फ़िल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह चर्चा में बने रहे के लिए अक्सर उलूलजुलूल बातें करते रहते हैं। जब सीएए और एनआरसी के विरोध की हवा में दीया मिर्ज़ा और सुशांत सिंह सरीखे बेरोजगार अभिनेता-अभिनेत्रियों को भी मीडिया से कवरेज मिलने लगी, तब बेचैन नसीरुद्दीन शाह ने अपनी ही इंडस्ट्री के साथी अनुपम खेर को जोकर बता दिया। वजह, खेर ने सीएए का समर्थन किया था। हालाँकि, अनुपम खेर ने नसीरुद्दीन के बारे में बड़ा खुलासा कर दिया कि वो वर्षों से ‘विभिन्न पदार्थों का सेवन’ करते रहे हैं।
ऐसे ही नसीरुद्दीन शाह ने प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ को दिए इंटरव्यू में आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने शिक्षा बजट में 30,000 करोड़ रुपए की कटौती की है। हालाँकि, ये झूठ है क्योंकि 2018-19 में शिक्षा बजट के हिस्से 85,010 करोड़ रुपए आए थे, जो अगले वर्ष बढ़ कर 94,000 करोड़ रुपए हो गया। अबकी 2020-21 वार्षिक बजट में ये आँकड़ा बढ़ कर 99,300 करोड़ रुपए हो गया है। फिर मोदी सरकार ने शिक्षा बजट में कब कटौती की, ये नसीरुद्दीन शाह ही बता सकते हैं।
साथ ही नसीरुद्दीन शाह ने ने दावा किया कि अल्पसंख्यकों पर अत्याचार सिर्फ़ इस्लामिक मुल्कों में ही नहीं होता, बल्कि श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों में भी होता है। इस सम्बन्ध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही बता चुके हैं कि भारत में रह रहे तमिल शरणार्थियों की रक्षा के लिए पूरी व्यवस्था की जा रही है और किसी को भी बाहर नहीं निकाला गया है। विभिन्न कैम्पों में रह रहे 65,000 तमिल शरणार्थियों के लिए सरकार सही समय पर घोषणा करेगी, इसका आश्वासन भी दिया जा चुका है। फिर नसीरुद्दीन शाह किसके लिए चिंतित हैं?
साथ ही नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि उनके पास पासपोर्ट, वोटर आईडी और आधार कार्ड जैसे जो कागज़ात हैं, वो उनकी नागरिकता साबित करने के लिए काफ़ी नहीं होंगे। यहाँ सवाल ये उठता है कि नसीरुद्दीन से नागरिकता साबित करने को कहा किसने है? न तो वो असम के हैं और न ही पूरे देश में एनआरसी आई है। असम में भी 14 डॉक्यूमेंट्स की सूची में से कोई एक डॉक्यूमेंट और फिर दूसरी सूची के अन्य डॉक्यूमेंट्स की सूची में से कोई एक, यानि सिर्फ़ 2 कागज़ ही दिखाने हैं। लेकिन, नसीर तो असम के हैं ही नहीं। फिर वो यहाँ 70 साल गुजारने और पर्यावरण व समाज की सेवा करने की बातें कर के क्या जताना चाहते हैं?
नसीरुद्दीन ने आरोप लगाया कि अमित शाह कीड़े और दीमकों को एक-एक कर देश से बाहर निकालने की बातें करते हैं। गृहमंत्री घुसपैठियों को निकाल बाहर करने की बात करते हैं, तो इससे नसीरुद्दीन को क्या दिक्कत है? वो तो घुसपैठिए नहीं हैं। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम मोदी कभी विद्यार्थी नहीं रहे हैं, इसीलिए उन्हें छात्रों की संवेदना का पता नहीं। पहली बात, पीएम ने ऐसा कभी नहीं कहा है कि वो विद्यार्थी नहीं रहे हैं, इसलिए ये बात ही झूठ है। दूसरी बात, अगर इसी लॉजिक के हिसाब से देखें तो नसीरुद्दीन शाह तो कभी कोई वकील, जज या क़ानूनविद रहे ही नहीं हैं, फिर उन्हें कैसे पता कि सीएए ग़लत है?
उन्होंने दावा किया कि सीएए विरोधी आंदोलन का कोई नेता नहीं है। अगर ऐसा है तो फिर देश के ‘टुकड़े-टुकड़े’ करने के लिए समुदाय विशेष को भड़काने वाला शरजील इमाम कौन था, जिसके गिरफ़्तार होते ही शाहीन बाग़ के उपद्रवियों का जोश जाता रहा? नसीरुद्दीन ने फ़िल्म इंडस्ट्री पर सत्ताधारी दलों का साथ देने का आरोप लगाया। लेकिन, महाराष्ट्र में तो शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस की सरकार है और ये तीनों दल भाजपा के विरोधी हैं। तो क्या मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री को कॉन्ग्रेस का गुलाम माना जाए?
नसीरुद्दीन ने इस इंटरव्यू और और भी कई फालतू बातें की। मसलन उन्होंने आरोप लगाया कि युवाओं को विरोध करने की सज़ा गोली मार कर दी जाती है। जबकि सच्चाई ये है कि 55 पुलिसकर्मी पूरे यूपी में सिर्फ़ सीएए विरोधियों की हिंसा के कारण घायल हुए। वो गोलियाँ किन लोगों ने चलाई थी?