Saturday, April 27, 2024
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वनटाँगिया समुदाय के साथ 24वीं दिवाली मनाएँगे CM योगी: 100 वर्षों से उपेक्षित इन जंगलवासियों को दिलाया था हक, इसके लिए झेला मुकदमा भी

वनटाँगिया की कहानी ब्रिटिश काल से शुरू होती है। जब अंग्रेज रेल पटरियाँ बिछा रहे थे, उस समय जंगलों से साखू के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हुई। इसके एवज में अंग्रेजों ने साखू ने के नए पौधों को रोपने और उनकी देखरेख करने के लिए गरीब और भूमिहीन लोगों को जंगल में बसाया।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कुसम्ही जंगल स्थित वनटाँगिया गाँव जंगल तिकोनिया नम्बर 3 में हर साल दीपावली मनाते हैं। गोरखपुर में स्थित यह एक ऐसा गाँव है, जहाँ ‘योगी बाबा’ के नाम पर दीप जलाए जाते हैं। इस गाँव के लोगों को दिवाली का बेसब्री इंतजार रहता है। इस बार मुख्यमंत्री योगी इस गाँव के लोगों के साथ दिवाली मनाएँगे। मुख्यमंत्री के आगमन को लेकर जिलाधिकारी विजय किरण आनंद, सीडीओ इंद्रजीत और अन्य विभाग के अधकारियों ने जंगल तिनकोनिया नंबर तीन वनटांगिया गाँव का दौरा किया।

इस गाँव में ‘योगी बाबा’ के नाम पर दीये जलाने की कुछ ऐसी परंपरा है कि लोग कहते हैं कि बाबा (सीएम योगी) नहीं आएँगे तो दीये नहीं जलाए जाएँगे। करीब 25 साल पहले क्षेत्र के सांसद और गोरक्ष पीठाधीश्वर के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वनटाँगियों के साथ दिवाली मनाने की परंपरा शुरू की थी। यह परंपरा आज भी जारी है और मुख्यमंत्री की दिवाली मनाने की शुरुआत इस बस्ती से ही होती है।

वनटाँगिया के लोगों को वंचितों में भी वंचित माना जाता है। यह समुदाय 100 साल से भी अधिक समय तक उपेक्षित और बदहाल रहा। इसे समाज के मुख्यधारा से जोड़ने और इनके विकास के लिए किये गए कार्यों का श्रेय योगी आदित्यनाथ को जाता है। इन लोगों के विकास के लिए मुख्यमंत्री योगी ने जमीनी स्तर से काम किये हैं। यही कारण है कि इस दिवाली में भी प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान अपने संरक्षक का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। लोग सीएम योगी के स्वागत के लिए गाँव को सजाने-सँवारने में जुटे हैं।

वनटाँगिया की कहानी ब्रिटिश काल से शुरू होती है। जब अंग्रेज रेल पटरियाँ बिछा रहे थे, उस समय जंगलों से साखू के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हुई। इसके एवज में अंग्रेजों ने साखू ने के नए पौधों को रोपने और उनकी देखरेख करने के लिए गरीब और भूमिहीन लोगों को जंगल में बसाया। साखू के जंगल को बसाने के लिए बर्मा (म्यांमार) की ‘टाँगिया विधि’ का इस्तेमाल किया गया था। इसलिए इनलोगों का नाम वनटाँगिया पड़ गया।

वर्ष 1918 में वनटाँगियों की कुसम्ही जंगल के 5 इलाकों- जंगल तिनकोनिया नम्बर 3, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी और चिलबिलवा में बस्तियाँ बसीं। इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में भी अलग-अलग स्थानों पर इनके 18 गाँव बसे। आजादी के बाद इस समुदाय का जीवन पहले जैसा ही रहा और इन्हें देश की नागरिकता तक नहीं मिली। इन्हें जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी अन्य निर्माण की भी इजाजत नहीं थी। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के सिवाय इनके पास जीवकोपार्जन के लिए कोई अन्य साधन नहीं था। इसके अलावा, वन विभाग की तरफ से बेदखली की कार्रवाई का भी डर बना रहता था।

जब 1998 में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पहली बार सांसद बने, तब वनटाँगिया समुदाय की हालत पर संज्ञान लिया। वनटांगियों को नक्सली बनाने के दिशा में लगे देशद्रोही तत्वों पर लगाम लगाने के लिए उन्होंने इन बस्तियों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने का संकल्प लिया। इस काम में उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद ने अग्रणी भूमिका निभाई। परिषद द्वारा संचालित एमपी कृषक इंटर कॉलेज और एमपीपीजी कॉलेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा इसके आगे आई। शिक्षा और चिकित्सा के लिए तिनकोनिया नम्बर 3 वनटांगिया गांव में वर्ष 2003 में शुरू की गई सेवा 2007 तक परिलक्षित होने लगी।

वर्ष 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर 3 में योगी आदित्यनाथ के सहयोगी वनटाँगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डालकर एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे। इस दौरान वन विभाग ने इसे अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी। आज यह स्कूल हिंदू विद्यापीठ के नाम से जाना जाता है। इसी साल से मुख्यमंत्री योगी ने वनटाँगियों के साथ दिवाली मनाने की परंपरा शुरू की, जो आज भी जारी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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