Tuesday, November 26, 2024
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वीर बाल दिवस: 300 साल पहले मुगलों के आगे साहिबजादों ने नहीं झुकाया सिर, कहा- नहीं छोड़ेंगे धर्म, दीवार में चुनवा दो

बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने अपनी दादी के साथ गुरु गोविंद सिंह के पुराने रसोइए के पास शरण ली थी। मगर उसने उन्हें धोखा दिया और दोनों बच्चों को वजीर खान को दे दिया। वजीर ने उन्हें दो विकल्प दिए या तो इस्लाम कबूलें वरना दीवार में चुनकर मरें... दोनों साहिबजादों ने फौरन जान देने का निर्णय लिया, मगर धर्म पर आँच नहीं आने दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुरु परब के मौके पर 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के तौर पर मनाने की घोषणा किए जाने के बाद आज (26 दिसंबर 2022) गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को पूरा देश याद कर रहा है। प्रधानमंत्री इस अवसर पर आज मेजर ध्यानचंदन नेशनल स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। वह यहाँ 300 बाल किरतनियों से मुलाकात करेंगे और 3000 बच्चों को ‘मार्च-पास्ट’ दिखाकर रवाना करेंगे।

आज के दिन तरह-तरह के क्रियाकलापों के जरिए बच्चों को साहिबजादों की बहादुरी के बारे में बताया जा रहा है। स्कूलों में जहाँ इस पर निबंध प्रतियोगिता और क्विज चल रहे हैं। वहीं सार्वजनिक स्थान जैसे रेलवे स्टेशन, पेट्रोल पंप आदि पर डिजिटल प्रदर्शनी का इंतजाम किया गया है। हर माध्यम से ये बताने का प्रयास हो रहा है कि कैसे गुरु गोविंद सिंह के बेटों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने भी धर्म की रक्षा के लिए अत्याचारियों के आगे सिर नहीं झुकाया और मौका आने पर बलिदान भी हो गए।

साहिबजादों की बहादुरी

वो 1704 का साल था। औरंगजेब ने गुरु गोविंद सिंह की खालसा सेना से लड़ने के लिए वजीर खान को अपना सूबेदार बनाकर पीछे छोड़ा। वजीर ने विशाल फौज के बावजूद सिख सैनिकों से शुरुआत में मात खाई, जिसके बाद उन्होंने संधि प्रस्ताव भेजा और कहा कि अगर गुरु गोविंद सिंह दुर्ग से चले जाएँ तो वह उनके परिवार को सुरक्षित निकलने का रास्ता देंगे। मुगल सेना ने अपनी बात पर यकीन दिलाने के लिए कुरान तक की कसम खाई।

8 माह बाद जब गुरु गोविंद सिंह की सेना और परिवार दुर्ग से जाने को तैयार हुआ तो मुगलों ने उन पर हमला कर दिया। गुरु गोविंद सिंह का इसी दौरान अपने परिवार से साथ छूटा था। उनके चार साहिबजादों में से अजीत सिंह और जुझार सिंह उनके साथ चमकौर की गढ़ी तक पहुँच गए थे। लेकिन उनकी माँ गुजरी देवी और साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह उनसे बिछुड़ गए।

इन लोगों ने गुरु गोविंद सिंह के एक पुराने रसोइए के पास शरण ली। लेकिन उसने उनके साथ विश्वासघात किया। उसने दोनों बच्चों को पकड़ औरंगजेब के सिपाही वजीर खान के हवाले कर दिया। वजीर ने दोनों के आगे शर्त रखी कि या तो इस्लाम कबूलो वरना दीवार में चुनवाकर मार दिए जाओगे। बहादुर पिता के साहिबजादों ने दीवार में चुनना पसंद किया।

उन्होंने कहा, हम गुरु गोविंद सिंह के पुत्र हैं, जो अपना धर्म कभी नहीं छोड़ सकते। इसके बाद वजीर खान ने उन्हें चुनवाने का आदेश दिया। वह पहले उन्हें मलेरकोटला के नवाब को सौंपना चाहता था, जिसका भाई सिखों के साथ युद्ध में मारा गया था। लेकिन, उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उसका कहना था कि उस युद्ध में इन दोनों बालकों का क्या दोष?

दोनों साहिबजादों में जोरावर सिंह बड़े थे। जब दीवार ऊपर उठने लगी तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। इस पर छोटे भाई ने पूछा कि क्या वो बलिदान देने से डर गए, इसीलिए रो रहे हैं? जोरावर सिंह ने जवाब दिया कि ऐसी बात नहीं है। वो तो ये सोच कर दुःखी हैं कि छोटा होने के कारण फ़तेह सिंह की दीवार में पहले समा जाएँगे और उनकी मृत्यु पहले हो जाएगी। उन्होंने कहा, “दुःख यही है कि मेरे से पहले बलिदान होने का अवसर तुम्हें मिल रहा है। उन्होंने कहा कि मैं मौत से नहीं डरता, वो मुझसे डरती है।”

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