OpIndia is hiring! click to know more
Thursday, April 10, 2025
Homeविविध विषयमनोरंजनराहुल बन कहलाए बॉलीवुड के बादशाह, फिर फिल्में हुईं कम मुस्लिम कैरेक्टर बढ़ गए:...

राहुल बन कहलाए बॉलीवुड के बादशाह, फिर फिल्में हुईं कम मुस्लिम कैरेक्टर बढ़ गए: पर्दे पर ‘पठान’ दिखना अजीब संयोग या उम्माह वाला प्रयोग

जो व्यक्ति 57 साल की उम्र में भी बोटॉक्स और वीएफएक्स पर खर्च कर 37 साल की दीपिका पादुकोण के साथ छिछोरे स्टेप्स लगाने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हो, संभव है कि वह मजहबी किरदारों के साथ उम्माह वाला कोई प्रयोग भी कर रहा हो।

धंधेबाज उसे बॉलीवुड का बादशाह कहते हैं। फैन किंग खान। नाम है- शाहरुख खान (Shah Rukh Khan)। आजकल चर्चा में हैं अपनी आने वाली फिल्म पठान (Pathaan) को लेकर। बेशरम रंग (Besharam Rang) गाने पर चल रहे विवाद के बीच इस फिल्म का एक और गाना झूमे जो (Jhoome Jo) भी रिलीज हो गया है।

करीब 5 साल बाद बड़े पर्दे पर आ रही शाहरुख खान की इस फिल्म से जुड़े कई विवाद हैं। इनमें से एक भगवा रंग का अपमान कर हिंदुओं को नीचा दिखाने की भी है। वैसे शाहरुख खुद को सेकुलर बताते हैं। सिख हिंदू महिला से शादी भी की है। हाल ही में उमराह कर मक्का से आने के बाद उन्हें वैष्णो देवी मंदिर में भी देखा गया। लेकिन इन सबके बीच तीन दशक से अधिक समय से बॉलीवुड में काम कर रहे शाहरुख के फिल्मी किरदारों का ‘मजहब’ दिलचस्प तरीके से बदला है।

कभी शाहरुख खान साल में 5 से 7 फिल्में किया करते थे। साल 1995 में कुल 7 फिल्में की थी। इनमें से एक ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे’ थी। इसी तरह साल 2000 में ‘मोहब्बतें’ समेत 6 फिल्मों में वे दिखे थे। 1989 में ‘फौजी’ सीरियल से अभिनय की दुनिया में आने वाले शाहरुख की पहली फिल्म 1992 में आई थी। उनके फिल्मी करियर को हम तीन हिस्सों में बाँटकर देख सकते हैं। 1992 से 2002। 2002 से 2012 और 2012 से अब तक। इससे पता चलता है कि जैसे-जैसे वे बॉलीवुड में स्थापित होते गए मुस्लिम किरदार के लिए उनका मोह बढ़ते गया।

1992-2002 के बीच उन्होंने करीब 40 फिल्मों में काम किया। लेकिन इनमें से एक ही में उनके किरदार का मजहब इस्लाम था। यह फिल्म थी 1999 में आई हे राम। कमल हासन की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में शाहरुख ने अमजद अली खान का किरदार निभाया था। इसी कालखंड में वे पर्दे पर राहुल और राज बनकर लोकप्रिय हुए थे। बादशाह और किंग खान जैसे तमगे मिले थे।

2002-2012 के बीच उनकी 25 फिल्में आई। इनमें से कुछ में उनका स्पेशल या गेस्ट अपीयरेंस भी था। इस समय अंतराल में उनकी फिल्में 40 से घटकर भले आधी हो गई, लेकिन पर्दे पर वे तीन फिल्मों में मुस्लिम का किरदार निभाते दिख गए। 2007 में आई ‘चक दे इंडिया’ में वे कबीर खान बने। 2009 में आई ‘बिल्लू’ में साहिर खान। 2010 में रिलीज हुई ‘माई नेम इज खान’ में रिजवान खान’।

यदि जनवरी 2023 में रिलीज हो रही पठान को भी जोड़ लें तो 2012 के बाद से उनकी 10 फिल्में आई हैं। लेकिन इनमें से चार में वे मुस्लिम कैरेक्टर में हैं। 2016 में आई ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में वे ताहिर खान थे तो उसी साल आई ‘डियर जिंदगी’ में डॉ. जहाँगीर खान। इसी तरह 2017 में आई ‘रईस’ में उनके किरदार का नाम रईस आलम था। अब आ रही है पठान।

एक तरफ शाहरुख खान की फिल्मों की रफ्तार कम हो रही है। दूसरी ओर पर्दे पर उनके मुस्लिम किरदार बढ़ रहे हैं। आप चाहें तो इसे अजीब संयोग भी कह सकते हैं। लेकिन जो व्यक्ति 57 साल की उम्र में भी बोटॉक्स और वीएफएक्स पर खर्च कर 37 साल की दीपिका पादुकोण के साथ छिछोरे स्टेप्स लगाने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हो, संभव है कि वह मजहबी किरदारों के साथ उम्माह वाला कोई प्रयोग भी कर रहा हो। वैसे भी सबको पता है कि ‘चक दे इंडिया’ के पीछे जिसकी कहानी प्रेरणा थी, वह असल जिंदगी में हिंदू हैं, भले वह पर्दे पर इस्लाम को मानने वाला कबीर खान दिखाया गया है। जरा सोचिएगा!

OpIndia is hiring! click to know more
Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

राजन कुमार झा
राजन कुमार झाhttps://hindi.opindia.com/
Journalist, Writer, Poet, Proud Indian and Rustic

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

फोन पर थ्री सम सेक्स की डील कर रहा था IPS, खुलासा करने पर पंजाब पुलिस ने दिल्ली के पत्रकारों को ‘उठाने’ की कोशिश...

पत्रकार आरती के अनुसार, पंजाब पुलिस ने उन्हें और दुआ को गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के हस्तक्षेप के कारण पंजाब पुलिस की यह कोशिश फेल हो गई।

कभी हथौड़ा लेकर ‘शक्ति प्रदर्शन’, कभी शिक्षकों से बदसलूकी: गली के गुंडों की फोटोकॉपी बने छात्र नेता, अब बिगड़ैल राजनीति पर अंकुश समय की...

जो प्रत्याशी या संगठन धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल नहीं करता, या उसके इस्तेमाल में झिझकता है; उसे कमजोर मान लिया जाता है। पूरी चुनावी व्यवस्था इतनी दूषित हो चुकी है कि सही और सकारात्मक  साधनों से लड़कर चुनाव जीतना लगभग असंभव है।
- विज्ञापन -