Saturday, July 27, 2024
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जिसे कॉन्ग्रेस ने बनाया ‘पिंजरे में बंद तोता’, वो CBI मोदी राज में सरकारी नियंत्रण से मुक्त: सुप्रीम कोर्ट को केंद्र ने बताया, बंगाल सरकार ने दायर की थी याचिका

दिसंबर 2023 को केंद्र की ओर से कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा को सूचित किया गया था इन दस राज्यों ने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है। दरअसल, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम 1946 की धारा 6 के अनुसार सीबीआई को अपने अधिकार क्षेत्र में जाँच करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है।

भ्रष्टाचार और अपराध पर जीरो टोलरेंस की नीति अपनाने वाली केंद्र की मोदी सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप अक्सर विपक्षी दल लगाते रहते हैं। हालाँकि, केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि केंद्र के नियंत्रण में काम नहीं करतीं। केंद्र सरकार ने गुरुवार (2 मई 2024) को सुप्रीम कोर्ट को कहा कि सीबीआई उसके ‘नियंत्रण’ में नहीं है।

दरअसल, पश्चिम बंगाल सरकार ने एक मुकदमे में आपत्ति उठाई थी और कहा था कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) कई मामलों में राज्य सरकार उसकी अनुमति लिए बिना ही अपनी जाँच को आगे बढ़ा रही है। इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने यह बात कही।

पश्चिम बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक मूल मुकदमा दायर किया है। अनुच्छेद 131 केंद्र और एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार से संबंधित है। इसमें आरोप लगाया गया है कि राज्य द्वारा संघीय एजेंसी को दी गई सहमति वापस लेने के बावजूद CBI एफआईआर दर्ज कर रही है और जाँच कर रही है।

केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ को बताया कि संविधान का अनुच्छेद 131 सुप्रीम कोर्ट को प्रदत्त ‘सबसे पवित्र’ क्षेत्राधिकारों में से एक है और इस प्रावधान को दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य के मुकदमे में संदर्भित मामले भारत संघ द्वारा दायर नहीं किए गए हैं।

तुषार मेहता ने कहा, “भारत संघ ने कोई मामला दर्ज नहीं किया है। इसे सीबीआई ने दर्ज किया है। सीबीआई भारत संघ के नियंत्रण में नहीं है।” बताते चलें कि 16 नवंबर 2018 को पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार ने राज्य में जाँच करने या छापेमारी करने के लिए CBI को दी गई ‘सामान्य सहमति’ वापस ले ली थी।

दरअसल, सीबीआई भ्रष्टाचार एवं अन्य अपराध के मामलों की जाँच कर रही है। ऐसे में विपक्षी दल केंद्र पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि सीबीआई और ईडी के जरिए केंद्र सरकार विपक्षी दलों को डरा-धमका रही है। हालाँकि, केंद्र ने कई बार स्पष्ट किया है कि केंद्रीय एजेंसी सिर्फ अपना काम कर रही है।

इन आरोपों के आधार पर विपक्षी दलों की सरकार वाली राज्य सरकारों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में मामलों की जाँच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है। जिन राज्यों ने ऐसा किया है, उनमें 10 राज्य शामिल हैं। ये राज्य हैं- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, पंजाब, झारखंड, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम, और मेघालय।

दिसंबर 2023 को केंद्र की ओर से कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा को सूचित किया गया था इन दस राज्यों ने सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है। दरअसल, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम 1946 की धारा 6 के अनुसार सीबीआई को अपने अधिकार क्षेत्र में जाँच करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है।

बताते चलें कि इसी सीबीआई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में कड़ी टिप्पणी की थी और उसे पिंजरे का तोता बताया था। दरअसल, यूपीए सरकार में हुए कोयला घोटाले पर सीबीआई की स्‍टेटस रिपोर्ट में तत्कालीन कानून मंत्री अश्विनी कुमार और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के हस्‍तक्षेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट भड़क गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने था कि सीबीआई के कई मास्‍टर हैं और जाँच एजेंसी एक तोते की तरह है। कोर्ट ने कहा था, “सीबीआई वो तोता है जो पिंजरे में कैद है। इस तोते को आजाद करना जरूरी है। सीबीआई एक स्‍वायत्त संस्‍था है और उसे अपनी स्‍वायत्तता बरकरार रखनी चाहिए। सीबीआई को एक तोते की तरह अपने मास्‍टर की बातें नहीं दोहरानी चाहिए।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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