Friday, April 26, 2024
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लॉकडाउन की गोली कड़वी पर कोरोना वायरस के पक्के इलाज के लिए बेहद जरूरी

सवाल यह है कि जब सब व्यवस्था सरकारों ने बना ही दी है, तो फिर लॉकडाउन बढ़ाने का क्या मतलब है? दरअसल अब लड़ाई दूसरे दौर में हैं। पहले दौर में भारत ने कमियाँ दूर की, अपनी क्षमताएँ बढ़ाई। दूसरे दौर में हमें संक्रमण के दायरे को छोटे से छोटा करना है।

130 करोड़ से ज्यादा लोगों को जब एक साथ घरों में रहने का हुकुम दिया जाता है, तो सवाल उठने लाजिमी हैं। इस लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था का क्या होगा? छोटे दुकानदारों और कारोबार का क्या होगा? नौकरयाँ जाएँगी या रहेंगी? सबसे ऊपर गरीब का पेट कैसे भरेगा? सवाल तीखे हैं और मुकम्मल तौर पर अभी जवाब किसी के पास नहीं। पर इनसे भी कड़वा और बड़ा, एक सवाल और भी है, क्या देश को यूँ ही कोरोना महामारी से मरने छोड़ दिया जाए?

दुनिया की सभी प्रमुख स्वास्थ्य संस्थाएँ इस बात पर सहमत हैं कि कोरोना वायरस से बचाव का अभी बस एक ही तरीका है और वो है सोशल डिस्टेंसिंग। सोशल डिस्टेंसिंग को अमल में लाने का बस एक ही तरीका है और वो है लॉकडाउन। लॉकडाउन को बेवजह की कवायद कह कर, जिन देशों और उनकी मीडिया ने लॉकडाउन का मजाक उड़ाया था। उन्होंने उसकी बड़ी कीमत चुकाई है। हजारों लोग मारे जा चुके हैं और आज वही देश लॉकडाउन को सख्ती से लागू कर रहे हैं। ब्रिटेन, इटली, स्पेन और अमेरिका इसकी मिसाल हैं।

लॉकडाउन इस बीमारी के फैलाव को रोकने में कितना कारगर है? इसे अमेरिका के कोरोना मरीजों के आँकड़ों से समझा जा सकता है। कोरोना संक्रमितों की संख्या 1 हजार से 9 हजार पहुँचने में जहाँ भारत को 16 दिन लगे, वहीं अमेरिका ने 9 हजार का आँकड़ा मात्र 9 दिनों में ही छू लिया। ध्यान रहे कि इस पूरी अवधि में भारत में लॉकडाउन था।

एक से नौ हजार का आँकड़ा छूने में भारत और अमेरिका के बीच कुछ दिनों का यह अंतर कई लोगों को छोटा लग सकता है। पर इसकी गंभीरता तब समझ आएगी, जब आपको यह पता लगेगा कि अगले 9 दिनों में अमेरिका में कोरोना संक्रमितों की संख्या 9 हजार से 1 लाख 4 हजार हो गई। उसके अगले 18 दिनों में कोरोना संक्रमितों की संख्या अमेरिका में 6 लाख 13 हजार से भी ज्यादा हो गई। शुक्र मनाइए कि भारत में लॉकडाउन बढ़ा दिया गया, नहीं तो अगले कुछ दिनों में हमारे अस्पताल हजारों, लाखों कोरोना मरीजों से पटे पड़े होते। अमेरिका, स्पेन, इटली, ब्रिटेन और फ्रांस की तरह भारत में भी लाशों के ढेर लगे होते।

मार्च में तीसरे हफ्ते के अंत तक दुनिया भर में कोरोना कहर बरपा रहा था। खासकर यूरोप में। स्पेन, इटली और अमेरिका जैसे देशों में बहुत तेज गति से कोरोना के रोगी बढ़ रहे थे। ये वो देश हैं जिनके पास दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मेडिकल सुविधाएँ हैं। आबादी के लिहाज से भी ये मुल्क भारत से बहुत छोटे हैं।

जनसंख्या के साथ गरीबी हमारे यहाँ एक बड़ी समस्या है। तब लॉकडाउन के सिवा हमारे पास चारा ही क्या था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन रोगियों की कोरोना से मृत्यु हुई है उनमें कोरोना के लक्षण दिखाई देने से लेकर मरीज के मरने तक औसतन 14 दिन का ही वक्त लगता है। जरा टाइमलाइन पर गौर करें। अमूमन 5वें दिन लक्षण दिखते हैं, 7वें दिन अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, 8वें या 9 वें दिन रोगी आइसीयू पहुँच जाता है और उसके बाद कभी भी मृत्यु संभव है। इस भयावह परिपरिस्थिति से बचने के लिए हमें वक्त चाहिए था। लॉकडाउन ने हमें वह कीमती वक्त मुहैया कराया।

लॉकडाउन से हमें जो बहुमूल्य समय मिला, उसमें हमने कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमताएँ विकसित की हैं। आज 602 डेडिकेटिड अस्पतालों में 1,06,719 आइसोलेशन बेड की व्यवस्था है। 12,024 आइसीयू बेड भी कोरोना के लिए आरक्षित हैं। लॉकडाउन से पूर्व हमारे यहाँ मात्र 18 सरकारी लैब्स में ही कोरोना टेस्टिंग की सुविधा थी। 14 अप्रैल तक सरकारी और प्राइवेट लैब्स मिलकर यह संख्या 244 हो गई हैं। हजारों वेंटिलेटर, लाखों पीपीई और करोड़ों मास्क का ऑर्डर भी इस बीच ही हमने किया है।

हमें सोचने का समय मिला इसलिए कोरोना पूल टेस्टिंग, कोरोना पेशेंट पूलिंग, महाकर्फ्यू आदि अनेक इनोवेटिव आइडिया भी इसी लॉकडाउन से निकले। डॉक्टर्स, नर्सों, वार्ड बॉय, पैरामेडिकल स्टाफ से लेकर आशा वर्कर तक की ट्रेनिंग का इंतजाम भारत ने किया। सामाजिक स्तर पर भी भारत ने कमर कस ली है, कोरोना के खिलाफ थाली बजा कर अभिनंदन और दीपक जला कर सम्मान, जैसे कार्यक्रमों से सरकार ने जनता को सीधे जोड़ लिया।

सवाल यह है कि जब सब व्यवस्था सरकारों ने बना ही दी है, तो फिर लॉकडाउन बढ़ाने का क्या मतलब है? दरअसल अब लड़ाई दूसरे दौर में हैं। पहले दौर में भारत ने कमियाँ दूर की, अपनी क्षमताएँ बढ़ाई। दूसरे दौर में हमें संक्रमण के दायरे को छोटे से छोटा करना है। जिला स्तर पर संक्रमण की इस लड़ाई को हॉटस्पॉट तक सीमित करना है। कोरोना से बढ़ती मृत्यु दर को कम करना है। एक भी मरीज छूट ना जाए इस लक्ष्य को लेकर सरकारों को जिला स्तर पर आगे बढ़ना होगा। नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की कड़वी गोली देश को खिलाई है, पर मर्ज के पक्के इलाज के लिए यह जरूरी था।

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Sanjay Pandey
Sanjay Pandey
वरिष्ठ पत्रकार, ज़ी न्यूज, जनमत, लाइव इंडिया, ANN-7 साउथ अफ्रीका, TV-10 रवांडा, वर्तमान में रिलायंस इंडस्ट्रीज के कोरपोरेट कम्युनिकेशन में असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट

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