Sunday, December 22, 2024
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शेर खान ने किया श्रीराम मंदिर पर हमला, गेट तोड़ने और पुजारी को मंदिर न खोलने की धमकी: मथुरा पुलिस के ‘मानसिक विक्षिप्त’ बयान पर गुस्से में हिंदू

पुजारी ने अपनी जान बचाने के लिए मंदिर के अंदर छुपकर गेट बंद कर लिया। घटना के बाद स्थानीय हिंदू संगठनों और लोगों में आक्रोश फैल गया। उन्होंने आरोपित की गिरफ्तारी की माँग की, जिसने पुजारी से बदसलूकी की।

मथुरा के श्रीराम मंदिर में मुस्लिम युवक शेर खान ने पुजारी पर हमला किया और मंदिर में ईंट-पत्थर फेंके। यह घटना तब हुई जब मंदिर के पुजारी अरुण चौधरी सोमवार (23 सितंबर 2024) की सुबह मंदिर की सफाई कर रहे थे। तभी शेर खान नाम के हमलावर ने ईंट-पत्थर फेंककर मंदिर पर हमला किया और महंत को धमकी दी कि वे मंदिर न खोलें।

मथुरा की घटना

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मथुरा के राया थाना इलाके में स्थित श्रीराम मंदिर पर शेर खान नामक युवक ने हमला किया। मंदिर की सफाई करते समय शेर खान नाम का युवक पहुँचा और पुजारी को धमकाने लगा। यही नहीं, पुजारी अरुण चौधरी को शेर खान ने साफ तौर पर कहा कि वो अगले दिन से मंदिर को खोले ही न, वर्ना अंजाम बुरा होगा।

शेर खान ने दावा किया कि मंदिर उसका है और अगली बार इसे खोलने पर गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पुजारी ने हमले के बाद मंदिर के अंदर छुपकर अपनी जान बचाई और पुलिस को सूचित किया। इस दौरान शेर खान ने मंदिर के गेट को तोड़ने की कोशिश की और जमकर गाली-गलौच की।

मौके पर पुलिस पहुँचती, उससे पहले ही शेर खान फरार हो गया। मौके पर पहुँचे पुलिस कर्मियों ने भी पुजारी से बदतमीजी की, जिसके बाद स्थानीय लोग भड़क गए। सूचना पर एसपी देहात त्रिगुन विसेन क्षेत्राधिकारी महावन भूषण वर्मा मौके पर पहुँचे और गलत भाषा का प्रयोग करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन देकर लोगों को शांत कराया।

वहीं, घटना के बाद पुलिस ने हमलावर शेर खान को गिरफ्तार कर लिया और उसे मानसिक विक्षिप्त करार दिया। इस दावे पर हिंदू संगठनों और स्थानीय लोगों में आक्रोश है।

गुस्साए लोगों का कहना है कि यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी मुस्लिम व्यक्ति ने हिंदू धार्मिक स्थल पर हमला किया हो और उसे मानसिक विक्षिप्त बताकर बचाने का प्रयास किया गया हो।

मानसिक विक्षिप्तता का पैटर्न

भारत में हिंदू मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर होने वाले हमलों की घटनाएँ हाल के वर्षों में बढ़ी हैं, और कई मामलों में पुलिस या संबंधित लोग हमलावरों को मानसिक रूप से विक्षिप्त बताकर उनके बचाव का प्रयास करते दिखते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा की घटना में भी हमलावर शेर खान को मानसिक विक्षिप्त करार दिया गया।

मथुरा की यह घटना कोई अकेली घटना नहीं है। ऐसी घटनाएँ आम होती जा रही हैं, और एक पैटर्न दिख रहा है कि मुस्लिम समुदाय के लोग जब हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमला करते हैं, तो उन्हें मानसिक विक्षिप्त बताकर बचाने की कोशिश की जाती है। कई उदाहरण हमारे सामने हैं, जिसमें हिंदू धार्मिक स्थलों पर हुए हमलों में मुस्लिम हमलावरों को मानसिक विक्षिप्त बताकर उनका बचाव किया गया। कुछ ऐसे ही मामलों पर नजर डालते हैं:

शिवमोग्गा की घटना (2024): प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव के दौरान एक बुर्काधारी महिला ने अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाए। जब उसके परिजनों से पूछा गया, तो उन्होंने उसे मानसिक रूप से बीमार बताया।

मोहम्मद मोइउद्दीन का हमला (2023): बिहार में ईद के दिन मोइउद्दीन ने मंदिर में घुसकर देवी के सामने पेशाब किया। पुलिस ने उसे मानसिक विक्षिप्त बताकर बचाने का प्रयास किया।

जावेद का उन्नाव महादेव मंदिर पर हमला (2023): जावेद ने उन्नाव के महादेव मंदिर में हमला किया और 8 लोगों को घायल कर दिया। मीडिया ने उसे मानसिक विक्षिप्त बताकर पेश किया।

शाह आलम का दुर्गा पूजा पंडाल में प्रवेश (2023): एक व्यक्ति ने दुर्गा पूजा पंडाल में कुरान लेकर प्रवेश किया और लोगों ने उसे पकड़ लिया। पुलिस ने उसे मानसिक रूप से बीमार बताकर छोड़ दिया।

आरा शेख का शिवलिंग पर पेशाब करना (2023): पश्चिम बंगाल में एक युवक ने मंदिर में शिवलिंग पर पेशाब किया और इसका वीडियो वायरल हुआ। पुलिस ने उसे मानसिक विक्षिप्त बताकर कार्रवाई नहीं की।

सद्दाम का काली मंदिर में हमला (2023): उत्तराखंड में सद्दाम ने काली मंदिर में पेशाब किया। पुलिस ने उसे मानसिक रूप से बीमार बताकर बचाने का प्रयास किया, जबकि उसे पकड़ने के लिए 200 से ज्यादा सीसीटीवी की फुटेज छाननी पड़ी।

ऐसे हमलों की बढ़ती घटनाएँ

साल 2022 में भी कई ऐसी घटनाएँ सामने आईं, जहाँ मुस्लिम समुदाय के हमलावरों को मानसिक विक्षिप्त बताकर बचाने की कोशिश की गई। जैसे कि गोरखपुर में अहमद मुर्तजा अब्बासी ने चाकुओं से हमला किया और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उसका बचाव मानसिक विक्षिप्त बताकर किया, जबकि बाद में उसे आतंकवादी संगठनों से जुड़ा पाया गया। वो आईएसआईएस जैसे दुर्दांत आतंकवादी संगठन से जुड़ने वाला था।

राँची में मंदिर के गेट का ताला खोलकर फिर बजरंग बली की मूर्ति तोड़ने वाला रमीज अहमद फरार हो गया। आराम से अपनी जिंदगी जीने लगा। सीसीटीवी फुटेज में उसका चेहरा दिखा, तो पकड़ा गया। लेकिन जो रमीज मंदिर का ताला तोड़कर मूर्ति तोड़ने के समय पूरी तरह से होश में था, वो राँची की पुलिस मानसिक विक्षिप्त बताने लगी।

कई लोग सवाल उठाते हैं कि आखिर क्यों हर बार मुस्लिम हमलावरों को मानसिक विक्षिप्त बताकर उनके अपराध को हल्का किया जाता है। आप बताइए, क्या सिर्फ मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति ऐसा कर सकता है? ऐसे में पुलिस और प्रशासन पर यह आरोप लगने लगे हैं कि वे धार्मिक हमलों पर ढील बरत रहे हैं, जिससे समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा है।

सांप्रदायिक तनाव न बढ़े, इसके लिए सहते रहें हिंदू?

इस पूरे मामले के पीछे राजनीतिक और सामाजिक कारण भी हो सकते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि मुस्लिम हमलावरों को मानसिक विक्षिप्त बताकर उनके समुदाय की छवि को बचाने का प्रयास किया जाता है, ताकि सांप्रदायिक तनाव न बढ़े। लेकिन यह रणनीति हिंदू समुदाय में असंतोष पैदा कर रही है। वे इसे अपने धार्मिक स्थलों पर हमला और अपनी मान्यताओं का अपमान मानते हैं।

मथुरा में श्रीराम मंदिर पर हमला और उससे जुड़ी मानसिक विक्षिप्तता की राजनीति केवल एक घटना नहीं है, बल्कि एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा है, जो बार-बार देखा जा रहा है। हर बार जब मुस्लिम समुदाय से संबंधित कोई व्यक्ति हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमला करता है, उसे मानसिक विक्षिप्त बताकर बचाने का प्रयास किया जाता है। यह स्थिति दोनों समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाने का कारण बन रही है, और इसे जल्द ही सुलझाने की आवश्यकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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