Sunday, April 28, 2024
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इसरो के वैज्ञानिकों ने भगवान वेंकटेश्वर को किया नमन, सूरज को छूने के लिए तैयार है आदित्य एल-1: जानिए भारत के सूर्य मिशन के बारे में सब कुछ

सूर्य अपने असीम ताप की वजह से हमारे लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला है। ये आग का एक ऐसा गोला है, जो लाखों डिग्री सेल्सियस गर्म है और पृथ्वी के आकार से लाखों गुना बड़ा है। इसकी सतह पर हमेशा विस्फोट होते रहते हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 2 सितंबर 2023 को आदित्य एल-1 लॉन्च करने जा रहा है। यह भारत का पहला अंतरिक्ष आधारित सौर मिशन है। चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद सूर्य मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी।

यह मिशन सूर्य के भूत, वर्तमान और भविष्य को जानने में मदद करेगा। उम्मीद है कि इससे धरती के अस्तित्व के लिए आने वाली ऊर्जा और प्रकाश के स्त्रोत के बदलावों को समझने में मदद मिलेगी। साथ ही इस मिशन से मिलने वाला लेखा-जेखा पृथ्वी पर कई शताब्दियों में हुए जलवायु परिवर्तनों को समझने के काम भी आएगा।

चंद्रयान-3 के बाद इस मिशन को लेकर पूरी दुनिया में उत्सुकता है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो भारत ऐसा करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। भारत से पहले सूर्य को लेकर अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसी अपने स्पेस मिशन भेजकर शोध कर चुकी हैं।

शुरू हुआ आदित्य एल-1 का काउंटडाउन

इसरो 2 सितंबी की सुबह 11:50 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से सौर मिशन आदित्य एल-1 लॉन्च करेगा। इसरो के चीफ सोमनाथ के मुताबिक, आदित्य-L1 के लॉन्‍च के लिए रॉकेट और सैटेलाइट सब तैयार हैं और रिहर्सल पूरी हो गई है। इसकी लॉन्चिंग की 23 घंटे 40 मिनट की उलटी गिनती (Countdown) शुक्रवार (1 सितंबर) को 12:10 बजे शुरू हुई।

इससे पहले सोमनाथ ने तिरुमाला के तिरुपति मंदिर पहुँचकर भगवान वेंकटेश्वर की पूजा-अर्चना की और मानव कल्याण के लिए उनका आशीर्वाद माँगा। इसरो चीफ सोमनाथ के साथ आदित्य एल-1 मिशन से जुड़े सारे वैज्ञानिक भी उनके साथ थे।

इसरो ने दुनिया को इसकी लॉन्चिंग दिखाने के लिए खास इंतजाम किए हैं। इसके लिए श्रीहरिकोटा केंद्र से सीधा प्रसार दर्शकों को दिखाने के लिए व्यू गैलरी की सीटें बुक करने का विकल्प दिया था। यहाँ सीमित सीटें रजिस्ट्रेशन शुरू होने के बाद ही फुल हो गई।

इसरो की वेबसाइट isro.gov.in पर इस मिशन की लॉन्चिंग का सीधा प्रसारण भी देखा जा सकता है। इसके साथ ही लोग इसरो के यूट्यूब चैनल से लॉन्च का लाइव स्ट्रीम कर सकते हैं। ये जानने के बाद आपको भी उत्सुकता हो रही होगी कि भारत के आदित्य एल-1 का उपग्रह कैसे सूर्य की कक्षा में पहुँचेगा तो आइए आगे बढ़ते हैं।

PSLV लेकर जाएगा सूरज के पास

केंद्र सरकार ने 2019 में आदित्य-एल1 मिशन के लिए लगभग 46 मिलियन डॉलर (करीब 380.64 करोड़ रुपए) के बराबर राशि मँजूर की थी। हालाँकि इसरो ने इस मिशन की लागत पर कोई आधिकारिक अपडेट नहीं दिया है। ISRO के चीफ एस सोमनाथ ने बताया था कि इस मिशन का यान लगभग 120 दिन यानी 4 महीने में 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर लैग्रेंज बिंदु-1 (एल1) यानी सूर्य की कक्षा में पहुँचेगा और वहाँ उपग्रह को स्थापित करेगा। ये उपग्रह लैंग्रेंज बिंदु-1 बिंदु पर सवा पाँच साल तक रहकर सौर वातावरण का अध्ययन करेगा और आँकड़े इकट्ठे कर पृथ्वी पर भेजेगा।

आदित्य एल-1 को सूर्य की कक्षा लैग्रेंज बिंदु-1 पर पीएसएलवी-सी57 रॉकेट स्थापित करेगा। ये अंतरिक्ष यान सात ‘पेलोड्स’ अपने साथ लेकर जाएगा। पेलोड यानी वो उपकरण, जो मिशन के आँकड़े एकत्र करने और फिर उसे को पृथ्वी पर भेजने का काम करते हैं। ये वहाँ फ़ोटोस्फ़ेयर, क्रोमोस्फ़ेयर और कोरोना की स्टडी करेंगे। इनमें से चार पेलोड लगातार सूर्य पर नज़र रखेंगे तो अन्य तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु-1 पर कणों और अन्य क्षेत्रों के डेटा इकट्ठा करेंगे।

फ़ोटोस्फ़ेयर का अर्थ है, किसी तारे का चमकदार कवर जिससे उसकी रोशनी और गर्मी निकलती है। वहीं, क्रोमोस्फ़ेयर का अर्थ किसी तारे के वायुमंडल की दूसरी परत है, जो फ़ोटोस्फ़ेयर के ऊपर और कोरोना यानी सूर्य के वायुमंडल के सबसे बाहरी हिस्से के नीचे होती है।

कोरोना सूर्य के वायुमंडल का सबसे बाहरी भाग या परत को कहते है। ये आमतौर पर सूर्य की सतह की चमकदार रोशनी से छिपा रहता है। इससे खास उपकरणों के इस्तेमाल के बगैर देखना कठिन हो जाता है। हालाँकि, इसे पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान देखा जा सकता है। अब आप ये सोच रहे होंगे कि आखिर ये पीएसएलवी और लैग्रेंज बिंदु होता क्या है तो इसे आसान भाषा में हम आपको बताते हैं। पहले पीएसएलवी से शुरुआत करते हैं।

पीएसएलवी इसरो का सैटेलाइट भेजने का सिस्टम

भारतीय रॉकेट ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) इसरो की बनाई एक सहायक प्रक्षेपण प्रणाली है। इसे इसरो ने अपने सुदूर संवेदी उपग्रह (Remote Sensing Satellite) को सूर्य की समकालिक कक्षा (Sun Synchronous Orbit) यानी एसएसओ में प्रक्षेपण के लिए बनाया है।

एसएसओ किसी ग्रह के चारों ओर की ध्रुवीय कक्षा है। यहीं पर रहते हुए उपग्रह हर वर्ष एक पूरा चक्कर लगाते हुए हमेशा सूर्य के साथ समान संबंध बनाए रख सकता है। भारत से पहले ये प्रणाली केवल रूस के पास थी।

यही वजह है कि सौर मिशन के उपग्रह आदित्य एल-1 को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु-1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा यानी फ़ोटोस्फ़ेयर में रखा जा रहा। इसरो के मुताबिक, इसे यहाँ रखने का ये फायदा होता है कि बगैर किसी ग्रहण के सूर्य पर लगातार नजर बनाए रखी जा सकती है। इससे वास्तविक वक्त में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके असर को देखने का फायदा मिलेगा।

“लैग्रेंज-1 बिंदु ही क्यों?

गणितज्ञ जोसेफ लुईस लैग्रेंज के इस बिंदु की खोज करने की वजह से इसका नाम लैग्रेंजियन पड़ा। पृथ्वी और सूर्य के बीच कुल मिलाकर ऐसे 5 बिंदु हैं और यहाँ पर गुरुत्वाकर्षण सेंट्रिपेटल फोर्स (एक ऐसा बल है जो किसी पिंड को एक घुमावदार रास्ते पर चलने के लिए मजबूर करता है) के बराबर हो जाता है। इससे यहाँ किसी भी उपग्रह का परिक्रमा करना आसान हो जाता है। इससे ऊर्जा की भी बचत होती है।

ये बिंदु धरती और सूर्य के बीच की ऐसी जगह है, जहाँ से सूर्य को बग़ैर किसी रुकावट के देखा जा सकता है। सरल शब्दों में कहें तो यहाँ गुरुत्वाकर्षण बल कम से कम होता है। इस वजह से कोई भी अंतरिक्ष यान इस बिंदु पर कम ईंधन के साथ ही स्टडी कर सकता है।

पृथ्वी से इस बिंदु की दूरी लगभग 15 लाख किलोमीटर है। हालाँकि, आदित्य एल-1 मिशन को पाँचों बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है, लेकिन इस बिंदु का चुनाव इसलिए किया गया है कि यहाँ मिशन के कामयाब होने और पेचीदगियाँ कम होने के आसार हैं। ये बिंदु इसलिए भी खास है कि क्योंकि सूर्य से निकलने वाले कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) और सौर तूफान इसी राह से होकर पृथ्वी तक पहुँचते हैं।

सीएमई सूर्य के कोरोना से हेलिओस्फीयर यानी सूर्य की सबसे बाहरी वायुमंडलीय परत के चुंबकीय क्षेत्र और उसके साथ आने वाले प्लाज्मा द्रव्यमान यानी ऊर्जा का उत्सर्जन है। इसरो के सौर मिशन का आदित्य एल-1 यहाँ सूर्य के हमें दिखाई पड़ने वाले हिस्से यानी फ़ोटोस्फ़ेयर, इसके ऊपर की सतह क्रोमोस्फ़ेयर और सूर्य से कुछ हजार किलोमीटर ऊपर की बाहरी परत कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र और सौर वायु का अध्ययन करेगा।

इसरो के मुताबिक, इस मिशन का मकसद क्रोमोस्फ़ीयर और कोरोना की गतिशीलता, सूर्य के तापमान, कोरोना के तापमान, कोरोनल मास इजेक्शन, सूरज से निकलने वाली आग या गर्मी के निकलने के पहले और बाद की गतिविधियों, अंतरिक्ष मौसम समेत कई अन्य वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन करना है।

क्यों है जरूरी सौर मिशन?

सूर्य हाइड्रोजन और हिलियम से मिलकर बना हुआ पृथ्वी का सबसे नजदीकी तारा है। सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग 14,96,00,000 किलोमीटर यानी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। इससे पृथ्वी पर प्रकाश को आने में 8.3 मिनट का वक्त लगता है। इसी ऊर्जा से प्रकाश-संश्लेषण की अहम जैव-रासायनिक अभिक्रिया होती है, जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है। इस वजह से सौर मिशन खासे अहम हो जाते हैं।

सूर्य अपने असीम ताप की वजह से हमारे लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला है। इसको लेकर उन क्रियाओं का अध्ययन किया जा सकता है, जिसे पृथ्वी पर पैदा करना मुश्किल है। ये आग का एक ऐसा गोला है, जो लाखों डिग्री सेल्सियस गर्म है और पृथ्वी के आकार से लाखों गुना बड़ा है। इसकी सतह पर हमेशा विस्फोट होते रहते हैं।

इसके पीछे वहाँ चार्ज प्लाज़्मा, प्रचंड तापमान और चुंबकीय क्षेत्र है। इनकी वजह से वहाँ भयंकर तूफ़ान आते रहते हैं। सूर्य में हर 11 साल बाद बदलाव आता है और ये उसकी चुंबकीय गतिविधियों में भी होता है। इन्हें सौर चक्र कहा जाता है। कई बार ये बेहद खतरनाक होते हैं।

इससे सौरमंडल के वातावरण में ऊर्जा का शक्तिशाली विस्फोट होता है। ये सौर तूफान कहलाते हैं। इससे अंतरिक्ष में बहुत सारा चार्ज प्लाज़्मा फैलता है। कई दफा इन सौर तूफ़ानों के रास्ते में पृथ्वी आ जाती है, लेकिन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और बाहरी परत अक्सर इन तूफानों से हमारी पृथ्वी को बचा ले जाते हैं।

हालाँकि, इससे धरती की वायुमंडल की बाहरी परत खतरे में आ सकती है। यही वो परत है, जहाँ दुनिया भर के हज़ारों सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। सूर्य से निकली भयंकर गर्मी से सैटेलाइट के जलने या शॉर्ट सर्किट जैसी परेशानियाँ आ सकती हैं। उदाहरण के लिए इसके असर से धरती पर ना कम्युनिकेशन हो पाएगा और न ही मौसम की भविष्यवाणी हो पाएँगी। इस वजह से सूर्य की हलचलों पर नजर रखना जरूरी है।

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रचना वर्मा
रचना वर्मा
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