Saturday, May 11, 2024
Homeरिपोर्टराष्ट्रीय सुरक्षाफेसबुक, ट्विटर यूज़रों पर कसेगा शिकंजा, नियम 15 जनवरी तक: सुप्रीम कोर्ट में मोदी...

फेसबुक, ट्विटर यूज़रों पर कसेगा शिकंजा, नियम 15 जनवरी तक: सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार

"भारत में WhatsApp और फेसबुक यह नहीं कह सकते कि वे सूचना का डेक्रिप्शन नहीं कर सकते।" वहीं इन दोनों कंपनियों का कहना है कि सूचना को डिक्रिप्ट करने के लिए ज़रूरी 'की'/कुंजी उनके पास है ही नहीं और वे केवल अधिकारियों के साथ सहयोग भर ही कर सकते हैं।"

सोशल मीडिया पर हेट स्पीच, फेक न्यूज़, मानहानि करतीं पोस्ट्स और एंटी-नेशनल गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए नियम 15 जनवरी, 2020 तक तैयार कर दिए जाएँगे, ऐसा केंद्र की मोदी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित सभी मुकदमें भी अपने पास स्थानांतरित कर दिए। इन सभी मामलों का संबंध सोशल मीडिया प्रोफइलों के डेक्रिप्टेड डाटा को साझा करने से संबंधित माँग से था।

फेसबुक और WhatsApp ने इन मामलों का ट्रांसफ़र सुप्रीम कोर्ट में इसलिए माँगा था कि इनका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई अगले साल 2020 में जनवरी के आखिरी सप्ताह में होगी

अभी तक तमिलनाडु सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों के सभी मुकदमों को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की कोशिशों का विरोध किया था। तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि WhatsApp और फेसबुक को सरकार द्वारा एनालिसिस के लिए माँगी जाने वाली किसी भी सूचना का डेक्रिप्शन करना चाहिए। तमिलनाडु के मामलों को सुप्रीम कोर्ट ले जाने देने के लिए मान जाने के पहले अटॉर्नी जनरल ने कहा था, “भारत में WhatsApp और फेसबुक यह नहीं कह सकते कि वे सूचना का डेक्रिप्शन नहीं कर सकते।” वहीं इन दोनों कंपनियों का कहना है कि सूचना को डिक्रिप्ट करने के लिए ज़रूरी ‘की’/कुंजी उनके पास है ही नहीं और वे केवल अधिकारियों के साथ सहयोग भर ही कर सकते हैं।”

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, “सरकार घर की चाभियाँ घर के मालिक से माँग रही है और घर के मालिक का कहना है कि उसके पास चाभी ही नहीं है।”

इस मामले के एक और याचिकाकर्ता इंटरनेट फ्रीडम एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनकी याचिका पहले ही सुप्रीम कोर्ट की एक दूसरी बेंच के सामने लंबित है और इस बेंच को “नागरिकों के अधिकारों को न कुचलने” पर गौर करना चाहिए।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने कहा कि सोशल मीडिया के लिए नियम तय करने का कदम नागरिकों की निजता के हनन का एक तरीका नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सम्प्रभुता को बचा कर रखने के लिए है। मेहता ने कुछ याचिककर्ताओं के इस आरोप को नकारा कि यह प्रस्तावित कदम, कि सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी होगी किसी संदेश या सामग्री/कंटेंट विशेष के उद्गम को ढूँढ़ निकालना, सरकार की रणनीति है “व्यक्ति की निजता को कुचलने की।”

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘चुनाव कर्मचारियों और मतदाताओं को हतोत्साहित करने वाला बयान’: वोटर टर्नआउट पर ECI ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लताड़ा, कहा – ये गैर-जिम्मेदाराना

चुनाव आयोग ने बताया है कि 1961 के नियमों के अनुसार, हर एक पोलिंग एजेंट को प्रत्येक EVM के मतदान के आँकड़े साझा किए जाते हैं, कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों के पास भी ये आँकड़े मौजूद हैं।

मी लॉर्ड! ये ‘दरियादिली’ कहीं गले की हड्डी न बन जाए, अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत ने बताया न्यायिक सुधार अविलंब क्यों जरूरी

अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत मिलने के बाद जेल में बंद अन्य आरोपित भी अपने लिए इसी आधार पर जमानत की माँग कर सकते हैं।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -