इससे पहले हमने बताया था कि कैसे जिस रजिया सुल्ताना को महिला सशक्तिकरण की मिसाल बता कर पढ़ाया गया, उसने ही काशी में विश्वेश्वर मंदिर तुड़वा कर मस्जिद बनवा दिया। बाद में जगद्गुरु नारायण भट्ट की प्रेरणा पर अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने मंदिर का निर्माण करवाया। काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे पहले मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक ने तोड़ा था, जिसके बाद 14वीं शताब्दी के अंत तक वाराणसी पुनः अपने गौरव की तरफ लौट रहा था। लेकिन, मुगलों को ये मंजूर नहीं रहा।
आपने अक्सर फर्जी इतिहासकारों को ये बताते हुए देखा होगा कि कैसे अकबर उदार था और उसने कई मंदिरों का निर्माण कराया। वो ये बताते हुए भी नहीं थकते कि मुग़ल शासक अकबर ने काशी में विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हालाँकि, कहानी इसके एकदम उलट है। ये काम अकबर ने नहीं, बल्कि उसकी हिन्दू रानियों ने करवाया था – राजकोष से अपने स्तर से रुपए निकाल कर। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में इसका जिक्र किया है।
अकबर के शासनकाल की ही बात है, जब राल्फ फीच नामक एक अंग्रेज यात्री भारत आया था और उसने अपना संस्मरण भी लिखा है। उसने इस दौरान एक ‘वापी’ (कुएँ) का उल्लेख किया है, जिसमें नीचे जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई थीं। ये ‘वापी’ पत्थर का बना हुआ था। उसने लिखा है कि कुएँ के भीतर काफी पानी भी है और उसमें लोग फूल डालते हैं, जिस कारण उससे बदबू आती है। उसने ये भी जिक्र किया है कि लोग यहाँ स्नान करने के लिए भी आते हैं और उनका मानना है कि इससे उनके पाप धुल जाएँगे।
उसने अपने विवरण में लिखा है कि यहाँ हमेशा लोग जमा रहते हैं, इसके तल में जाकर लोग खड़े होते हैं। उसने पानी से लोगों के नहाने और पूजा करने का जिक्र करते हुए लिखा है कि इसे वो अपने घर भी लेकर जाते हैं, जहाँ स्थित देवी-देवताओं की मूर्तियों को ये चढ़ाया जाता है। कैसे जमीन साफ़ कर के दंडवत होकर लोग प्रार्थना करते हैं, ये भी उसने लिखा है। इससे पता चलता है कि वहाँ पूजा तो होती थी, लेकिन मंदिर की अवस्था का जिक्र नहीं है।
राजा टोडरमल को भी मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने में 5 वर्ष लगे थे, ऐसे में हो सकता है कि तब तक पुराने जीर्ण-शीर्ण मंदिर में ही पूजा-पाठ होती रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी ज्ञानवापी में जाकर साष्टांग पूजा की थी। शाहजहाँ के काल की भी बात कर लेते हैं, जिसके समय में काशी के सभी मंदिर ध्वस्त करने के आदेश दिए गए थे। उसके आदेश पर वाराणसी के 76 मंदिरों को नुकसान पहुँचाया गया। पीटर मुंडी नाम का एक ब्रिटिश व्यापारी उन दिनों में भारत दौरे पर था।
उसने लिखा है कि काशी में एक जगह उसे पेड़ पर एक लाश लटकी हुई दिखी। उसके हिसाब से ये 3 दिसंबर, 1632 ईस्वी की बात थी। वो लिखता है, “शाहजहाँ ने सभी हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने के आदेश दिए थे। उसने गवर्नर (इलाहाबाद के सूबेदार हैदर बेग) ने अपने चचेरे भाइयों को एक फ़ौज के साथ इस मंदिर को तोड़ने के लिए भेजा। लेकिन, इस राजपूत व्यक्ति ने उन्हें देख लिया और धनुष-तीर लेकर वो वहाँ पर छिप गया।”
पीटर मुंडी आगे लिखता है, “उस राजपूत व्यक्ति ने लगातार वार कर के गवर्नर के चचेरे भाई को मार गिराया। इसके अलावा कुछ अन्य फौजियों को भी उसने मार डाला। अचानक हुए हमले में 3-4 मुग़ल मारे गए। जब उसे फौजी पकड़ने गए, तो उसने कटार निकाल कर एकाध अन्य को भी चित कर दिया। अंत में उसकी हत्या कर दी गई और उसकी लाश को पेड़ से लटका दिया गया।” उसने वाराणसी में कई जोगियों के साथ-साथ मुस्लिम फकीरों को भी देखा।
पीटर मुंडी ने काशी के ब्राह्मणों, वैश्य समाज के लोगों और खत्री समुदाय के लोगों का जिक्र भी किया है। उन लिखा है कि यहाँ के हिन्दू गंगा नदी को पवित्र मानते हैं। उसने लिखा है कि मंदिर में शिवलिंग है और उस पर जल-दूध चढ़ाया जाता है और ब्राह्मण मंत्र पढ़ते हैं। हालाँकि, पीटर मुंडी के संस्मरण में ज्ञानवापी का जिक्र नहीं है, लेकिन काशी विश्वनाथ का है। शाहजहाँ के आदेश के बाद इस मंदिर का क्या हुआ, इसका कोई खास विवरण नहीं मिलता।
यहाँ तक कि सुब्रमण्यन स्वामी जैसे लोग भी लिखते रहे हैं कि अकबर ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए धन दिया था, जब ऐसा कुछ भी नहीं था। टोडरमल के पास ही अकबर का राजस्व विभाग था, ऐसे में मंदिर का निर्माण उन्होंने करवाया। हालाँकि, इसके बाद जब शाहजहाँ ने काशी के मंदिरों को तोड़ने के आदेश दिए थे तो हिन्दुओं ने इसका कड़ा प्रतिरोध किया था। विश्वनाथ मंदिर न तोड़ पाने की खुन्नस में ही काशी के बाक़ी मंदिरों को निशाना बनाया गया था।
About 150 years later, in 1585, Raja Todarmal got it Rebuilt during Akbar's time. In 1632, Shah Jahan also sent an army to destroy the temple, but it failed due to the opposition of the Hindus. His army definitely destroyed the other 63 Temples of Kashi.#GyanvapiShivlingExpose pic.twitter.com/34y0DbnbaJ
— ♎️ V-JAY (AURO's) ⚖️ (@vijaybhoyer9) May 18, 2022
इतिहास में दर्ज है कि कैसे वाराणसी की भव्यता देख कर मुग़ल शासक शाहजहाँ बौखला गया था। आज इन्हीं मुगलों को भारत की GDP, विकास और समृद्धि के लिए क्रेडिट देते फिरते हैं, वो अगर अपने ही राज में किसी शहर की समृद्धि से बौखला कर उसे तबाह कर दे, फिर क्या उसे कभी भारतीय माना जा सकता है? उसी शाहजहाँ द्वारा भेजी गई फ़ौज का हिन्दुओं ने जम कर विरोध किया। आज ताजमहल के लिए उसका गुणगान किया जाता है, जिसके किसी हिन्दू मंदिर की नींव पर खड़े होने की बात कही जाती है अक्सर।
ज्ञानवापी इतिहास सीरीज के पहले लेख में ही हमने बताया था कि कैसे काशी में 10वीं और 11वीं शताब्दी में गहड़वाल वंश का शासन था, जिसके चंद्रदेव और गोविंदचंद्र ने बाबा की नगरी की रक्षा की। जयचंद की युद्ध में मृत्यु के बाद ऐसी तबाही मचाई गई कि मुहम्मद गोरी 1400 ऊँट से लूट का माल लेकर गया। जैन मंत्री वास्तुपाल ने काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए 1 लाख रुपए भेजे थे। गोरी-ऐबक की मौत के बाद भी दिल्ली सल्तनत काशी पर हमला करते रहे।