Saturday, November 16, 2024
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25 मस्जिदें, जहाँ था CAA विरोधी प्रदर्शन स्थल: उमर खालिद लेने गया था बेल, खुल गई उसके सेकुलर होने की पोल

श्रीराम कॉलोनी में नूरानी मस्जिद को विरोध स्थल बनाया गया था। सदर बाजार का विरोध स्थल मूल रूप से शाही ईदगाह था। शास्त्री पार्क में विरोध स्थल वाहिद जामा मस्जिद था और गाँधी पार्क का विरोध स्थल वाकई में जमीला मस्जिद थी।

सीएए-एनआरसी का विरोध दिल्ली में कुछ जगहों पर किया गया था? नहीं। कुछ मस्जिदों के पास किया गया था। मस्जिद ही क्यों? ताकि मुस्लिम समुदाय को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए उकसाया जा सके। PFI, जमात-ए-हिंद और स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया जैसे तत्वों को शामिल किया जा सके। यह सारी बात उमर खालिद की जमानत याचिका के दौरान अदालत में खुल कर सामने आई।

विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने अदालत को बताया कि सीएए-एनआरसी के नाम पर 25 विरोध स्थल स्थानीय मस्जिदों के करीब बनाए गए थे। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि श्रीराम कॉलोनी में नूरानी मस्जिद को विरोध स्थल बनाया गया था। इसी तरह सदर बाजार का विरोध स्थल मूल रूप से शाही ईदगाह है। शास्त्री पार्क में विरोध स्थल वाहिद जामा मस्जिद था और गाँधी पार्क का विरोध स्थल वाकई में जमीला मस्जिद थी। अमित प्रसाद ने बताया कि उन लोगों ने गलत जानकारी साझा की और मुस्लिम समुदाय को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए उकसाया। इसमें महिलाएँ और बच्चे भी थे। 

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विरोध स्थलों के आयोजक 24X7 धरना-प्रदर्शन के लिए जमीनी तौर पर भीड़ बढ़ाने के लिए काम करना चाहते थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि विरोध के दौरान PFI, जमात-ए-हिंद और स्टूडेंट इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया सहित कई छिपे हुए तत्व शामिल थे। 

दिल्ली दंगों के मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका का अभियोजन पक्ष ने सोमवार (24 जनवरी 2022) को विरोध किया। साथ ही, नास्तिक और सेकुलर के रूप में उसकी जनता के बीच धारणा पर सवाल उठाया और जानना चाहा कि अगर ऐसा है तो फिर वह जेएनयू में एक विशेष समुदाय के समूह में क्यों शामिल हुए। 

विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने पूछा कि वह जेएनयू में मुस्लिम समूह में क्यों शामिल हुए? जबकि आप सार्वजनिक तौर पर खुद को कुछ और दिखाते हैं। कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत खालिद की जमानत अर्जी पर अभियोजन पक्ष की दलीलें सुन रहे थे। 

अमित प्रसाद ने तर्क दिया कि एक सार्वजनिक धारणा थी कि उमर खालिद एक नास्तिक है और जेएनयू में पढ़ रहा है। यह उसके सेक्युलर होने की पुष्टि करता है। प्रसाद ने कहा, “फिर आप एक मुस्लिम समूह (JNU के मुस्लिम छात्र) में क्यों शामिल हुए? आप सार्वजनिक तौर पर खुद को कुछ और बताते हैं।”

विशेष लोक अभियोजक ने दिल्ली दंगों के साथ सीएए-एनआरसी के विरोध की पृष्ठभूमि में हुई दंगों की कई घटनाओं के बीच समानताएँ भी बताईं। इसमें कहा गया, “दिसंबर 2019 के दंगों में शामिल लगभग हर व्यक्ति 2020 में सामने आया… 2019 और 2020 के बीच का अंतर सिर्फ जामिया और शाहीन बाग का है, जिसे जानबूझकर टाला गया और 2020 में इसी सही ठहराने के लिए महिलाओं को आगे कर इस्तेमाल किया गया।”

गौरतलब है कि पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत ने माना था कि जेनएयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन ने पिछले साल की शुरुआत में राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा की साजिश रची थी। कोर्ट ने एक बयान में कहा था कि शुरुआती सबूतों से ऐसा ही मालूम होता है। आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया जाँच निष्कर्षों के अनुसार, JNU के छात्र नेता रहे उमर खालिद और AAP के पार्षद रहे ताहिर हुसैन ने मिल कर नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली दंगों की साजिश रची थी – ये मानने के वाजिब आधार हैं। चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दिनेश कुमार ने ये बातें कही थीं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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