नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी का विरोध करने के नाम पर सड़कों पर उतरी भीड़ को बीते दिनों हमने दंगाइयों में बदलते देखा। हमने देखा कि किस तरह संविधान को बचाने के नाम पर तोड़फोड़, आगजनी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया गया। पुलिस पर उपद्रवियों द्वारा हमले किए गए। बम फेंकने का प्रयास हुआ। सरेआम गोली चलाई गई। करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया गया आदि-आदि। इन सबके अतिरिक्त एक जो चीज़ इन प्रदर्शनों और दंगों में सबसे आम देखने को मिली, वो थी- हिंदुओं के प्रति घृणा।
जामिया मिलिया इस्लामिया हो या जेएनयू; शाहीन बाग हो या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, हर जगह सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में हिंदूघृणा से लबरेज पोस्टर दिखाई दिए। कहीं हिंदुओं को कैलाश भेजने की बात हुई, कहीं ख़िलाफ़त 2.0 को काली स्याही से दीवार पर लिख दिया गया। जोर-जोर से ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ के नारे लगे और पूरी दुनिया में ‘ऊँ’ के चिन्ह को अपमानित करते हुए पोस्टरों में ‘फक हिंदुत्व’ लिखा गया।
इसके अलावा इन प्रदर्शनों में हिंदू राष्ट्र को रेपिस्ट कहा गया। साथ ही ‘फक हिंदू राष्ट्र’ जैसे नारे लड़कियों के गाल पर लिखे देखे गए। इन प्रदर्शनों में पोस्टरों के जरिए न केवल केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह को निशाना बनाया गया। बल्कि देश की बहुसंख्यक आबादी की धार्मिक भावनाओं को भी ठेस पहुँचाया गया। इन आंदोलनों में इस्लाम के मायने तो समझाए गए, लेकिन हिंदू संस्कृति और सभ्यता का न केवल बुरी तरह मजाक उड़ाया गया, बल्कि हर मुमकिन तरीके से सेकुरलिज्म के नाम पर उसे रौंदा गया।
बता दें, ये केवल चुनिंदा नारे और वाकये थे। बीते दिनों हुए इन प्रदर्शनों में करीब 30 पोस्टर ऐसे दिखाई दिए, जो हिंदूघृणा की खुली किताब थे। जिन्हें देखते ही अंदाजा लग जाएगा कि सेकुलरिज्म बचाने के नाम पर ये हिंदुत्व पर हमला है।