इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को कानून की औकात दिखाई। 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा ही किया। लेकिन 25 जून को इंदिरा ने संविधान की आड़ लेकर कानून और कोर्ट के साथ-साथ देश की जनता से खिलवाड़ किया, जिसे हम आपातकाल यानी इमरजेंसी के नाम से जानते हैं।
25 जून 1975 की सुबह ऑल इंडिया रेडियो पर इंदिरा गाँधी की आवाज में जो संदेश प्रसारित हुआ, उसे पूरे देश ने सुना। इस संदेश में इंदिरा गाँधी ने कहा “भाइयो और बहनो! राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है।” आपातकाल के नाम पर लोकतंत्र को किस कदर कुचला गया, किस तरह प्रेस की आवाज को खामोश कर दिया गया, इससे हम सब परिचित हैं। इस दौर में विरोधियों को प्रताड़ित करने की भी एक से एक खौफनाक घटनाएँ सामने आईं। इनमें से ही एक कहानी है, स्नेहलता रेड्डी की।
एक ऐसी अभिनेत्री जिसका आपातकाल के दौरान सीधा कसूर कुछ नहीं था, लेकिन उसे महंगा पड़ा कॉन्ग्रेस की नजर में चढ़ने वाले राजनेता से दोस्ती करना…। आपातकाल के समय स्नेहलता पर कॉन्ग्रेस ने बेहिसाब अत्याचार केवल इसलिए किए क्योंकि वह बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस की मित्र थीं जिन्हें इमरजेंसी के समय पुलिस पकड़ने की कोशिश में थी।
2 मई 1976 को स्नेहलता को डायनामाइट केस में शामिल होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया। इसके बाद बेंगलुरु जेल में कैद कर उनके साथ ऐसी अमानवीयता की गई जिसे सुनकर किसी भी रूह काँप जाए।
1976 का आपातकाल वही दौर था जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने भाषणों के कारण जेल में डाल दिए गए थे जबकि बाद में उनके साथ लाल कृष्ण आडवाणी भी रखे गए थे। भारतीय जनसंघ के इन दो दिग्गज नेताओं की बगल वाली कोठरी में ही रखी गई थीं कन्नड़ की मशहूर अदाकारा- स्नेहलता।
स्नेहलता पर आरोप लगाया गया था कि वो डाइनामाइट से दिल्ली में संसद भवन और अन्य मुख्य इमारतों को धमाका कर उड़ाना चाहती थीं। स्नेहलता पर IPC की धारा 120, 120A के तहत आरोप लगाए गए थे। हालाँकि आखिर में इनमें से कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ। लेकिन ‘मीसा’ के तहत स्नेहलता की कैद जारी रही। मीसा (मैंनेटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) वही एक्ट है जिसके तहत आपातकाल में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियाँ हुई। इसी के तहत 8 माह तक स्नेहलता को तड़पाया गया।
स्नेहलता के साथ जेल में क्या हुआ?
शुरुआत मे जब अभिनेत्री को जेल में बंद किया गया तो वह एक ऐसी कोठरी थी, जिसमें बामुश्किल एक व्यक्ति ही रह पाए। सोचिए एक मशहूर अभिनेत्री जो अपनी कला के चलते बहु पुरुस्कार विजेता रहीं हों और ऐशोआराम का जीवन जीती हों, उन्हें बिना कोई गलती बताए या सवाल किए एक ऐसी कोठरी में रखा गया जिसमें पेशाबघर की जगह पर कोने में एक छेद बना हुआ था और दूसरे छोर पर लोहे का एक जालीदार दरवाजा लगा हुआ था।
स्नेहलता कन्नड़ की मशहूर अभिनेत्री थीं लेकिन उन्होंने कारावास के समय कई रातें फर्श पर सोकर गुजारीं। इस बीच उनके परिवार के साथ क्या हो रहा है क्या नहीं, इसका अंदाजा भी उन्हें कुछ नहीं था। क्योंकि न तो कोई उनसे मिलने आया था और न ही कहीं से किसी का कुछ पता चल पाया था। कुछ समय बाद स्नेहलता के परिवार को मालूम हुआ कि उनको किस जेल में बंद किया गया है।
पूरे 8 माह तक एक फेक केस में स्नेहलता को असीम प्रताड़नाएँ दी जाती रहीं। जेल में उनके बगल की कोठरी में बंद किए गए अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने बाद में बताया था कि कारावास के समय उन्हें किसी महिला के चीखने की आवाज सुनाई देती थी। बाद में पता चला कि वह कन्नड़ अभिनेत्री स्नेहलता थीं।
दोनों नेताओं के अलावा मधु दंडवते जो कि उस समय उसी बेंगलोर के जेल में थे, उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा था कि उन्हें रात के सन्नाटे में स्नेहलता की चीखती हुई आवाजें सुनाई देतीं थीं।
जेल में लिखी हुई एक छोटी सी डायरी में स्नेहलता ने लिखा-
“जैसे ही एक महिला अंदर आती है, उसे बाकी सभी के सामने नग्न कर दिया जाता है। जब किसी व्यक्ति को सजा सुनाई जाती है, तो उसे पर्याप्त सजा दी जाती है। क्या मानव शरीर को भी अपमानित किया जाना चाहिए? इन विकृत तरीकों के लिए कौन जिम्मेदार है? इन्सान के जीवन का क्या मकसद है? क्या हमारा मकसद जीवन मूल्यों को और बेहतर बनाना नहीं है? इन्सान का उद्देश्य चाहे कुछ भी हो, उसे मानवता को आगे बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।”
अंतहीन प्रताड़नाओं को झेलने के बाद भी स्नेहलता टूटी नहीं। उन्होंने अन्य कैदियों को मनोबल बढ़ाया। वहाँ भूख हड़ताल की। नतीजन जिन महिलाओं को जेल में बुरी तरह पीटा जाता था, उसमें वहाँ बड़ी कमी आई। बाद में कैदियों को मिलने वाले खाने की गुणवत्ता में भी सुधार किया गया।
जेल से छूटने के 5 दिन बाद मौत
स्नेहलता अस्थमा की मरीज थीं, बावजूद इसके उन्हें घोर यातनाएँ दीं जाती और जेल में उन्हें निरंतर उपचार भी नहीं दिया गया। यह बातें स्वयं स्नेहलता ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समक्ष रखीं थीं। जेल में मिलने वाली क्रूर यातनाओं ने और उस वास्तविकता ने स्नेहलता को बेहद कमजोर कर दिया और उनकी हालत गंभीर हो गई। इसके बाद जनवरी 15, 1977 को उन्हें पैरोल पर रिहा कर दिया गया। और रिहाई के 5 दिन बाद ही 20 जनवरी को हार्ट अटैक के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
जून, 2015 में ‘द हिंदू’ के एक लेख में स्नेहलता की बेटी नंदना रेड्डी ने बताया कि उनकी माँ औपनिवेशिक ब्रिटिश राज की प्रबल विरोधी थीं। जब वह कॉलेज गईं तो उन्होंने अपने भारतीय नाम को वापस अपना लिया था और वह केवल भारतीय कपड़े और एक बड़ा ‘बॉटू’ पहनती थी। नंदना ने लिखा कि उनकी माँ ने प्रसिद्ध श्री किट्टप्पा पिल्लई से भरतनाट्यम सीखा और एक बहुत ही कुशल नर्तकी बन गईं।