Friday, January 3, 2025
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अर्ध कुंभ, कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ: जानिए क्या है अंतर, कैसे होती है गणना… क्यों इस बार प्रयागराज में लग रहा है महाकुंभ

कुंभ मेला न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय दर्शन, परंपरा और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत संगम भी है।

प्रयागराज में इस साल महाकुंभ मेले का भव्य आयोजन हो रहा है, जो हर 144 साल में एक बार होता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर आयोजित इस मेले को धार्मिक आस्था और भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। करोड़ों श्रद्धालु देश-विदेश से इस मेले में भाग लेने आ रहे हैं। महाकुंभ में संगम पर स्नान का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दौरान स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मेले में साधु-संतों और नागा साधुओं के अखाड़े भी हिस्सा लेते हैं।

यह महाकुंभ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और एकता का उत्सव भी है। इस बार प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले को महाकुंभ कहा जा रहा है, ऐसा क्यों है? कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर होता है और इनकी खगोलीय गणना किस आधार पर की जाती है, इस लेख के माध्यम से आपको समझाते हैं।

महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति का ऐसा पवित्र उत्सव है, जिसकी गूँज प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक युग तक सुनाई देती है। यह मेला न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय दर्शन, परंपरा और खगोलीय विज्ञान का अद्भुत संगम भी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक के पवित्र स्थलों पर गिरीं। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

खगोलीय गणनाओं के आधार पर कुंभ और महाकुंभ का आयोजन अनंत काल से होता रहा है। विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुंभ का आयोजन होता है। इसी प्रकार, जब सूर्य और गुरु सिंह राशि में होते हैं, तो नासिक में कुंभ लगता है। उज्जैन में कुंभ तब होता है जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है। प्रयागराज में माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरु मेष राशि में होता है। इस खगोलीय गणना का सटीक पालन आज भी किया जाता है।

अर्ध कुंभ

अर्ध कुंभ एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। यह आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर होता है, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पवित्र माना जाता है। अर्ध कुंभ का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसे कुंभ मेले का आधा चक्र माना जाता है।

इसमें लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं, क्योंकि यह मान्यता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके आयोजन का समय भी खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति वृश्चिक राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब अर्ध कुंभ का आयोजन होता है।

कुंभ मेला

कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो हर 12 साल में चार स्थलों – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इसे भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक माना जाता है। कुंभ मेले की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसमें अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों में संघर्ष हुआ था। इस आयोजन का मुख्य आकर्षण पवित्र नदियों में स्नान है, जिसे अमृत स्नान कहा जाता है।

यह मेला भी खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसके अलावा, अन्य ग्रहों की स्थिति भी इसकी तिथि निर्धारण में महत्वपूर्ण होती है।

पूर्ण कुंभ

पूर्ण कुंभ मेला कुंभ मेले का ही विस्तार है, जो हर 12 साल में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ का पूर्ण रूप माना जाता है और इसका महत्व अन्य कुंभ मेलों से अधिक है। पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होने वाले इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है।

पूर्ण कुंभ का आयोजन शास्त्रों और पुराणों में वर्णित है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु और साधु-संत भाग लेते हैं। विशेष रूप से नागा साधु और अखाड़ों का योगदान महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान, हवन, कथा वाचन और प्रवचन होते हैं। पूर्ण कुंभ का आयोजन भी खगोलीय गणनाओं के आधार पर होता है।

महाकुंभ

महाकुंभ मेला भारतीय धार्मिक आयोजनों का सबसे बड़ा पर्व है, जो हर 144 साल में केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ मेले का सबसे पवित्र और महत्त्वपूर्ण रूप माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस मेले में संगम पर स्नान करना आत्मा को पवित्र और पापों से मुक्त करता है।

महाकुंभ का आयोजन खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा एक विशेष स्थिति में होते हैं, तब इसका आयोजन होता है। खास बात ये है कि महाकुंभ का आयोजन 12 पूर्ण कुंभ के साथ यानी हर 144 साल में होता है, वो भी सिर्फ प्रयाग में। साल 2013 में प्रयागराज में आखिरी बार पूर्ण कुंभ का आयोजन हुआ था। इस बार महाकुंभ का 12वाँ अवसर यानी 144वाँ साल है, इसलिए इस पूर्ण कुंभ को महाकुंभ कहा जा रहा है।

हर 144 साल आयोजित होने वाले महाकुंभ को देवताओं और मनुष्यों के संयुक्त पर्व के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, पृथ्वी का एक वर्ष देवताओं के एक दिन के बराबर होता है। इसी गणना के आधार पर 144 वर्षों के अंतराल को महाकुंभ के रूप में मनाया जाता है।

महाकुंभ 2025 में पाँच प्रमुख स्नान पर्व होंगे, जिनमें तीन राजसी स्नान शामिल हैं-

  1. पौष पूर्णिमा (13 जनवरी 2025): कल्पवास का आरंभ।
  2. मकर संक्रांति (14 जनवरी 2025): पहला शाही स्नान।
  3. मौनी अमावस्या (29 जनवरी 2025): दूसरा शाही स्नान।
  4. बसंत पंचमी (3 फरवरी 2025): तीसरा शाही स्नान।
  5. माघी पूर्णिमा (12 फरवरी 2025): कल्पवास का समापन।
  6. महाशिवरात्रि (26 फरवरी 2025): महाकुंभ का अंतिम दिन।

कुंभ मेले का हर प्रकार अर्धकुंभ, कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन आयोजनों के पीछे पौराणिक और ज्योतिषीय मान्यताएँ हैं, जो इनकी विशेषता को और भी बढ़ा देती हैं। महाकुंभ का आयोजन केवल प्रयागराज में होता है, जो इसे और भी खास बनाता है। 2025 का महाकुंभ न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र होगा, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भव्य प्रदर्शन भी करेगा।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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