अयोध्या रामजन्मभूमि मामले में आज (10 मई) को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कलीफुल्ला कमिटी की रिपोर्ट पेश की गई। कमिटी की रिपोर्ट देखकर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली संविधान पीठ ने कहा कि कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में मध्यस्थता को लेकर सकारात्मक प्रगति की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 अगस्त तककमिटी का कार्यकाल बढ़ा दिया है।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, “हमें मध्यस्थता कमिटी की रिपोर्ट मिली है और हमने इसे पढ़ा है। अभी समझौते की प्रक्रिया जारी है। हम रिटायर्ड जस्टिस कलीफुल्ला की रिपोर्ट पर विचार कर रहे हैं। रिपोर्ट में सकारात्मक विकास की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है।” इसके अलावा उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट यह नहीं बताएगा कि मध्यस्थता कितनी प्रगति हुई है, यह गोपनीय रखा गया है।
#RamMandir – #BabriMasjid: We wont disclose progress made by committee at this stage, let it remain confidential, remarks CJI Ranjan Gogoi.#Ayodhya @BJP4India @INCIndia
— Bar & Bench (@barandbench) May 10, 2019
सुनवाई के दौरान कुछ हिन्दू पक्षकारों ने मध्यस्थता की प्रक्रिया पर अपनी आपत्ति दर्ज की। उन्होंने कहा कि पक्षकारों के बीच कोई समन्वय नहीं है। वहीं मुस्लिम पक्षकारों की ओर से राजीव धवन ने कहा कि हम मध्यस्थता प्रक्रिया का पूरी तरह से समर्थन करते हैं। अयोध्या मामले में मध्यस्थता पैनल द्वारा सीलबंद लिफ़ाफे में पेश की गई रिपोर्ट को देखने के बाद कोर्ट ने अतिरिक्त समय देने की उनकी माँग को सहमति दी।
A five judge Constitution bench of the Supreme Court starts hearing the #Ayodhya matter. The five-judge bench headed by Chief Justice of India (CJI) Ranjan Gogoi includes Justices SA Bobde, SA Nazeer, Ashok Bhushan and DY Chandrachud. pic.twitter.com/ccEkNeJfVh
— ANI (@ANI) May 10, 2019
बता दें की अयोध्या में राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट का पिछले दिनों एक बड़ा फैसला आया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अयोध्या मसले का समाधान मध्यस्थता से निकाला जाए। मध्यस्थता के लिए पूर्व जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक पैनल बनाया गया था। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर, वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू को शामिल किया गया था। मध्यस्थता की प्रक्रिया फैज़ाबाद में होनी थी और यह पूरी तरह से गोपनीय थी।
अयोध्या मामले के इतिहास पर नज़र डाले तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला घड़ी को उल्टी दिशा में घुमाकर 30 साल पीछे ले जाता दिखता है। क्योंकि, इससे पहले ऐसी ही कोशिश 1990 में की गई थी। अंतर बस इतना है कि उस समय यह पहल केंद्र सरकार ने की थी और इस बार इसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है।