नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ बवाल शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। विरोध प्रदर्शन के नाम पर नागरिकता के इस नए कानून को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा की जा रही है। असम से शुरू हुए इस विरोध प्रदर्शन की लपटों ने पहले कोलकाता को अपने आगोश में लिया, इसके बाद दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के हिंसक प्रदर्शन ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। अब भुवनेश्वर के समुदाय विशेष ने भी विरोध के नाम पर देश-विरोधी और हिंदुओं के खिलाफ नारे लगाए। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ समुदाय ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया है।
इस बीच उड़ीसा के भुवनेश्वर में हुए विरोध प्रदर्शन का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें विरोध के नाम पर हिन्दू विरोधी और देश विरोधी नारे लगाए जा रहे हैं। प्रदर्शनकारी उर्दू में लिखी तख्ती को लेकर विरोध कर रहे हैं और नारे लगा रहे हैं, “हम लेकर रहेंगे आजादी, इन काफिरों से आजादी, इन हत्यारों से आजादी, इस जहन्नुम से चाहिए आजादी, पुलिस बर्बरता से चाहिए आजादी, इस नाइंसाफी से चाहिए आजादी, इस्लामोफोबिया से चाहिए आजादी, दंगाइयों से आजादी।”
Bhubaneswar : Protests against CAB & NRC in Urdu
— Rationalist/ହେତୁବାଦୀ (@agnostic_monk_) December 20, 2019
Slogan : Ham leke rahenge aazadi
In kafiroo se aazadi pic.twitter.com/G3FW9q3vAs
इसके अलावा सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो सामने आए हैं, जिनमें नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने हिंसक रुख अख्तियार करते हुए पुलिसकर्मियों पर खूनी हमले किए, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया है। लेकिन किसी वामपंथी और जनवादी लेखक ने इस तरह के हिंसक कृत्यों की कोई निंदा नहीं की है। बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून से भारत के 20 करोड़ से अधिक अल्पसंख्यकों में से किसी एक को भी किसी प्रकार का कानूनी संकट नहीं आने वाला है। यह वैधानिक रूप से एक तथ्य है और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह संसद से लेकर हर लोकमंच पर स्पष्ट कर चुके हैं। इसके बावजूद दूसरे मजहब के लोग लगातार बिना तथ्य को जाने, बिना विरोध की वजह जाने देश विरोध और हिंसक कृत्य करने पर उतारू हैं।
इतना ही नहीं, जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) अभी प्रस्तावित ही नहीं है उसका पूरा खाका (फर्जी और भ्रम फैलाने वाला) बनाकर पेश कर दिया गया है। इतिहास की भारत विरोधी भावनाएँ गढ़ने वाले ये बुद्धिजीवी असल में अपने असली चरित्र पर आ गए हैं। उनकी अपनी नाजी मानसकिता आज सबके सामने आ गई है, जो किसी भी सूरत में दक्षिणपंथी या अन्य विचार को स्वीकार नहीं करती है। इसके लिए वह झूठ या फिर हिंसा सबको जायज मानती है। हालाँकि, वह आज भी मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी भारत विरोधी और अल्पसंख्यकवादी राजनीतिक दलीलों को नया भारत खारिज कर चुका है।
2019 की इस मजहबी उन्मादी आग से 2024 में कितनी रोशन होगी भाजपा?