Thursday, April 18, 2024
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12 जुलाई का वो पन्ना जिसे नेहरू के ‘टाइपिस्ट इतिहासकारों’ ने छिपाया: जब मूसलाधार बारिश के बीच RSS के संस्थापक सरसंघचालक हेडगेवार का स्वागत कर रहे थे मोतीलाल

वापमंथी लेखकों और पंडित नेहरू के टाइपिस्ट इतिहासकारों ने इस सत्य को छिपाने की भरसक कोशिश की। वे पंडित मोतीलाल नेहरू के उस स्वागत को भी भूल गए।

भारत अपने स्वाधीनता का 75वाँ अमृत महोत्सव मना रहा है और देश अपने अमर नायकों के बलिदान, कृतित्व और संघर्ष को याद कर रहा है। भारत के स्वाधीनता आंदोलनों को लेकर अनेक अध्याय एवं ऐतिहासिक तिथियाँ स्वर्णिम अक्षरों से लिखी गई हैं। भारतीय इतिहास के शिलालेख पर लिखी हुई ऐसी ही एक तिथि है 12 जुलाई 1922।

इस लेख में हम स्वाधीनता आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के महत्वपूर्ण योगदान के बारे चर्चा कर रहे हैं। 1921 में महात्मा गाँधी की अगुवाई में चले असहयोग आंदोलन में डॉ. हेडगवार ने अपनी महती भूमिका निभाई थी। जब वे जेल से छूटकर बाहर आए तब पंडित मोतीलाल नेहरू, विट्ठलभाई पटेल, हकीम अजमल खाँ, डॉ. अंसारी, श्री राजगोपालाचारी, श्री कस्तूरी रंग अयंगर आदि नेताओं ने उनका स्वागत किया। अनेक स्थानों पर मित्रों ने निमंत्रण देकर डॉक्टर हेडगेवार को बुलाया तथा उनकी शोभा-यात्रा निकालकर सत्कार-समारोहों का आयोजन किया।

अंग्रेजों द्वारा तुर्कस्तिान में खिलाफत को निरस्त करने से आहत मुस्लिम मन को अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आन्दोलन के साथ जोड़ने के उद्देश्य से महात्मा गाँधी ने खिलाफत का समर्थन किया। इस पर कॉन्ग्रेस के अनेक नेता और राष्ट्रवादी मुस्लिमों को भी आपत्ति थी। इसलिए, तिलकवादियों का गढ़ होने के कारण नागपुर में असहयोग आन्दोलन बहुत प्रभावी नहीं रहा। लेकिन डॉ. हेडगेवार, डॉ. चोलकर, समिमुल्ला खान समेत कई देशभक्तों ने यह परिवेश बदल दिया। उन्होंने खिलाफत को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ने पर आपत्ति होते हुए भी उसे सार्वजनिक नहीं किया। इसी आधार पर साम्राज्यवाद का विरोध करने के लिए डॉ. हेडगेवार ने तन-मन-धन से आन्दोलन में हिस्सा लिया।

आद्य सरसंघचालक जब कारागृह से बाहर आए तो मूसलाधार वर्षा हो रही थी। उस अवस्था में भी डॉ. मुंजे, डॉ. परांजपे, डॉ. ना.भा. खरे तथा अनेक मित्र बाहर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके द्वारा अर्पित पृष्पहारों को सहर्ष स्वीकार करते हुए हेडगेवार सबके साथ घर को चले। रास्ते में स्थान-स्थान पर रोककर उनका स्वागत किया गया। उस समय के पत्र ‘महाराष्ट्र’ ने भी उसी दिन ‘छपते-छपते’ में हेडगेवार स्वागत का अवसर हाथ से नहीं जाने दिया। इस पत्र ने लिखा, “डॉ. हेडगेवार की देशभक्ति, देश के प्रति समर्पण और निःस्वार्थवृत्ति के सम्बन्ध में किसी के भी मन में शंका नहीं थी; परन्तु ये सब गुण स्वार्थत्याग की भट्टी में से निखरकर बाहर निकल रहे हैं। उनके इन गुणों का इसके आगे राष्ट्रकार्य के लिए सौगुना उपयोग हो यही हमारी कामना है।”

उसी दिन सायंकाल चिटणीस पार्क में ‘स्वागत-सभा’ की घोषणा की गई। इस समय पं. मोतीलाल नेहरू, श्री विट्ठलभाई पटेल, हकीम अजमल खाँ, डॉ. अंसारी, श्री राजगोपालाचारी, श्री कस्तूरी रंग अयंगर आदि नेता कांग्रेस कार्य-समिति की बैठक के लिए नागपुर आए हुए थे। वे सब स्वागत-सभा में उपस्थित रहेंगे, इसकी घोषणा भी की गई। लेकिन शाम तक लगातार बारिश होने के चलते ठीक समय पर ‘व्यंकटेश नाट्यगृह’ में सभा करनी पड़ी। नाट्यगृह नागरिकों से खचाखच भर गया था। डॉ. ना.भा. खरे ने अध्यक्ष-स्थान ग्रहण किया। हेडगेवार के स्वागत का प्रस्ताव रखा गया, जो तालियों की गड़गड़ाहट के बीच स्वीकृत हुआ।

इसके बाद पं. मोतीलाल नेहरू तथा हकीम अजमल खां के भाषण हुए। तदुपरान्त डॉक्टर हेडगेवार बोलने को खड़े हुए। उनका छोटा-सा किन्तु अत्यंत मार्मिक भाषण हुआ। उन्होंने कहा, “1 वर्ष सरकार का मेहमान बनकर रह आने से मेरी योग्यता पहले से बढ़ी नहीं है और यदि बढ़ी है तो उसके लिए हमें सरकार का आभार ही मानना चाहिए। देश के सम्मुख ध्येय सबसे उत्तम एवं श्रेष्ठ ही रखना चाहिए। मार्ग कौन सा हो, इस विषय में इतिहासवेत्ता श्रोताओं को कुछ भी कहना उनका अपमान करना ही होगा। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए मृत्यु भी आई तो उसकी चिंता नही करनी चाहिए। यह संघर्ष उच्च ध्येय पर दृष्टि तथा दिमाग ठण्डा रखकर ही चलाना चाहिए।”

नागपुर के बाद यवतमाल, वणी, आर्वी, वाढोणा, मोहोपा आदि अनेक स्थानों पर मित्रों ने निमंत्रण देकर डॉक्टर हेडगेवार को बुलाया तथा उनकी शोभा-यात्रा निकालकर सत्कार-समारोहों का आयोजन किया। स्थान-स्थान पर उनकी आरती की गई तथा उन्हें खादी का वेष भेंट किया गया। यवतमाल का समारोह लोकनायक बापूजी अणे की अध्यक्षता बड़ा समारोह हुआ।

दुनिया की दृष्टि से तो हेडगेवार साहब जेल से मुक्त हो गए थे; परन्तु उनका मस्तिष्क इसी धुन में लगा था कि इस विषम परिस्थिति में से कौन-सा मार्ग निकाला जाए जिससे हमारा देश स्वाधीन हो सके। उन्हें परतंत्र भारत की चिन्ताओं ने घेर रखा था। ऊपर से पुष्पमालाओं से लदे होने के बाद भी उनकी गर्दन चिन्ता के भार से दबी हुई थी। डॉ. हेडगेवार के स्वागत में ऐसे अनेक दृश्य देखे गए। इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों में लिखे गए हैं। लेकिन वापमंथी लेखकों और पंडित नेहरू के टाइपिस्ट इतिहासकारों ने इस सत्य को छिपाने की भरसक कोशिश की। वे पंडित मोतीलाल नेहरू के उस स्वागत को भी भूल गए, जिसमें उन्होंने स्वयं डॉ. हेडगेवार का स्वागत किया था। स्वाधीनता संग्राम में अपना अनुपम योगदान देने वाले माँ भारती के अनन्य उपासक डॉ. साहब को कोटि-कोटि नमन।

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Brijesh Dwivedi
Brijesh Dwivedihttp://www.brijeshkavi.com
Brijesh Dwivedi is a senior journalist, poet and writer. Presently he is a member of Indian Film Censor Board. He has worked in high positions in many media institutions of the country. In which the head is - News18 india (Senior Producer), National Voice (Deputy News Editor), Haryana News (Output Editor) A2Z News (Programming Head). Brijesh Dwivedi has participated in many many Kavi Sammelan.

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