Wednesday, April 24, 2024
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केरल का वो इलाका, जहाँ रहते हैं 32 समुदाय के लोग और बोली जाती हैं 16 से अधिक भाषाएँ: जानिए अरबों से लेकर डचों का क्या रहा है कनेक्शन

कहा जाता है कि पुर्तगालियों ने इसका निर्माण कराने के बाद 1555 ईस्वी में इसे तत्कालीन कोचीन (अब कोच्चि) के राजा को उपहार में दे दिया था। बाद में इस इलाके पर डचों का कब्जा हो गया। कब्जा होने के बाद उन्होंने इस पैलेस को डच रूप दिया।

ग्रेटर कोचीन विकास प्राधिकरण (GCDA) ने फोर्ट कोच्चि और मट्टनचेरी (Fort Kochi and Mattancherry) में विरासत और ऐतिहासिक स्थलों की जियोटैगिंग (Geotagging) का पहला चरण पूरा कर लिया है। जियोटैगिंग किसी दिए गए चित्र की सामग्री पर उस स्थान से संबंधइत भिन्न प्रकार की जानकारी उपलब्ध करती है।

दरअसल, GCDA ने कोचीन हेरिटेज ज़ोन कंज़र्वेशन सोसाइटी (CHZCS) के साथ मिलकर 150 से अधिक विरासत स्थलों की पहचान की है और उन्हें जियोटैग किया है। जियोग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) आधारित जियोटैगिंग भौगोलिक निर्देशांक को विभिन्न मीडिया, जैसे फोटो या वीडियो में जोड़ने की प्रक्रिया है।

जियोटैगिंग के दूसरे चरण में चिह्नित स्थानों के ऐतिहासिक महत्व को लिखना शामिल है, जिस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है। एक बार जब यह पूरा हो जा जाएगा तो आम लोग और पर्यटक वेब GIS के माध्यम से विरासत स्थलों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। केरल का भव्य इतिहास रहा है। अन्य पर्यटनस्थलों को भी धीरे-धीरे इसमें शामिल किया जाएगा।

फोर्ट कोच्चि भारत के केरल राज्य में कोच्चि शहर का एक क्षेत्र है। यह मुख्य भूमि के दक्षिण-पश्चिम की ओर पानी वाले क्षेत्रों का हिस्सा है। यहाँ औपनिवेशिक काल के मकान, सड़कें, पेड़-पौधे, पंक्तिबद्ध रास्ते और इमारतें लोगों को 14वीं-15वीं शताब्दी में लेकर जाती हैं। इसे प्यार से अरब सागर की रानी कहा जाता है।

इतना ही नहीं, यहाँ पर बने हुए आकर्षक पुर्तगाली स्टाइल के घर, चर्च, विला और इंडो यूरोपीय वास्तुकला की इमारतें भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। यहाँ की यहूदी बस्तियाँ 500 साल से भी अधिक पुरानी हैं। यह केरल का सबसे पुराना गाँव भी है, जो मछली मारने के व्यवसाय में शामिल था।

वहीं, मट्टनचेरी में स्थित मट्टनचेरी पैलेस नालुकेट्टू और यूरोपीय वास्तुकला की शैली में बना है। इस संग्रहालय में कोच्चि के शासकों की पुरानी कलाकृतियों को रखा गया है। इतिहासकारों का मानना है कि यह महल पुर्तगालियों ने बनवाया था।

कहा जाता है कि पुर्तगालियों ने इसका निर्माण कराने के बाद 1555 ईस्वी में इसे तत्कालीन कोचीन (अब कोच्चि) के राजा को उपहार में दे दिया था। बाद में इस इलाके पर डचों का कब्जा हो गया। कब्जा होने के बाद उन्होंने इस पैलेस को डच रूप दिया।

ब्राह्मण लेकर आए डोसा-चपाती

व्यापारिक केंद्र होने के कारण गुजरात, कश्मीर से लेकर आंध्र प्रदेश के लोग यहाँ पहुँचे। धीरे-धीरे यह यह कॉस्मोपॉलिटीन सिटी के रूप में विकसित हुआ। यहाँ कम-से-कम 32 समुदाय के लोग रहते हैं। इसके साथ ही यहाँ मलयालम के अलावा कम-से-कम 16 भाषाएँ बोली जाती हैं।

अन्य लोगों की तरह दक्षिण भारत के तमिल ब्राह्मण भी यहाँ पहुँचे। ये यहाँ के महाराजा के लिए काम करने लगे। कर्नाटक से तुलु और हेगड़े, आंध्र प्रदेश से चेटियार समुदाय आकर तेल का कारोबार करने लगे। कर्नाटक के उडुपी इलाके से आए तुलु ब्राह्मणों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन्होंने अपने रेस्टोरेंट कोचीन में शुरू किए।

कोचीन के लोगों को पहली बार यहाँ ‘मसाला डोसा’ मिला। इसके साथ ही ‘चपाती’ का भी व्यापक प्रसार हुआ। इसके पहले केरल के लोग चपाती के बारे में नहीं जानते थे। यहाँ मिलने वाली जलेबी जैसी मिठाई ‘जांगरी’ भी तुलु ब्राह्मण ही लेकर आए।

अरब से लेक यूनान तक व्यापार

इतिहासकारों का मानना है कि सन 1341 में पेरियार नदी में बाढ़ और प्राकृतिक आपदा के बाद कोच्चि को एक बंदरगाह के रूप में स्थापित किया गया था। केरल के कोच्चि बंदरगाह क्षेत्र को फोर्ट कोच्चि-मट्टनचेरी क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। यह चीन, यूनान, रोम, अरब, लेबनान, सीरिया और वर्तमान इजरायल के लिए व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

16वीं शताब्दी की शुरुआत से भारतीय स्वतंत्रता तक, पहले पुर्तगाली फिर डच और अंत में अंग्रेज कोच्चि आए और शासन किया। इतना ही नहीं, व्यापार का मुख्य केंद्र होने की वजह से भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोग एवं समुदाय कोच्चि आए और यहाँ बस गए।

इस्लाम का आगमन

केरल प्रमुख शहर कोच्चि पहले कोडुनगल्लूर के अधीन आता था। यहाँ चेरा साम्राज्य का शासन था। इन्हें ब्राह्मण वंश का शासक माना जाता है। स्थानीय परंपराओं के अनुसार, छठी शताब्दी में चेरा वंश का अंतिम राजा चेरामन पेरुमल का जन्म हुआ था। व्यवसाय का प्रमुख केंद्र होने के चलते यहाँ दुनिया भर से यात्री आते रहते थे।

इसी दौरान अरब में पैगंबर मुहम्मद के नेतृत्व में इस्लाम तेजी से फैल रहा था। अरब के व्यापारियों के साथ इस्लाम के प्रचारक भी यहाँ पहुँचे। उन्होंने तटीय इलाकों में लोगों को इस्लाम कबूल करवाना शुरू किया। कहा जाता है कि पेरुमल ने इस्लाम के बारे में सुना। एके अम्पोट्टी लिखित ‘ग्लिम्प्सेज़ ऑफ इस्लाम इन केरल’ और एसएन सदाशिवन लिखित ‘कास्ट इनवेड्स केरल, ए सोशल हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ में इसका जिक्र मिलता है।

कहा जाता है कि एक दिन पेरुमल ने चाँद में दरार देखी और उसने ज्योतिषियों से इसके बारे में पूछा। इस्लाम के धर्म प्रचारकों ने ब्राह्मण राजा को पैगंबर के बारे में बताया और राजा को इस्लाम के प्रति लगाव हो गया। इसके बाद वह पैगंबर से मिलने अरब चला गया। वहाँ उसने इस्लाम कबूल कर लिया और अपना नाम ताजुद्दीन रख लिया।

कहा जाता है कि चेरामन ने जेद्दा के सुल्तान की बहन से निकाह कर लिया। उसने पत्र के साथ मलिक बिन दीनार और मलिक बिन हबीब को मस्जिद बनाने के लिए भारत भारत। आज यह चेरामन जुमा मस्जिद कहलाता है। कुछ लोग कहते हैं कि राजा के मंदिर को ही मस्जिद में बदल दिया गया। इस मंदिर में पहले की ही भाँति आज भी पिछले हजार सालों से दीया जल रहा है। इसका तेल सब लोग मिलकर देते हैं।

कुछ लोगों का कहना है कि चेरामन ने पत्र में अपने परिवार के लोगों को भी इस्लाम अपनाने और उसका प्रसार करने के लिए कहा था। कहा जाता है कि चेरामन के घर की महिला-पुरुष सहित इलाके के हिंदुओं ने इस्लाम अपनाना शुरू कर दिया। जो मुस्लिम स्थानीय लोगों से शादी करते वे यही बस जाते। बाद में ये मोपला या मोपिला कहलाए। मोपिला का अर्थ होता है दामाद। यह मलयालम के मपिलई और तमिल के मपिला से बना है। आज मालाबार क्षेत्र में मोपिला मुस्लिमों की भारी संख्या है।

माना जाता है कि चेरामन जब भारत लौटने लगा तो बीमारी से उसकी वहीं मौत हो गई और वहीं दफना दिया गया। इस तरह वह भारत छोड़कर गया तो कभी लौटकर नहीं आ पाया। हालाँकि, चेरामन की इस कहानी पर कई लोग सवाल भी उठाते हैं।

खैर जो भी हो, केरल का इतिहास सदियों पुराना है। कहा जाता है कि चेरामन शासकों को यहाँ की जमीन परशुराम ने दी थी। चेरा शासकों का केरल में शासन 5-4 शताब्दी ईसा पूर्व भी अस्तित्व में था। चेरा राजवंश का उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत में भी मिलता है। यह तब केरल की प्रमुख शासक शक्ति थी।

अशोक के शिलालेखों में चेरा वंश संस्कृत में केतलपुत्र या केरलपुत्र के रूप में प्रकट होता है। उस युग के ग्रीको-रोमन स्रोतों ने चेरों को केरोबोथरा और केलेबोथरा कहा। इसका अर्थ है कि तमिल शीर्षक ‘चेरामन’ के अलावा, चेर राजाओं के पास केरलपुत्र भी उनके सांस्कृतिक शीर्षक के रूप में था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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