चंडीगढ़ की एक अदालत ने शनिवार (30 मार्च 2025) को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव को भ्रष्टाचार के मामले में बरी कर दिया है। दरअसल, साल 2008 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) द्वारा निर्मल यादव एवं अन्य लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कर दिया है। इस मामले में शामिल तीन अन्य लोगों को भी बरी कर दिया गया है।
चंडीगढ़ की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अलका मलिक की विशेष अदालत ने जिन अन्य आरोपितों को बरी किया है, उनके नाम हैं- रविन्द्र सिंह भसीन, राजीव गुप्ता और निर्मल सिंह। राजीव गुप्ता ने दावा किया था कि यह पैसा एक ज़मीन सौदे मिला है। वहीं, निर्मल सिंह ने पैसे के उद्देश्य के बारे में झूठा बयान दिया था। वहीं, होटल व्यवसायी रविंद्र सिंह ने दावा किया था कि यह पैसा उनके हैं।
जिस समय निर्मल यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था, उस समय वह हाई कोर्ट की जज और पूर्व न्यायिक अधिकारी थीं। यह पूरा मामला रुपए से भरे बैग को लेकर था, जिसमें 15 लाख रुपए भेजे गए थे।दरअसल, अगस्त 2008 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की जज निर्मलजीत कौर के आवास पर 15 लाख रुपए से भरा एक बैग पहुँचाया गया था।
इसके बाद जस्टिस कौर के चपरासी ने इस मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी थी। इसके बाद चंडीगढ़ पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज की थी। बाद में पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल के आदेश पर मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने इस मामले की जाँच शुरू की, लेकिन कुछ समय के बाद केस को बंद करने के लिए कोर्ट में कोर्ट क्लोजर रिपोर्ट डाल दी।
हालाँकि, रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया। इसके बाद साल 2011 में सीबीआई ने आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। साल 2014 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने पाँच आरोपितों के खिलाफ आरोप तय किए। जस्टिस कौर ने साल 2016 में कोर्ट में अपना बयान रिकॉर्ड कराया। मुख्य आरोपियों में से एक पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने कोर्ट में इस केस को बंद करने का आवेदन दिया।
बंसल ने कहा कि वह सिर्फ कूरियर ब्वॉय थे और होटल व्यवसायी रवींद्र सिंह का पैसा निर्मल सिंह पहुँचाने गए थे। बाद में दिसंबर 2016 में मोहाली में बंसल की मौत हो गई। इसके बाद जनवरी 2017 में उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई। इसमें कुल 84 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। अभियोजन पक्ष के अनुसार, हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के क्लर्क ने यह पैसा भेजा था।
यह पैसे जस्टिस निर्मल यादव के लिए भेजे थे। हालाँकि, दोनों जजों की नाम में समानता होने के कारण पैसा गलती से जस्टिस निर्मल यादव के पास नहीं पहुँचकर जस्टिस निर्मलजीत कौर के पास पहुँच गया। बाद में साल 2010 में जस्टिस यादव को उत्तराखंड हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया। बाद वह इसी हाई कोर्ट से रिटायर हो गईं।
जस्टिस निर्मलजीत कौर को जब ये पैसे मिले थे, उस समय हाई कोर्ट में आए हुए उन्हें सिर्फ 33 दिन हुए थे। उन्होंने अपने बयान में बताया था कि उनका चपरासी उनके पास आकर बोला था कि दिल्ली से उनके लिए कागज आया है। इसके बाद उन्होंने उसे खोलने के लिए कहा। वह टेप में लिपटा हुआ था। इसके बाद जस्टिस कौर ने अपने चपरासी से कहा था, इसे लाने वाले को जल्दी पकड़ो।
पैसे डिलीवर होने के कुछ देर बाद संजीव बंसल ने जस्टिस कौर को फोन किया और बताया कि ये पैसे गलती से उनके घर पहुँच गए हैं। संजीव बंसल ने जस्टिस कौर से कहा था कि असल में ये पैसे निर्मल सिंह नाम के व्यक्ति के लिए थे। हालाँकि, तब तक जस्टिस कौर पुलिस को सूचित कर चुकी थीं। उन्होंने इसकी सूचना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर को भी दे दी थी।