अंग्रेजों की फौज में नायक (ऑफिसर नहीं) के तौर पर जॉइन करने वाला एक इंसान भारतीय थल सेना का लेफ्टिनेंट जनरल (जनरल, थल सेना का सबसे बड़ा अधिकारी, से बस एक पद नीचे) बनता है। नाम है – सगत सिंह।
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह का नाम इंडियन आर्मी से ज्यादा दुश्मन की फौज में लिया जाता है – खौफ के संदर्भ में! इनके चर्चे दुश्मन फौज पाकिस्तान और चीन के अलावा एक और जगह खूब हुआ – वो है पुर्तगाल!
1961 में गोवा को पुर्तगालियों से आजादी दिलाने में इन्होंने ऐसी भूमिका अदा की थी कि इनके नाम पर 10000 डॉलर का इनाम रखा गया था। पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन के लगभग हर रेस्टॉरेंट और कैफे में इनके फोटो और नाम के पर्चे चिपकाए गए थे। लेकिन सगत सिंह को कोई पुर्तगाली पकड़ कर 10000 डॉलर जीत ले, इस मिट्टी के वो बने नहीं थे।
1967 में यह सगत सिंह ही थे, जिन्होंने चीन को 1962 की गलती दोहराने और भारतीय फौज को कमतर समझने के लिए 300+ चीनी फौजियों की लाशों का रिटर्न गिफ्ट दिया था। नाथू ला का वो युद्ध आज तक चीनी सत्ता को सालता रहता है।
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लेकिन आज कहानी 1971 की। वो कहानी जिसके बगैर बांग्लादेश को आजाद करा पाकिस्तान के दो टुकड़े करना इतना आसान न होता। इस कहानी में जाँबाजी भी है, जिद भी और जीत के लिए सीनियर को अनसुना कर अपने फैसले पर आगे बढ़ने का जुनून भी। और युद्ध की रणनीति तो खैर है ही!
मेघना नदी के पार पाकिस्तानी फौज और टूटा पुल
बांग्लादेश युद्ध के शुरू हुए सिर्फ 5 दिन हुए थे। ईस्टर्न कमांड के पास 3 कोर डिविजन (II, XXXIII और IV) और एक कम्युनिकेशन जोन (101) था। सबको अपना-अपना टास्क दिया गया था। सबने अपना टास्क 100% पूरा किया, सिवाय एक के – वो था कोर डिविजन IV, जिसको लीड कर रहे थे लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह। सगत सिंह ने टास्क तो 100% पूरा किया, लेकिन वो इसके आगे भी बढ़ गए – सीनियर ऑफिसरों को नाराज करने की सीमा तक!
मेघना नदी के पूर्वी छोर तक पहुँचना, एरिया को सिक्योर करना… ये सारे टास्क लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह की कोर डिविजन IV कर चुकी थी। लेकिन सगत रूक कर अवसर का इंतजार करने वालों में से नहीं थे। वो नदी के पार पाकिस्तानी फौजियों तक पहुँचना चाहते थे। लेकिन पुल को दुश्मन सेना ने उड़ा दिया था। यहीं पर सगत सिंह ने वो किया, जिसके लिए उन्हें अपने सीनियर ऑफिसरों से गरमा-गर्म बहस करनी पड़ी लेकिन पाकिस्तानी ऑफिसर को इस युद्ध रणनीति के कारण भौंचक रह जाना पड़ा।
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पहले बात पाकिस्तानी ऑफिसर की – कोमिला और लालमई एरिया के पाकिस्तानी कमांडर ब्रिगेडियर अत्री (रिटायर्ड) ने मानसिक हार को स्वीकार करते हुए कहा था – “भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर रात में हमारी सेना के इतने नजदीक और इतने नीचे फ्लाई करते हुए गुजरे कि उस आवाज की गूँज ने उन्हें भयभीत कर दिया, जबकि देखा जाए तो पाकिस्तानी सैनिकों को क्षति नहीं हुई थी।”
पाकिस्तानी ब्रिगेडियर एआर सिद्दकी ने तो इस पूरे मामले को किताब तक में जिक्र किया है। East Pakistan: The Endgame: An Onlooker’s Journal 1969-1971 के 195-196 पन्ने पर उन्होंने लिखा है, “दुश्मन ने शुरुआती मूव्स ऐसे चली कि पाकिस्तानी उस मूव की बस प्रतिक्रिया देते रह गए। पाकिस्तानी सेना से कम से कम भीड़े वो अपने लक्ष्य ढाका की ओर बढ़ा चला जा रहा था।”
जेएस अरोड़ा Vs सगत सिंह
जगजीत सिंह अरोड़ा बांग्लादेश युद्ध के समय ईस्टर्न कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ थे। मतलब सब कुछ उनकी ही देख-रेख में होना था। सब कुछ उनके प्लान के अनुसार चल रहा था। कोई नहीं चल रहा था तो वो थे लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह। जेएस अरोड़ा इस बात से चिंतित थे।
3 दिसंबर को युद्ध शुरू हुआ और लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह मेघना नदी के पूर्वी छोर तक 5 दिसंबर को पहुँच गए थे। उनके कोर डिविजन का टास्क भी यही था। लेकिन वो 5 तारीख से ही भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर पायलटों के साथ उड़ कर मेघना नदी को क्रॉस करते हुए पाकिस्तानी फौजियों की पोजिशन को समझना शुरू कर चुके थे।
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह का यह रुटीन बन गया था। लेकिन वह किसी प्लान के साथ नहीं उड़ते थे। मौका और समय देखते हुए अंत क्षणों में निर्णय लेते थे और यही उनकी युद्ध रणनीति भी थी। लेकिन इसमें खतरा भी था। नीचे से पाकिस्तानी फौजी भारतीय हेलीकॉप्टर पर निशाना भी लगाते रहते थे।
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मेघना नदी के पार अपने जवानों को हेलीकॉप्टर से लैंड कराने के लिए जगह खोजते लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह एक बार पाकिस्तानी गोली से बस कुछ मिलीमीटर की दूरी से बचे थे और पायलट के तो जाँघ में गोली लग गई थी। हेलीकॉप्टर में कुल 38 गोली लगी थी। लैंडिंग के बाद पायलट, को-पायलट, ग्रुप कैप्टन सभी डरे हुए थे लेकिन सगत सिंह कूल थे, बिल्कुल अपने अंदाज में! अगले दिन सगत सिंह फिर से नदी के पार थे!
ऐसे में जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ जगजीत सिंह अरोड़ा अपनी युद्ध रणनीति को लेकर प्रतिबद्ध भी थे और सगत सिंह के उतावले को देखते हुए चिंतित भी। उन्होंने सगत को प्लान के तहत चलने को कहा। लेकिन सगत अपने तर्कों पर अड़े रहे। 8 दिसंबर 1971 को इस बात को लेकर दोनों के बीच गरमा-गर्म बहस हुई। लेकिन सगत हिले नहीं, जिद पर अड़े रहे। लेकिन अंत में उन्हें कमांड की बात तो माननी ही पड़ती। इसलिए लंच पर उन्होंने फिर से अपना तर्क रखा।
इसी बीच जेएस अरोड़ा के लिए एक मैसेज आया और उन्हें लंच के बीच ही हेड-क्वार्टर के लिए निकलना पड़ गया। दोनों के बीच मेघना नदी को क्रॉस करना है या नहीं, इस मुद्दे पर बात नहीं हो पाई। लेकिन गरमा-गर्म बहस से लंच के पहले चेहरे पर जो तनाव था, वो जेएस अरोड़ा के चेहरे से गायब हो चुका था लंच के दौरान आए उस मैसेज से। मैसेज था – पाकिस्तानी फौजियों के बीच मानसिक हार की लहर शुरू हो चुकी है। सगत सिंह के लिए यह काफी था।
मेघना हेली ब्रिज
खतरों से खेल कर लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ने मेघना नदी के पार पाकिस्तानी रक्षा पंक्ति को भली-भाँति आँक लिया था। वो उस जगह को भी पिन-पॉइंट कर चुके थे, जहाँ भारतीय जवानों को हेलीकॉप्टर से लैंड कराना था। सब प्लानिंग सगत सिंह के दिमाग में थी। वो रूल बुक से नहीं चलते थे। हेलीकॉप्टर में कितने भारतीय जवान चढ़ेंगे, यह भी वो तकनीक से ज्यादा ‘जुगाड़’ के हिसाब से सोच रखे थे।
मेघना नदी को क्रॉस करना था Mi-4 हेलीकॉप्टर से। हर हेलीकॉप्टर की अधिकतम क्षमता थी 14 जवानों को लेकर जाने की। लेकिन सगत सिंह और भारतीय वायुसेना के अधिकारियों ने जरूरत से ज्यादा फ्यूल को निकाल कर हेलीकॉप्टर का वजन कम किया और प्रति हेलीकॉप्टर 23 जवानों को नदी के पार भेजा।
नदी के पार हेलीपैड नहीं थे। यहाँ ‘जुगाड़’ तकनीक काम आई। टॉर्च जला कर 200-200 मीटर की दूरी पर रख कर H का निशान बनाया गया। उसके रिफलेक्टर को ढँक दिया गया ताकि पायलट की आँखें न चौंधियाए। वायुसेना का अधिकतम उपयोग करने के लिए सिर्फ जवानों और उनके हल्के हथियारों को ही हेलीकॉप्टर से नदी के पार भेजा गया। जबकि भारी हथियारों को बोट के सहारे नदी पार कराया गया।
9 दिसंबर की रात से शुरू हुआ मेघना हेली ब्रिज मिशन अगले 36 घंटों में 5000+ भारतीय जवानों को मेघना नदी पार करा चुका था। इस दौरान कुल 409 शॉर्टीज (चक्कर) में एक भी दुर्घटना नहीं हुई थी और 51 टन हथियार भी उस ओर पहुँच चुके थे।
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1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश की आजादी में मेघना हेली ब्रिज का रोल युद्ध रणनीति की कक्षा में सबसे अहम माना जाता है। लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह अगर अपने जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ जगजीत सिंह अरोड़ा की बात मान जाते तो शायद वो मेघना नदी की पूर्वी तट पर अवसर का इंतजार ही करते रह जाते। या फिर उनके हेलीकॉप्टर पर चली 38 गोलियों में से एक भी उन्हें अपना निशाना बना लेती तो भी युद्ध की दिशा कुछ और होती। यह सब कयास इसलिए क्योंकि पाकिस्तानी फौज और सत्ता युद्ध को लंबा खींचने और UN को इसमें शामिल कर यथास्थिति बनाने की लॉबिंग कर रहा था।
मेघना हेली ब्रिज के सिर्फ 6 दिनों के बाद… वो फोटो
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह की जाँबाजी के किस्से आर्मी वालों से लेकर एयरफोर्स और दुश्मन की सेना तक बताते हैं, लिखते रहते हैं। लेकिन यह सिर्फ उनका उतावलापन नहीं था। लंबे समय से एयरफोर्स ऑफिसरों की संगत, एक-दूसरे की समझ और भरोसे के कारण ही यह संभव हुआ था।
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1971 के युद्ध के 10 साल पहले वो भारत के एकमात्र पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल चुके थे। न सिर्फ संभाल चुके थे बल्कि 42 की उम्र में वो जितनी संख्या की जरूरत होती है, उतनी बार पैरा-जंपिंग करके पैरा-बैज भी ले चुके थे।
गोवा, नाथू ला और मेघना… इन सब ऑपरेशनों में भारत को जीत दिलाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के लिए मेघना हेली ब्रिज उनके दिल के सबसे करीब रहा। शायद यही वजह रही कि उन्होंने रिटायरमेंट के बाद जयपुर के अपने आशियाने का नाम ‘मेघना’ रखा।
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