचाने के लिए अपने भाई के ऊपर लेट गए। तभी आसपास खड़े जवानों ने रामकुमार कोठारी के भी सिर में सटा कर बंदूक से फायर कर दिया। छोटे और बड़े भाई ने एक साथ ही एक ही जगह प्राण त्याग दिए।

अयोध्या में ही हुआ अंतिम संस्कार

भावुक हो कर पूर्णिमा कोठारी ने हमें बताया कि 1 नवंबर, 1990 को उनके भाइयों ने घर के पास लगे एक लैंडलाइन पर अयोध्या से कॉल किया गया था। तब उन्होंने खुद को सुरक्षित बताते हुए जल्द लौट आने का वादा किया था। 2 नवंबर, 1990 को दोनों भाइयों के बलिदान होने के कुछ ही देर बाद उनके साथी संगठन वालों ने फोन पर पूर्णिमा को सूचित कर दिया था। हालाँकि, पूर्णिमा ने अपनी माँ को अगले दिन बहुत संकोच के बाद 3 नवंबर को अपने भाइयों की वीरगति के बारे में बताया था। कोलकाता से अयोध्या आ कर परिजनों ने दोनों रामभक्त भाइयों का अंतिम संस्कार अयोध्या में करवाया।

माता-पिता भी चल बसे, कारोबार भी बंद

अपने 2 बेटों के एक साथ बलिदान होने के बाद उनके माता-पिता मानसिक तौर पर काफी व्यथित रहते थे। आखिरकार 16 जनवरी, 2002 को पूर्णिमा के पिता का देहांत हो गया। ऐसे में घर में सिर्फ पूर्णिमा और उनकी माँ बचीं। पूर्णिमा का विवाह हुआ और अब वो 1 बेटी की माँ हैं। राम मंदिर की बाट जोहते साल 2016 में पूर्णिमा की माता का भी देहांत हो गया। हालाँकि, अंतिम समय में उन्होंने इस आशा से प्राण त्यागे थे कि नरेंद्र मोदी आज नहीं तो कल राम मंदिर ज़रूर बनवाएँगे।

कोठारी परिवार की आजीविका का साथ रही आयरन फैक्ट्री भी कोरोना काल में बंद हो गई है। फिलहाल पूर्णिमा की बेटी की जॉब से परिवार का गुजारा चल रहा है।

भाई का दुःख निजी, पर मंदिर की ख़ुशी सामूहिक

अपने बलिदान हुए दोनों भाइयों को याद कर के पूर्णिमा कोठारी थोड़े समय के लिए भावुक हो गईं। खुद को संभाल कर बोलीं, “मेरे दोनों भाई अब नहीं रहे। ये मेरा निजी दुःख है जो जीवन भर रहेगा पर भगवान राम का मंदिर मैं बनते देख कर बेहद खुश हूँ। ये सामूहिक ख़ुशी पूरे देश और दुनिया के हिन्दू समाज की है। मेरे भाइयों के इसी के लिए तो बलिदान दिया था जो अब सार्थक हो गया।” पूर्णिमा को इस बात का भी बेहद संतोष है कि जब तक इतिहास में भगवान राम और अयोध्या जन्मभूमि आंदोलन का जिक्र होगा तब तक रामकुमार और शरद कोठारी को लोग याद करेंगे।

बकौल पूर्णिमा, मुलायम सिंह का चैलेन्ज कि ‘अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता’ ही रामभक्तों को सबसे ज्यादा अखरा था और आखिरकार रामभक्तों ने मुलायम के अहंकार को तोड़ दिया था।

मुलायम सिंह के बयान का दिया जवाब

तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा ‘ज़रूरी होता तो और कारसेवकों को मारते’ वाले बयान को याद दिलाते ही पूर्णिमा कोठारी को गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा, “उनके अपने खुद के घर में आज तक कोई देश या धर्म के लिए जान देने वाला नहीं जन्मा। अगर अपनों को खोने का दुःख खुद उन्होंने कभी सहा होता तो शायद वो हमारी पीड़ा को महसूस कर पाते।” मुलायम सिंह के बुढ़ापे में हुई हालत, पारिवारिक कलह और उनकी पार्टी की वर्तमान हालत को पूर्णिमा रामभक्तों के परिजनों का शाप मानती हैं।

ऑपइंडिया से बात करतीं पूर्णिमा कोठारी

भाइयो की याद में रक्तदान सहित कई अन्य कार्य करती हैं बहन

कोठारी बंधुओ की याद में उनकी बहन रक्तदान सहित कई अन्य सामाजिक कार्य करती हैं। ‘राम शरद कोठारी स्मृति मंच’ के अंतर्गत यह परिवार जरूरतमंदों को रक्तदान, गरीबों को यथासंभव मदद, उनके बच्चों की पढ़ाई और देश या धर्म के लिए अच्छा कार्य करने वाली विभूतियों को समय-समय पर सम्मानित करता है। इन सभी कामों में आने वाले खर्चों को खुद पूर्णिमा कोठारी अपने शुभचिंतकों और सहयोगियों सहित उठाती हैं।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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